जुबां से फूल झड़ते हैं मगर पत्थर उछालें वे
गजब दिलदार हैं, महबूब हैं बस खार पालें वे।1
लगाते आग पानी में, हमेशा ही लगे रहते
बुझे क्यूँ रार की बाती, नई तीली निकालें वे।2
दिलों की आग जब उठकर दिलों को यूँ बुलाती है
करेंगे और क्या बस शीत जल हर बार डालें वे।3
समझना हो गया मुश्किल चलन अब के रफ़ीकों का
सियाही लिख नहीं सकती है' कितना रोज सालें वे।4
हकीकत फासलों में कैद होकर छटपटाती है
सुनेंगे तो नहीं कुछ गाल जितना भी बजालें वे।5
"मौलिक व…
Added by Manan Kumar singh on September 16, 2019 at 8:10am — 6 Comments
ये ज़ीस्त रोज़ सूरत-ए-गुलरेज़ हो जनाब
राह-ए-गुनाह से सदा परहेज़ हो जनाब
**
मंज़िल कहाँ से आपके चूमें क़दम कभी
कोशिश ही जब तलक न जुनूँ-ख़ेज़ हो जनाब
**
क्या लुत्फ़ ज़िंदगी का लिया आपने अगर
मक़सद ही ज़िंदगी का न तबरेज़ हो जनाब
**
मुमकिन कहाँ कि ज़िंदगी की पीठ पर कभी
लगती किसी के ग़म की न महमेज़ हो जनाब
**
उस जा पे फ़स्ल बोने की ज़हमत न कीजिये
जिस जा अगर ज़मीं ही न ज़रखेज़ हो…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on September 15, 2019 at 4:00pm — 2 Comments
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on September 14, 2019 at 8:15pm — 4 Comments
असबंधा छंद "हिंदी गौरव
भाषा हिंदी गौरव बड़पन की दाता।
देवी-भाषा संस्कृत मृदु इसकी माता।।
हिंदी प्यारी पावन शतदल वृन्दा सी।
साजे हिंदी विश्व पटल पर चन्दा सी।।
हिंदी भावों की मधुरिम परिभाषा है।
ये जाये आगे बस यह अभिलाषा है।।
त्यागें अंग्रेजी यह समझ बिमारी है।
ओजस्वी भाषा खुद जब कि हमारी है।।
गोसाँई ने रामचरित इस में राची।
मीरा बाँधे घूँघर पग इस में नाची।।
सूरा ने गाये सब पद इस में प्यारे।
ऐसी थाती पा कर हम सब से…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on September 14, 2019 at 9:10am — 3 Comments
2122 1122 1122 22
नींद आँखों से मेरी कोई चुराने वाला
आ गया फिर से नए ख्वाब दिखाने वाला
उन दुकानों पे मिलेंगे तुम्हें झंडे-डंडे
पास अपने तो है ये काम किराने वाला
जान लेने के लिए लोग खड़े लाइन…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on September 13, 2019 at 8:44pm — 10 Comments
11212×4
मुझे पीसते हैं जो हर घड़ी,न वो दर्द मुझसे लिखे गए
किसी बेजुबान ख्याल में कई शेर यूं ही कहे गए
भरी रात में तेरी याद के जो चिराग बुझ के महकते हैं,
उन्हें जिंदा रखने की चाह में कई जाम हमसे पिये गये
जिसे हम समझते थे अपना घर वो जहान हमसे था बेखबर
कई रास्ते तो मकान के मुझे तोड़कर भी बुने गए
मुझे ढूंढ लाने की चाह में ,मेरे दोस्तों के वो मशवरे
मेरी जिंदगी का अज़ाब थे सो इसीलिए न सुने गए
कहीं सर…
ContinueAdded by मनोज अहसास on September 12, 2019 at 11:33pm — 3 Comments
‘क्या कहा कालेज की ओर से ट्रिप में जा रही हो I साथ में लडके भी होंगे ?’- माँ ने पूछा I
‘हां होंगे, तो क्या ? आजकल बहुतेरे उपाय हैं I आपकी नाक नहीं कटेगीI ‘
(मौलिक / अप्रकाशित )
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 12, 2019 at 4:00pm — 4 Comments
Added by विनय कुमार on September 11, 2019 at 7:36pm — 4 Comments
जलेबी - लघुकथा -
आज स्कूल की छुट्टी थी इसलिये गुल्लू बिस्तर से उठते ही सीधा दादा दादी के कमरे की तरफ दौड़ पड़ा। कमरा खाली मिला तो माँ के पास जा पहुंचा,"माँ, दादा जी और दादी जी कहाँ चले गये?"
"यहीं पड़ोस वाले मंदिर तक गये हैं। अभी आने वाले हैं।"
"पर वे लोग रोज तो नहीं जाते मंदिर। आज कोई त्योहार है क्या?"
"आज उनकी शादी की पचासवीं साल गिरह है। इसलिये भगवान जी के दर्शन करने गये हैं।"
"अरे वाह, फिर तो आज विशेष पकवान बनेंगे।"
"हाँ जरूर बनेंगे।"
"माँ…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on September 11, 2019 at 2:44pm — 6 Comments
2122×3+212
जिंदगी ने सब दिया पर चैन का बिस्तर नहीं
जिस जगह सर को न पटका ऐसा कोई दर नहीं
हार कर मजबूर होकर आज ये कहना पड़ा
इश्क इक ऐसा परिंदा है कि जिसका घर नहीं
मुझको मंजिल से जुदा कर तूने साबित कर दिया
मैं तेरे रस्ते पे हूं पर तू मेरा रहबर नहीं
इस जहां में बस वही आराम से जीता मिला
जिसको अपनी ही गरज है आसमां का डर नहीं
आंखों से ख्वाबों के संग तेरा भरोसा भी गया
मुझको जीना तो पड़ेगा पर तेरा होकर…
Added by मनोज अहसास on September 10, 2019 at 10:17pm — 4 Comments
(मफ ऊल_मफाईल_मफाईल_फ ऊलन)
.
तुम चाहे गुज़र जाओ किसी राह गुज़र से
लेकिन नहीं बच पाओगे तुम मेरी नजर से
.
वो खौफ़ ए ज़माना से या रुस्वाई के डर से
देता रहा आवाज मैं निकले न वो घर से
.
तू जुल्म से आ बाज़ अभी वक़्त है ज़ालिम
पानी भी बहुत हो चुका ऊँचा मेरे सर से
.
फँसता है सदा हुस्न के वो जाल में यारो
वाकिफ़ जो नहीं उनके दग़ाबाज़ हुनर से
.
मालूम करें आओ कठिन कितना है रस्ता
कुछ लोग अभी लौट के आए हैं सफ़र…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on September 10, 2019 at 10:00am — 5 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on September 10, 2019 at 12:00am — 2 Comments
Added by विनय कुमार on September 9, 2019 at 5:56pm — 2 Comments
संपर्क टूटा विक्रम से तो
ना समझ ये विफल रहा
आर्बिटर अभी चक्कर लगा रहा
धैर्य रख, थोड़ा इंतज़ार तो कर
चिंता नहीं बस चिंतन कर ||
मार्ग विक्रम भटक गया
भ्र्स्ट ही शायद कारण हो
खंड-खंड होकर बिखर भी गया तो
खोजने का प्रयास तो कर
चिंता नहीं बस चिंतन कर ||
वैज्ञानिकों का अपने हौंसला बढ़ा
साहस के उनके तारीफ तो कर
चूक कहाँ हो गई प्रयास मे
इस बात पर थोड़ा गौर तो कर
चिंता नहीं बस…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on September 9, 2019 at 11:06am — 3 Comments
जिंदगी ये तो बता, तू इतनी क्यूँ उदास है
मुझसे है नाराज़ या फिर,औऱ कोई बात है
मैंने तो तुझसे कभी कुछ खास मांगा भी नहीं
ले रही फिर बारहा तू लंबी क्यूं उच्छवास है
जो तेरी ख़्वाहिश थी शायद वो मिला तुझको नहीं
फ़िक्र ना कर तेरे…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on September 9, 2019 at 11:00am — 2 Comments
22 22 22 22 22 22 2
ईंटें पत्थर कंकड़ बजरी ले कर आऊँगा
सुन; तेरे शीशे के घर पर सब बरसाऊँगा
फूँक-फाँक कर वर्ग विभाजन वाला हर अध्याय
क्या है सनातन सब को यह अहसास कराऊँगा
जान रहा, जग की रानी है मुद्रा-माया धारी
किन्तु मनुज से प्रीत ज़रूरी रोज़ सिखाऊँगा
मठ अधिपति को पूज रहे, जबकि नहीं हो निर्बल
वायु-अनल से युक्त बली हो, याद धराऊँगा
तीव्र प्रज्ज्वलित शब्द हैं मेरे ताप भयंकर है
किंतु स्वर्ण-मन-शोधन को मैं…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 9, 2019 at 11:00am — 2 Comments
2×15
इस दुनिया में एक तमाशा जाने कितनी बार हुआ
वो दरिया में डूब गया जो तैर समंदर पार हुआ
अच्छे दिन की चाहत वालों ऐसी भी क्या बेताबी
चार नियम बनते ही बोले जीना ही दुश्वार हुआ
एक पहाड़ी पर शीशे के घर में बैठा बाजीगर
नाच नचाकर देख रहा है कौन बड़ा फनकार हुआ
तुमने अपने मातम पर भी खर्च किया मोटा पैसा
और किसी निर्धन के घर में मुश्किल से त्यौहार हुआ
चार कदम की दूरी पर थी मंजिल…
ContinueAdded by मनोज अहसास on September 8, 2019 at 10:40pm — 1 Comment
चाँद से अब दोस्ती का सिलसिला चलता रहेगा
कब तलक वह मुस्कुराता भेदमय मामा रहेगा?1
कौड़ियों का खेल हम करते नहीं, सब जानते हैं
मुँह दिखाई तक हमारा हर कदम पहला रहेगा।2
दूरियों का गम नहीं करते कभी हम इश्क वाले
पाँव रखने में सतह पर जोर कुछ ज्यादा रहेगा।3
आज इसरो की तपिश में तन-बदन पिघला जरा-सा
कल सुहाने और होंगे साथ में नासा रहेगा।4
क्यूँ लजाना कोटि नजरें प्यार से फिर फिर निहारें
मन हुआ जाता व्यथित, पर हाथ में खाका रहेगा।5
वक्त की रुसवाइयों का…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on September 8, 2019 at 4:45pm — 2 Comments
पूर्तिहीन संवाद
आकुलित असंवेदित भाव
अपाहिज हुई वह जो होती थी
स्नेह की अपेक्षित शाम
गई कहाँ वह ममतामयी प्रतीक्षातुर बाहें
दिशायों से आती तुम्हारे आने की आहट
ऊब गई है, उकता गई है कब से
नपुंसक दुखजनित अजनबी हुई आस्था
महिमामयी स्मृतियों के आस-पास
मटमैली रौशनी सुनसान गहरी उदास
फिर क्यूँ जोड़ती हैं हमें देहहीन परछाइयाँ
आसाधारण अपूर्ण प्रवाही दिशाहीन हवा-सी
कसकती…
ContinueAdded by vijay nikore on September 8, 2019 at 3:58pm — 2 Comments
मेरे सवाल .... अतुकांत कविता
वो तेरी प्यार भरी बातें,
तेरा रौबीला रूप,
गज़ब की मुस्कान औ दंभ,
बहुत रोका, बहुत सँभाला,
कुछ भी ना कर सकी,
ख़ुद ही ख़ुद से हार गयी।
अब वो प्यारी बातें मेरी हुईं,
तेरा रौब, मेरा सौंदर्य साथ हुए,
तू मुस्कुराया, में खिलखिलाकर हंसी,
तेरा वो दंभ, मेरा हुआ,
सात फेरों ने ज़िन्दगी दी,
तू मेरा औ मैं तेरी हुई।
कहा किया सदा, साथ ना छूटेगा,
मैं अकेली पड़…
ContinueAdded by Usha on September 7, 2019 at 3:30pm — 2 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |