इलाज़ - लघुकथा -
मिश्रा जी की उन्नीस वर्षीय मंझली बेटी मोहल्ले की पानी की टंकी पर चढ़ गयी और शोले के वीरू स्टाइल में चिल्ला चिल्ला कर सारा मोहल्ला, मीडिया और पुलिस वालों को एकत्र कर लिया।
मसला यह था कि वह किसी गैर जाति के सहपाठी से विवाह करने को उतावली थी।
हालांकि अभी उसकी बड़ी बहिन भी क्वारी थी।घर वाले उसे समझा चुके थे कि पहले बड़ी बहिन का विवाह हो जाने दे फिर तेरे मामले को देखेंगे।लेकिन वह उनकी बात सुनने को तैयार ही नहीं थी।
अपना पक्ष मजबूत करने के लिये इस प्रकार…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 19, 2019 at 6:30am — 6 Comments
फूल महकते हैं
वे सिर्फ महकते नहीं
अपितु देते हैं एक संदेश
कि अपने भीतर
आप भी भर लें
इतनी महक
कि आपका अस्तित्व ही
बन जाए परिमल
और वह महकाये पूरे विश्व को
बिना किसी यात्रा या भ्रमण के
और खुद दुनिया भर से लोग
आयें तुम्हारे पास
तुम्हारे सुवास से आकर्षित होकर
तुम्हारे परिमल की
एक गंध पाने को
जैसा टूट पड़ते हैं शलभ
किसी दिए पर
बिना किये अपने प्राणों की परवाह
पर तुम जलाना…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 17, 2019 at 8:00pm — 2 Comments
Added by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on July 17, 2019 at 7:30pm — 3 Comments
सुबह से हो रही मूसलाधार बरसात रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी, अब तो दोपहर होने वाली थी. पिछले कई दिनों से बादल छाते तो थे लेकिन बरसने में कंजूसी कर देते थे, मानो इसरार की कामना रखते हों. मौसम पिछले कुछ दिनों की तुलना में काफी अच्छा हो गया था, उमस ख़त्म हो गयी. उसके इलाके में पानी भरने लगा था और आज वह काम पर भी नहीं जा पाया. दुकान में उसका एक दोस्त भी काम करता था, जिसने उसकी नौकरी लगवाई थी, ने मालिक को उसके न आ पाने का बता दिया था.
कल रात की उमस में जब वह खाना खाकर पड़ोस के रहमान भाई के…
Added by विनय कुमार on July 17, 2019 at 5:36pm — 4 Comments
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
सिर्फ़ एक नारा भर नहीँ है
कुछ करके दिखाना भी है
एक क़दम मैंने बढाया है
एक क़दम तुम भी ढ़ाओ
झिझको मत ठहरो मत
आगे बढो और पढाओ…
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 17, 2019 at 5:30pm — 1 Comment
कण-कण, क्षण-क्षण
मिटती घुटती शाम से जुड़ती
स्वयँ को सांझ से पहले समेट रही
विलुप्त होती अवशेष रोशनी
प्रस्थान करते इंजिन के धुएँ-सी ...
दिन की साँस है अब जा रही
मृत्यु, अब तू अपना मुखौटा उतार दे
हमारे बीच के वह कितने वर्ष
जैसे बीते ही नहीं
कैसी असाधारणता है यह
कैसी है यह अंतिम विदा
मैं तुम्हें याद नहीं कर रहा
तू कहती थी न
“ याद तो तब करते हैं
जब भूले हों किसी को…
ContinueAdded by vijay nikore on July 17, 2019 at 4:56pm — 4 Comments
गुरु पूर्णिमा पर विशेष
गुरु कृपा हो जाए तो सफ़ल सिद्ध हों काम ।
कृपा हनू पर रखते हैं जैसे सियापति राम॥
राम कहें शंकर गुरु ,भोले कहें श्रीराम।
दोनों ही सर्वज्ञ हैं, मैं जाऊं काकै…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 16, 2019 at 4:00pm — 1 Comment
गुरु पूर्णिमा के विशेष अवसर पर:-
बह्र:- 2212*4
देते हमें जो ज्ञान का भंडार वे गुरु हैं सभी,
दुविधाओं का सर से हरें जो भार वे गुरु हैं सभी।
हम आ के भवसागर में हैं असहाय बिन पतवार के,
जो मन की आँखें खोल कर दें पार वे गुरु हैं सभी।
ये सृष्टि क्या है, जन्म क्या है, प्रश्न सारे मौन हैं,
जो इन रहस्यों से करें निस्तार वे गुरु हैं सभी।
छंदों का सौष्ठव, काव्य के रस का न मन में भान…
ContinueAdded by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on July 16, 2019 at 3:30pm — 2 Comments
2122 1212 22
.
पूछिये मत कि हादसा क्या है ।
पूछिये दिल मेरा बचा क्या है।।
दरमियाँ इश्क़ मसअला क्या है।
तेरी उल्फ़त का फ़लसफ़ा क्या है
सारी बस्ती तबाह है तुझसे ।
हुस्न तेरी बता रजा क्या है ।।
आसरा तोड़ शान से लेकिन ।
तू बता दे कि फायदा क्या है ।।
रिन्द के होश उड़ गए कैसे ।
रुख से चिलमन तेरा हटा क्या है।।
बारहा पूछिये न दर्दो गम ।
हाले दिल आपसे छुपा क्या है ।।
फूँक कर…
Added by Naveen Mani Tripathi on July 16, 2019 at 12:00am — 2 Comments
२२१ २१२१ १२२१ २१२
चंदा मेरी तलाश में निकला है रात को!
शायद वो मेरी चाह में भटका है रात को !!
होती है उम्र उतनी ही जितनी कि है लिखी!
जलता दिया भी देखिये बुझता है रात को!!
आँखों के डोरे कर रहे सब कुछ बयां यहाँ!
लगता है तेरा ख्वाब भी उलझा है रात को!!
दुनिया की भीड़ में मेरा दिन तो गुज़र गया!
हर शख्स ही लगा हमें तनहा है रात को!!
बदनामियों के डर से ही हम तो सिहर गए!
हर ख्वाब जैसे अपना …
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on July 15, 2019 at 10:00pm — 3 Comments
अहसास .. कुछ क्षणिकाएं
छुप गया दर्द
आँखों के मुखौटों में
मुखौटे
सिर्फ चेहरे पर
नहीं हुआ करते
.............................
छील गया
उल्फ़त की चुभन को
एक रेशमी खंजर
चुपके से
...........................
झील की आगोश में
चाँद की
चाँद संग सरगोशियाँ
कर गई बेनकाब
सह्र की
पहली किरण
........................
बन जाती
घास पर
ओस की बूँद
रोता है
जब चाँद
आसमान…
ContinueAdded by Sushil Sarna on July 15, 2019 at 6:53pm — 6 Comments
बहर.
2122-2122-2122-212
एक दिन उसने मेरी खामोशियों को रख दिया ।।
मेरे पेश-ए-आईने मे'री' हिचकियों को रख दिया ।।
तोड़ बंदिश हिज्र -ए-दिल ख़ुल कर युँ रोया इक दफा।
उसने दिल के सामने जब चिट्ठियों को रख दिया ।।
खन्न की आवाज ले सिक्का छुआ कांसे को जब।
भूख ने नजरें उठाई सिसकियों को रख दिया ।।
जब कभी मेरा वजू अन्धा हुआ इस भीड़ में ।
माँ ने अपनी आस के रौशन दियों को रख दिया ।।
गर कभी मायूस हो मन देख कर छत घास…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on July 14, 2019 at 6:37pm — 2 Comments
ग़ज़ल (वो जब भी मिली)
बह्र-ए-वाफ़िर मुरब्बा सालिम (12112*2)
वो जब भी मिली, महकती मिली,
गुलाब सी वो, खिली सी मिली।
हो गगरी कोई, शराब की ज्यों,
वो वैसी मुझे, छलकती मिली।
दिखाई पड़ीं, वे जब भी मुझे,
उन_आँखों में बस, खुमारी मिली।
लगाने की दिल, ये कैसी सज़ा,
वफ़ा की जगह, जफ़ा ही मिली।
कभी वो मुझे,बताए ज़रा,
जो मुझ में उसे, ख़राबी मिली।
गिला भी किया, ज़रा भी अगर,
पुरानी…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on July 14, 2019 at 3:30pm — 5 Comments
आज फिर ... क्या हुआ
थरथरा रहा
दुखात्मक भावों का
तकलीफ़ भरा, गंभीर
भयानक चेहरा
आज फिर
दुख के आरोह-अवरोह की
अंधेरी खोह से
गहरी शिकायतें लिए
गहराया आसमान
आज फिर
ढलते सूरज ने संवलाई लाली में रंगी
कुछ खोती कुछ ढूँढ्ती
एक और मटमैली
उलझी-सी शाम
आज फिर
सिमटी हुई कुछ डरी-डरी
उदास लटकती शाम
डूबने को है ...
डूबने दो
मन में…
ContinueAdded by vijay nikore on July 14, 2019 at 2:27pm — 18 Comments
1.
शमअ देखी न रोशनी देखी ।
मैने ता उम्र तीरगी देखी ।
देखा जो आइना तो आंखों में,
ख़्वाब की लाश तैरती देखी ।
टूटे दिल का हटाया मलबा तो,
आरज़ू इक दबी पड़ी देखी ।
एक इक पल डरावना सा लगा,
इतने पास आ के ज़िन्दगी देखी ।
मैने इंसानियत रह ए हक़ पर,
दो कदम चल के हांफती देखी
2.
आप ने क्या कभी परी देखी ।
मैने यारो अभी अभी देखी ।
उसकी आँखों में सुब्ह सी…
ContinueAdded by Gurpreet Singh jammu on July 14, 2019 at 12:30pm — 7 Comments
Added by amita tiwari on July 13, 2019 at 1:00am — 2 Comments
दूरदृष्टि - लघुकथा -
"क्या हुआ अंशू, देख आया लड़की, कैसी लगी?"
"माँ, मुझे नहीं जमी |मैंने इसीलिये आप से भी साथ चलने को कहा था पर आपने तो टका सा जवाब दे दिया कि शादी तो तुझे ही करनी है| आखिरी फ़ैसला तो तेरा ही होगा, फिर मुझे इस बुढ़ापे में क्यों तंग कर रहा है?"
"पर जब तूने सबके फोटो और बायोडेटा देखे थे तो सबसे अधिक इसे ही प्राथमिकता दी थी|"
"हाँ माँ, उस हिसाब से तो वह अब भी सबसे बेहतर है।"
"अब उन्हें क्या जवाब देकर आया है?।"
"मैंने उन्हें बोला कि माँ…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 12, 2019 at 3:15pm — 6 Comments
दुश्मनी हमसे निकाली जाएगी ।
बेसबब इज्ज़त उछाली जाएगी ।।
नौकरी मत ढूढ़ तू इस मुल्क में ।
अब तेरे हिस्से की थाली जाएगी ।।
लग रहा है अब रकीबों के लिए ।
आशिकी साँचे में ढाली जाएगी ।।
चाहतें अब क्या सताएंगी उसे ।
जब कोई ख़्वाहिश न पाली जाएगी ।।…
Added by Naveen Mani Tripathi on July 11, 2019 at 12:12am — 4 Comments
122 122 122 12
मुसीबत जुटातीं ग़लत फहमियाँ
सुकूँ यूँ चुरातीं ग़लत फहमियाँ
किसी रिश्ते के दरमियाँ आएँ तो
महब्बत जलातीं ग़लत फहमियाँ
जहाँ तक भी हो इससे बच के रहो
तबाही मचातीं ग़लत फहमियाँ
अगर गर्व हावी हुआ शक्ति पे
ग़लत पथ धरातीं ग़लत फहमियाँ
उन्हें सच से जिसने न पोषित किया
उन्हीं को चबातीं ग़लत फहमियाँ
मौलिक अप्रकाशित
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 10, 2019 at 10:11pm — 4 Comments
Added by JAWAHAR LAL SINGH on July 10, 2019 at 4:00pm — 2 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |