हार ....
ज़ख्म की
हर टीस पर
उनके अक्स
उभर आते हैं
लम्हे
कुछ ज़हन में
अंगार बन जाते हैं
उन्स में बीती रातें
भला कौन भूल पाता है
ख़ुशनसीब होते हैं वो
जो
बाज़ी जीत के भी
हार जाते हैं
उन्स=मोहब्बत
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 13, 2018 at 6:41pm — 13 Comments
221 2121 1221 212
इन्साफ का हिसाब लगाया करे कोई।
होता कहीं तलाक़ हलाला करे कोई।।
उनको तो अपने वोट से मतलब था दोस्तों ।
जिन्दा रखे कोई भी या मारा करे कोई।।
मजहब को नोच नोच के बाबा वो खा गया ।
बगुला भगत के भेष में धोका करे कोई ।।
लूटी गई हैं ख़ूब गरीबों की झोलियाँ ।
हम से न दूर और निवाला करे कोई ।।
सत्ता में बैठ कर वो बहुत माल खा रहा ।
यह बात भी कहीं तो उछाला करे कोई ।।
आ जाइये हुजूर जरा अब ज़मीन…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on July 13, 2018 at 2:20pm — 15 Comments
2122---1212---22
ख़ुद-परस्ती का दायरा क्या था
मैं ही मैं था, मेरे सिवा क्या था
.
झूठ बोला तो बच गई गरदन
हक़-बयानी का फ़ाएदा क्या था
.
चाह मंज़िल की थी निगाहों में
ठोकरें क्या थीं आबला क्या था
.
पर निकलते ही थे उड़े ताइर !
ये रिवायत थी, सानेहा क्या था
.
दर्द, ग़ुस्सा, मलाल, मजबूरी
आख़िर उस चश्मे-तर में क्या क्या था
.
क्यों मैं बर्बादियों का सोग करूँ
जब मैं आया, यहाँ मेरा क्या…
Added by दिनेश कुमार on July 13, 2018 at 12:30am — 14 Comments
2122 2122 2122 212
तोड़ डाला खुद को तेरी आशिकी के रोग में नहीं
तुम नहीं लिक्खे थे मेरी कुंडली के योग में
अब तेरी तस्वीर दिल से मिट गई है इस तरह
जैसे ईश्वर को भुला डाले कोई भवरोग में
तेरे ग़म की,इश्क़ की मूरत थी मुझमें,ढह गई
आ नहीं सकती ये मिट्टी अब किसी उपयोग में
मिल गया,कुछ खो गया, कुछ मिलके भी खोया रहा
साथ थी तक़दीर भी जीवन के हर संयोग में
चैन तेरे इश्क़ के बिन मिल नही पाया कहीं
तेरे ग़म में जो…
Added by मनोज अहसास on July 12, 2018 at 10:30pm — 13 Comments
Added by बसंत कुमार शर्मा on July 12, 2018 at 3:57pm — 20 Comments
बेसबब बेसाख़्ता रफ़्तार है कुछ कीजिये
लड़खड़ाती जिंदगी हर बार है कुछ कीजिये
उठ रही हैं उँगलियाँ सब आपके घर की तरफ़
हाशिये पर आपकी दस्तार है कुछ कीजिये
वक्त आते ही डसेगा एक दिन वो आपको
आस्तीं में पल रहा मक्कार है कुछ कीजिये
आपके घर की तरफ़ से आ रहे पत्थर सभी
आपके घर में छुपा गद्दार है कुछ कीजिये
इस तरह तो मुफ़्लिसी दम तोड़ देगी भूख से
आसमां को छू रहा बाज़ार है कुछ कीजिये
हैं मुखालिफ़ कुछ हवायें हो रही कमजोर…
Added by rajesh kumari on July 11, 2018 at 9:57pm — 32 Comments
मैं तो उसकी पे ब पे अंगड़ाइयाँ गिनता रहा
और वो दामन की मेरे धज्जियाँ गिनता रहा
सौ गुनह होते ही पूरे मारना था इसलिये
मैं भी इक शिशुपाल की बदकारियाँ गिनता रहा
मेरे सीने पर सितम की मश्क़ वो करते रहे
और मैं मासूम दिल की किर्चियाँ गिनता रहा
काम जब कुछ भी नहीं था ओबीओ पर दोस्तो
'नूर' साहिब की मैं कूड़ेदानियाँ गिनता रहा
मेरी बर्बादी पे ख़ुश होकर अज़ीज़ों ने "समर"
कितनी…
ContinueAdded by Samar kabeer on July 11, 2018 at 10:00am — 31 Comments
तड़के सुबह से ही रिश्तेदारों का आगमन हो रहा था.आज निशा की माँ कमला की पुण्यतिथि थी. फैक्ट्री के मुख्यद्वार से लेकर अंदर तक सजावट की गई थी.कुछ समय पश्चात मूर्ति का कमला के पति,महेश के हाथो अनावरण किया गया.
कमला की मूर्ति को सोने के जेवरों से सजाया गया था.एकत्र हुए रिश्तेदार समाज के लोग मूर्ति देख विस्मय से तारीफ़ महेश से किये जा रहे थे. …
ContinueAdded by babitagupta on July 10, 2018 at 8:00pm — 7 Comments
जुमले बाजी का नाम सियासत |
मक्कारों का काम सियासत |
जाति,धर्म पर लड़वाने में
सबसे आगे आज सियासत |
रोजगार के ख्वाब दिखाकर
लूटे सरे आम सियासत |
घोटालों में लिप्त है नेता
बेमानी का नाम सियासत |
बेटियों की लुटती आबरू
चुप बैठी है आज सियासत |
लाज-शर्म को गिरवी रखकर
करती नंगा नाच सियासत |
भाई-भतीजावाद है हावी
तेरी-मेरी कहाँ सियासत ?
"मौलिक एवं…
ContinueAdded by Naval Kishor Soni on July 10, 2018 at 5:00pm — 11 Comments
न कर जिक्र
जब तक है जान
काहे की फिक्र
मन अंतस
जजवातों से भरा
पर अकेला
धरते धीर
शिखर पहुँचते
बैसाखी पर
क्या पा लिया था
ये तब जाना, जब
उसे खो दिया
खुशी ही नहीं
तल्खियाँ भी देती हैं
तनहाईयाँ
… मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neelam Upadhyaya on July 10, 2018 at 4:00pm — 17 Comments
निकम्मा - लघुकथा –
धर्मचंद जी शिक्षा विभाग से रिटायर अधीक्षक थे। चार बेटे थे। सभी पढ़े लिखे थे। सबसे बड़ा डाक्टर था जो अमेरिका में बस गया था। दूसरा इंजीनियर आस्ट्रेलिया में था। तीसरा दिल्ली में प्रोफ़ेसर था। चौथा बेटा भी पूर्ण रूप से शिक्षित था। जॉब भी मिल रहे थे मगर दूसरे शहरों में। लेकिन वह माँ बापू को अकेले छोड़ने के पक्ष में नहीं था।अतः वह इसी प्रयास में था कि उसे अपने ही शहर में नौकरी मिले।लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अंततः उसने पिता की सलाह पर मकान के बाहरी हिस्से में एक मेडीकल स्टोर खोल…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 10, 2018 at 1:21pm — 15 Comments
Added by Alok Rawat on July 9, 2018 at 6:54pm — 20 Comments
माँ ....
बताओ न
तुम कहाँ हो
माँ
दीवारों में
स्याह रातों में
अकेली बातों में
आंसूओं के
प्रपातों में
बताओं न
आखिर
तुम कहाँ हो
माँ
मेरे जिस्म पर ज़िंदा
तुम्हारे स्पर्शों में
आँगन में गूंजती
आवाज़ों में
तुम्हारी डाँट में छुपे
प्यार में
बताओं न
आखिर
तुम कहाँ हो
माँ
बुझे चूल्हे के पास
या
रंभाती गाय के पास
पानी के मटके के पास…
Added by Sushil Sarna on July 9, 2018 at 5:33pm — 11 Comments
"हैलो! आदाब! ठीक तो हैं न! कहां तक पहुंच गईं आप? ज़रा अपनी घड़ी साहिबा पर भी इक नज़र तो डालियेगा!" शायर 'राज़' साहिब ने साहित्यिक सम्मेलन परिसर के मुख्य द्वार पर अगली सिगरेट का अगला लम्बा कश लेते हुए मोबाइल फ़ोन पर एक बार में ये सवाल दाग़ दिये!
"आदाब राज़ साहिब! मैं वहीं हूं अपनी क़लम संग, जहां मुझे इस वक़्त होना चाहिए!" दूसरी तरफ़ से चिर-परिचित सुरीली आवाज़ में सोशल मीडिया की आभासी सहेली शायरा शबाना ने आश्चर्य-मिश्रित लहज़े में कहा - "माना कि आप घड़ी नहीं पहनते, लेकिन अपने मोबाइल पर मेरे…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 8, 2018 at 9:19pm — 6 Comments
हँसमुखी चेहरे पर ये कोलगेट की मुस्कान,
बिखरी रहे ये हँसी,दमकता रहे हमेशा चेहरा,
दामन तेरा खुशियों से भरा रहे,
सपनों की दुनियां आबाद बनी रहे,
हँसती हुई आँखें कभी नम न पड़े,
कालजयी जमाना कभी आँख मिचौली न खेले,…
ContinueAdded by babitagupta on July 8, 2018 at 5:00pm — 9 Comments
सुबह आठ बजे से उसका साईकल इस एवन्यु में घूम रहा था । उसके भोंपू की आवाज़ एवन्यु के हर कोने तक पहुंच चुकी थी।
मगर न कोठी से कोई भी औरत न ही माँ के साथ बच्चा बाहर आया। उसके साईकल पर लगे बड़े, छोटे गुबारे, छोटी बड़ी कार या कोई बजाने वाले खिलौने सभी उस की तरफ झाक रहे थे । दो घंटे हो गए थे इस एवन्यु दाखल हुए। साईकल की रफ्तार भी धीमी हो चली थी। चेहरा उदास और आँखों में नमी बढने लगी अचानक ही उस ने इक कोठी के आगे साईकल आ लगाई, इक बार बेल्ल बजाई कोई जवाब नहीं आया। उसने फिर बेल्ल बजाई। थोड़ी देर बाद…
Added by Mohan Begowal on July 8, 2018 at 1:00pm — 5 Comments
'एक सेठ के पाँच पुत्र थे, दो खूब पढ़े-लिखे,एक कुछ-कुछ पढ़ा हुआ और शेष दो के लिए काला अक्षर भैंस बराबर था।सेठ के मरते समय की बात के अनुसार घर की मिल्कियत(मालिकाना हक) साल भर के लिए पाँचों भाइयों में से सर्वसम्मति से या बहुमत से चुने हुए एक भाई को सौंप दी जाती।वह घर का कामकाज देखता,अपने हिसाब से विभिन्न मदों में धन खर्च करता।कभी पहला पढ़ा-लिखा भाई मालिक होता,तो कभी दूसरा।बीच-बीच में तीसरा कम पढ़ा लिखा भी मालिक बन जाता,अन्य दो अँगूठाछाप भाइयों की मदद से।पर उसकी कुछ चल नहीं पाती।ढुलमुल रवैये…
Added by Manan Kumar singh on July 8, 2018 at 8:30am — 6 Comments
फाइलातुन _मफाइलुन_फेलुन)
आप पर किस की मिह्ऱबानी है ,
हर ग़ज़ल में जो ये रवानी है !!
ये ग़ज़ल उसके नाम करता हूँ
शायरी जिसकी मेहरबानी है
शायरी में नहीं है कुछ मेरा
हर ग़ज़ल यार की निशानी है
आप को छोड़ कर कहाँ जाएँ ,
आप के साथ ज़िन्दगानी है !!
आप मक्ते में साथ होते हो ,
हर ग़ज़ल आप की निशानी है !!
प्यार के ही तो सारे किस्से हैं
प्यार की ही तो हर कहानी है
उसको भी…
ContinueAdded by राज लाली बटाला on July 8, 2018 at 8:30am — 7 Comments
(2122-2122-2122-212)
मुश्किलें कितनी हैं अपने दरमियाँ गिनता रहा ।
बैठ कर मैं राह की दुश्वारियाँ गिनता रहा ।
आँखों में अश्कों का दरिया चढ़ के जब उतरा तो फ़िर,
मैं तो बस ख़्वाबों की डूबी कश्तियाँ गिनता रहा ।
और करता भी तो क्या वो नौजवां बेरोज़गार,
दी हैं कितनी नौकरी कीअरज़ियाँ गिनता रहा ।
राजनेता को न था मतलब किसी इंसान से,
वो तो केवल धोतियाँ और टोपियाँ गिनता रहा ।
वो रहे गिनते मुनाफ़ा कारख़ाने का उधर,…
ContinueAdded by Gurpreet Singh jammu on July 8, 2018 at 7:50am — 18 Comments
मौसम विभाग ने तो मई के अंतिम सप्ताह में ही सम्भावना व्यक्त कर दी थी कि इस साल औसत से कहीं अधिक बारिश होगी । सभी लोग इस खबर को पढ़ कर खुश भी थे । कल रात से ही मानसून का सिस्टम सक्रिय हो गया । बहुत तेज़ गरज के साथ बादलों की आवाजाही होने लगी।
Added by MUZAFFAR IQBAL SIDDIQUI on July 7, 2018 at 11:30pm — 9 Comments
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