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ग़ज़ल इस्लाह के लिए (गुरप्रीत सिंह)

2122 -1212 -22


आस दिल में दबी रही होगी
और फिर ख़्वाब बन गई होगी।

टूट जाए सभी का दिल या रब
दिलजले को बड़ी ख़ुशी होगी।

ज़ह्न हारा हुआ सा बैठा है
दिल से तक़रार हो गई होगी।

जिसकी खातिर लुटा दी जान उसने
चीज़ वो भी तो कीमती होगी।

जब मुड़ा तेरी ओर परवाना
शमअ बेइन्तहा जली होगी।

(मौलिक व् अप्रकाशित)

Added by Gurpreet Singh jammu on July 11, 2017 at 1:26pm — 28 Comments

रिश्ते में नुकसान जोड़ते पाई पाई------इस्लाह के लिए ग़ज़ल

22 22 22 22 22 22
रिश्ते में नुकसान जोड़ते पाई पाई।
आँगन में दीवार खींचते भाई भाई।।

वाह रुपये खूब तुम्हारी भी है माया।
पुत्र बसा परदेश गाँव में बाबू- माई।।

कलयुग कैसी है ये तेरी काली छाया
साथ नहीं देती है खुद की ही परछाई।।

नातेदारी मृग मरीचिका में उलझी है
जानें कितनी लाश गिरेगी रे'त में भाई।।

पंकज बैठा लिये तराजू आओ लोगों
नाप-जोख कर भाव लगाकर करो मिताई।।

मौलिक अप्रकाशित

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 11, 2017 at 11:00am — 24 Comments

एक भारत श्रेष्ठ भारत

नवसृजन कर हम बनाएँ,

एक भारत श्रेष्ठ भारत

 

काम हो हर हाथ को,

ख़त्म हो बेरोजगारी.

हो न शोषण बालकों का,

और हो भय मुक्त नारी.

आचरण में भ्रष्टता से,

मुक्त हो अपनी सियासत.

 

शांति के हम दूत बनकर,…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on July 11, 2017 at 8:41am — 10 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मेरा कच्चा मकान क्या करता (ग़ज़ल 'राज')

२१२२  १२१२    २२

बात खाली मकान क्या करता

दास्ताँ वो बयान क्या करता 

 

पंख कमजोर हो गये मेरे  

लेके अब  आसमान क्या करता 

उसकी  सीरत ने छीन ली सूरत

उसपे सिंघारदान क्या करता 

 

रूठ जाते मेरे सभी अपने

चढ़के ऊँचे मचान क्या करता

 

नींव में झूठ की लगी दीमक 

लेके ऐसी दुकान क्या करता

 

बाढ़ में ढह गये महल कितने    

मेरा कच्चा मकान क्या…

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Added by rajesh kumari on July 11, 2017 at 8:30am — 36 Comments

खामियाजा***(लघुकथा)राहिला

क्या मैं जान सकती हूँ सब कुछ फाइनल होने के बाद विवाह से इंकार करने की वजह क्या है?

"आपसे पिछली मुलाक़ात!"उसने सपाट सा उत्तर दिया।

"पिछली मुलाक़ात?"कहते हुए उसके माथे पर हैरानी से बल पड़ गए।

" जहाँ तक मुझे याद है..., उस दिन तो ऐसी कोई बात नहीं हुई थी, जो आपके इंकार की वजह बने।"

"हुई थी!,उस दिन एक ऐसी बात हुई थी जिसकी वजह से मुझे ये फैसला लेना पड़ा।"

" देखिए..!पहेलियां बुझाने से अच्छा ,आप साफ-साफ बताएं।"वह मुद्दे पर आ गयी।

"ठीक है तो सुने!"उसने दोनों हाथ टेबल पर रखते हुए… Continue

Added by Rahila on July 11, 2017 at 6:26am — 9 Comments

तिरंगे का सौदा :लघुकथा: हरि प्रकाश दुबे

सर्द रात में कोहरे को चीरती हुईं कई गाड़ियाँ, आपस में बतियाती हुयीं शहरों की झुग्गियों में कुछ ढूँढ रहीं थी तभी अचानक !

