२२ २२ २२ २२ २२ २२
कैलेण्डर के सवालों से सहम जाता हूँ मैं
ईद दीवाली को जब नज़र मिलाता हूँ मैं
परदों से घर का हाल भला लगता है
परदों से घर की मुफलिसी छुपाता हूँ मैं
जीवन और गणित का हिसाब यार खरा है
जब आंसूं जुड़ता है हँसी घटाता हूँ मैं
मैं था काफिला था और सफ़र लम्बा
मन्जिल तक जाते तनहा रह जाता हूँ मैं
कोई मुझसे भी पूछे तू क्या चाहे गुमनाम
है प्यास प्यार की ,प्यासा रह जाता हूँ…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on December 10, 2014 at 5:30pm — 16 Comments
शादी को ३ महीने हुए थेI सुबह करीब १०.३० बजे, चित्रा नहा धो कर बाहर निकली और एक प्याला गर्म चाय का ले कर अपना LP प्लेयर ओंन कर दिया I यह वह समय था जब वह एकांत में चाय के साथ कोई ग़ज़ल या गीत सुनती है I यह वक़्त किसी के साथ भी शेयर करना उसे पसंद ना था I ख़ास तौर पर, पति के साथ I उन दोनों के स्वभाव का अंतर इस वक़्त और मुखर हो कर उसे डसने लगता था I इसलिए उनके जाने के पश्चात वह फारिग हो, कुछ समय नितांत अपने लिए चुनती थी, और यह वही समय था I आँखें बंद किये मेंहदी हसन की आवाज़ उसके अंतर में पहुँच रही थी I…
ContinueAdded by poonam dogra on December 10, 2014 at 4:00pm — 13 Comments
हूँ महफ़िलों में तन्हा, खुद की नज़र में रुस्वा
हर एक रंग फीका , हर एक शै फसुर्दा
आवाज़ें दोस्तों की ,मुझ से नहीं हैं गोया
ज़िंदा दिली भी जैसे , करती है मुझ से पर्दा
क्या ग़म है ज़िन्दगी में , तुमको बताऊँ कैसे
अब तक हुआ नहीं है , ये राज़ मुझे पे अफ़्शाँ
उलझन है कैसी दिल की ? उलझन यही है मुझको
रंग ज़िन्दगी से रूठे , दिल भी रंगों से रूठा…
Added by saalim sheikh on December 10, 2014 at 3:30pm — 7 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on December 10, 2014 at 9:51am — 22 Comments
1 2 2 2
हुआ पैदा कि धोके से, किसी का पाप मैं बन के
मुझे फेंका गया गन्दी कटीली झाड़ियों में फिर
कि चुभती झाड़ियाँ फिर फिर, कि होता दर्द भी फिर फिर
यहाँ काटे कभी कीड़े, वहां फिर चीटियाँ काटे
पड़ा देखा, उठा लाई, मुझे इक चर्च की दीदी.
हटा के चीटियाँ कीड़े, धुलाए घाव भी मेरे
बदन छालों भरा मेरा, परेशां मैं अज़ीयत से
खुदा से मांगता हूँ मौत अपनी सिर्फ जल्दी से
बड़ी नादान दीदी वो, लगाती जा रही मरहम
दुआ…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 10, 2014 at 1:30am — 15 Comments
पीर पैरों की खड़ा होने नही देती मुझे
मेरी देहरी ही बड़ा होने नहीं देती मुझे
फिर वही आँगन की परिधि में बँट गया
किंतु सीमाएँ मेरी खोने नहीं देती मुझे
उधर पाबंदी ज़माने की हैं हँसनें पे मेरे
इधर दीवारें मेरी रोने नहीं देती मुझे
कर्म के ही हल…
ContinueAdded by ajay sharma on December 9, 2014 at 11:00pm — 8 Comments
सुन्दर शय्या
अधमुँदी सी आँखे
एक लम्बी सांस
एकांत वास
सोच के तार
अतीत मे जा
जिंदगी की किताब
खोली जो इक बार
पन्ना- दर- पन्ना
धोखा, छल, आघात
कभी भावुकता तो
कभी अज्ञानता
भरे निर्णय,
कभी विवशता
रिश्ते निभाने की
तो कभी मजबूरी
सामाजिकता की,
जीवन की लम्बी डगर
पग-पग अवरोध,
बावजूद, बढ़ती गई वो
कदम-कदम
लड़खड़ाती,संभलती
तपन दिनकर की सहती,
चढती गई
हर चढाई
मिले…
Added by Meena Pathak on December 9, 2014 at 10:30pm — 14 Comments
22-22-22 / 22-22-2 / 22-22-22
मस्जिद न शिवाला है,
दिल में रहता तू,
तेरा घर भी निराला है.
