नवरात्रि की 'एक झांकी' के समानांतर एक और झांकी! नहीं, एक नहीं 'तीन' झांकियां! मां दुर्गा की 'स्थायी झांकी' में चलित झांकियां! चलित? हां, 'चलित' झांकियां! उस अद्भुत संदेशवाहिनी झांकी से प्रतिबिंबित अतीत की झांकियां; उसके समक्ष खड़ी हुई सुंदर युवा मां के सुंदर कटीले बड़े से नयनों में! उसके मन-मस्तिष्क में! दुर्गा सी बन गई थी वह उस जवां मर्द के शिकंजे से छूट कर और कुल्हाड़ी दे मारी थी उस वहशी के बढ़ते हाथों पर! दूसरे धर्म का था वह दुष्ट! जाति-बिरादरी के मर्दों के हाथों बेमौत मारा जाता वह! उसके पहले…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on October 21, 2018 at 9:00pm — 3 Comments
दर्द सारे ज़ख्म बन कर ख़ुद-नुमा हो ही गये,
राज़-ए-पोशीदा थे आख़िर बरमला हो ही गये..
तू ना समझेगा हमें थी कौन सी मजबूरियाँ,
तेरी नज़रों में तो अब हम बे-वफ़ा हो ही गये..
इश्क़ क्या है, क्या हवस है और क्या है नफ़्स ये,
उठते उठते ये सवाल अब मुद्द'आ हो ही गये..
एक मुददत बाद उस का शहर में आना हुआ,
बे-वफ़ा को फिर से देखा औ फ़िदा हो ही गये..
फिर सुख़न में रंग आया उस ख़्याल-ए-ख़ास का,
फिर ग़ज़ल के शेर सारे मरसिया हो ही…
Added by Zohaib Ambar on October 21, 2018 at 2:45am — 1 Comment
सुन कर ये तिरी ज़ुल्फ़ के मुबहम से फ़साने,
दश्ते जुनुं में फिरते हैं कितने ही दीवाने..
कब साथ दिया उसका दुआ ने या दवा ने,
आशिक़ को कहाँ मिलते हैं जीने के बहाने..
मुमकिन है तुम्हें दर्स मिले इनसे वफ़ा का,
पढ़ते कुँ नहीं तुम ये वफ़ाओं के फ़साने..
इस दौर के गीतों में नहीं कोई हरारत,
पुर-सोज़ जो नग़में हैं वो नग़में हैं पुराने..
इस इश्क़ मुहब्बत में फ़क़त उन की बदौलत,
ज़ोहेब तुम्हें मिल तो गये ग़म के…
Added by Zohaib Ambar on October 21, 2018 at 2:30am — 3 Comments
2122 1212 22/112
हो खुदा पर यकीं अगर यारो
फिर न पैदा हो कोई डर यारो।
जिंदगी ये मिली हमें जिनसे
हों न देखो वे दर-ब-दर यारो।
ख़ार से जो भरी रहे हर दम
इश्क है ऐसी ही डगर यारो।
दर्द लगता दवा के जैसा अब
ये मुहब्बत का है असर यारो।
जो न मंजिल भी दे सके शायद
वो ख़ुशी दे रहा सफ़र यारो।
मौलिक अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 20, 2018 at 5:56pm — 8 Comments
मुश्किलों में मुस्कुराना सीख लो।
ज़िंदगी से दिल लगाना सीख लो ॥
शौक़ पीने का तुम्हें माना मगर।
दूसरों को भी पिलाना सीख लो॥
ढूँढने हैं मायने गर जीस्त के।
तो राग तुम कोई पुराना सीख लो॥…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on October 20, 2018 at 5:30pm — 2 Comments
Added by V.M.''vrishty'' on October 20, 2018 at 1:06pm — No Comments
माँ - लघुकथा -
"माँ, बापू ने तुम्हें क्यों छोड़ दिया था ?"
"गुड्डो , जब छोटी पेट में थी। तेरे बापू गर्भ गिरवाना चाहते थे। मैंने मना किया तो मुझे धक्के मार कर घर से निकाल दिया ।"
"मैंने तो सुना कि वे तो माँ दुर्गा के कट्टर भक्त थे।फिर एक देवी उपासक भ्रूण हत्या जैसा पाप और एक औरत का ऐसा अपमान कैसे कर सकता है?"
