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वो आज ही बेवा हुई !
बुझ-सी गई जब रौशनी, जमने लगी जब तीरगी,
बदली यहाँ फिर ज़िन्दगी, वह आज ही बेवा हुई !
क्यूं तीन बच्चे छोड़कर, मुंह इस जहां से मोड़कर,
वो हो गया ज़न्नतनशीं, वो आज ही बेवा हुई !
है लाश नुक्कड़ पे पड़ी, मजमा लगा चारो तरफ,
उस पर सभी नज़रें गड़ी, वह आज ही बेवा हुई !
वो रो रही फिर रो रही, बस लाश को वो ताकती,
उसने कहा कुछ भी नहीं, वो आज ही बेवा हुई !
फिर यकबयक वो चुप हुई,…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 5, 2014 at 2:30am — 19 Comments
हर क़दम पर मात खाकर रह गई,
जिंदगी सर को झुका कर रह गई.
देख लो पहचान मेरी हो जुदा,
एक खुदसर में समाकर रह गई.
होगी मलिका सल्तनत की वो मगर,
मेरी खातिर कसमसा कर रह गई.
रूह मुझसे जाँ छुड़ाने के लिए,
हर दफा बस छटपटा कर रह गई.
सोजे दिल पानी से भी ना बुझ सके,
आंख भी आंसू बहा कर रह गई.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by इमरान खान on December 4, 2014 at 3:58pm — 16 Comments
आज से 2 साल पहले ज़िन्दगी की सबसे काली रात मेरी प्रतीक्षा कर रही थी |काला नाग अपना फन फैलाए ,घात लगाए बैठा था ,मेरा सब कुछ छीन लेने के लिए |नहीं जानता था की जीवन के सबसे सुंदर सपने का आज अंत हो जाएगा | 12 दिसम्बर 2009 को जब प्रणय-सूत्र में तुमसे बंधा था तो उसी रोज़ से एक सपने में खो गया था |तुम्हारे सपने में |–जैसा की तुम्हारा नाम था –‘सपना | जगती हुई आँखे में तुम और सोते हुए भी बस तुम्हारा ही सपना |अपने नाम के मुताबिक जीवन में कितनी रंगीनिया भर दी तुमने |कहने को तो मैं एक सपने में था…
ContinueAdded by somesh kumar on December 4, 2014 at 11:30am — 12 Comments
१२२२ १२२२ १२२२
अकेले पन को कर ले तू , ठिकाना अब
क़सम ली है, तो उस चौखट न जाना अब
समय बदला तो वो बदले , नज़र बदली
चलो कर लें निकलने का बहाना अब
वही आंसू , वही आहें , वही ग़म है
कहीं पे ख़त्म हो जाये फ़साना अब
झिझक ये ही हरिक दिल में, यही डर है
कहेगा क्या जो जानेगा ज़माना अब
सुनो तितली , सुने पंछी बहारें भी
मेरे उजड़े हुये घर में , न आना…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 4, 2014 at 11:00am — 32 Comments
तेरा दिया जन्म
मुझे स्वीकार नहीं
जन्म स्थान
मुझे स्वीकार नहीं
यह नाम
मुझे स्वीकार नहीं
स्वीकार नहीं मुझे
कर्म करना, और
भाग्य से बंध जाना
मुझे स्वीकार नहीं
स्वीकार नहीं मुझे
तेरे तथा-कतिथ दूतों के
नैतिकता-अनैतिकता के निर्देश
उनके छल भरे उपदेश
तेरे नाम पर रचे, उनके
षडयन्त्र भरे परिवेश
मैं विद्रोही तेरी माया का
आ ,मुझे नरसिंह बनकर
हिरण्यकश्यप की तरह मार दे
या…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on December 3, 2014 at 10:30pm — 14 Comments
Added by Neeraj Nishchal on December 3, 2014 at 12:32pm — 30 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 3, 2014 at 12:13pm — 33 Comments
