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मुजरिम : लघुकथा

आठवीं कक्षा तीसरा पीरीयड नैतिक शिक्षा का चल रहा था। जिंदगी अच्छे से कैसे गुजारी जाए के बारे सवाल मैडम से बच्चे पूछ रहे थे। मैडम सोचती है कि ऐसे सवाल तो हम ने भी पूछे थे,मगर हमारी जिंदगी का हिस्सा क्यूँ नहीं बने, वह सोचने लगी।

अब यही सवाल बच्चे उन से पूछ रहे हैं। क्या ऐसे करने से तबदीली आ सकती व्यहार से मैडम ने अपने आप से सवाल पुछाा।

"मगर जब वह जवाब की कौशिश करती है तो वह सोचती है क्यूँ न हम कहने की जगह करने को कहें,मगर ये तो तभी होगा जब हम खुद करेंगे,उस ने अपने सवाल का खुद को…

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Added by मोहन बेगोवाल on July 25, 2018 at 2:00pm — 4 Comments

गजल- जहाँ ईमान का पौधा नहीं है

मापनी 1222 1222122

जहाँ ईमान का पौधा नहीं है

यक़ीनन बाग वह मेरा नहीं है

 

इबादतगाह में है शोर केवल

खुदा का जिक्र अब होता नहीं है

 

भले फूलों सा’ कोमल हो न सच, पर

किसी की राह का काँटा नहीं है…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on July 25, 2018 at 8:30am — 16 Comments

"दर्द वो इस तरह छुपाता है"

2122 1212 22

हर समय खूब मुस्कुराता है।

दर्द वो इस तरह छुपाता है।।

वक़्त अच्छा बुरा जो आता है।

कुछ न कुछ तो सबक सिखाता है।।

दोस्त सच्चा उसे कहा जाता।

साथ जो हर कदम निभाता है।।

वो सकूँ से कभी नहीं रहता।

दिल किसी का भी जो दुखाता है।।

एक दिन ख़ुद मज़ाक बनता वो।

जो किसी का मज़ाक उड़ाता…

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Added by surender insan on July 24, 2018 at 9:00pm — 8 Comments

लघुकथा- " छद्म- संवेदना"/ अर्पणा शर्मा, भोपाल



"मैं कैसे अपने गहन दुःख का इज़हार करूँ । मेरे पिताजी की तबियत अत्यंत खराब है। करीब दस दिनों से आई.सी.यू.में भर्ती हैं । आप सभी की प्रार्थनाओं और दुआओं की बहुत जरूरत है। आपके संबल से ही हम इस मुश्किल समय से उबर पाएँगे  "



अत्यंत मार्मिक शब्दों से भरा फेसबुक पर अपना स्टेटस अपड़ेट करने के बाद कुणाल उस पर मिल रहे लाईक्स पर अपना धन्यवाद और प्रार्थनाओं, दुआओं से भरे संदेशों का उत्तर देने में व्यस्त होगया। ना जाने कितनी देर वह ऑनलाइन बैठा ख़ैरियत पूछने वालों को अपने पिताजी…

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Added by Arpana Sharma on July 24, 2018 at 3:07pm — 9 Comments

जरुरी है--ग़ज़ल

सीखना सिखाना जरुरी है
दिल को मिलाना जरुरी है


मिलने का वक़्त हो न हो
यादों  में  आना  जरुरी है


जो  गलतियां  करे कोई
आईना दिखाना जरुरी है


जुबाँ  भले  न  कह  पाए
एहसास जताना जरुरी है


भूलना इंसानी फितरत है
याद तो दिलाना जरुरी है !!

मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by विनय कुमार on July 24, 2018 at 3:00pm — 12 Comments

परछाईयाँ (२ क्षणिकाएं ) ....

परछाईयाँ (२ क्षणिकाएं ) ....

1.

एक अंत
मृतिका पात्र में
कैद हो गया
जीवन के धुंधलके में
अर्थहीन परछाईयों का
पीछा करते करते

..............................