"अधिकतर अंध भक्त दोगली ज़िंदगी जीते हैं। इनकी कथनी और करनी में बहुत फर्क होता है।"
"माँ, मौसी तो कह रही थी कि तुम काली थीं और सुंदर भी नहीं थी।इसलिये…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 20, 2018 at 11:13am — 5 Comments
रावण :
एक रावण
जला दिया
राम ने
एक रावण
ज़िंदा रहा
मन में
किसी
राम के इंतज़ार में
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 19, 2018 at 9:24pm — 1 Comment
देश के एक राजमार्ग पर एक ढाबे पर देर रात भोजन हेतु डेरा जमाये हुए यात्रियों में कोई किसान, मज़दूर, व्यापारी, शिक्षक आदि था, तो कोई बस या ट्रक का स्टाफ। भोजन करते हुए वे बड़े से डिजिटल टीवी पर समाचार भी सुन रहे थे।
"देखो रे! मेरा देश बदल रहा है!" एक शराबी ज़ोर से चिल्लाया।
"अबे! बदल नहीं रहा! बदला जा रहा है! पगला जा रहा है!" दूसरे साथी ने देसी दारू का घूंट गुटकने के बाद कहा।
"दरअसल देश बदल नहीं रहा; न ही बदला जा रहा है! शादी-विवाह में शिरक़त माफ़िक दुनिया के जश्न-ए-तरक़्क़ी में…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 18, 2018 at 11:57pm — 3 Comments
बह्र - 1222-122-2212-22
कोई यूँ खुश हुआ हो अपना खुदा पाकर।।
बहुत पछताएंगे वो मेरा पता पाकर।।
सफर चलना है कैसे ,लेकर चलन कैसा।
उन्हें अहसास होगा ,आबोहवा पाकर।।
वो अपनी ज़द में ही अपना आशियाँ चुन लें ।
कहाँ होता है आदम से बा वफ़ा पाकर।।
मुझे अब मुल्क़ से ये मजहब ही निकालेगा ।
बहुत खुश है मुझे यह जलता हुआ पा कर ।।
मैं अपनी आरजू अब अपना कहूँ कैसे ।
ये तो खुश है मेरे बच्चों से दगा पा कर…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on October 18, 2018 at 7:29pm — No Comments
अनकहा ...
अभिव्यक्ति के सुरों में
कुछ तो अनकहा रहने तो
अंतस के हर भाव को
शब्दों पर आश्रित मत करो
अंतस से अभिव्यक्ति का सफर
बहुत लम्बा होता है
अक्सर इस सफ़र में
शब्द
अपना अर्थ बदल देते हैं
शब्दों अवगुंठन में
अभिव्यक्ति
मात्र मूक व्यथा का
प्रतिबिम्ब बन जाती है
भावों की घुटन
मन कंदराओं में
घुट के रह जाती है
जीने के लिए
कुछ तो शेष रहने दो
अभिव्यक्ति के गर्भ में
कुछ तो…
Added by Sushil Sarna on October 17, 2018 at 6:30pm — 6 Comments
पिछले कुछ घंटों से उदास दिख रहे अपने दोस्त को देखकर उससे रहा नहीं गया. "क्या हो गया राजमन, बहुत उदास लग रहे हो".
राजमन ने एक नजर उसकी तरफ डाली और सोच में पड़ गया कि तेजू को बात बताएं कि नहीं. लेकिन तेजू तो उसकी हर बात, हर राज से वाकिफ़ था इसलिए उसे बताने में कोई हर्ज भी नहीं था.
"यार, तुम तो देख ही रहे हो ये आजकल का ट्रेंड, जिसे देखो वही इस #मी टू# के बहाने लोगों के नाम उछाल रहा है. रिटायरमेंट के बाद अब कहीं कोई मेरे खिलाफ भी यह चैप्टर न खोल दे, यही सोचकर घबरा रहा हूँ".