 

“अबे गाड़ी रोक, बॉस का फ़ोन आ रहा है I”

 

ड्राईवर ने कस कर ब्रेक दबा दिया और धमाके के साथ “जी, साहब , कहते ही आदमी फ़ोन सहित गाडी के बाहर I”

 

“अबे ! यह धमाका कैसा सुनाई दिया, जिन्दा हो या फ्री में खर्च हो गए ?”

 

“नहीं जनाब, सब ठीक है, लगभग सब काम हो गया है, सारे छुटभैये नेता खरीद लिए हैं!” “अल्लाह ने चाहा तो…

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Added by Hari Prakash Dubey on July 11, 2017 at 12:51am — 10 Comments

सावन में बादल :लघुकथा: हरि प्रकाश दुबे

 

“खाना लगा दूं ! लेफ्टिनेंट साहब ?”

“अभी नहीं ! रूक जा जरा, बस यह चित्र पूरा ही होने वाला है, तब तक जरा एक पैग बना ला ‘ऑन द रोक्स’ I”

“क्या साब, आज दिन में ही...?”

“हूँ ! ... बेटा, एक काम कर सारे खिड़की दरवाजे बंद कर दे और लाइट्स जला दे I”

थापा ने ठीक वैसा ही किया, पैग बना लाया और बोला, “लीजिये साब, हो गयी रात I”

लेफ्टिनेंट साहब अपनी बैसाखी के सहारे मुस्कराते हुए आगे बढे, गिलास पकड़ लिया और बोले…

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Added by Hari Prakash Dubey on July 10, 2017 at 10:47pm — 5 Comments

ग़ज़ल -- किसी का कहा मानता ही कहाँ है

122--122--122--122



किसी का कहा मानता ही कहाँ है

वो अपनी ख़ता मानता ही कहाँ है



न काफ़िर कहूँ तो उसे मैं कहूँ क्या

है बुत में ख़ुदा मानता ही कहाँ है



है छोटी बहुत सोच उसकी करें क्या

किसी को बड़ा मानता ही कहाँ है



शिकायत यही है हर इक आदमी की

मेरी दूसरा मानता ही कहाँ है



मेरे पास हल है, सभी मुश्किलों का

कोई मश् वरा मानता ही कहाँ है



लगाना पड़ा झूठ का मुँह पे ग़ाज़ा

कि सच आइना मानता ही कहाँ है



भला आदमी है… Continue

Added by khursheed khairadi on July 10, 2017 at 9:00pm — 15 Comments

ग़ज़ल....जो दिल को घेर कर बैठी उदासी क्यों नहीं जाती

1222 1222 1222 1222

जो दिल को घेर कर बैठी उदासी क्यों नहीं जाती

नदारद नींद आँखों से उबासी क्यों नहीं जाती



चलीं जायेगीं बरसातें ये मौसम भी न ठहरेगा

हमारे दिल की बैचैनी जरा सी क्यों नहीं जाती



तुम्हारे साथ ही ये ज़िन्दगी तैयार जाने को

दिलों के दरमियाँ काबिज़ अना सी क्यों नहीं जाती



सुना है उसके दर पे सब मुरादें पूरी होतीं हैं

ये व्याकुल रूह जन्मों से है प्यासी क्यों नहीं जाती



ग़मों में मुस्कुराना सीख 'ब्रज' लोगों ने समझाया

बसी… Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 10, 2017 at 5:00pm — 9 Comments

ग़ज़ल (मधुर मास सावन लगा है)

ग़ज़ल (मधुर मास सावन लगा है)



बहर:- 122 122 122



मधुर मास सावन लगा है,

दिवस सोम लगते पड़ा है।



महादेव को सब रिझाएँ,

ये संयोग अद्भुत हुआ है।



तेरा रूप सबसे निराला,

गले सर्प माथे जटा है।



कुसुम बिल्व चन्दन चढ़ाएँ,

ये शुभ फल का अवसर बना है।



शिवाले में अभिषेक जल से,

करें भक्त मोहक छटा है।



करें कावड़ें तुझको अर्पित,

सभी पुण्य पाते महा है।



करो पूर्ण आशा मेरी शिव,

'नमन' हाथ जोड़े खड़ा… Continue

Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on July 10, 2017 at 12:00pm — 10 Comments

वो हमारा आइना हो जाएगा ।

2122 2122 212



वो हमारा आइना हो जाएगा ।

सच कहूँ दिल का खुदा हो जाएगा ।



हैं विचाराधीन सारे जुर्म क्यों ।

वह इलेक्शन में खड़ा हो जाएगा ।।



देखना तुम भी इसी बाजार में ।

सच भी कोई मकबरा हो जाएगा ।।



फैसले होंगे उसी के हक़ में अब ।

हाकिमों से मशबरा हो जाएगा ।।



इस सियासत में कोई जल्लाद भी ।

जिंदगी का रहनुमा हो जाएगा ।।



फिर कहर ढाने लगा है वह शबाब ।

हुस्न पर कोई फ़ना हो जाएगा ।।



शरबती आंखों की हरकत…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on July 10, 2017 at 10:00am — 8 Comments

यहाँ के लोग महब्बत शदीद करते हैं

मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन



ये काम आज के एह्ल-ए-जदीद करते हैं

ग़ज़ल के मुँह पे तमांचा रसीद करते हैं



लगे हुए तो हैं पैहम इसी तग-ओ-दौ में

हमें वो देखिये किस दिन शहीद करते हैं



ये नफ़रतें तो महज़ आरज़ी हैं,सच ये है

यहाँ के लोग महब्बत शदीद करते हैं



मुसालहत की अगर आरज़ू है तुमको भी

तो आओ बैठ कर गुफ़्त-ओ-शुनीद करते हैं



वफ़ा से दूर तलक जिन को वास्ता ही नहीं

ये लोग उनसे इसी की उमीद करते हैं



तू भूल से भी "समर" मेरा… Continue

Added by Samar kabeer on July 10, 2017 at 12:31am — 26 Comments

दोहे-गुरु पूर्णिमा विशेष-रामबली गुप्ता

जग में बिन गुरु ज्ञान के, नर-पशु एक समान।

गुरु के शुचि सानिध्य में, बनता मूढ़ सुजान।।1।।



ज्ञान जगत का मूल है, संस्कृति का आधार।

किन्तु बिना गुरु ज्ञान कब, पाये यह संसार?2।।



निज गुरु पद में बैठ नित, खुद को लो यदि जान।

कलुष-भेद हिय-तम मिटे, हो शुचि तन-मन-प्रान।।3।।



ज्ञान ज्योति गुरु दीप सम, और तिमिर-अज्ञान।

अर्पित कर श्रम-स्नेह-घृत, बनते शिष्य सुजान।।4।।



नित गुरु-पद वंदन करें, इसमें चारो धाम।

गुरु को श्री-हरि-पार्थ भी, नत हो करें… Continue

Added by रामबली गुप्ता on July 9, 2017 at 10:30pm — 14 Comments

ग़ज़ल / बह्र -22/22/22/22

जीने में अब मजा कहाँ है,
खुशियों का सिलसिला कहाँ है ।
बारिश कोसों दूर हुई अब
जल का बादल गया कहाँ है ।
जो हैं हिंसा के सौदागर
उनको मिलती सज़ा कहाँ है ।
रहबर करते वादे बेहद ,
कोई पूरा हुआ कहाँ है ।
माँ है उनकी जीवित अब तक
घर का हिस्सा हुआ कहाँ है
भूल चुका है वो तो ये भी,
भाई उसका बसा कहाँ है ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Mohammed Arif on July 9, 2017 at 7:00pm — 12 Comments

दोहे - (गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष में)

आई है गुरु पूर्णिमा, इसका लें संज्ञान।

गुरु हैं सागर ज्ञान के, जान सके तो जान।।1।।



कोई कितना भी रहे, अद्भुत प्रतिभावान।

गुरु ही उसे निखारते, जान सके तो जान।।2।।



मठाधीश जो बन गए, बाँट रहे हैं ज्ञान।

उनके असली रूप को, जान सके तो जान।।3।।



गुरु की महिमा जानिए, गुरु बिन मिले न ज्ञान।

गुरु में प्रभु का रूप है, जान सके तो जान।।4।।



गुरु चाहें तो डाल दें, मुर्दे में भी जान।

क्षमताएं उनकीं अनत, जान सके तो जान।।5।।

(मौलिक व… Continue

Added by Hariom Shrivastava on July 9, 2017 at 6:34pm — 5 Comments

गुरु पूर्णिमा पर गुरु को समर्पित मुक्तक

हमेशा शिष्य का गुरु ही यहाँ पतवार बनता है|

कृपा उसकी अगर बरसे सफ़ल संसार बनता है||

मृदा का रूप अनगढ़ ही लिये फिरते यहां सारे |

पड़े जब थाप उसकी तो कोई आकार बनता है ||



सदा आदर करें गुरु का जो जाने सार भवसागर |

बिना जिसके भटकता है जहाँ हर बार भवसागर||

जलाये ज्ञान का दीपक जगाकर चेतना मन मे |

मिटाकर दोष जीवन का कराये पार भवसागर ||



मनुष्यों का मिलन जगदीश से गुरुवर कराते हैं|

नहीं जब सूझता कुछ हो नजर गुरुदेव आते हैं||

सखा बनते कभी हैं वो… Continue

Added by नाथ सोनांचली on July 9, 2017 at 6:11pm — 18 Comments

जरा जी कर देखें ...

चलो

जिन्दगी को

ज़रा करीब से देखें

दर्द को ज़रा

महसूस करके देखें

क्या खबर

कोई लम्हा

अपना सा मिल जाए कहीं

चलो

उस लम्हे को

जरा जी कर देखें//

जिन चेहरों पे हंसी

बाद मुद्दत के आई है

जिन आँखों में

अब सिर्फ और सिर्फ तन्हाई है

जिस आंगन में

धूप अब भी

सहमी सहमी आती है

उस आंगन के

प्यासे रिश्तों से

जरा रूबरू होकर देखें

चलो!

जिन्दगी को

जरा जी कर देखें//

हमारे अहसास

किसी…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 9, 2017 at 4:30pm — 10 Comments

नई सदी का मर्द (लघुकथा)/ शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"देखो तो, कैसा इतरा-इतरा कर नाच रहा है!"

"हाँ, उस मोरनी को देखकर!"

"नहीं, हमें देखकर इतरा रहा है!" सारस ने अपनी टांगों को ज़मीन पर आड़े-तिरछे पटकतेे हुए हंस से कहा।



"बस कुछ ही महीने तो सुंदर दिखता है, फिर भी इंसानों के दिलों में राज करता है!" यह कहते हुए ईर्ष्यालू हँस ने नदी में गोता सा लगाया।



"हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होती, यह जानते हुए भी!" हंस की बात पर सारस ने कटाक्ष किया।



"आकर्षक तो हम भी हैं, लेकिन न तो हमारा मेकअप इस तरह होता है, न ही हमें ऐसा… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 9, 2017 at 10:50am — 5 Comments

लघुकथा

गुरु की जीत



आज फिर मोहन सर ने क्लास में अनुराग से प्रश्न पूछा था ,उसके जवाब न देने पर वो उसे डाँटने लगे थे ।अनुराग ने डरते हुए कहा ,"सर अभी ये सवाल आपने करवाया नहीं है । "सर ने कहा "चुप चाप खड़े रहो बहस मत करो ।"अनुराग ने अपनी बड़ी २ आँखो से ऐसे देखा ,जैसे पूछ रहा हो आप हमेशा बिना किसी ग़लती के मुझे क्यों डाँटते रहते है । मोहन सर जब इस स्कूल में नये आए थे तो अनुराग की आँखे उन्हें किसी की याद दिला रही थी । उन्होंने उस से उसके पापा का नाम पूछा था । उनका अंदाज़ा सही था वो उनके कॉलेज के… Continue

Added by Barkha Shukla on July 9, 2017 at 9:09am — 12 Comments

दुमदार दोहे --

1-

कौन सुखी संसार में, जिसे न हो व्यवधान।

होती बुद्धि विवेक से, हर मुश्किल आसान।।

निरापद किसको देखा।।

2-

विपदा हो जब सामने, मुश्किल में हो जान।

ऐसे में हिम्मत रखें, सँग में प्रभु का ध्यान।।

आपदा टल जाएगी।।

3-

मुश्किल का मिलता नहीं, जब कोई भी तोड़।

अंदर ही अंदर वही, लेती रक्त निचोड़।।

आदमी घुटता रहता।।

4-

होती मुश्किल वक्त में, रिश्तों की पहचान।

सब दिन होते हैं नहीं, हरदम एक समान।।

परख सबकी हो जाती।।

5-

चुप रहकर… Continue

Added by Hariom Shrivastava on July 8, 2017 at 11:46pm — 7 Comments

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