चुनावी समा बाँधना हो जभी वो,
गली में लुटाते रुपैया तभी वो|
लुटा हाट में नोट वोटें बटोरे,
यही वो घड़ी जो भुनाते चटोरे ||
बनायें-बिगाड़ें, सभी पे तुले वो,
इसारा मिले बर्तनें भी धुलें वो|
दिखे जो हुआ आपसे वोट लेना,
विजेता हुए तो, अधेला न देना ||
कभी ज्ञान की ज्योंति जाया न होगी,
बली पुष्ट होते निरा मूढ़-रोगी |
मिटाये अँधेरा डगोँ को बढ़ाए,
यही ज्योंति प्रेरा शिखा पे…
Added by SHARAD SINGH "VINOD" on December 21, 2014 at 6:00pm — 11 Comments
भरी हुई मधुशालायें सारी
पीकर सारे मस्त पड़ें हैं ,
मदिरालय पर लोगों का जमघट
अब मंदिर पर बंध जड़ें हैं ,
मिटे दुःख दर्द गरीबी सारी
आया नव वर्ष उल्लास है ,
सुन्दर गति,सुन्दर मति सारी
अन्धकार…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on December 21, 2014 at 5:32pm — 15 Comments
अनबूझा मौसम
आसमानी बिजली
मूसलाधार बारिश
फिर सूरज की चमकती किरणें
डाल पर फूल का नव रूप धर आना
मौसम के बाद एक और मौसम ...
यह सब सिलसिला है न ?
पर किसी एक के चले जाने के बाद
यहाँ कहीं नए मौसम नहीं आए
एक मौसम लटक रहा है
उदासी का
डाल पर रुकी, लटक रही टूटी टहनी-सा
भय और शंका और आतंक का मौसम
भिगोए रहता है पलकों को
आधी रात
क्या नाम दूँ
टूटे विश्वास का…
ContinueAdded by vijay nikore on December 21, 2014 at 4:30pm — 14 Comments
Added by harivallabh sharma on December 21, 2014 at 2:17pm — 18 Comments
नया कहूँ तो, वैसे तो हर पल होता है
नया जागता तब है जब पिछला सोता है
पर सोचो तो नया , नये में क्या होता है
हर पल पिछला, आगे को सब दे जाता है
आने वाला नया, नया कब रह पाता है
वही गरीबी , भूख , वही है फ़टी रिदायें
वही चीखती मायें , जलती रोज़ चितायें
वही पुराने घाव , वही है टीस पुरानी
वही ज़हर, बारुद, धमाका रह जाता है
आने वाला नया, नया कब रह पाता है
वही अक़्ल के अंधे , जिनके मन जंगी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 21, 2014 at 11:48am — 25 Comments
फँस गया हूँ आफ़तों में
आज़ हूँ मैं पागलों में
क्या सुँकू तूने कमाया
क्या मिला है फ़ासलों में
मज़हबी आतंक से अब
आदमी है दहशतों में
सब ग़िले शिक़वे भुलादो
क्या रख़ा है रतज़गों में
ख़ो दिये हैं घर हजारों
जिन्द़गी ने हादसों में
मौलिक व अप्रकाशित
उमेश कटारा
Added by umesh katara on December 21, 2014 at 10:00am — 11 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on December 21, 2014 at 9:40am — 20 Comments
Added by मिथिलेश वामनकर on December 21, 2014 at 2:00am — 21 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on December 20, 2014 at 7:30pm — 25 Comments
चोट दिल पे लगी है दवा दो मुझे
याद आये न उसकी दुआ दो मुझे
प्यार जिससे किया छुप गया वो कहीं
ऐ हवा तुम ही उसका पता दो मुझे
मर न जायें कहीं प्यार के दर्द से
दर्द कैसे सहें तुम सिखा दो मुझे
हर खुशी आपको तो दिया हूँ मगर
दिल दुखाया कभी तो सज़ा दो मुझे
अब जुदाई न मुझसे सही जाती है
मौत की नींद आकर सुला दो मुझे
मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी
Added by Akhand Gahmari on December 20, 2014 at 2:08pm — 28 Comments
मत लिखना आने की बात
मत लिखना आने की बात
आने से पहले
जो ना आए, नियत वक्त पे
झल्लाएगा मन
उठेंगे सौ-सौ प्रश्न
तुम्हारे बारे में
लपटें उठ जाएंगी
राख ढके अंगारे में
अच्छा है बिन बतलाए आओ
बिना कोई उम्मीद जगाए
आ जाओ जो ऐसे एक दिन
दिल होली, दिवाली, ईद मनाए |
सोमेश कुमार(08/08/2014) (मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by somesh kumar on December 20, 2014 at 11:54am — 19 Comments
उसने सागर से कहा “पानी दो बहुत प्यासा हूँ”
सागर बोला -“रोज पीते हो खाली हो गया हूँ”|
