दिल लगाया.
वादे बहुत किये.
मोल चुकाया!
*
बाज,बाज है.
गिद्ध, ' दृष्टि' रखता.
चालबाज है.
*
अजगर भी.
बैठ-बैठ के खाते.
अफसर भी!
*
रंग-बिरंगी.
गलियाँ जीवन की.
बड़ी बेढंगी!
*
खून खौलता.
मुट्ठियाँ भींच जाती.
मुख बोलता.
*
अविनाश बागडे.
Added by AVINASH S BAGDE on February 11, 2012 at 10:30am — 8 Comments
तुम .
मेरी चेतना के पंख
रूह के मंदिर में
बजता भोर का शंख
मन की उड़ान
देह की जान
बनती बिखरती कहानी
निर्मल निर्झर का
बहता हुआ सा पानी
फूलों की खुशबू
या वो पवन
जो लाती है वो जादू
जो बना देता है
मतवाला अक्सर .
तुम ही तो हो
ये सब .
फिर क्यों
कभी कभी
मैं हो जाता हूँ
तन्हा.
बताओ तो जरा…
ContinueAdded by Dr Ajay Kumar Sharma on February 9, 2012 at 9:28pm — 1 Comment
हमनशीं राह पे बस और ना छल दो मुझको,
मुझे सीने से लगाओ या मसल दो मुझको।
मसनुई प्यार से अच्छा है के नफरत ही करो,
शर्त बस ये है के नफरत भी असल दो मुझको।
दिले बीमार ने बस कोने मकाँ माँगा है,
मेरी चाहत ये कहाँ ताजो महल दो मुझको।
मेरे बिगड़े हुए हालात में तुम आ जाओ,
वक़्त ए आखिर है के दो पल तो सहल दो मुझको।
डबडबाई हुई आँखों से न रुखसत करना,
बड़ा लम्बा है सफर खिलते कँवल दो मुझको।
Added by इमरान खान on February 8, 2012 at 2:46pm — 10 Comments
जब उठाया घूंघट तुमने,
दिखाया मुखड़ा अपना
चाँद भी भरमाया
जब बिखरी तुम्हारे रूप की छटा
चाँदनी भी शरमायी
तुम्हारी चितवन पर
आवारा बादल ने सीटी बजाई ।
तुमने ली अगंड़ाई, अम्बर की बन आई
तुमसे मिलन की चाह में फैला दी बाहें,
क्षितिज तक उसने
भर लिया अंक में तुम्हें, प्रकृति, उसने
तुम्हारे…
Added by mohinichordia on February 7, 2012 at 6:30am — 10 Comments
डूबती इक नाव होती आदमी की जिंदगी,
ग़र न होतीं जिंदगी में मुस्कुराती पत्नियाँ।
बेसुरा संगीत होती आदमी की जिंदगी,
ग़र न होतीं जिंदगी में गुनगुनाती पत्नियाँ।
गूंजता अट्टहास होती आदमी की जिंदगी,
ग़र न होतीं जिंदगी में खिलखिलाती पत्नियाँ।
मौन सा आकाश होती आदमी की जिंदगी,…
ContinueAdded by Prof. Saran Ghai on February 7, 2012 at 4:42am — 11 Comments
हाँ , आज हुआ है मेरा
Added by राज लाली बटाला on February 6, 2012 at 10:30pm — 21 Comments
मॆरी बात तॊ समझॊ,,,,,,,,,
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उछलॊ मत यार ज़रा,हालात तॊ समझॊ ॥
मैं कह रहा हूं कि, मॆरी बात तॊ समझॊ ॥१॥…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 6, 2012 at 10:00pm — 3 Comments
देखें हैं हमने नज़ारे कई , शरारे कही तो बहारें कई ,
Added by Rohit Dubey "योद्धा " on February 6, 2012 at 9:00pm — 2 Comments
मांगी जो उनसे जिगर में पनाह हमने ||
देखें ऐसे जो किया हो गुनाह हमने ||
आज तक न मिला मुहब्बत सा बहर गहरा,
देखे लाखों बहर गहरे अथाह हमने ||
हमको उसने भी दिया ना जवाब कोई ,…
Added by Nazeel on February 6, 2012 at 8:10pm — No Comments
छन्न पकैया-छन्न पकैया, जीवन तेरा- मेरा.
रोज डूबता सूरज इसमे, होता रोज सबेरा.
**
छन्न पकैया-छन्न पकैया, सांसें आती-जाती.
चलने का मतलब है जीवन,रुकना मौत कहाती.
**
छन्न पकैया-छन्न पकैया, सुख ही दुःख का कारण.
इस धरती पर कोई घटना , होती नही अकारण.
**
छन्न पकैया-छन्न पकैया, कह गए ज्ञानी-ध्यानी.
अपना ही गुण-धर्म निभाते, हवा,आग और पानी.
**
छन्न पकैया-छन्न पकैया, धर्म वही है सच्चा.
जिसे जानता वसुंधरा का, साधो, बच्चा-बच्चा.…
Added by AVINASH S BAGDE on February 6, 2012 at 8:00pm — 5 Comments
बहुत सोचा कि लिख ही डालूँ
Added by Yogyata Mishra on February 5, 2012 at 4:00pm — 3 Comments
(१)
शक्तिशाली खूब बनो,साहस हो भरपूर.
विनम्रता के भाव ही,मन में रहे प्रचूर.
मन में रहे प्रचूर ,सादगी का गहना हो.
अपनी जरुरत की सरहद में ही रहना हो.
कहता है अविनाश,बढ़ेगी तब खुशहाली.
जीवन अपना और बनेगा शक्तिशाली.
(२)
भाई से भाई टकरा के होते है बरबाद.
दुश्मन के सारे मंसूबे हो जाते आबाद.
हो जाते आबाद,सभी तुम पर हंसते है.
टूटा घर दिखलाकर सब फिकरे कसते हैं.
कहता है अविनाश रोकिये जगत हंसाई
घर का झगडा घर में…
Added by AVINASH S BAGDE on February 5, 2012 at 1:00pm — 6 Comments
वक्त,,,,
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किसी किसी कॊ भला खासा, बना दॆता है वक्त ॥
किसी की ज़िंदगी का तमाशा,बना दॆता है वक्त ॥१॥
कभी चुल्लू भर पानी सॆ, भर दॆता है समंदर कई,…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 5, 2012 at 11:30am — 4 Comments
बिखरे हुए हैं गेसू इस इन्तजार में
Added by rajesh kumari on February 5, 2012 at 10:00am — 10 Comments
आंधी हैं हवा हैं
बंधनों में क्या हैं
ये उफनता दरिया हैं
किनारे तोड़ निकला हैं
मस्ती में मस्तमौला हैं
मुश्किल में हौसला हैं
अपनी पे आजाए तो जलजला हैं
ये आज का युवा हैं
कभी बेफिक्री का धुआँ हैं
कभी पानी का बुलबुला हैं
कभी संजीदगी से भरा हैं
ये आज का युवा हैं
पंखों को फडफडाता हैं
पेडों पे घोंसला बनाता है
अब की उड़ना ये चाहता हैं
दाव पे ज़िंदगी लगता हैं
हारा भी…
ContinueAdded by shashiprakash saini on February 5, 2012 at 12:22am — 8 Comments
भरत की व्यथा
घनी अंधियारी काली रात ।
सूझता नहीं हाथ को हाथ ।
घोर सन्नाटा सा है व्याप्त ।
नहीं है वायु भी पर्याप्त ।
नहीं है काबू में अब मन ।
हुआ है जब से राम गमन ।
भटकते होंगे वन और वन ।
सोंच यह व्याकुल होता मन ।
नगर से बाहर सरयू…
ContinueAdded by Mukesh Kumar Saxena on February 4, 2012 at 8:51pm — 5 Comments
बन गया मुसाफिर इस दुनिया में
सुख दुःख की लाँघ सीमाओं को
सुबह से चलता चलता अब
सुन रहा रात की धमनी शिराओं से
कोई पुकारता है दूर चट्टानों से
कोई ढूंढ़ता है मुझे मेरे बहानो से
उन झुरमुटों को साथ ले चला आया
मैं अब किस दिशा को बढ़ चला हूँ
कंधे पर भार लगते नहीं हैं
कोई पूछे सवाल कहारों से
सुबह से चलता चलता अब
सुन रहा रात की धमनी शिराओं से
रोक कर कई पूंछते हैं
शहर किधर को…
Added by AJAY KANT on February 4, 2012 at 8:07pm — No Comments
भगवन कहां छिपे हो मुझको काल करो,
काल नहीं ना सही, प्रभु मिस काल करो ।
इक पल में ही काल रिटर्न करूँगा मैं,
किसी बात पर प्रभु ना ध्यान धरूँगा मैं,
अब तो मिलने की प्रभु कोई चाल करो। (भगवन कहां छिपे …)
अगर लाँग डिस्टेंस है तो कुछ बात नहीं,
चैटिंग का पैकेज तो मंहगी बात नहीं,
डेटिंग, चैटिंग कुछ तो सूरत-ए-हाल करो। (भगवन कहां छिपे…)
फ़ोन नहीं तो इंटरनैट पर आ जाओ,
स्काइप पे आकर प्रभुवर दरश दिखा…
ContinueAdded by Prof. Saran Ghai on February 4, 2012 at 8:00pm — 3 Comments
बात करियॆ,,,,
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साफ़गॊई सॆ आप यूं, सब सॆ बात करियॆ ॥
जिस सॆ भी करियॆ, अदब सॆ बात करियॆ ॥१॥
बॆ-वज़ह बात करना, भी मुनासिब नहीं,…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 3, 2012 at 7:30pm — 9 Comments
Added by dilbag virk on February 3, 2012 at 5:30pm — 8 Comments
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