For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,119)

गज़ल -8 ( खूब दिलबर है वो हँसके शिकार करता है)

2122 1122 1212 22

सीधे सीधे वो कलेजे पे वार करता है

खूब दिलबर है वो हँसके शिकार करता है //१

चाल होती है अज़ब उसकी मीठी बातों में

झूठी बातें वो बड़ी शानदार करता है //२

खूब हिस्सा जो दवाओं में खा रहा है वो

डॉक्टर अब तो दवा से बीमार करता है //३



जिस्म औ रूह के सुकून को मिटा डाला

और कहता है कि वो मुझसे प्यार करता है //४

ख़ून का प्यासा हुआ है ग़ज़ब का अब इंसां

ख़ून के रिश्ते को भी तार तार करता है…

Continue

Added by क़मर जौनपुरी on November 23, 2018 at 9:22pm — 7 Comments

ग़ज़ल

1222 1222 1222 1222

हुआ अब तक नहीं है हुस्न का दीदार जाने क्यों ।

बना रक्खी है उसने बीच मे दीवार जाने क्यों ।।

मुहब्बत थी या फिर मजबूरियों में कुछ जरूरत थी ।

बुलाता ही रहा कोई मुझे सौ बार जाने क्यों ।।

यहाँ तो इश्क बिकता है यहां दौलत से है मतलब ।

समझ पाए नहीं हम भी नया बाज़ार जाने क्यों ।।

तिजारत रोज होती है किसी के जिस्म की देखो ।

कोई करने लगा है आजकल व्यापार जाने क्यों ।।

कोई दहशत है या फिर वो कलम…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on November 23, 2018 at 1:30am — 12 Comments

उम्मीद की रोशनी (अतुकांत कविता)

चुनावी महाकुंभ के नगाडे की टंकार में

चौतरफा राजनीति का हुआ महौल गरमागरम

ईद के चांद हुए नेता जो ,

चिराग लेकर ढूंढने पर थे नदारद

योजनाओं की बरसात होने लगी

धूल उडती गड्ढे वाली सडकों पर

चुनावी सीमेंट चढ गया

उजाड बंजर खेती पर

हरियाल करने का मरहम लगाते

कंबल, साडी, दारू, मुर्गा का

बंदरबांट का फार्मूला चलाते

नित नए तरीकों से वोटरों को रिझाते

चरणवंदन कर, घडियाली ऑंसू बहाते

खोखले वायदों की दहाड,

ना खायेंगे, ना खाने देगे

दिए प्रलोभन, दिखाई…

Continue

Added by babitagupta on November 22, 2018 at 3:19pm — 5 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७२

2122 2122 2122 212



सोचता हूँ तुझमें कब बंदा नवाज़ी आएगी

तेरे तर्ज़े क़ौल में किस दिन गुदाज़ी आएगी //१



मैं अभी बच्चा हूँ मुझको छेड़ते हो किसलिए

मैं बड़ा भी होऊँगा, क़द में दराज़ी आएगी //२



देखता तो है पलट कर वो इशारों में अभी

मुस्कुराएगा वो कल, तब-ए- तराज़ी आएगी //३  



तेरा ये हुस्ने मुजस्सम और मेरी दीवानगी

मिल गए हम दोनों फिर…

Continue

Added by राज़ नवादवी on November 21, 2018 at 6:00pm — 22 Comments

जहाँ का दर्द समाया.....

( ग़ज़ल )

जहाँ का दर्द समाया सभी की आह में है।

तमाम शहर का मंज़र मेरी निगाह में है।।

जिसे भी कमियों से उसकी किया ज़रा आगाह।

बड़ा सा दाग़ दिखाता वो शख़्स माह में है।।

तमाम ख़ार में इक आध गुल कहीं दिखता।

बहार गर्दिश-ए-सहरा की ज्यूँ पनाह में है ।

बचा रहा है बशर ख़ुद को हक़ बयानी से ।

के ख़ौफ़ इतना है जैसे वो क़त्ल गाह में है।।

नहीं है कुछ भी ख़बर रोज़-ए-हस्र क्या होगा।

फँसा हर एक बशर शौक से गुनाह में है।।

जो कर रहीं हैं सभी साँस की लहरों पे…

Continue

Added by Vivek Raj on November 21, 2018 at 5:55pm — 6 Comments

"अहसास"

ज़िंदगी दी है खुदा ने,मुस्कुराने के लिए

भूलना लाज़िम है तुमको,याद आने के लिए

 

बेखयाली मे कदम फ़िर, खींच लाये है मुझे

मैं नहीं आया किसी का, दिल चुराने के लिए

 

यूँ ही मिल जाए कोई फ़िर, क़द्र करता ही…

Continue

Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on November 21, 2018 at 1:00pm — 3 Comments

गज़ल -7 ( गरीबों की लाशों में ढूंढें ख़ज़ाना)

122 122 122 122



हक़ीक़त न बोले बनाये फ़साना

अज़ब ये तरक्की अज़ब है ज़माना //१

नहीं आज उसमें ज़रा सी भी शफ़क़त

ग़रीबों की लाशों में ढूंढे ख़ज़ाना //२

सँवारा जिसे था बड़ी आरज़ू से

बुढ़ापा में छीना वही आशियाना //३

ज़रूरी कहाँ है गिराना ज़मीं पे

है काफ़ी उसे बस नज़र से गिराना //४

गुलों की तरह है मेरे दिल की हसरत

मसल दो न छोड़े ये ख़ुशबू लुटाना //५

क़मर जाने कब से भटक ही रहा है

तेरा शह्र दर शह्र ढूंढे ठिकाना…

Continue

Added by क़मर जौनपुरी on November 21, 2018 at 12:30am — 9 Comments

गीत (212 X 4)

पास इतना जो मन के वे आते नहीं

स्यात नयनों से यूं दूर होते नहीं

मिल के सपनों के दुनिया बसाते न जो

काँच के ये महल चूर होते नहीं 

 

अब तो बर्बाद हूँ लुट गया हूँ सनम 

अर्धविक्षिप्त हूँ और बेहाल हूँ 

सोहनी-सोहनी रट रहा हूँ मगर

गम का मारा हुआ एक महिवाल हूँ

 

कोई गहरी अगर चोट खाते न जो 

इस कदर दिल से मजबूर होते नही

पास इतना...

 

हमने वादा किया साथ मरने का था

क्योंकि जीना हमें रास आया…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 20, 2018 at 12:30pm — 4 Comments

सन्नाटा  -  लघुकथा  -

सन्नाटा  -  लघुकथा  - 

सोनू ने स्कूल से आते ही, स्कूल बैग  पटक कर, सीधे दादा जी के कमरे का रुख किया, "दादा जी, ये ब्लफ मास्टर क्या होता है?"

 दादाजी अपने दोस्तों के साथ वर्तमान राजनीति पर चर्चा में मशगूल थे।जिनमें कुछ लोकल लीडर भी थे| अतः सोनू को टालने के लिये कहा,"सोनू, अभी तुम स्कूल से आये हो। ड्रेस बदल कर कुछ खा पी लो। फिर बात करते हैं।"

"नहीं दादाजी, मुझे पहले यह जानना अधिक जरूरी है।"

"सोनू, अभी हम लोग देश के मौजूदा हालात के बारे में कुछ आवश्यक बात कर रहे…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on November 20, 2018 at 10:34am — 15 Comments

गज़ल -6 ( चल गया जादू सभी अंधे औ बहरे हो गए)

2122 2122 2122 212

चल गया जादू सभी अंधे औ बहरे हो गए

ज़ालिमों के ज़ुल्म के दिन अब सुनहरे हो गए //१

था किया वादा बनाएगा महल सपनों का वो

यूँ किया उसने कि गड्ढे और गहरे हो गए //२

चुप है हाकिम चुप है मुंसिफ चुप है ये सारा जहाँ

मुजरिमों की लिस्ट में मासूम चेहरे हो गए //३

हाथ में अब आ गया है ज़ालिमों के वो हुनर

राम हारे रावणों के अब दशहरे हो गए //४

झूठ बोले हर सभा में और पा जाए सनद

सच जो बोले उस ज़ुबाँ पे सख़्त पहरे हो गए //५

--…

Continue

Added by क़मर जौनपुरी on November 20, 2018 at 8:00am — 7 Comments

बदहाल जनता (तुकांत अतुकांत कविता)

प्रजातांत्रिक देश स्वतंत्र व्यक्ति

अभिव्यक्ति की आजादी

विकास यात्रा सत्तर साल की

सरकारी नक्शे पर दर्ज इलाका

हालात जस के तस

टूटे घने जंगलों में बसा वीराना सा गांव

टूटी फूटी नदी, दम तोडती पुलिया

जर्जर धूल उडाती सडकें

विकराल संकटों से जूझ रहा

जीवन से लडता

रोजीरोटी की जद्दोजहद

मैले कुचैले अर्धवदन ढके

बदहाली मे आपस में दुख बांटते

अपने गांव की पीडा समझाते

चेहरे पर पीडा झलक आती

नेताओं के झूठे वादे घडियाली ऑसू

बिना लहर के हिलोरें…

Continue

Added by babitagupta on November 19, 2018 at 7:52pm — 7 Comments

हौं पंडितन केर पछलगा (उपन्यास का एक अंश )

 

         बैसाख की दुपहरी में कंचाना खुर्द मोहल्ला बड़ा शांत था I गर्मी के कारण औरतें घरों में दुबकी थीं और मर्द घर के बाहर अधिकांशतः नीम या किसी अन्य पेड़ के नीचे आराम फरमा रहे थे I फ़कीर इस मोहल्ले में बड़े कुंए की तलाश करता-करता एक बड़े से उत्तरमुख घर के पास पहुँचा, जिसकी चार दीवारी के अन्दर आम, नीम व बरगद एवं पाकड़ आदि के कुछ पेड़ थे I घर का मालिक एक अधेड़ सा व्यक्ति बरगद के नीचे बड़े से तख़्त पर नीली लुंगी और सफ़ेद बनियाइन पहने लेटा था I…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 19, 2018 at 5:25pm — 3 Comments

अहसासों के टोस्ट: ३ क्षणिकाएं

अहसासों के टोस्ट: ३ क्षणिकाएं

मर्म

सपनों का

बिना

काया का

साया

न अपना

न पराया

.................

कितने लम्बे

सपनों के धागे

सोच के पाँव

आसमाँ से आगे

नैन जागें

तो ये टूटें

नैन सोएं

तो ये जागें

......................

सर्द सवेरा

चाय की प्याली 

उठती भाप

अहसासों के टोस्ट

नज़रों की चुस्कियाँ

उम्र के ठहराव पर

काँपते हाथों सी

ठिठुरती…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 19, 2018 at 2:30pm — 6 Comments

गीतिका(आधार छंद-दोहा) -रामबली गुप्ता

सोच समझ कर बोलिए, बातें सदा विनीत

छूटा धनु से बाण जो, लौटा कब हे! मीत



तीर-धनुष-तलवार से, बड़े दया औ' प्रेम

इन्हें बना लें शस्त्र यदि, जग को लेंगे जीत।



द्वेष-दंभ सम अरि सखे! यहाँ मनुज के कौन

बिन इनके संहार के, उपजे कब हिय प्रीत



सतत प्रयासों के करें, ऐसे तीव्र प्रहार

पर्वत पथ खुद छोड़ दें, होकर भय से भीत



अधर-सुधा घट भौंह-धनु, मुख…

Continue

Added by रामबली गुप्ता on November 19, 2018 at 1:21pm — 3 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७१

2212 1212 2212 1212



ख़ुशियों से क्या मिले मज़ा, ग़म ज़िंदगी में गर न हो

शामे हसीं का लुत्फ़ क्या जब जलती दोपहर न हो



लुत्फ़े वफ़ा भी दे अगर बेदाद मुख़्तसर न हो

इक शाम ऐसी तो बता जिसके लिए सहर न हो



हालात जीने के गराँ भी हों तो क्या बुराई है

मजनूँ मिले कहाँ अगर सहराओं में बसर न हो



ऐसी रविश तो ढूँढिए गिर्यावरी ए आशिक़ी

तकलीफ़ देह भी न हो, नाला भी बेअसर न हो



ख़ुशियों के मोल बढ़ते हैं रंजो अलम के क़ुर्ब से

तादाद…

Continue

Added by राज़ नवादवी on November 19, 2018 at 10:00am — 15 Comments

कविता -2 ( झंझावात )

झंझावात

*******



झंझावात कितना प्रबल है!



दिशाएँ हो गईं निस्तब्ध,



नभ हो गया नि:शब्द,



सरस मधुर पुरवाई अपना दिखा गई भुजबल है।



झंझावात कितना प्रबल है!



शाखें हैं टूटी-टूटी,



सुमनों की किस्मत रूठी,



टप-टप बूँदों ने बेध दिया हर पत्ती का अंतस्थल है!



झंझावात कितना प्रबल है!



पंछी तिनके अब जुटा रहे,



चोटिल भावों को मिटा रहे,



दिन बीत गया अब रात हुई, यह जीवन नहीं सरल… Continue

Added by क़मर जौनपुरी on November 18, 2018 at 10:24pm — 3 Comments

गृहस्थ

छंद-आल्हा/वीर, बृज मिश्रित

-------------------------

जय जय जय भगवती भवानी

कृपा कलम पर रखियो मात

आज पुनः लिख्यौ है आल्हा

जामै चाहूँ तेरौ साथ
महावीर बजरंगी बाला

इष्टदेव मन ध्यान लगाय

निज विचार गृहस्थ पर मेरे

आल्हा में भर रह्यो सुनाय
नर नारी दोनों ही साधक

सर्जन पालन जिनकौ काम

एकम एक बनौ मिल गृहस्थ

कठिन साधना बारौ नाम
बात कहूँ गृहस्थ की पहली

रखो बंधुवर जाकौ ध्यान

नहीं बुराई करौ नारि की

जातै जुडौ…
Continue

Added by नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष on November 18, 2018 at 5:00pm — 2 Comments

कविता-1 साथी सो न , कर कुछ बात

साथी सो न, कर कुछ बात।

यौवन में मतवाली रात,

करती है चंदा संग बात,

तारें छुप-छुप देख रहे हैं, उनकी ये मुलाकात।

साथी सो न, कर कुछ बात।

झींगुर की झंकार उठी,

रह-रह, बारंबार उठी,

चकवा-चकवी की पुकार उठी, अब छोड़ो न मेरा हाथ।

साथी सो न, कर कुछ बात।

लज्जा से मुख को छुपाती,

अधरों से मधुरस टपकाती,

विहँस रही मुरझाई पत्ती, तुहिन कणों के साथ।

साथी सो न, कर कुछ बात।

-- क़मर जौनपुरी
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by क़मर जौनपुरी on November 18, 2018 at 9:30am — 2 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७०

2122 1122 1122 22/ 112



सब्र रक्खो तो ज़रा हाल बयाँ होने तक

आग भी रहती है ख़ामोश धुआँ होने तक //१



समझेंगे आप भला क्यों ये गुमाँ होने तक

इश्क़ होता नहीं है दर्दे फुगाँ होने तक //२



तज्रिबा ये जो है सब आलमे सुग्रा का यहाँ

जाँ गुज़रती है सराबों से निहाँ होने तक //३



मुझको फ़िरदोस ने फिर से है निकाला बाहर

कौन है आलमे बाला में…

Continue

Added by राज़ नवादवी on November 17, 2018 at 11:00am — 11 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ६९

2212 1212 2212 1212



ख़ुश्बू सी यूँ हवा में है, लगता वो आने वाला है

आबोहवा का हाल भी पिछले ज़माने वाला है //१



बाहों का तुम सहारा दो, तूफ़ान आने वाला है

दरिया तुम्हारे प्यार का सबको डुबाने वाला है ///२



बनते हो तीसमार खाँ, मेरी भी पर ज़रा सुनो

इक दिन ये वक़्त आईना तुमको दिखाने वाला है //३



मैं तो बड़े सुकून से सोया था तन्हा अपने घर

मुझको…

Continue

Added by राज़ नवादवी on November 17, 2018 at 10:15am — 6 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
10 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
21 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service