2.

बीते कल की
क्षत-विक्षत अभीप्सा का
शृंगार व्यर्थ है
अन्धकार को भेदो
सूरज वहीं कहीं मिलेगा
दुबका हुआ
नई अभीप्सा का

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on July 24, 2018 at 12:50pm — 11 Comments

दिल के नज़दीक से ....”संतोष”

फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फेलुन/फ़इलुन

दिल के नज़दीक से गुज़रो तो बता कर जाना

ये भी चाहत की है इक रस्म निभा कर…

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Added by santosh khirwadkar on July 23, 2018 at 7:08pm — 10 Comments

श्रद्धांजलि

श्रद्धांजलि

हिन्दी का जग सूना सूना,कवि नीरज के जाने से

मर्माहत साहित्य जगत है, यह हीरा खो जाने से

भूल नहीं पाएंगे हम सब,नीरज की कविताओं को

गीतों में ढाला है जिसने,नित मदमस्त फिजाओं को ll

देदीप्यमान अम्बरादित्य, बिन काव्यजगत ये रीता है

नीरज अब नीर विलीन हुआ, मन भ्रमर गमों को पीता है

मुखरित होता था प्रेम रुदन,सौंदर्य वेदना गीतों में

इक रूह झंकरित होती थी, उनके हर संगीतों में ll

कविता कानन का मन मयूर, ढूंढ…

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Added by डॉ छोटेलाल सिंह on July 23, 2018 at 2:51pm — 6 Comments

साँझा चूल्हा - लघुकथा –

साँझा चूल्हा - लघुकथा –

"रज्जो, यह तेरा देवर रोज रोज  हमारी रसोई में थाली लिये बैठा क्यों दिखता है"?

 "क्योंजी, क्या वह आपका भाई नहीं है "?

"मेरी बात का सीधा जवाब दे? बात को घुमा मत"?

"आप भी ना,  दो रोटी खा जाता है और क्या करते हैं रसोई में"?

 "वह तो मुझे भी पता है। पर हमारी रसोई में क्यों"?

"उसके दो रोटी खाने से हम कंगाल हो जायेंगे क्या"?

"बात रोटी की नहीं है , बात उसूल की है"?

 "वह कहता है कि उसकी घरवाली के हाथ में स्वाद नहीं…

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Added by TEJ VEER SINGH on July 23, 2018 at 1:17pm — 16 Comments

दर्द (लघुकथा)

दर्द फिर उठा है। दर्द बहुत तेज़ है। कहते हैं, दर्द का हद से गुज़र जाना दवा है। ऐ दर्द गुज़र जा आज अपनी हदों से तू। ज़रा मैं भी तो देखूँ तेरा दवा हो जाना।

दर्द सचमुच बड़ा बेदर्द है। वह सचमुच बढ़ता जाता है; अपनी हदों को पार करता हुआ। अब नही, अब नही.......। अब बर्दाश्त नही होता। लेकिन दर्द तो बेदर्द है। बढ़ता ही जा रहा है; बर्दाश्त की हदों को पार करता हुआ। अब लगता है, जैसे सिमट आया है एक ही जगह।

दिल!

आह, दर्द-ए-दिल। सिमट आता है एक ही मुकाम पर। लगता है जैसे दिल किसी शिकंजे में कसा…

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Added by Mirza Hafiz Baig on July 23, 2018 at 1:00pm — 7 Comments

डायरी का अंतिम पृष्ठ (लघुकथा)

