2122 2122 2122 212
तुम मेरे ख़ाबों के गुलशन में रहो हक़ है तुम्हें
मुझ से जब चाहो ख़यालों में मिलो हक़ है तुम्हें
तुम को तकने की ख़ता, नींदें गँवाने की सज़ा
बदला आँखों से मेरी ऐसे ही लो हक़ है तुम्हें
बस तुम्हारा नाम हर पल जप रहा है मेरा दिल
मेरे सीने से लगो तुम भी सुनो हक़ है तुम्हें
कल्पना के व्योम में जितना मेरा विस्तार है
वह क्षितिज पूरा तुम्हारा, तुम उड़ो हक़ है तुम्हें
शब्द सारे भाव हर लय ताल…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 6, 2019 at 10:45am — 8 Comments
पिछले दो घंटे से उसका परिवार इस टाइगर रिज़र्व में घूम रहा था. मौसम भी बेहद शानदार था इसलिए सब खुश थे. अभी तक काफी जानवर दिखाई पड़ गए थे लेकिन शेर से सामना नहीं हुआ था. गाइड लगातार बता रहा था कि वह ऐसी जगह ले चलेगा जहाँ कई शेर देखने को मिलेंगे, पहले बाकी जानवर देख लिए जाएँ. उसने भी सहमति दे दी और उनकी जीप धीरे धीरे जंगल में घूम रही थी.
"अरे यहाँ सिग्नल कमजोर है, आवाज कट रही है. मैंने एक मैसेज किया है, उसे पढ़कर लेक के किनारे वाले फ्लैट की रजिस्ट्री की तैयारी कर लो. मैं परसों तक आ जाऊंगा,…
Added by विनय कुमार on August 5, 2019 at 4:30pm — 8 Comments
वो मेरा था तारा ...
यादों के बादल से
नैनों के काजल से
लहराते आँचल से
जिसने पुकारा
वो
मेरा था तारा
महकती फिजाओं से
परदेसी हवाओं से
बरसाती राहों से
जिसने पुकारा
वो
मेरा था तारा
सपनों के अम्बर से
खारे समंदर से
मन के बवंडर से
जिसने पुकारा
वो
मेरा था तारा
यादों के नीड से
महकते हुए चीड से
ख्वाबों की भीड़ से
जिसने पुकारा
वो
मेरा था…
Added by Sushil Sarna on August 5, 2019 at 3:35pm — 6 Comments
गाँव के दोहे
संगत में जब से पड़ा, सभ्य नगर की गाँव
अपना घर वो त्याग कर, चला गैर के ठाँव।१।
***
मिलना जुलना बतकही, पनघट पर थी खूब
सब अपनापन मर गया, मोबाइल में डूब।२।
***
बिछी सड़क कंक्रीट की, झुलसे जिसमें पाँव
पीपल कटकर गुम हुये, कौन करे फिर छाँव।३।
**
सेज माल के वास्ते, कटे खेत खलिहान
जिससे लोगों मिट गयी, गाँवों की पहचान।४।
**
सड़क योजना खा गयी, पगडंडी हर ओर
पहले सी होती नहीं, अब गाँवों की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 5, 2019 at 8:36am — 10 Comments
कहे-अनसुने-से रहे कुछ जज़्बात
उसपर अनकहे एहसासों का भार
अजीब-सी बेचैन बेकाबू धड़कन का
तकलीफ़-भरा भयानक शोर ...
पन्नों पर उतर तो आते हैं यह
पर भरमाया घबराया मन
इनकार भरा
भार कोई हल्का नहीं होता
पगलाई अन्दरूनी हवाएँ
खयालों-सी वेगवान
झकझोरती आसमानी तूफ़ान बनी
लफ़्ज़ों से लफ़्ज़ टकराते
सूखे पेड़ों-से छूटे पत्तों की तरह
आढ़ी-टेढ़ी लकीरों को बेतहाशा समेटते
लुढ़क जाती है स्याही
रात अँधेरी…
ContinueAdded by vijay nikore on August 5, 2019 at 7:52am — 6 Comments
चंद हाइकु ...
संग दामिनी
धक-धक धड़के
प्यासा दिल
तड़पा गई
विगत अभिसार
बैरी चपला
लुप्त भोर
पयोद घनघोर
शिखी का शोर
छुप न पाया
विरह का सावन
दर्द बहाया
खूब नहाई
रूप की अंगड़ाई
रुत लजाई
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 3, 2019 at 5:07pm — 4 Comments
ललालाला ललालाला ललालाला ललालाला
.
न मंदिर में मिले ईश्वर, गुफाओं में न जाने से .
न भूखे पेट रहने से, न गंगा ही नहाने से .
उसे पाना अगर सच में, हृदय में झाँक कर देखो ,
मिले रैदास, मीरा - प्रेम की बगिया खिलाने से .
.
कभी है धूप जीवन में, कभी मिलते यहाँ साए.
सहारे को नहीं ढूँढ़ो, मिले या फिर न मिल पाए.
गिराती शाख कैसे फल, धरा पर सीख लो…
Added by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on August 3, 2019 at 2:00pm — 2 Comments
एक तिल से ताड़ करो , आराम नहीं आगाज़ करो||
घर गृहथी का कार्य करो , और अपना भी कुछ सम्मान करो ||
पत्नी बनो, माँ बनो और बन जाओ एक लेखिका भी ||
लेखिका बनकर खिलादो वो सारे ज़ज़्बात भी||
मन बुद्धि शब्दों से बुद्धि मन पर प्रहार करो ||
एक तिल से ताड़ करो , आराम नहीं आगाज़ करो
कलम कागज़ को दोस्त बनाओ देकर उन्हें लेखन का न्योता
न्योता देकर पास बुलाओ और फिर करलो एक समझौता
की मेरा साथ निभाओगे और सभी दबे ज़ज़्बात खिलाओगे
एक तिल से…
ContinueAdded by Pratibha Pandey on August 3, 2019 at 12:30am — 4 Comments
ले बाहों में सोऊँगी ....
सावन की बरसात को
प्रथम मिलन की रात को
धड़कते हुए जज़्बात को
संवादों के अनुवाद को
ले बाहों में सोऊँगी
अस्तित्व अपना खोऊँगी
अपनी प्रेम कहानी को
भीगी हुई जवानी को
बारिश की रवानी को
नैन तृषा दिवानी को
ले बाहों में सोऊँगी
अस्तित्व अपना खोऊँगी
उस नशीली रात को
उल्फ़त की बरसात को
अजनबी मुलाक़ात को
हाथों में थामे हाथ को
ले बाहों में सोऊँगी
अस्तित्व अपना…
Added by Sushil Sarna on August 2, 2019 at 5:19pm — 4 Comments
प्रयाग में गंगा से गले मिलकर यमुना ने कहा –” दीदी अब आगे तू ही जा I मेरी इच्छा तुझसे भेंट करने की थी, वह पूरी हुयी I रही समुद्र में जाकर सायुज्य हो जाने की बात तो वह मोक्ष तुझे ही मुबारक हो I वह मुझे नहीं चाहिए I मैं अब इससे आगे नही जाऊँगी, न अकेले और न तेरे साथ I”
“मगर क्यों बहन ? तुम मेरे साथ क्यों नही चलोगी ? दुनिया मुक्ति के लिए कितने जतन करती है और तू है की मुख चुरा रही है ?”
“हां दीदी ?”
“पर क्यों ?”
“तू हमेशा ज्ञानियों के संग में रही है I…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 1, 2019 at 9:27pm — 16 Comments
बूँद भर
आँख में ठहरा रहा
अश्रू सम बहरा रहा
विस्फरित हो तन गया
बूँद भर जल बन गया
कह दिया न कहना था जो
न सहा वो सहना था जो
था ही क्या जो कह गया
मन बेमन हो रह गया
एक ताला बनती चाबी
प्रश्न- माला कितनी बांची
कैसे झटका सह गया
मोती -मोती कह गया
कैसे -कैसे मन ने टाला
मन ही ने लेकिन उछाला
झरना सा सब झर गया
बूँद भर जल रह…
ContinueAdded by amita tiwari on August 1, 2019 at 1:30am — 3 Comments
1-
ख़ातूनों का हो गया, खत्म एक संत्रास।
चर्चित तीन तलाक का, हुआ विधेयक पास।।
हुआ विधेयक पास, सभी मिल खुशी मनाएँ।
अब होंगी भयमुक्त, सभी मुस्लिम महिलाएँ।।
बीती काली रात्रि, चाँद निकला पूनों का।
बढ़ा आत्मविश्वास, आज से ख़ातूनों का।।
2-
तीस जुलाई ने रचा, एक नया इतिहास।
मुद्दा तीन तलाक पर, हुआ विधेयक पास।।
हुआ विधेयक पास, साँस लेगी अब नारी।
कहकर तीन तलाक, जुल्म होते थे भारी।।
ख़ातूनों ने आज, विजय खुद लड़कर पाई।
दो हजार उन्नीस, दिवस है…
Added by Hariom Shrivastava on July 31, 2019 at 7:51pm — 4 Comments
कैसे भूलें हम ....
पागल दिल की बात को
सावन की बरसात को
मधुर मिलन की रात को
अधरों की सौगात को
बोलो
कैसे भूलें हम
अंतर्मन की प्यास को
आती जाती श्वास को
भावों के मधुमास को
उनसे मिलन की आस को
बोलो
कैसे भूलें हम
नैनों के संवाद को
धड़कन के अनुवाद को
बीते पलों की याद को
तिमिर मौन के नाद को
बोलो
कैसे भूलें हम
अंतस के तूफ़ान को
धड़कन की पहचान को
अधरों की…
Added by Sushil Sarna on July 31, 2019 at 12:38pm — 4 Comments
लहू बुज़ुर्गो का मिट्टी में बहाने वालो
दागदारोँ को सरेआम बचाने वालो
बच्चोँ के हाथ में शमशीर थमाने वालो
बात फूलोँ की तुम्हारे मुँह से नहीं अच्छी लगती
खुदा के नाम पे दुकानों को चलाने वालो
धर्म् के नाम पर इंसा को बाँट्ने वालो…
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 30, 2019 at 12:30pm — 3 Comments
2122 1122 1122 22
बिन तेरे रात गुज़र जाए बड़ी मुश्किल है
और फिर याद भी न आए बड़ी मुश्किल है
खोल कर बैठे हैं छत पर वो हसीं ज़ुल्फ़ों को
ऐसे में धूप निकल आए बड़ी मुश्किल है
मेरे महबूब का हो ज़िक्र अगर महफ़िल में
और फिर आँख न भर आए बड़ी मुश्किल है
वो हसीं वक़्त जो मिल करके गुज़ारा था कभी
फिर वही लौट के आ जाए बड़ी मुश्किल है
वो सदाक़त वो सख़ावत वो मोहब्बत लेकर
फिर कोई आप सा आ जाए बड़ी मुश्किल है
---
मौलिक अप्रकाशित
Added by SALIM RAZA REWA on July 29, 2019 at 9:30pm — 3 Comments
मेरा प्यारा गाँव:(दोहे )..............
कहाँ गई पगडंडियाँ, कहाँ गए वो गाँव।
सूखे पीपल से नहीं, मिलती ठंडी छाँव।1।
सूखे पीपल से नहीं, मिलती ठंडी छाँव।
जंगल में कंक्रीट के , दफ़्न हो गए गाँव।2।
जंगल में कंक्रीट के , दफ़्न हो गए गाँव।
घर मिट्टी का ढूंढते, भटक रहे हैं पाँव।3।
घर मिट्टी का ढूंढते, भटक रहे हैं पाँव।
चैन मिले जिस छाँव में, कहाँ गई वो ठाँव।4।
चैन मिले जिस छाँव में, कहाँ गयी वो ठाँव।
मुझको…
Added by Sushil Sarna on July 29, 2019 at 2:00pm — 7 Comments
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 29, 2019 at 2:00pm — 3 Comments
जाड़े की सुबह का ठिठुरता कोहरा
या हो ग्रीश्म की तपती धूप की तड़पन
अलसाए खड़े पेड़ की परछाईं ले अंगड़ाई
या आए पुरवाई हवा लिए वसन्ती बयार
उमड़-उमड़ आता है नभ में नम घटा-सा
तुम्झारी झरती आँखों में मेरे प्रति प्रतिपल
धड़कन में बसा लहराता वह पागल प्यार
इस पर भी, प्रिय, आता है खयाल
फूल कितने ही विकसित हों आँगन में
पर हो आँगन अगर बित्ता-भर उदास
छू ले सदूर शहनाई की वेदना का विस्तार
तो…
Added by vijay nikore on July 29, 2019 at 2:49am — 4 Comments
212 212 212 212
जब से ख़ामोश वो सिसकियां हो गईं ।
दूरियां प्यार के दरमियाँ हो गईं ।।
कत्ल कर दे न ये भीड़ ही आपका ।
अब तो क़ातिल यहाँ बस्तियाँ हो गईं ।।
आप ग़मगीन आये नज़र बारहा ।
आपके घर में जब बेटियां हो गईं ।।
कैसी तक़दीर है इस वतन की सनम ।
आलिमों से खफ़ा रोटियां हो गईं ।।
फूल को चूसकर उड़ गईं शाख से ।
कितनी चालाक ये तितलियां हो गईं ।।
दर्दो गम पर…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on July 28, 2019 at 12:17am — 2 Comments
*करगिल विजय*
वज्रपात कर दुश्मन दल पर, सबक सिखाया वीरों ने
किया हिन्द का ऊँचा मस्तक, करगिल के रणधीरों ने
हर खतरे का किया सामना, लड़ी लड़ाई जोरों से
पग पीछे डरकर ना खींचे, बुझदिल और छिछोरों से l
धीर वीर दुर्गम चोटी पर, कसकर गोले दागे हैं
बंकर चौकी ध्वस्त किये सब, कायर कपूत भागे हैं
किये हवाई हमला भारी, धूर्त सभी थर्राए हैं
अरि मस्तक को कुचल-कुचल कर, अपना ध्वज लहराए हैं l
जब-जब दुस्साहस करता है, दुश्मन मारा जाता है
सरहद का…
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on July 26, 2019 at 7:37pm — 3 Comments
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