Added by Dr. Vijai Shanker on December 31, 2014 at 11:24pm — 16 Comments
1222 1222 1222 1222
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कोई चाहत नहीं मेरी ,तेरे इक़ प्यार से आगे
क़भी सोचा नहीं मैंने ,तेरे रुख़सार से आगे
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क़भी का जीत लेता मैं,ज़माने को मेरे दम पर
मग़र वो जीत मिलनी थी,तेरी इक हार से आगे
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हरिक ख़्वाहिश अधूरी है,इन्हे करदे मुकम्मल तू
क़भी तो आज़मा ले तू ,मुझे इनकार से आगे
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जमाने की हरिक़ खुशियाँ ,तेरे कदमों तले रख़ दूँ
तेरा हर ख़्वाब हो जाऊँ,तेरे इक़रार से…
Added by umesh katara on December 31, 2014 at 8:20pm — 9 Comments
कभी निकटता रिश्तों में ,
ज्यों सागर की गहराई !
कभी दूरियाँ अपनों में,
ज्यों अम्बर की ऊँचाई !
कभी सहजता चुप्पी में,
कभी जटिलता बोली में !
कभी बर्फ मैं ज्वाला किंतु,
आंच नहीं अब होली मैं !
कहीं मोहब्बत की म्यानों में,
रखी बैर की शमशीरें !
कहीं इबारत उलटी यारों ,
जहाँ लिखी हैं तक़दीरें !
कहीं सत्य एक झंझट,
कही झूठ है सुलझा !
कहीं किसी ने जाल बिछाया
खुद ही आकर उलझा…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on December 31, 2014 at 7:30pm — 10 Comments
**साल गुजरे जा रहे हैं.
आ रहे पल, जा रहे पल
साल गुजरे जा रहे हैं.
वक़्त बन के पाहुना,
आ गया है द्वार पर.
साज सज्जा वाद्य धुन.
गूंज मंगलचार घर.
नवल वधु से कुछ लजा,
दिन सुनहरे आ रहे हैं.
साल गुजरे जा रहे हैं.
बोझ बढ़ता नित नया.
स्कूल का बस्ता हुआ,
दाम बढ़ते माल के,
आदमी सस्ता हुआ.
नाम सुरसा का सुना जब,
आमजन भय खा रहे है.
साल गुजरे जा रहे हैं.
सूर्य भटका…
ContinueAdded by harivallabh sharma on December 31, 2014 at 7:23pm — 16 Comments
1222 1222 1222 122
नया सूरज नई आशा चलो इक बार फिर से
शब-ए-ग़म में नया किस्सा चलो इक बार फिर से
तेरे पिंदार का दामन तसव्वुर थाम लेगा
तेरी यादें तेरा चर्चा चलो इक बार फिर से
किसे हसरत बहारों की किसे चाहत चमन की
वही जंगल वही सहरा चलो इक बार फिर से
किसी पर तंज़िया पत्थर उछालेंगे न हरगिज
यही ख़ुद से करें वादा चलो इक बार फिर से
बुझेगी तिश्नगी अपनी शरारों से हमेशा
निगलने आग का दरिया चलो…
ContinueAdded by khursheed khairadi on December 31, 2014 at 11:00am — 13 Comments
मैं चौक गया
आईना देखकर
परख कर
अपनी परछाई
मुख में झुर्री
काली काली रेखाएं
आंखों के नीचे
पिचका हुआ गाल
हाल बेहाल
सिकुड़ी हुई त्वचा
कांप उठा मैं
नही नही मैं नही
झूठा आईना
है मेरे पिछे कौन
सोचकर मैं
पलट कर देखा
चौक गया मैं
अकेले ही खड़ा हूॅं
काल ग्रास होकर ।
.......................
मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on December 31, 2014 at 10:30am — 8 Comments
122 - 122 - 122 - 122 - 122 - 122 - 122 - 122 (16-रुक्नी)
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गुजारिश नहीं है, नवाजिश नहीं है, इज़ाज़त नहीं है, नसीहत नहीं है।
ज़माना हुआ है बड़ा बेमुरव्वत, किसी को किसी की जरूरत नहीं है।
किनारे दिखाई नहीं दे रहें है, चलो किश्तियों के जनाज़े उठा लें,
यहाँ आप से है समंदर परेशाँ, यहाँ उस तरह की निजामत नहीं है।
जमीं आसमां…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 31, 2014 at 12:41am — 31 Comments
और भाई, इस बार तो तूने पूरी राम लीला देख ली क्या सीखा ?
भईया, रामचरितमानस की कथा के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ की पिता का कहना नहीं मानना चाहिए, इससे बहुत तकलीफ उठानी पड़ती है !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Hari Prakash Dubey on December 30, 2014 at 11:55pm — 9 Comments
(2122 2122 2122 2122)
दोस्ती कैसे निभाएं कोई पैमाना कहाँ है
हीर रान्झू का नया सा आज अफ़साना कहाँ है
प्यार से ही जो बदल दे हर अदावत की फ़जा को
संत मुर्शिद सूफ़ी मौल़ा ऐसा मस्ताना कहाँ है
ख़ुद गरज नेता वतन का तो करेंगे वो भला क्या
मार हक़ फिर देखते हैं वो कि नजराना कहाँ है
अंजुमन में रिन्दों की भी बैठ कर देखें जरा हम
हाल सब का पूछते वो कोई अनजाना कहाँ है
हर ख़ुशी कुर्बान…
ContinueAdded by कंवर करतार on December 30, 2014 at 10:00pm — 19 Comments
रात आँखों में बिता दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?