डायरी का अंतिम पृष्ठ

एक अरसे बाद, आज मेरे आवरण ने किसी के हाथों की छुअन महसूस की, जो मेरे लिए अजनबी थे। कुछ सख्त और उम्रदराज़ हाथ। मेरे पृष्ठों को उनके द्वारा पलटा जा रहा था। दो आँखें गौर से हर शब्द के बोल सुन रही थीं। मेरे अंतिम लिखित पृष्ठ पर आते ही ये ठिठक गईं। पृष्ठ पर लिखे शब्दों में से आकाश का चेहरा उभर आया। सहमा-सा चेहरा। उसने भारी आवाज़ में बोलना शुरू किया, "एक रिटायर्ड फ़ौजी, मेरे पापा। चेहरे पर हमेशा रौब, मगर दिल के नरम। आज उनकी बहुत याद आ रही है। जानता…

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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 22, 2018 at 9:51pm — 10 Comments

गोपालदास नीरज जी - श्रद्धांजलि [जीवनी]

काव्य मंचों के अपरिहार्य ,नैसर्गिक प्रतिभा के धनी,प्रख्यात गीतकार ,पद्मभूषण से सम्मानित,जीवन दर्शन के रचनाकार,साहित्य की लम्बी यात्रा के पथिक रहे,नीरज जी का जन्म उत्तर प्रदेश के जिला इटावा के पुरावली गांव में श्री ब्रज किशोर सक्सेना जी के घर  ४ जनवरी,१९२५ को हुआ था.गरीब परिवार में जन्मे नीरज जी की जिंदगी का संघर्ष उनके गीतों में झलकता हैं.युग के महान कवि नीरज जी को राष्ट्र कवि दिनकर जी 'हिंदी की वीणा' कहते थे. मुनब्बर राना जी कहते हैं-हिंदी और उर्दू के बीच एक पल की तरह काम करने वाले नीरज जी…

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Added by babitagupta on July 22, 2018 at 9:20pm — 7 Comments

लघुकथा- रिसते खूनी नासूर

सुबह से ठंडे चूल्हे को देख आहें भरती वह अपनी छः वर्षीय बेटी और तीन वर्षीय बेटे को पास बिठाए गहरे मातम में ड़ूबी थी। उसे लकवा सा मार गया था। उसका मस्तिष्क मानो सोचने-विचारने की क्षमता खो बैठा था। पूरी रात उसने वहीं जमीन पर बैठे गुज़ार दी थी। दोनों बच्चे भी वहीं उसकी गोदी में पड़े- पड़े कब सो गये थे उसे कोई होश ही नहीं था। पड़ोस की बूढ़ी अम्मा ही बच्चों के लिए खाना ले आई थी। 

" आह..! अब ऐसे घिनौने पाप का साया मेरे और इन बच्चों के सिर पर हमेशा मँड़राता रहेगा।"

उसकी दुःखभरी कराहें निकल…

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Added by Arpana Sharma on July 22, 2018 at 3:30pm — 6 Comments

'अद्भुत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय (अतुकांत कविता)

सबको तो

डस रहे हैं, फंस रहे हैं

असरदार या बेअसर?

नकली या असली?

देशी, विदेशी या एनआरआई?

मुंह में सांप

हाथों में सांप

बदन में सांप

गले पड़े सांप

सिर पर सांप

सांपों के तालाबों से!

मानव समाज में

शब्दों, जुमलों, नारों,

फैशन, गहने या हथियार रूपेण!

या प्रतिशोध लक्षित

मानव-बम सम!

पर कितना असर

जनता पर, सरकार पर?

केवल घायल लोकतंत्र

सपेरों के मंत्र

यंत्र, इंटरनेट

और सोशल मीडिया!

पनीले या…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 22, 2018 at 12:00pm — 2 Comments

असमर्थ ( लघुकथा )

इनआर्बिट माल से सागर ने आफिस के लिए फॉर्मल ड्रेसेस तो खरीद लीं थीं। अभी और ज़रूरी परचेसिंग बाकी थी। तभी अनायास उसकी नज़र एक टॉय सेन्टर पर पड़ी। बड़े से हाल में, एक रिमोट कंट्रोल्ड एयरोप्लेन गोल- गोल चक्कर लगा रहा था। उसे देखते ही सागर को अपना बचपन याद आ गया। अपने होमटाउन के सिटिमार्केट से गुज़रते वक़्त ऐसे ही एक खिलौने की दुकान से उसने चाबी से चलने वाले हवाई जहाज़ को खरीदने की ज़िद की थी और अपनी ज़िद पूरी करवाने के लिए…

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Added by MUZAFFAR IQBAL SIDDIQUI on July 21, 2018 at 11:30pm — 5 Comments

रिलेशनशिप (लघुकथा)

"मां, मुझे क्षमा कर दो और घर चलो!"

"क्षमा क्यों? तुमने भी वही किया जो सभी मर्द ऐसे हालात में करते हैं! ... यह बात और है कि तुम इतनी कम उम्र में पूरे पुरूष बन गये और एक विधवा पर वैसे ही बोलों के पत्थर फैंकने लगे!"

"लेकिन मेरे बड़े भाई ने हमेशा तुम्हारा ख़्याल रखा, तुम्हारा ही बचाव किया न!"…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 21, 2018 at 11:30pm — 8 Comments

सीख लिया है- एक ग़ज़ल

बचके चलना सीख लिया है
हमने संभलना सीख लिया है


वक़्त सदा होता ना अच्छा
हमने बदलना सीख लिया है


देख समंदर की लहरों को
हमने मचलना सीख लिया है


दर्द अगर हद से बढ़ जाए
हमने पिघलना सीख लिया है


भाग रही अपनी दुनिया में
हमने ठहरना सीख लिया है


आसमाँ की ख़्वाहिश सबकी
हमने उतरना सीख लिया है !!

Added by विनय कुमार on July 21, 2018 at 4:07pm — 10 Comments

सीख लिया है- एक ग़ज़ल

बचके चलना सीख लिया है
हमने संभलना सीख लिया है


वक़्त सदा होता ना अच्छा
हमने बदलना सीख लिया है


देख समंदर की लहरों को
हमने मचलना सीख लिया है


दर्द अगर हद से बढ़ जाए
हमने पिघलना सीख लिया है


भाग रही अपनी दुनिया में
हमने ठहरना सीख लिया है


आसमान की ख़्वाहिश सबकी
हमने उतरना सीख लिया है !!

मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by विनय कुमार on July 21, 2018 at 4:00pm — 4 Comments

सम्मान - लघुकथा –

सम्मान - लघुकथा –

 एक माँ के चार बेटे थे। बाप का साया बचपन में ही उठ गया था। अतः माँ ने उनके पालन पोषण में कुछ ज्यादा ही प्यार दिखाया और अतिरिक्त सावधानी बरती। इसका नतीजा यह हुआ कि बच्चे उदंड और शरारती हो गये।

माँ काम काज के लिये घर से बाहर रहती थी। और बच्चे सारे दिन मुहल्ले में हुल्लड़बाजी और दबंगयी दिखाते रहते थे। कभी किसी का काँच तोड़ देना या कभी किसी का सिर फोड़ देना। किसी का सामान उठा लाना। किसी स्त्री को छेड़ देना। यह उनका रोज़मर्रा का काम था।

आज दिन भर हंगामा करके…

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Added by TEJ VEER SINGH on July 21, 2018 at 11:52am — 12 Comments

नीरज जी को श्रृद्धाजंली - अर्पणा शर्मा भोपाल

गीतों की लय 

है ड़गमगाई,

सुरों की सरगम

स्तब्ध हो आई,

भाव खो बैठे,

हैं धीरज,

कैसे कह दें

अलविदा

आपको कविवर

हे नीरज,

शब्द-लय सुर-गीत

अप्रतिम -अद्वितीय ,

युगों- युगों रहेंगे

गुँजायमान,

है धन्य-धन्य,

यह भारत भूमि,

पाकर आपसा अनन्य,

कलम का धनी...!!

 (मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by Arpana Sharma on July 20, 2018 at 11:00pm — 7 Comments

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