सहनशक्ति
उदास मन से ही सही,
ले चलो मुझे अपने
उस नरक के अंदर
जिसमे तुम सदियों से
रह रही हो ,
सब दुःख तुम
स्वयं सह रही हो.
एक बार मैं भी तो जानू
स्त्रियों को इतनी
सहनशक्ति
कहाँ से मिलती है?
विजय प्रकाश शर्मा
अप्रकाशित व मौलिक
Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on October 6, 2014 at 11:50am — 10 Comments
"वैभव छन्द" की रचना- एक भगण, एक सगण तथा लघु गुरू अर्थात्- 211, 112, 12 के योग से की जाती है।
श्वेत बसन शारदे!
नित्य नमन राम को।
प्रेम रमन श्याम को।।
सूर्य प्रखर तेज है।
कंट असर सेज है।।1
रात दिन विचारता।
आर्त जन पुकारता।।
कष्ट तम हरो प्रभू।
ज्योति बल तुम्ही विभू।।2
विश्व सकल आप से।
सृ-िष्ट विकल ताप से।।
पाप-पतित तारना।
सत्य शिवम कामना।।3
जीव जड़…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 6, 2014 at 11:35am — 6 Comments
प्रेम-कर्तव्य और सदाबहार
संकर-जाती के दो सदाबहार
एक कर्तव्य-बोध दूसरा प्रतीक-प्यार
रोप थे इस बार/देशी के मुरझाने के बाद
उम्मीद थी दोनों बढ़ेंगे-खिलेंगे
मेरे जीवन में नव-रंग भरेंगे
लाएँगे फिर मधुमास
पूरा था विश्वास/मन में था उल्लास |
मगर प्रेम-प्रतीक कुम्हला गया है
उसके अस्तित्व पे संकट आ गया है
बरसात के पानी ने उसकी जड़े गला दी
उसके होने कि प्रासंगिकता घटा दी हैं |
यूँ तो वो शुरु से कमज़ोर था
और यदा-कदा…
ContinueAdded by somesh kumar on October 6, 2014 at 9:30am — No Comments
मां भारती की शान को, अस्मिता स्वाभिमान को,
अक्षुण सदा रखते, सिपाही कलम के ।
सीमा पर छाती तान, हथेली में रखे प्राण,
चैकस हो सदा डटे, प्रहरी वतन के ।
चांद पग धर कर, माॅस यान भेज कर,
जय हिन्द गान लिखे, विज्ञानी वतन के ।
खेल के मैदान पर, राष्ट्र ध्वज धर कर,
लहराये नभ पर, खिलाड़ी वतन के ।
हाथ में कुदाल लिये, श्रम-स्वेद भाल लिये,
श्रम के गीत गा रहे, श्रमिक वतन के…
Added by रमेश कुमार चौहान on October 5, 2014 at 2:00pm — 2 Comments
आँक दूँ ललाट पर
मैं चुम्बनों के दीप, आ..
रात भर विभोर तू
दियालिया उजास दे..
संयमी बना रहा
ये मौन भी विचित्र है
शब्द-शब्द पी
करे निनाद-ब्रह्म का वरण..…
Added by Saurabh Pandey on October 5, 2014 at 11:30am — 34 Comments
“नमस्कार बाबू जी..! मुझे इस खसरे की नकल जल्द से जल्द निकलवाना है, यह रहा मेरा आवेदन” रमेश ने सरकारी दफ्तर में फाइलों के बीच सिर दिए बाबू से कहा
“ अरे भाईसाहब..! जिसे देखो उसे जल्दी है. यहाँ इतना काम फैला पड़ा है और स्टाफ भी कम है, अपना आवेदन दे जाइए और आप १५ दिनों के बाद आइयेगा. आपको नकल मिल जायेगी. हाँ..! अगर जरुरी काम हो ,जल्दी चाहिए तो थोड़ा सेवा-शुल्क कर दीजिये. कल ले जाना अपनी नकल” बाबू ने रमेश का आवेदन लेकर फ़ाइल कवर में रखते हुए कहा
“ अरे बाबू जी..! कैसी…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on October 4, 2014 at 11:59am — 14 Comments
२१२२ २१२२ २१२२
ढूँढती इक मौज तूफां में किनारा
क्यूँ समझता ही नहीं सागर ईशारा
तिश्नगी उसको कहाँ तक ले गई है
अक्स अपना झील में उसने उतारा
फ़र्क क्या पड़ता चमकती चाँदनी को
छटपटाता फिर कहीं टूटा सितारा
फट गया जो पैरहन तो ग़म नहीं है
चाक दिल सिलता नहीं देखो दुबारा
डोलती किश्ती बढ़ाती हाथ अपना
उस तरफ़ तुम मोड़ लो अपना शिकारा
खोल दो गर तुम लटकती उस पतंग को
लोग…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 4, 2014 at 10:30am — 27 Comments
गैर कोई है छिपा सा देखता हूँ
***********************************
2122 2122 2122
जब अंधेरों में उजाला देखता हूँ
सच में रोशन भी हुआ क्या, देखता हूँ
मैंने कल काँटा चुभा तो, फूल माना
कुछ असर उसपे हुआ क्या, देखता हूँ
लोग इंसानों की भाषा बोल लें पर
गैर कोई है छिपा सा देखता हूँ
अश्क़ कोई देख लेता है निहानी
तब ख़ुदाई, मैं ख़ुदाया देखता हूँ
ख्वाब सारे थे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 3, 2014 at 8:30pm — 9 Comments
उनका अभिनंदन है जो कुछ कर गुजरते हैं ।
भाग्य की प्राण-प्रतिष्ठा के हवन में भी
कर्म ही यजमान बनकर होम करते हैं ।
मेरे शब्दों को अभी स्वर की तमन्ना है,
फड़फड़ाते पंख को आकाश बनना है,
वेदना के गर्भ में संकल्प पलता है
हर अमा को चीर कर सूरज निकलता है
आश्वासन आस से परिहास मत करना
आँसुओं से अन्ततः अंगार झरते हैं ।
चेतना की बाँसुरी को स्नेह की सरगम,
भावना को दे नये उद्गम, नये संगम,
ओस बन अन्तःकरण के कुसुम को धो दे
बीज…
Added by Sulabh Agnihotri on October 2, 2014 at 8:30pm — 12 Comments
"कुछ पुन्य कर्म भी कर लिया करो भाग्यवान, सोसायटी की सारी औरतें कन्या जिमाती है, और तू है कि कोई धर्म कर्म है ही नहीं|"
"देखिये जी लोग क्या कहते है, करते है इससे हमसे कोई मतलब ......"
बात को बीच में काटते हुए रमेश बोले- "हाँ हाँ मालुम है तू तो दूसरे ही लोक से आई है, पर मेरे कहने पर ही सही कर लिया कर|"
नवमी पर दरवाजे की घंटी बजी- -सामने छोटे बच्चों की भीड़ देख सोचा रख ही लूँ…
Added by savitamishra on October 2, 2014 at 7:00pm — 6 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on October 2, 2014 at 1:43pm — 11 Comments
नवरात्रि के जश्न में कुछ सुलगते प्रश्न - डॉ हृदेश चौधरी
हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार कुंवारी कन्याएँ माता के समान ही पवित्र और पूजनीय होती है साक्षात देवी माँ का स्वरूप मानी जाती है इसलिए “ या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता” भाव के साथ अष्टमी और नवमी के दिन कन्या (कंजिका) पूजन किया जाता है। वेदिक काल के पूर्व से ही कन्या पूजन का विधान रहा है और धर्मशास्त्रों में भी इस बात की स्वीकारोक्ति…
ContinueAdded by DR. HIRDESH CHAUDHARY on October 2, 2014 at 1:30pm — 4 Comments
" अम्बे है मेरी माँ , दुर्गे है मेरी माँ " गुनगुनाते हुए बटोही गली में झाड़ू लगा रहा था | अचानक सामने से एक भीड़ आई और वो किनारे हट गया |
" अरे मिल गया रे झाड़ू " चिल्लाते हुए लोगों का हुजूम , जिसमे कुछ खद्दरधारी भी थे , बटोही की ओर बढ़ा | जब तक वो कुछ समझे , झाड़ू छीन लिया गया था और फिर भीड़ ने बारी बारी से झाड़ू लगाते हुए फोटो खिंचाई | इसी छीना छपटी में बेचारे बटोही का झाड़ू भी टूट गया |
" सर , मेरी फोटो देखी आपने , आजके सांध्यकालीन अखबार में छपी है " , बताते हुए नेताजी बहुत प्रसन्न थे |…
Added by विनय कुमार on October 2, 2014 at 1:00pm — 10 Comments
"रागिनी ! इन छोटी छोटी बातों को नजरंदाज करना सीखो I"
"तो आप क्या चाहते हैं कि मैं चुप बैठी रहूँ ?"
"देखो अकेली यात्रा करोगी तो कोई न कोई ऐसा व्यवहार करेगा ही I अब क्या मिलेगा पुलिस में शिकायत करने से ?"
