Added by जयनित कुमार मेहता on December 7, 2016 at 5:08pm — 8 Comments
121 22 121 22 121 22 121 22
न वक्त का कुछ पता ठिकाना न रात मेरी गुज़र रही है ।
अजीब मंजर है बेखुदी का , अजीब मेरी सहर रही है ।।
ग़ज़ल के मिसरों में गुनगुना के , जो दर्द लब से बयां हुआ था ।
हवा चली जो खिलाफ मेरे , जुबाँ वो खुद से मुकर रही है ।।
है जख़्म अबतक हरा हरा ये , तेरी नज़र का सलाम क्या लूँ ।
तेरी अदा हो तुझे मुबारक , नज़र से मेरे उतर रही है ।।
मिरे सुकूँ को तबाह करके , गुरूर इतना तुझे हुआ क्यूँ ।
तुझे पता है तेरी हिमाकत , सवाल…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 7, 2016 at 11:00am — 11 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on December 7, 2016 at 7:09am — 6 Comments
Added by sarita panthi on December 6, 2016 at 7:12pm — 3 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 6, 2016 at 7:04pm — 17 Comments
Added by Mahendra Kumar on December 6, 2016 at 3:52pm — 18 Comments
कुंडलिया छंद
=========
सुख-सुविधा से काटते, जीवन उसके साथ,
जब सजनी के काम में, आप बँटाते हाथ। |
आप बँटाते साथ, ह्रदय में प्रेम बरसता
करे सभी सहयोग, उसी के घर समरसता
रहे सभी जब साथ, फिर न जीवन में दुविधा
पुत्र बहूँ औ पौत्र, मिलें सबको सुख-सुविधा |
(2)
जीवन के संग्राम में, करते जो संघर्ष,
सुगम रह उसकी बने, जीवन हो उत्कर्ष ।
जीवन हो उत्कर्ष, राह में आगे बढ़ता
करे सत्य ही बात,अकारण कभी न अड़ता
स्वार्थ भावना…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 6, 2016 at 3:50pm — 4 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 6, 2016 at 10:30am — 4 Comments
2122 1212 22 /112
कर के उल्टी, कभी नहीं कहते
ख़ुद की हो गंदगी ...नहीं कहते
कितने बे ख़ौफ हो गये हैं सब
चाँद को चाँद भी नहीं कहते
सादगी देख कर भी पागल में
हम उसे सादगी नहीं कहते
फाइदा तो लिये उजालों का
पर उसे रोशनी नहीं कहते
जब से इमदाद-ए-पाक पाये हैं
हम उन्हें आदमी नहीं कहते
क़त्ल करतें हैं ले के नाम–ए-ख़ुदा
हम उसे बंदगी नहीं कहते
तुम इसे मौत कह…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 6, 2016 at 10:30am — 7 Comments
Added by नाथ सोनांचली on December 6, 2016 at 4:13am — 8 Comments
ओ मेरे आकाश !
पिता थे तुम
असीम अपरिमाप
सितारों की पहुँच से भी दूर
और मैं पर्वत की भाँति बौना
अपने उठान का अभिमान लिए
तब नहीं जानता था
यह फर्क
जब तुम मेरे पास थे
अनंत विस्तार लिए
भले ही
आज बन जाऊं मैं ऊंचा
चोमोलुंगमा
यानि कि सागरमाथा
दुनियां का सर्वोच्च हिमशिखर
एवरेस्ट ---
ओ मेरे आकाश !
सदा ही रहोगे तुम
अनंत ऊँचाइयों पर
ऊंचे और उन्नत
कई-कई…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 5, 2016 at 7:30pm — 10 Comments
"आज फिर तेरा मुँह सूखा सूखा लग रहा है, लगता है आज भी कुछ नहीं खाया तूने", माँ ने उसको देखते ही टोका|
"बहुत भूख लगी है माँ, कुछ खिला पहले", उसने बात को टालने की गर्ज से कहा|
"ठीक है तू हाथ मुँह धो ले, कुछ गर्मागर्म बनाती हूँ तेरे लिए", माँ तुरंत रसोई की तरफ लपकी और फिर उसका बोलना चालू हो गया "पता नहीं कब अकल आएगी इस छोरे को"|
जल्दी से गरम पकोड़े उसके सामने रखते हुए वह बोली "चाय भी बना रही हूँ, तू आराम से खा| वैसे आज तूने पैसों का क्या किया, टिफ़िन तो तू ले ही नहीं जाता"|
"बहुत…
Added by विनय कुमार on December 5, 2016 at 6:59pm — 14 Comments
2122 1212 22
जिन्दगी की नई कहानी क्या
हर कोई जानता बतानी क्या
मौत के सामने कोई बचपन
या बुढ़ापा भला जवानी क्या
होंसलों से उगा शज़र उसको
ख़ास आबो हवा या पानी क्या
तिश्नगी इक नदी बुझाती थी
आज सहरा में है निशानी क्या
कृष्ण देखा है आज क्या तुमने
कोई राधा हुई दीवानी क्या
फूल अगर हैं वतन के गुलशन के
फिर हरे और जाफ़रानी क्या
गर हो नाज़िम ही कान के…
ContinueAdded by rajesh kumari on December 5, 2016 at 6:30pm — 21 Comments
Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on December 4, 2016 at 1:30pm — 7 Comments
ग़ज़ल ( वो वादे से अपने मुकर जाएगा )
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फऊलन -फऊलन -फऊलन -फअल
ख़बर थी किसे एसा कर जाएगा |
वो वादे से अपने मुकर जाएगा |
न अब और ले इम्तहाने वफ़ा
ये दीवाना हद से गुज़र जाएगा |
चला तीर तिरछी नज़र का अगर
बचाएँगे दिल तो जिगर जाएगा |
बपा हश्र हो जाएगा उस जगह
वो जिस रास्ते पर ठहर जाएगा |
करेगा सितम के जो दौरान उफ़
निगाहों से उनकी उतर जाएगा…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on December 4, 2016 at 10:05am — 14 Comments
Added by Manan Kumar singh on December 4, 2016 at 8:01am — 10 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on December 4, 2016 at 6:30am — 15 Comments
मुखौटा
संसद से सड़क तक
फैले हुए मुखौटे मुँह चिढ़ाते हैं मुझे
और मैं हंसकर उनकी उपेक्षा कर देता हूँ
और मुझसे यह अपेक्षा की भी जाती है !
आखिर वो भी तो मेरी - - - सी स्सस्सस्सीईई
ढाँप लेता हूँ
कम्बल बढ़ने लगी है सर्दी
पहन लेता हूँ मुखौटा
बढ़ने लगी है भीड़ सी--- सीईईईईईईई !
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by somesh kumar on December 3, 2016 at 11:38pm — 3 Comments
Added by amita tiwari on December 3, 2016 at 7:18pm — 7 Comments
Added by Mahendra Kumar on December 3, 2016 at 7:00pm — 12 Comments
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