For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,988)

जीवन यथार्थ

संवेगों के झंझावात में

बहती रही सारी खुशियाँ

इतनी क्षणिक सिद्ध हुईं

आंसुओं के समंदर

डुबोते चले गए यादों को

इतनी कमजोर निकलीं

खामोशियों के बीच

गुस्से बदल गए नफ़रतों में

इतने अप्रत्याशित थे

आशाएँ और अभिलाषाएं

सिसक रही कहीं

दम तोड़ती सी ज्यों

पर जीवन की जुगुत्सा

जूझना सिखाती परिस्थिति से

सबक का एहसास कराते

सौहर्द्र, प्रेम और संभावनाओं का

निरंतरता, यथार्थता , शाश्वतता

यही जीवन है…

Continue

Added by Neelam Upadhyaya on July 5, 2018 at 3:20pm — 14 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ६०

जनाब बशीर बद्र साहब की ग़ज़ल "ख़ुदा मुझको ऐसी ख़ुदाई न दे" की ज़मीन पे लिखी ये ग़ज़ल. 

122 122 122 12



ख़ुदा ग़र तू ग़म से रिहाई न दे

तो साँसों की मीठी दवाई न दे



भले अपनी सारी ख़ुदाई न दे

किसी को भी माँ की जुदाई न दे

मैं मर जाऊँ मिट जाऊँ हो जाऊँ ख़ाक़

मगर मुझको ख़ू ए गदाई न दे



तू रख सब असागिर को दुख से अलग

तू कोई भी…

Continue

Added by राज़ नवादवी on July 5, 2018 at 10:30am — 5 Comments

दिल का साँचा

नींद आँखों से खफा –खफा है /

चली है ठंडी हवा वो याद आ रह है /

लिखा था मौसम किसी कागज़ पे/

टहलती आँख लफ्ज़ फड़फड़ा रहा है /

सिलवटें बिस्तरों पे नहीं सलामत /

दिल का साँचा हुबहू बचा हुआ है/

नक्ल करके नाम तो पा सकता हूँ /

पर मेरा वजूद इसमें क्या है?

वो आज भी रहता है मेरे आसपास /

मेरे बच्चे में मुस्कुरा रहा है |

सोमेश कुमार(मौलिक एवं अमुद्रित…

Continue

Added by somesh kumar on July 5, 2018 at 7:24am — 5 Comments

रहमत में हरम मागा- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१ १२२२ २२१ १२२२



जितना भी सनम माँगा यूँ हमने है कम माँगा

मरने की नहीं हिम्मत जीने का ही दम माँगा।१।



होते ही सवेरा  नित  साया  भी डराता है

घबरा के उजाले से यूँ रात का तम माँगा।२।



सुनते हैं सभी कहते कम अक्ल हमें लेकिन

खुशियों में अकेले थे इस बात से गम माँगा।३।



चौपाल से बढ़ शायद महफूज लगा हो कुछ

ऐसे  ही  नहीं  उसने  रहमत  में  हरम माँगा।४।



ऐसे ही  नहीं  शबनम  पड़  जाती है रातों को

धरती का रह इक कोना…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 5, 2018 at 6:30am — 16 Comments

जुआ (लघुकथा)

 ड्यूटी के बाद मैं घर को पैदल चल पड़ा। ऐसा आजकल मैं अकसर ही करता हूँ। क्यूँ कि डाक्टर ने मुझे ज्यादातर पैदल चलने को कहा है। कुछ कदम चलते ही मेरे साथ रिक्शा इक रिक्शा भी चलने लगा।

चलते हुए बार बार रिक्शे वाला रिकशे पर बैठने को कहता रहा।

“बाऊ जी,दस दे देना,मगर मैं चलता रहा, फिर उसने पास आकर कहा,चलो पाँच ही दे देना।"

“अरे भाई, बात पाँच या दस की नहीं, मैंने कहा। मैं बैठना नहीं चाहता।"

मगर इस बार उस के कहने में एक तरला सा लगा, “बाऊ जी, बैठ जाओ न।“

आखिर, मैं रिक्शे…

Continue

Added by Mohan Begowal on July 4, 2018 at 11:30pm — 9 Comments

अकेली ...

अकेली ...

मैं

एक रात

सेज पर

एक से

दो हो गयी

जब

गहन तम में

कंवारी केंचुली

ब्याही हो गयी

छोटा सा लम्हा

हिना से

रंगीन हो गया

मेरी साँसों का

कंवारा रहना

संगीन हो गया

एक अस्तित्व

उदय हुआ

एक विलीन

हो गया

और कोई

मेरे अस्तित्व की

ज़मीन हो गया

अजनबी स्पर्शों की

मैं

सहेली हो गयी

एक जान

दो हुई

एक

अकेली हो गयी

सुशील…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 4, 2018 at 4:48pm — 11 Comments

बारिश के हाइकु



(1) ख़त्म तपन

हरा हुआ चमन

मचले मन ।

******

(2) भीगी है रात

बादलों की बारात

हो मुलाक़ात ।

******

(3) खेत-मैदान

हरियाली मचले

जीवन चले ।

******

(4) कहीं बरसे

मन मौजी बादल

धरा को बल ।

******

(5) नदियों में है

लहरों का यौवन

जल का धन ।

******

(6) घर-आँगन

जल की मनमानी

जीने की ठानी ।

******

(7)ककड़ी-भुट्टे

मन को ललचाते

सबको भाते ।

*******

(8) बूँदें…

Continue

Added by Mohammed Arif on July 4, 2018 at 8:54am — 21 Comments

बड़ा सवाल(लघुकथा )

गीता पाठशाला से अभी घर पहुंची, उसने आते ही माँ से सवाल किया, “ प्रोजेक्ट पर काम तो हम सब बच्चों ने किया था।”

“हाँ, प्रोजेक्ट तो होता ही है कि सभी बच्चे एक साथ काम करें।” मम्मी ने गीता को समझाने के अंदाज़ में कहा

“तो प्रोजेक्ट हम सभी बच्चों की मेहनत से पूरा हुआ ” गीता ने फिर कहा।

"हाँ " ।

“इस का क्रेडिट भी हम बच्चों को मिलना चाहिए ”, गीता ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा

“मगर इनाम तो हमें नहीं मिला", ये तो प्रिंसिपल को मिला” गीता ने कहा

“हाँ, बच्चे ऐसा ही होता है,…

Continue

Added by Mohan Begowal on July 3, 2018 at 11:00pm — 9 Comments

कैसे अजब हैं लोग जो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१ /२१२१ /२२२  /१२१२

खासों से बढ़ के  खास यूँ होते हैं आम भी

जिसने समझ लिया उसे मिलते हैं राम भी।१।



कैसे अजब हैं लोग जो कहते हैं यार ये

बदनामियों के साथ ही होता है नाम भी।२।



आती है जिसको भोर यूँ झट से अगर कहीं

ढलती है  उसकी  दोस्तो  ऐसे ही शाम भी।३।



अभिषेक हो रहा है अब सुनते शराब से

करने लगी हवस पतित देवों का धाम भी।४।



जब से गमों …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 3, 2018 at 7:35pm — 21 Comments

कोई दुपट्टा उड़ा रहा था

121 22 121 22

वो शख्स क्यूँ मुस्कुरा रहा था ।

जो मुद्दतों से ख़फ़ा रहा था ।।

वो चुपके चुपके नये हुनर से ।

सही निशाना लगा रहा था ।।

अदाएँ क़ातिल निगाह पैनी।

जो तीर दिल पर चला रहा था ।।

तबाह करने को मेरी हस्ती ।

कोई इरादा बना रहा था ।।

मुग़ालता है उसे यकीनन ।

नया फ़साना सुना रहा था ।।

बदलते चेहरे का रंग कुछ तो ।

तुम्हारा मक़सद बता रहा था…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on July 3, 2018 at 3:09pm — 12 Comments

ला-इलाज कैंसर की तरह

वक्त आता है

चला जाता है

हमे नही लगता कि

वक्त के आने और जाने से

कुछ फर्क पड़ता है

क्योंकि हम

अपने निकम्मेपन की धुन में

ही मग्न रहते है और

बीतती जाती है उम्र

फिर एक दिन जब दर्पण

हमे चेतावनी देता है

हम रह जाते हैं

अवाक् 

और भय से देखते है

अपने उजले हो चुके बाल

धंसी हई आँखें  

पोपला मुख

और सारे चेहरे पर

अनगिनत वक्त के निशान   

तब हम जान पाते हैं…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 3, 2018 at 11:26am — 9 Comments

ग़ज़ल (जानेमन मुझको मुहब्बत का ज़माना याद है)

(फाइलातुन _फाइलातुन _फाइलातुन _फाइलुन)



याद है तेरी इनायत, ज़ुल्म ढाना याद है |

जानेमन मुझको मुहब्बत का ज़माना याद है |

हम जहाँ छुप छुप के मिलते थे कभी जाने जहाँ

आज भी वो रास्ता और वो ठिकाना याद है |

भूल बैठे हैं सितम के आप ही क़िस्से मगर

दर्द, ग़म,आँसू का मुझको हर फ़साना याद है|

इस लिए दौरे परेशानी से घबराता नहीं

मुश्किलों में उनका मुझको मुस्कुराना याद है |

घर के बाहर यक बयक सुन कर मेरी आवाज़ को…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on July 2, 2018 at 5:30pm — 20 Comments

थप्पड़  -  लघुकथा –

थप्पड़  -  लघुकथा –

आज तीन साल बाद सतीश जेल से छूट रहा था। उसे सोसाइटी के मंदिर में चोरी के इल्ज़ाम में सज़ा हुई थी| घरवालों ने गुस्से में ढंग से केस की पैरवी भी नहीं की थी। । पिछले तीन साल के दौरान भी कोई उसे मिलने नहीं गया था। इसलिये घर में सब किसी अनहोनी  के डर से आशंकित  थे|

जेल से जैसे ही सतीश बाहर आया तो देखा कि उसे जेल पर लेने कोई नहीं आया । उसने कुछ दोस्तों को फोन किये, जो चोरी के माल में ऐश करते थे। लेकिन सब  बहाना बना कर टालमटोल कर गये।

घर पर पहुंच कर पता चला कि…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on July 2, 2018 at 4:30pm — 16 Comments

मुझे भी तुमसे मुहब्बत की आस है प्यारे।

मुझे भी तुमसे मुहब्बत की आस है प्यारे।

कदम-कदम पे सलीबों की प्यास है प्यारे॥

ख़यालो-ख्वाब, तसव्वुर भी जुर्म होते हैं।

चले भी आओ हर नज़ारा उदास है प्यारे॥

मुझे भी पढ़ के किताबों में दफ्न कर देना।

वाकिफ हैं तुम्हारी आदत खास है…

Continue

Added by SudhenduOjha on July 2, 2018 at 1:00pm — No Comments

स्वप्न,यथार्थ और प्रेरणा (कहानी )

पुश्तैनी घर में होने वाले रोज़-रोज़ के झगड़े से तंग आ चुका था और मंशा थी की अपना एक अलग घोसला बनाया जाए |श्री वर्मा जी जो की मेरे शिक्षक,मार्गदर्शक एवं प्रेरणाश्रोत रहे हैं उनसे इस सिलसिले में मिलने पहुँचा |

मिलते ही उन्होंने प्रश्न किया-सबसे पहले यह बताओ की कितनी नकद राशि है और घर लेने की क्या योजना है |

“पैसे तो छह-सात लाख के आसपास हैं बाकि पैसे लोन करा लूँगा |सोच रहा हूँ की कोई जड़ सहित मकान या फ़्लोर मिल जाए |”मैंने हिचकिचाते हुए कहा

“लेकिन या परंतु बाद में ---सबसे पहले…

Continue

Added by somesh kumar on July 2, 2018 at 9:59am — 4 Comments

इश्क के दरिया मे उतरता चला गया (ग़ज़ल)

इश्क मे दरिया मे उतरता चला गया l

जितना डूबा दिल निखरता चला गया ll

हमने तो की कोशिशे की जुदा न हो l

फिर भी     कैसे  बिछड़ता चला गया ll

उसने लहज़ा      बदल दिया       तभी l

नज़रों    से       उतरता      चला गया ll

उसकी बातों   मे     फिसल गये सभी l

मैं भी  फिर     बहकता     चला गया ll

वो    जितना    सुलझते       चले    गये l

उतना  ही   मैने   उलझता   चला गया ll

इश्क भी आसा न था करना यहाँ "यश" l

काँटों   पर…

Continue

Added by yogesh shivhare on July 2, 2018 at 7:54am — 5 Comments

ग़ज़ल

खेल कैसे बनाते मिटाते रहे
जिंदगी को वो हम से चुराते रहे

भीड़ के संग़ रिशता बनाते रहे
पास कुछ तो रहे दूर जाते रहे

रंग बदले जमाने कई बार हैं
ये मगर साथ दुनिया दिखाते रहे

रौशनी साथ कुछ तो निभाना मिरा
अब तलक ये अँधेरे सताते रहे

देख कर मुझ को वो मुस्कराता हुआ
क्या कहें ग़म धुएं से उड़ाते रहे
"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by Mohan Begowal on July 1, 2018 at 10:13pm — 4 Comments

बूँद जो थी अब नदी हो गयी

२१२२   २१२२   १२

बूँद जो थी अब नदी हो गयी

दिल्लगी दिल की लगी हो गयी

 

जिंदगी का अर्थ बस दर्द था

तुम मिले आसूदगी हो गयी

 

आ गया जो मौसमे गुल इधर

शाख सूखी थी हरी हो गयी

 

बिन तुम्हारे एक पल यूँ लगा

जैसे पूरी इक सदी हो गयी

 

जिंदगी गुलपैरहन सी हुई 

आप से जो दोस्ती हो गयी 

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Neeraj Neer on July 1, 2018 at 6:32pm — 7 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ५९

2122 2122 2122 212

जो नहीं मँझधार में थे, साहिलों के पास थे

मुद्दतों से पाँव उनके दलदलों के पास थे



जीत के सारे हुनर तो हौसलों के पास थे

पैतरे ही थे फ़क़त जो बुज़दिलों के पास थे



मैं कहाँ चूका बता इस ज़िंदगी की दौड़ में

लोग जो दौड़े नहीं वो मंज़िलों के पास थे



बर्क़ ने कुछ न बिगाड़ा जो थे ज़ेरे आसमाँ

वो परिंदे मर गये जो…

Continue

Added by राज़ नवादवी on July 1, 2018 at 6:30pm — 9 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ५८

1212 1212 1212 1212



दिलों की आग बुझ गई, जिगर में अब धुआँ नहीं

कि तुम भी अब जवाँ नहीं, कि हम भी अब जवाँ नहीं



सितारे गुम हुए सभी, रुपहली कहकशाँ नहीं

ज़मीने दिल पे अब तेरी वफ़ा का आसमाँ नहीं



सफ़र भी ज़िंदगानी का हुआ कभी अयाँ नहीं

जहाँ पे रहगुज़र मिली वहाँ पे कारवाँ नहीं



वो मुझसे बोलता नहीं, वो मुझसे सरगिराँ नहीं

वफ़ा की आग क्या…

Continue

Added by राज़ नवादवी on July 1, 2018 at 6:00pm — 16 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"आदाब।‌ बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब।"
Monday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी।"
Monday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी। आपकी सार गर्भित टिप्पणी मेरे लेखन को उत्साहित करती…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"नमस्कार। अधूरे ख़्वाब को एक अहम कोण से लेते हुए समय-चक्र की विडम्बना पिरोती 'टॉफी से सिगरेट तक…"
Sunday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"काल चक्र - लघुकथा -  "आइये रमेश बाबू, आज कैसे हमारी दुकान का रास्ता भूल गये? बचपन में तो…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"ख़्वाबों के मुकाम (लघुकथा) : "क्यूॅं री सम्मो, तू झाड़ू लगाने में इतना टाइम क्यों लगा देती है?…"
Sep 29
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"स्वागतम"
Sep 29
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"//5वें शेर — हुक्म भी था और इल्तिजा भी थी — इसमें 2122 के बजाय आपने 21222 कर दिया है या…"
Sep 28
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल है आपकी। इस हेतु बधाई स्वीकार करे। एक शंका है मेरी —…"
Sep 28
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"धन्यवाद आ. चेतन जी"
Sep 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय ग़ज़ल पर बधाई स्वीकारें गुणीजनों की इस्लाह से और बेहतर हो जायेगी"
Sep 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"बधाई स्वीकार करें आदरणीय अच्छी ग़ज़ल हुई गुणीजनों की इस्लाह से और बेहतरीन हो जायेगी"
Sep 28

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service