मुट्ठी में कब रेत भी, ठहरी मेरे यार।
चार पलों की जिंदगी, बाकी सब बेकार।।
जीवन की इस भीड़ में, सबके सब अनजान।
सिर्फ फलक ही जानता, तारों की पहचान।।
पाप पुण्य जो भी किया, सब भोगे इहलोक।
जाने कैसा कब कहाँ, होगा वो परलोक।।
आँखों ने जाहिर किया, कुछ ऐसा अफ़सोस।
आँखों पे कल धुंध थी, अब आँखों में ओंस।।
व्यर्थ मशालें ज्ञान की, प्रेम पिघलते दीप।
बिखरी है हर भावना, सिमटा दिल का सीप।।
सागर से…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 3, 2014 at 3:00am — 11 Comments
घर बदला, बदला जहां, बदले बदले लोग ।
अर्थ बदलते देखिए, क्या जोगी क्या जोग ।।
पलकों से उतरी जरा, धीरे धीरे रात ।
शामों की दहलीज पे, साए करते बात ।।
धुंधली धुधली हो गई, यादों की सौगात।
अफरातफरी वक़्त की, ये कैसे हालात।।
आवाजे होती गई, सब की जब खामोश।
शहर बिचारा क्यों मढ़े, सन्नाटे को दोष।।
ढलती शामों में किया, पीपल ने संतोष।
बिछड़ गई परछाइयाँ, सूरज भी खामोश ।।
हमने जब से ले लिया, इश्क़…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 3, 2014 at 3:00am — 8 Comments
मिलना तो दिल खोल के, मिल लो मेरे यार।
छोटी सी है ज़िन्दगी, तुम छोड़ो तकरार ।।
बहुत दिनों से गर्म है, सपनो के बाज़ार ।
बदल रहे है देखकर, रिश्तो के आसार।।
आँखे भर भर आ गई, छूकर उनके पाँव।
यादों में फिर छा गया, बरगद वाला गाँव।।
मौसम की पदचाप भी, गुमसुम और उदास।
आँगन की तुलसी डरी, सहमा देख पलाश ।।
रहने दो गुल बाग में, गुंचा और बहार ।
हरियाली का इस तरह, ना बाटो सिंगार।।
मालिक के दीदार…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 3, 2014 at 2:30am — 12 Comments
वक़्ते-पैदाइश पे यूं
मेरा कोई मज़हब नहीं था
अगर था मैं,
फ़क़त इंसान था, इक रौशनी था
बनाया मैं गया मज़हब का दीवाना
कि ज़ुल्मत से भरा इंसानियत से हो के बेगाना
मुझे फिर फिर जनाया क्यूँ
कि मुझको क्यूँ बनाया यूं
पहनकर इक जनेऊ मैं बिरहमन हो गया यारो
हुआ खतना, पढ़ा कलमा, मुसलमिन हो गया यारों
कहा सबने कि मज़हब लिक्ख
दिया किरपान बन गया सिक्ख
कि बस ऐसे धरम की खाल को
मज़हब के कच्चे माल को…
Added by मिथिलेश वामनकर on December 3, 2014 at 2:00am — 22 Comments
क्या पता किस ख़ुदा ने बनायी मोहब्बत
पत्थरों से मुझे फिर करायी मोहब्बत
उसकी आँखों में सारा जहाँ मिल गया था
उसने हँसके ज़रा सा ज़तायी मोहब्बत
वो मेरा हा गया ,हो गया मैं भी उसका
हमने बर्षों तलक फिर निभायी मोहब्बत
रोज मिलने लगे ,सिलसिला चल पड़ा था
चाँद तारों से मैंने सजायी मोहब्बत
पर खुदा हमसे नाराज रहने लगा तो
दिलजलों की तरह फिर जलायी मोहब्बत
हो गये हम दिवानों से मशहूर दोनों
दुश्मनों ने बहुत फिर सतायी मोहब्बत
ख़ाक में…
Added by umesh katara on December 2, 2014 at 7:37pm — 15 Comments
आभास हो तुम ........