तेजू ने…
Added by विनय कुमार on October 17, 2018 at 5:00pm — 8 Comments
1212 1122 1212 212
खिजा के दौर में जीना मुहाल कर तो सही ।
मेरी वफ़ा पे तू कोई सवाल कर तो सही ।।
है इंतकाम की हसरत अगर जिग़र में तेरे ।
हटा नकाब फ़िज़ा में जमाल कर तो सही ।।
निकल गया है तेरा चाँद देख छत पे ज़रा ।
तू जश्ने ईद में मुझको हलाल कर तो सही ।।
बिखरता जाएगा वो टूट कर शजर से यहां ।
निगाह से तू ख़लिस की मज़ाल कर तो सही ।।
मिलेंगे और भी आशिक तेरे जहां में अभी ।
तू अपने हुस्न की कुछ देखभाल कर तो सही…
Added by Naveen Mani Tripathi on October 17, 2018 at 3:49pm — 7 Comments
नेताओं की मौज है, राजनीति के गाँव
छाले लेकर घूमती, जनता दोनों पाँव।१।
सत्ता बाहर सब करें, यूँ तो हाहाकार
पर मनमानी नित करें, बनने पर सरकार।२।
जन की चिंता कब रही, धन की चिंता छोड़
कौन मचाये लूट बढ़, केवल इतनी होड़।३।
कत्ल,डैकेती,अपहरण, करके लोग हजार
सिखा रहे हैं देश को, हो कैसा व्यवहार।४।
साठ बरस पहले जहाँ, मुद्दा रहा विकास
आज वही संसद करे, बेमतलब बकवास।५।
राजनीति में आ बसे, अब तो खूब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 17, 2018 at 1:04pm — 4 Comments
यू टू (you too ) - लघुकथा -
मेरी छोटी बहिन कुसुम आठवीँ कक्षा में थी। उम्र चौदह साल होगी।
उस दिन वह छत पर कागज के जहाज बना कर उड़ा रही थी। उसी वक्त पिताजी का घर आना हुआ और कुसुम का उड़ाया हुआ जहाज पिताजी से टकराया। पिताजी ने उस कागज के जहाज को उठा लिया। खोल कर देखा तो वह एक प्रेम पत्र था।लेकिन उस पर किसी का नाम नहीं था, ना पाने वाले का ना भेजने वाले का। "प्रिय" से शुरू किया था और "तुम्हारी" से अंत किया था।
पिताजी ने छत पर कुसुम को देखा तो उनका गुस्सा सातवें…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 17, 2018 at 11:52am — 4 Comments
कहाँ जाऊँ के तेरी याद का झोंका नहीं आये,
कि तेरे साथ का गुज़रा कोई लम्हा न तड़पाये,
कभी कपड़ों में मिल जाते हैं तेरे रंग के जादू,
मुझे महका के जाती हैं तेरे ही ब्राण्ड की ख़ुश्बू ,
मेरे हाथों की मेहंदी में तेरा ही अक़्स उभरे है,
मेरी साँसों में भी जानां तेरी ही साँस महके है,
पसंदीदा तुम्हारा जब कोई खाना बनाती हूँ,
तुम्हारे नाम की थाली अलग से मैं लगाती हूँ,
मिला कर दर्द में आँसू तेरा चेहरा बनाती हूँ,
मैं…
Added by Anita Maurya on October 17, 2018 at 9:00am — 4 Comments
वक़्त आने दो ज़रा फ़िर न झुकूंगा देख लेना ।
एक दिन पत्थर पे पानी से लिखूंगा देख लेना ।
.
मैं तेरे रहमोकरम की काफिरी करता नही हूँ ।
हूँ मुकम्मल एक तूफ़ां जब उडूँगा देख लेना ।
.
हौसला रख चल पड़ा हूँ रौशनी लाने दिलों में ।
एक जुगनू सा अँधेरों से लड़ूँगा देख लेना ।
.
रास्तों में हूँ यक़ीनन दूर मुझसे मंज़िलें, पर ।
चल रहा हूँ मंजिलों पर ही रुकूँगा देख लेना ।
.
वक़्त का क्यावक़्त गुज़रेगा अँधेरी रात का भी ।
जगमगाता भोर का…
Added by रकमिश सुल्तानपुरी on October 17, 2018 at 3:00am — 4 Comments
आज उनसे कामकाज नहीं हो पा रहा था। गुप्त मंत्रणा कर कोई कठोर निर्णय लिया जाना था।
"अब तो हद हो गई! छात्र-छात्राएं और शिक्षक तक मीडिया का अंधानुकरण करने लगे हैं। हमारी भी कोई प्रतिष्ठा है न!"
"हां भाई! ई-मेल एड्रेस से लेकर गणित और विज्ञान तक में हमारी अहमियत है! ... पर गालियों और अभद्र शब्दों में हम अपना उपयोग अब नहीं होने देंगे! हमारी ईजाद इसलिए थोड़े न की गई थी!"
"बिल्कुल सही कहा तुमने! हमारा अवमूल्यन हो रहा है। ई-मेल के @ से हैश टैग # वग़ैरह के बाद ये मीडिया हमें सांकेतिक…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 16, 2018 at 9:43pm — 3 Comments
Added by V.M.''vrishty'' on October 16, 2018 at 9:16pm — 8 Comments
युग द्रष्टा कलाम
युग द्रष्टा कलाम की वाणी
हर पल राह दिखाएगी
युगों युगों तक नव पीढ़ी को
मंजिल तक ले जाएगी ll
बना मिसाइल अपनी मेधा
दुनिया को दिखलाए हैं
अणुबम की ताकत दिखलाकर
जग में मान बढ़ाए हैं ll
सपने सच होते हैं जब खुद
सपने देखे जाते हैं
दुख में जो भी धैर्य उठाये
कलाम सा बन जाते हैं ll
क्लास रूम का बेंच आखिरी
शक्ति स्रोत बन जाता है
गुदड़ी में जो लाल छिपा है
काम देश के आता है…
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on October 16, 2018 at 2:40pm — 7 Comments
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