मैं आज बत्तियां जला दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?
बैठे हो सर झुकाए, कुछ गुमशुदा से बन के,
आज घूँघट फिर उठा दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?
है कंपता बदन ये, आँखों में कुछ नमी है,
लाओ सर जरा दबा दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?
लगती हो खोई-खोई, किस सोच में पड़ी हो ?
ग़र फिक्र सब मिटा दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?
ख़ामोशी क्यूँ है इतनी ? अरे गाते थे कभी हम,
मैं कुछ गीत…
ContinueAdded by संदेश नायक 'स्वर्ण' on December 30, 2014 at 8:14pm — 9 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on December 30, 2014 at 1:03pm — 24 Comments
दो हजार पंद्रह मने, योग लिए है आठ,
मानो यह नव वर्ष भी,लेकर आया ठाठ |
नए वर्ष का आगमन, खुशिया मिले हजार,
सबको दे शुभ कामना, दूर करे अँधियार |
रश्मि करे अठखेलियाँ, आता तब नववर्ष
प्राची में सौरभ खिले, सुखद धूप का हर्ष |
अच्छे दिन की आस रख, ह्रदय रहे सद्भाव
दूर करे नव वर्ष में, रिश्तों से अलगाव |
स्वागत हो नव वर्ष का,लेता विदा अतीत,
प्रथम दिवस के भोर से, शुभ हो समय व्यतीत…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 30, 2014 at 12:30pm — 10 Comments
2122 2122 2122 212
" मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोई हुई -
( इस मिसरे पर गज़ल कहने की मैने भी कोशिश की है , आपके सामने रख रहा हूँ )
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ग़म सभी बेदार लगते , हर खुशी सोई हुई
जग गई लगती है फिर से, बेकली सोई हुई -
बेदार -जागे हुये, बेकली - अकुलाहट
फैलती ही जा रही बारूद की बदबू जहाँ
बे ख़ुदी में लग रही बस्ती वही सोई…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 30, 2014 at 11:00am — 23 Comments
मन बहुत अकेला है - - - -
आँखे तुमने बंद करीं
सब संज्ञाए बदल गई
बाद तुम्हारें कितनी ठेलम-ठेला है !
मन बहुत अकेला है - - - -
रिश्ते नए क्रम में आए
प्रतिबद्धताएँ बदल गईं
मनोभाव से सबने मेरी खेला है !
मन बहुत अकेला है - - - -
बैठ अकेले में कैसे संताप करूँ
अब बीते का क्या आलाप करूँ
आगत-आज में हुआ झमेला है
मन बहुत अकेला है - - - -
तुमसे निजता का उपहार सम्भाले हूँ
खुले हाट में अपना भाव सम्भाले…
ContinueAdded by somesh kumar on December 30, 2014 at 10:20am — 6 Comments
221 2121 1221 212
लिखता हूँ हर्फ़-हर्फ़ मैं जो तेरे नाम से
जज़्बात, दर्द, अश्क़ के हर एहतमाम से
क्या हो गया जो कोई उन्हें जानता नहीं
मक़बूलियत अदीब की है उनके काम से
मिल ही गया मुकाम उसे आखिरश कहीं
बेजा भटक रहा था मुसाफिर जो शाम से
शाइस्तगी न बज़्म में थी कोई मस्लहत
टकरा रहे थे लोग जहाँ जाम, जाम से
गुरबत बिकी थी लाख टके में मगर “शकूर”
गुरबत फ़रोश जी न सका एहतराम…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on December 30, 2014 at 9:57am — 9 Comments
बॉस के कमरे की अधखुली खिड़की। उसने डूबते सूरज को देखते हुए कहा- “आप मेरे प्रमोशन की बात को हमेशा टाल जाते है.... मेरे हसबेंड के लिए आहूजा ग्रुप में सिफारिश भी नहीं की अब तक... .. उन्होंने तीन महीनों से बातचीत बन्द कर रखी है। हमेशा नाराज रहते है, रोज ड्राइंग रूम में सोते है। पता है, मैं कितनी परेशान हूँ... इस बार पीरियड भी नहीं आया है।”
कहते-कहते वो अचानक मौन हो गई। कमरे में चीखता हुआ सन्नाटा पसर गया था।
क्षितिज पार सूरज तो कब का डूब चुका…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 30, 2014 at 12:45am — 22 Comments
Added by दिनेश कुमार on December 29, 2014 at 10:32pm — 21 Comments
कौन जाने ?
बद्दुआओ में होता है असर
वाणी के जहर
ये काटते तो है
पर देते नहीं लहर
पुरा काल में
इन्हें कहते थे शाप
ऋषियों-मुनियों के पाप
दुर्वासा इसके
पर्याय थे आप
भोगता था
अभिशप्त वाणी की मार
कभी शकुन्तला
या अहल्या सुकुमार
आह !आह ! ऋषि के
वे…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 29, 2014 at 9:30pm — 19 Comments
Added by ram shiromani pathak on December 29, 2014 at 5:17pm — 19 Comments
करके घायल ......
करके घायल नयन बाण से
मंद-मंद मुस्काते हो
दिल को देकर घाव प्यार के
क्योँ ओझल हो जाते हो
प्यार जताने कभी स्वप्न में
दबे पाँव आ जाते हो
कुछ न कहते अधरों से
बस नयनों से बतियाते हो
क्षण भर के आलिंगन को
तुम बरस कई लगाते हो
फिर आना का वादा करके
विछोह वेदना दे जाते हो
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 29, 2014 at 3:26pm — 14 Comments
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