आभास हो तुम विश्वास नहीं हो
तुम रूठी तृप्ति की प्यास नहीं हो
जिन मधु पलों को मौन भी तरसे
तुम उस पूर्णता का प्रयास नहीं हो
आभास हो तुम विश्वास नहीं हो
तुम रूठी तृप्ति की प्यास नहीं हो .........
अतृप्त कामनाओं के स्वप्न नीड़ हो
अभिलाष कलश के विरह नीर हो
जिस प्रकाश को तिमिर भी तरसे
तुम उस जुगनू का प्रकाश नहीं हो
आभास हो तुम विश्वास नहीं हो
तुम रूठी…
Added by Sushil Sarna on December 2, 2014 at 1:30pm — 17 Comments
Added by pooja yadav on December 2, 2014 at 12:02pm — 10 Comments
मेरी खिड़की से दीखता है एक पेड़
उसका हाल भी मेरे जैसा ही है
ना जाने कब प्यार कर बैठे हम
जब भी खिड़की खोलती हूँ
उसे अपने इन्तजार में ही पाती हूँ
कोई तो है जिसे हर पल मेरा इन्तजार है
मेरा साथी मेरा सहारा मेरा दोस्त
एक अनजाना सा बंधन बंध गया है
हम दोनों के बीच में
हर पल मुझे ही निहारा करता है
जब भी उसके सामने से गुजरती हूँ
कहता है जल्दी आना
में तुम्हारा यही इन्तजार कर रहा हूँ
दिल खुश हो…
ContinueAdded by sarita panthi on December 2, 2014 at 10:00am — 13 Comments
छुपा कर दिल में रक्खी थी
बचपन में बनी प्रेम कहानी थी
तुम्हारे जिस पर नाम लिखे थे
दीवार वो, बहुत पुरानी थी
पगली ,इश्क में तेरे दीवानी थी
तूने फ़ौज मैं जाने की ठानी थी
तुझे सेहरा बाँध के आना था
निकाह की रस्म निभानी थी
कुछ अजब तौर की कहानी थी
तेरी लाश तिरगे में आनी थी
उठ गए थे खुनी खंज़र
जान तो जानी ही थी
अरे आसमां से तो पूछ लेता
खुदा गर तुझे ,बिजली…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on December 1, 2014 at 11:00pm — 25 Comments
साथ मेरे चलों , तो चलों उम्र भर ,
दो कदम साथ चलना गॅवारा नहीं।
तुम अधूरे इधर , मैं हूँ अधूरा उधर ,
दोनों आधे जिये , ये गॅवारा नहीं ।
तुम जो कह दो शुरू, तो शुरूआत हो
तुम जो कह दो खतम , सॉस थम जोयगी ।
पंथ कांटों का हो या कि फूलों भरा
तुम नहीं साथ में , ये गॅवारा नहीं ।
लाख नजरों में दिलकश नजारे रहे
किंतु आँखों की देहरी को न छू सके
मेरे सपनों के घर में सिवाय तेरे ,
चित्र हो और कोई , ये गॅवारा नहीं
मैं अकेला रहूँ या रहूँ भीड…
ContinueAdded by ajay sharma on December 1, 2014 at 11:00pm — 11 Comments
जब से देखा है उन्हें'रहा न खुद का ज्ञान।
जादूगरनी या कहूँ'मद से भरी दुकान।।1
दुख की रजनी जब गयी'सुख का हुआ प्रभात।
तरुअर देखो झूमते'नाच रहे हैं पात।।2
उपवन में ले आ गयीं'अनुपम एक सुगंध।
मन भँवरे ने कर लिया'जीने का अनुबंध।।3
मन उपवन में बस गया'उनका उजला चित्र।
बाकी सब धुँधला दिखे'अब तो मुझको मित्र।।4
नीति नियम हों साथ में'नेह भरा लघु कोष।
हिय उपवन में तब रहे'परम शांति संतोष।।5
मानवता…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on December 1, 2014 at 9:00pm — 20 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on December 1, 2014 at 8:30am — 21 Comments
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