नदिया से कहा “पानी दो बहुत प्यासा हूँ” नदिया ने कहा “आगे जा रही हूँ पसीना बहाने वाले प्यासों के पास;
पीछे लौटना मेरी नियति नहीं है”|
कुए से कहा “पानी दो प्यासा हूँ गला सूख रहा है मर जाऊँगा ”
कुँए ने कहा “मैं स्वाभिमानी हूँ प्यासे के पास नहीं जाता प्यासा मेरे पास आता है”|
पास बहते नाले से कहा "तू ही पिला दे यार" उसने कहा “पहले ही तू मुझे बहुत गन्दा कर चुका…
ContinueAdded by rajesh kumari on December 20, 2014 at 11:00am — 25 Comments
1222-1222-1222-1222
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समंदर पार वालों ने हमारा फ़न नहीं देखा
जवाँ अहले वतन ने आज तक बचपन नहीं देखा
जुरूरी था, वही देखा, ज़माने की ज़ुबानों में
कि मीठी बात देखी है कसैलापन नहीं देखा
तबस्सुम देख के मेरी, तसल्ली हो गई उनको
हमारी आँख में सोया हुआ सावन नहीं देखा
निजामत का भला अपना वतन कैसा…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 20, 2014 at 4:56am — 28 Comments
*नवल वर्ष है आया.
बीता वर्ष पुरातन छोडो,
क्या खोया क्या पाया.
नवल वर्ष है आया.
तन्द्रा भंग सुहाना कलरव,
मुर्गा बांग लगाता.
किरण धो रही कालिख सारी,
दिनकर द्वार बजाता.
सागर जल में नहा रश्मियाँ,
दुति चन्दन लेपेंगीं.
पौ फटते ही तिलक सिंदूरी,
सूरज भाल लगाया.
नवल वर्ष है आया.
भोर उठी आगी सुलगाती,
धुंध धुंआ संग जाती.
पीली धूप पकौड़ी तलती,
श्यामा दूध दुहाती.
किया…
ContinueAdded by harivallabh sharma on December 19, 2014 at 11:30pm — 12 Comments
वह चालीस वर्ष का हट्टा –कट्टा जवान था I बस में मेरी खिड़की के करीब आया I डबडबायी आँखों से मेरी ओर देखा –‘बाबू जी मेरी माँ अस्पताल में दम तोड़ रही है, उसकी दवा लेने गया था, फकत इक्कीस रुपये कम पड़ गए है I बाबू जी आप मेहरबानी कर दे तो मेरा माँ शायद बच जाय I अल्लाह आपको नेमते देगा I’
उसकी आँखों से आंसू छलक पड़े I मुझे तरस आ गया I मैंने उसे रुपये दे दिए I वह दुआ देता आँखों से ओझल हो गया I
किसी कारण से मेरी बस वही रुकी रही I इतने में…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 19, 2014 at 7:04pm — 16 Comments
Added by seemahari sharma on December 19, 2014 at 5:38pm — 12 Comments
Added by दिनेश कुमार on December 19, 2014 at 4:18pm — 18 Comments
१२२२ १२२२ १२
है उसकी याद बादल की तरह
भटकता हूँ मैं पागल की तरह
हवास व्यापार के नाले हैं यहाँ
मुहब्बत थी गंगाजल की तरह
ये जीवन हादसों का मलवा है
किसी बेवा के आँचल की तरह
हुई नाकाम कोशिश भूलने की
थी तेरी याद दल दल की तरह
है चुप का रूप गोया ताज हो
है उसकी बात कोयल की तरह
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Added by gumnaam pithoragarhi on December 19, 2014 at 2:51pm — 8 Comments
ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र ....
ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र
ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे
ख़ामोश थी खून की चीखें सभी
ख़ामोश वो अश्कों के धारे थे
ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र
ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे …….
खूनी चेहरों के मंजर ने
हर धर्म का फर्क मिटा डाला
क्या अपना और बेगाना क्या
हर दुःख को अपना बना डाला
हर चेहरे पे इक दहशत थी
और सपनें सहमे सारे थे
ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र
ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे ….
बिखरे चूडी के टुकडों…
ContinueAdded by Sushil Sarna on December 19, 2014 at 12:02pm — 12 Comments
Added by विनोद खनगवाल on December 19, 2014 at 8:10am — 7 Comments
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