2122 1212 22
वक्त के साथ खो गयी शायद ।
तेरे होठों की वो हँसी शायद ।।
बन रहे लोग कत्ल के मुजरिम।
कुछ तो फैली है भुखमरी शायद ।।
मां का आँचल वो छोड़ आया है ।
एक रोटी कहीं दिखी शायद ।।
है बुढापे में इंतजार उसे ।
हैं उमीदें बची खुची शायद ।।
लोग मसरूफ़ अब यहां तक हैं ।
हो गयी बन्द बन्दगी शायद ।।
खूब मतलब परस्त है देखो ।
रंग बदला है आदमी शायद…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on December 5, 2017 at 2:30pm — 3 Comments
लघुकथा – गप्पी पुत्तू -
वैसे असल नाम तो उसका पुरुषोताम दास था , मगर वह गप्पी इतना तगड़ा था कि सारा गाँव उसे गप्पी पुत्तू कह कर बुलाता था। माँ बाप उसकी इस आदत से इतने परेशान थे कि पूछिये मत।
हर दूसरे दिन स्कूल से माँ बाप को बुलावा आता रहता था। पहली बात तो यह कि वह स्कूल जाता ही बड़ी मुश्किल से था। और कोई ना कोई बहाना बना कर भाग आता था। सारे अध्यापक उसकी आदतों से दुखी थे।
पूरे गाँव में ऐसा कोई नहीं था जो उससे खुश हो। हर कोई उसकी गप्प बाज़ी का शिकार बन चुका था। क्योंकि वह झूठ…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on December 5, 2017 at 11:43am — 8 Comments
लो फिर आ गई !
नए साल के स्वागत में
उम्मीद की कुनकुनी धूप
भरोसे की मुँडेर पर
आशा-आकांक्षा की परियाँ भी
धीरे-धीरे उतरेंगी धैर्य के आँगन में
नई सोच का बाज़ीगर
सजाएगा नये-नये सपनें
जमा है जो तुम्हारे पास
अडिग विश्वास की पूँजी
अब उसे खर्च करना होगा
नये साल में मितव्ययिता के साथ
नया साल आहिस्ता-आहिस्ता
आज़माएगा तुम्हें
सावधान !! डरना नहीं
धारण कर लो अपना
फौलादी इरादों वाला कवच
जो तुमने गढ़ा है श्रम से ।
मौलिक एवं अप्रकाशित…
ContinueAdded by Mohammed Arif on December 5, 2017 at 12:06am — 12 Comments
दोहरा
पत्नी पर पराई-दृष्टी से
होकर खिन्न
डांट कर कहता
तू लोक लाज विहीन
“चल भीतर |”
_______________
पड़ोसिन को सामने पा
स्वागत में मुस्कुरा
गाता हूँ-तिनक धिन-धिन
आप सा कौन कमसिन !
खड़ा रहता हूँ-बाहर |
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by somesh kumar on December 4, 2017 at 6:07pm — 5 Comments
तेरे-मेरे दोहे - (२)
नर समझाये नार को, नार करे तकरार,
रार-रार में खो गया ,मधुर पलों का प्यार।१ ।
बिन तेरे पूनम सखा , लगे अमावस रात ,
प्रणय प्रतीक्षा दे गयी ,अश्कों की सौग़ात।२।
तेरी मीठी याद है ,इक मीठा अहसास,
रास न आये श्वास को, जीवन का मधुमास।३ ।
अवगुंठन में देह की ,स्पंदन हुए उदास,
दृगजल बन बहने लगी , अंतर्मन की प्यास।४ ।
मौन भाव को मिल गए ,स्पर्श मधुर आयाम ,
पलक नगर को दे गए, स्वप्न अमर…
Added by Sushil Sarna on December 4, 2017 at 5:30pm — 10 Comments
बहर:- 1212-1122-1212-22
मेरे अतीत मेँ जाकर के जिन्दगी मुझसे॥
क्योँ चाहती हो मेरा प्यार,दोस्ती मुझसे॥
न पूछता है.. कोई आज यूँ पता मेरा॥
तमाम शहर मेँ इक तुम हो अजनबी मुझसे॥…
Added by amod shrivastav (bindouri) on December 4, 2017 at 3:30pm — 5 Comments
Added by Afroz 'sahr' on December 4, 2017 at 1:36pm — 20 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 4, 2017 at 1:30pm — 5 Comments
काफिया : अर ; रदीफ़ : नहीं हूँ मैं
बहर : २२१ २१२१ १२२१ २१२ (२१२१)
तारीफ़ से हबीब कभी तर नहीं हूँ’ मैं
मुहताज़ के लिए कभी’ पत्थर नहीं हूँ’ मैं |
वादा किया किसी से’ निभाया उसे जरूर
इस बात रहनुमा से’ तो’ बदतर नहीं हूँ’ मैं |
वो सोचते गरीब की’ औकात क्या नयी
जनता हूँ’ शाह से कहीं’ कमतर नहीं हूँ’ मैं |
जनमत ने रहनुमा को’ जिताया चुनाव में
हर जन यही कहे अभी’ नौकर नहीं हूँ’ मैं…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on December 3, 2017 at 4:39pm — 8 Comments
आज फिर उसने कुछ कहा मुझसे।
आज फिर उसने कुछ सुना मुझसे।।
बाद मुद्दत के आज बिफ़रा था।
आज दिल खोल कर लड़ा मुझसे।।
जिसकी क़ुर्बत में शाम कटनी थी।
हो गया था वही ख़फ़ा मुझसे।।
दूर दिल से हुए सभी शिकवे।
टूट कर ऐसे वो मिला मुझसे।।
दरमियाँ है फ़क़त मुहब्बत ही।
अब कोई भी नहीं गिला मुझसे।।
चांद तारे या वो फ़लक सारा।
बोल क्या चाहिए ? बता मुझसे।।
क़ुर्बत= सामीप्य
फ़लक=…
Added by डॉ पवन मिश्र on December 3, 2017 at 1:30pm — 16 Comments
Added by पंकजोम " प्रेम " on December 3, 2017 at 1:23pm — 15 Comments
मैं कवि-सम्मेलन में जाता हॅूं,
मैं भी कवि-सम्मेलन में जाता हॅूं,
भेद-भाव के दरया को,
पाटने की कोशिश में,
सूरज के घर में चाॅंद का,
संदेशा लेकर जाता हॅूं, हाॅं,
मैं भी कवि-सम्मेलन में जाता हॅूं।
खुशियों को ढ़ूंढ़ने निकला हॅूं,
मिल भी गयी दुखदायी खुशी,
दुखदायी खुशी के चक्कर में,
हसीन गम को भूल जाता हॅूं।, हाॅं,
मैं भी कवि-सम्मेलन में जाता हॅूं।
ऐशो-आराम की जिंदगी मिली है,
आराम से सोता पर क्या करूॅं,
पहले हजारों अर्धनिद्रा से…
Added by Manoj kumar shrivastava on December 3, 2017 at 1:00pm — 4 Comments
समय की कोई अनदेखी गुमनाम कढ़ी
संभावनाओं की रूपक रश्मि से भरी
प्राण-श्वास को पूर्ण व पुलकित करती
पेड़ों की छायाएँ घटती मिटती बढ़ती-सी
धरती के गालों पर छायाएँ बेचैन नहीं थीं
किसी मीठे समीर की मीठी कोमल झकोर
हँसा कर फूलों को करती थी आत्म-विभोर
प्रात की नई उमंगों में भू को नभ से जोड़ते
जिज्ञासा की उजली चादर के फैलाव में हम
कोरे बचपन में एक ही पथ पर थे साथ चले
आयु की मामूली सच्चाईओं से घिरे हम…
ContinueAdded by vijay nikore on December 3, 2017 at 12:36am — 10 Comments
गीत
धरती अम्बर पर्वत नदियाँ,सबके ताने सुनने हैं
हमने जितने कंटक बोये, इस जीवन में चुनने हैं
सर्दी गर्मी की मार सही
या बिन मौसम बरसात सही
चंदा तारों से जगमग हों
या काली नीरव रात सही
हमको तो अभिलाषाओं के,ताने बाने बुनने हैं
हमने जितने कंटक बोये,इस जीवन में चुनने हैं
इक मजहब की दीवार मिले
या वर्ण वर्ग की रार मिले
तेरे मेरे की खाई हो
या द्वेष जलन का हार मिले
हमको तो रिश्तों के मानक ,खामोशी से गुनने…
ContinueAdded by rajesh kumari on December 2, 2017 at 7:00pm — 11 Comments
Added by Ram Awadh VIshwakarma on December 2, 2017 at 6:48pm — 30 Comments
लघुकथा -– आँखें -
"सुबोध, यह क्या हिमाक़त है। मुझे पता चला है कि तुमने एक अंधी लड़की से शादी करने का फ़ैसला किया है"?
"जी पिताजी, आपने बिलकुल सही सुना है"।
"तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया। तुम एक अरबपति व्यापारी की इकलौती संतान हो। साथ ही जाने माने डाक्टर भी हो। तुम्हारे लिये कितने बड़े घरानों से रिश्ते आ रहे हैं, कुछ पता है"?
"मगर मेरा फ़ैसला अटल है"।
"ऐसी क्या वज़ह है जो तुम परिवार के मान सम्मान और प्रतिष्ठा को दॉव पर लगा कर उस मामूली से परिवार की लड़की से…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on December 2, 2017 at 6:16pm — 10 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 2, 2017 at 1:04pm — 9 Comments
2122 2122 2122
एक क़तरा था समंदर हो गया हूँ।
मैं समय के साथ बेहतर हो गया हूँ।।
कल तलक अपना समझते थे मुझे जो।
उनकी ख़ातिर आज नश्तर हो गया हूँ।।
मैं बयां करता नहीं हूँ दर्द अपना।
सब समझते हैं कि पत्थर हो गया हूँ।।
ज़िन्दगी में हादसे ऐसे हुए कुछ।
मैं जरा सा तल्ख़ तेवर हो गया हूँ।।
जख़्म दिल के तो नहीं अब तक भरे हैं।
हां मगर पहले से बेहतर हो गया हूँ।।
सुरेन्द्र इंसान
मौलिक व अप्रकाशित
Added by surender insan on December 2, 2017 at 1:00pm — 23 Comments
Added by Manoj kumar shrivastava on December 2, 2017 at 8:41am — 8 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on December 2, 2017 at 8:23am — 5 Comments
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