तू मन का दरपन है
बस एक उजाले से,
सूरज भी रौशन है.
देखों मन का आँगन,
बादल आँखों में,
फिर खूब झरा सावन.
लो छूटा अपना घर,
एक मुसाफिर हूँ,
लम्बा है आज सफ़र.
सूरज जब ढल जाए,
मन अँधियारा हो,
तब दीपक जल जाए.
परबत पर बादल है,
दरिया बहता…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 9, 2014 at 1:00am — 16 Comments
बह्र : २२१२ १२११ २२१२ १२
------------
अपनी मिठास पे उसे बेहद गरूर था
समझा था जिसको आम वो बंदा खजूर था
मृगया में लिप्त शेर को देखा जरूर था
बकरी के खानदान का इतना कसूर था
दिल्ली से दिल मिला न ही दिल्ली में दिल मिला
दिल्ली में रह के भी मैं यूँ दिल्ली से दूर था
शब्दों में विश्व जीत के शब्दों में छुप गया
लगता था जग को वीर जो शब्दों का शूर था
हीरे बिके थे कल भी बहुत, आज भी बिकें
लेकिन…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 8, 2014 at 8:30pm — 30 Comments
अब नहीं करता मेरा मन ,
अपने घर जाने को ,
ना जाने क्यों ?
हालाँकि बदला कुछ खास नहीं है.
सिर्फ माता-पिता का साया उठा है ,
उस घर से , अलावा सब वैसा ही तो है,
भाई-भाभी, बच्चे , पडोसी सब.
पर पता नहीं अब क्यों नहीं ,
लगता मन ,
सोचता हूँ क्या खास था तब ,
दौड़ा चला आता था मैं ,
बेवजह छुट्टियां लेकर ,
अब छुट्टी हो तब भी ,
नहीं करता मेरा मन ,
अपने घर जाने को ,
ना जाने क्यों ?
अप्रकाशित -मौलिक
Added by Naval Kishor Soni on December 8, 2014 at 6:07pm — 13 Comments
अतुकांत - स्वीकार हैं मुझे तुम्हारे पत्थर
*****************************************
स्वीकार हैं मुझे आज भी
कल भी थे स्वीकार , भविष्य मे भी रहेंगे
तुम्हारे फेके गये पत्थर
तब भी फल ही दिये मैनें
आज भी दे रहा हूँ , और मेरा कल जब तक है देता रहूँगा
मैं जानता हूँ और मानता हूँ , इसी में तो मेरी पूर्णता है
यही मेरी नियति है , और उद्देश्य भी
चाहे मेरी जड़ों को तुमने पानी दिया हो या नहीं
मैं अटल हूँ , अपने उद्देश्य में
पर आज…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 8, 2014 at 4:30pm — 20 Comments
.
"मौलिक व…
Added by Shraddha Thawait on December 8, 2014 at 3:30pm — 11 Comments
डाटा
मैमोरी-कार्ड लगाकर हरीश ने गैलरी खोली |परंतु-वहाँ सब कुछ खाली था |कोई पिक्चर-वीडियो-ऑडियो कुछ भी नहीं |शायद कैमरे का सोफ्टवेयर खराब हो ये सोच कर वो पड़ोसी के पास पहुँचा |
पहले पड़ोसी का मोबाईल ,फिर पी.सी. पर नतीजा वही - - - -
वही संदेश –ये फाईल खुल नहीं सकती या खराब हो चुकी है|
उसकी आँखों के सामने शून्य तैर गया |सब कुछ खत्म हो जाने के अहसास से वो टूट गया |कुछ भी नहीं बचा था अब जगजाहिर करने को |बेशक उसके मन में स्मृतियों का अनंत संरक्षित हो पर बाहरी तौर…
ContinueAdded by somesh kumar on December 8, 2014 at 11:19am — 10 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on December 7, 2014 at 9:51am — 14 Comments
यूँ तो 17 बरस की उमर मेँ भी वो बड़ी भोली थी। उसकी हर बात मेँ अभी भी बचपना-सा था।
उसकी बातेँ कभी मुझे माता की गोद के समान आनन्दित कर देती तो कभी उसकी ज़िद खीझ उत्पन्न कर अपना गुस्सा उस पर उतार देने को विवश। अक्सर ही मैँ उसे कहता- "न जाने तुम कब बड़ी होओगी ?"