राजेंद्र ने छोटी बहन को समझाया।
"आपकी बेटी भी तो कुछ ही सालों में जवान हो जाएगी भाईसाब I "
भाई के माथे पर अचानक पसीने की बूँदें चुहचुहा उठीं।
"रुक रग्गो, गाड़ी निकालने दे मुझे, हम सब तुम्हारे साथ चलेंगे रिपोर्ट लिखवाने I "
(संशोधित)
मौलिक व अप्रकाशित
Added by वेदिका on October 2, 2014 at 12:30pm — 11 Comments
हमारे पास आता जो वही दिल तोड़ जाता है
रहे जलता हमारा दिल मगर वो मुस्कुराता है
हमारी जिन्दगी में क्यों अधेरा ही रहे छाया
मिले न चैन दिल को क्यों भटकती है मेरी काया
न कोई दो कदम चल कर हमें जीना सिखाता है
रहे जलता हमारा दिल मगर वो मुस्कुराता है
हमारे पास आता जो वही दिल तोड़ जाता है
न नदियों को कभी देखा मिलाते दो किनारो को
बचाते फूल को मैने नहीं देखा बहारो को
जिसे हम खास कहते है वही हमको मिटाता…
Added by Akhand Gahmari on October 2, 2014 at 10:21am — 6 Comments
पटियाला-शांत शहर और दिलवाले लोग (यात्रा वृतांत-१) से आगे …
संगीत-संध्या में धमाल करते-करते और रात्री-भोजन के सुस्वादु व्यंजनों के दौरान भी एक दूसरे की जम कर खिंचाई हुयी और भोजपुरी गाने के बोल पर ठहाके पर ठहाके लगे | आ. बागी जी, आ. सौरभ जी ने कई भोजपुरी-ठुमके वाले…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on October 2, 2014 at 8:30am — 14 Comments
आल्हा छंद
बरसों पहले बंधु बनाकर, चाउ -माउ चीनी मुस्काय।
और उसे हम बड़े प्यार से, भैया कहकर गले लगाय।।
हर आतंकी पाकिस्तानी, चाल चीन की समझ न आय ।
दो मुँह वाला अमरीका है, विकिलीक्स दुनिया को बताय।।
एक ओर है पाक समस्या , और कहीं चीनी घुस जाय ।
*राम -…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 1, 2014 at 3:30pm — 12 Comments
जवान बेटा मरा था उसका I मातम फैला हुआ था परिवार में, परिवार के हरेक सदस्य में, सदस्यों के दिलों में I लेकिन, श्राद्धकर्म तो करना ही पड़ेगा, गाँववासियों को भोज तो खिलाना ही पड़ेगाI
आज उसी का भोज है I लोगों के घरों में चूल्हे नहीं जले हैं I भोज है, जबकि एक घर शोकाग्नि में तप रहा हैं और इसी तपन पर ऊफन रहा है - चावल, दाल, सब्जी ...
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by Vivek Jha on October 1, 2014 at 12:30pm — 5 Comments
विश्व गुरु कहलाने वाले भारत की बुनियादी शिक्षा सरकार के हाथों की कठपुतली बनकर रह गयी है। कहते हें बुनियाद जितनी मजबूत होगी, इमारत उतनी ही बुलंद होगी I इसी तरह प्राथमिक शिक्षा का स्तर जितना बेहतर होगा, देश के नौनिहालों का भविष्य उतना ही उज्जवल होगा । आज एक तरफ हम विकास की तमाम राहें क्यू न तय कर रहे हों और देश की तरक्की के लिए विदेशों के साथ दोस्ती का ख्वाब बेशक सज़ा रहे हो, लेकिन दूसरी तरफ इन सबके साथ एक बहुत बड़ा कड़वा सच जो हम अपनी आंखो से देख रहे है वो है प्राथमिक शिक्षा का डगमगाता स्वरूप,…
ContinueAdded by DR. HIRDESH CHAUDHARY on October 1, 2014 at 11:40am — 4 Comments
मिलती है तूँ ख्वाबो में,
अक्सर ऐसा क्यूँ होता है!
तेरी यादों के घेरे में,
ये दिल चुपके से रोता है!
आँखों का भी क्या कहना,
ना जाने कब सोता है!
दीदार तेरे कब होंगे,
सपने यही संजोता है!
मन रहता है विचलित सा,
क्या पाया, क्या खोता है!
तन भी लगता है मैला
पापो की गठरी ढ़ोता है!
खुद की भी परवाह नही,
अब ऐसा क्यूँ होता है!!
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Pawan Kumar on October 1, 2014 at 10:30am — 6 Comments
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