और वो मुस्कुरा कर कहती- "मै नही सुधरने वाली।"
आज पूरे दो साल बाद मैँ उससे मिलने वाला हूँ। जाने वो कैसी दिखती होगी? मुझे देखते ही मुझे मारने दौड़ पड़ेगी। खूब शिकायतेँ करेगी और भी न जाने क्या-क्या पूर्वानुमान लिए मैँ उससे…
Added by pooja yadav on December 6, 2014 at 7:30pm — 6 Comments
एक प्रयास ...नवगीत : तुम अब तक भूखे हो?
हम सबको तो मिला चबैना,
तुम अब तक भूखे हो?
बंटता खूब चुनावी चंदा,
तुम अब तक रूखे हो?
पंजा वाले, सइकल वाले,
कुछ हाथी वाले थे.
खिले फूल थे, दीवारों पर,
सब अपने वाले थे.
बटी बोतलें गली गली में,
तुम अब तक छूछे हो?
हम सबको तो मिला चबैना,
तुम अब तक भूखे हो?
हाथों…
Added by harivallabh sharma on December 6, 2014 at 11:00am — 14 Comments
मुहब्बत का ज़ला हूँ मैं,पिघलता ही रहा हूँ मैं
ख़ुदा से माँगकर तुझको,भटकता ही रहा हूँ मैं
................
समन्दर के किनारों ने समेटा है बहुत मुझको
मगर आँखों की कोरों से निकलता ही रहा हूँ मैं
................
अगर सच बोलता हूँ तो,समझते हैं मुझे पागल
मगर सच्चाई को लेकर ,उबलता ही रहा हूँ मैं
................
सितारों की कसम ले ले,नजारों की कसम ले ले
तेरे दीदार की ख़ातिर मचलता ही रहा हूँ मैं
.................
मेरी किस्मत के सौदागर ,मुझे…
Added by umesh katara on December 6, 2014 at 10:00am — 21 Comments
इश्क़ तो इश्क़ है फितूर नहीं
कौन है जो नशे में चूर नहीं
लक्ष्य कोई भी पा सकोगे तुम
हौसला हो तो लक्ष्य दूर नहीं
आके मिल मुझसे बात भी कर अब
दूर से ऐसे मुझको घूर नहीं
सब खुदा हो गए ये बाबा तो
संत जैसा किसी पे नूर नहीं
सिर्फ ममता मिलेगी आँचल में
माँ खुदा सी है कोई हूर नहीं
सब पुजारी हैं आज दौलत के
कोई तुलसी रहीम सूर नहीं
बेवजह रस्ता देख मत गुमनाम
तेरी तक़दीर में हुज़ूर नहीं
गुमनाम…
Added by gumnaam pithoragarhi on December 5, 2014 at 6:00pm — 13 Comments
अलि, आज छू गया प्रिय से दुकूल !
पुलक गया मन महक उठा तन
हंस रहा अंतर का वृन्दावन
भाव के मेघ उठे सागर की छोर
मन में बरस गए सावन के घन
अम्बर से तारों के फूल गए झूल I
बसी नस-नस में पीड़ा की पीर
सुप्त उर हो उठा सहसा अधीर
पाटल से छिल रहा सांवला तन
मन को बेध गया नैनो का तीर
फूलो सा फूल गया अंतस का फूल I
मुकुलित…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 5, 2014 at 1:00pm — 18 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on December 5, 2014 at 12:30pm — 11 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |