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पढ़ा हुआ पाठ

"आ गए साहबजादे!" माँ के चुप रहने के इशारे के बाद भी शाम ढ़ले घर में घुसते ही, उसके पिता का बड़बड़ाना शुरू हो गया। "जाने कहाँ आवारागर्दी करता फिरता है ये लड़का सारा दिन।"



"कुछ गलत न करे है मेरा बेटा, अब किताबों में भी कितनी मगजमारी करे, कुछ देर दोस्तों में गुजार आवे है तो हर्ज ही क्या है?" माँ ने उसकी तरफदारी की कोशिश की।



"तो वही जाहिल लोग रह गए है दोस्ती के लिए।" पिता ने माँ को भी डांट की लपेट में ले लिया।



"पिताजी, अब ऐसे भी जाहिल न है वे लोग।" वह चुप न रह… Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on July 3, 2017 at 10:39am — 6 Comments

गरीबी - उपचार -- डॉo विजय शंकर

किसी ने गरीब को
एक जोड़ी चप्पल दिला दी
किसी ने भूखे को एक वक़्त
शानदार रेस्त्रां में रोटी खिला दी ,
रेस्त्रां के मालिक ने
खाने के पैसे नहीं लिए
कहा , मानवता के पैसे नहीं लगते ,
कुछ इस तरह एक छोटे गरीब ने
एक बड़े गरीब की गरीबी मिटा दी ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on July 3, 2017 at 10:12am — 12 Comments

हृदय-सम्बन्ध .... क्षणिकाएँ

१.

अर्थहीन प्रश्नों के

चकरदार अर्थ

अर्थहीन न तो क्या होंगे

घेर लेते हैं मुझको

छेड़ी हुई मधुमक्खियों की तरह

अब मुंद जाने दो आँखें

बन्द कर दो किवाड़

             -----

२.

कोमल पत्तों पर अटकी

प्रांजल बूँदें ...

अपनी ही गढ़ी हुई 

वेदना का विस्तार

शायद ... तुम ...

मन के गहरे में कुछ

पल्लवित होना चाहता है

            -----

३.

कभी ऐसा भी तो होता…

Continue

Added by vijay nikore on July 3, 2017 at 8:29am — 14 Comments

किसान /मुक्तक

(1) सूखा हुआ किसान को दाना बना दिया ,
फिर ख़ुदकुशी का एक बहाना बना दिया ,
अब कहते अन्नदाता उसे शर्म आती है ,
भूख और मुफ़लिसी का तराना बना दिया ।
(2) अरमानों को कफ़न में सजाता किसान है,
अब ख़ुद ही अपनी लाश उठाता किसान है,
गोली पुलिस की खाए कि फ़ाकों से वो मरे,
मय्यत का रोज़ जश्न मनाता किसान है ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Mohammed Arif on July 2, 2017 at 11:00pm — 10 Comments

रिश्ता (कविता)

प्यार चाहे कोई रिश्ता
कोई चाहे दिखावा

कहीं होता व्यापार रिश्तों का
कहीं ढ़ोल है पीटे जाते

कभी निकल जाता है जीवन
ताना बाना बुनने में

एक शब्द है पर
अर्थ है कितने


रिश्तों की तरह
अद्भुत , अटल सत्य की तरह

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 2, 2017 at 11:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल

*221 2121 1221 212*



किस्मत ने उस के साथ करिश्मा नहीं किया ।

जिसने कभी वफ़ा से किनारा नहीं किया ।।



रहना पड़ा उसी के बज़्म में तमाम उम्र ।

जिसने हमारा साथ गवारा नहीं किया ।।



कितनी मिली जफ़ा है मुहब्बत के वास्ते ।

तुमने कभी हिसाब पे चर्चा नहीं किया ।।



कानून पास हो चुके मुद्दों के नाम पर ।

किसने कहा करों में इजाफा नहीं किया ।।



लुटती है आबरू जो सरेआम शह्र में ।

कहते हैं लोग हुस्न पे परदा नहीं किया ।।



शायद कोई ख़ता… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on July 2, 2017 at 4:15pm — 8 Comments

कुण्डलिया छंद - (जी एस टी पर)

1-

आया है जी एस टी, ऐसा एक विधान।

सुगम रहेगा टैक्स यह, मिटे सभी व्यवधान।।

मिटे सभी व्यवधान, प्रणाली सरल रहेगी।

फैलेगा व्यापार, चैन की गंग बहेगी।।

कर की दरें समान, हटा जाँचों का साया।

भारत भर में आज, एक ऐसा कर आया।।

2-

सारी जनता खुश हुई, जागी आधी रात।

लगता है जी एस टी, बदलेगा हालात।।

बदलेगा हालात, यही कहकर भरमाया।

ऐसे खुश हैं लोग, लगा जैसे कुछ पाया।।

बना दिया माहौल, प्रचारित करके भारी।

देना होगा टैक्स, मगर खुश जनता… Continue

Added by Hariom Shrivastava on July 2, 2017 at 12:30am — 5 Comments

पिता--लघुकथा

घर के बाहर ही जब उसने अपने चचेरे भाई रग्घू को देखा तो उसका माथा ठनका| आज यह घर क्यों आया था, जरूर कुछ गड़बड़ होगी, वर्ना पिताजी को गुजरे इतने साल हो गए, कभी हाल पूछने भी नहीं आया था| उसकी मुस्कराहट को नजरअंदाज करते हुए वह भागती हुई घर में घुसी|

"माँ, माँ, कहाँ है तू", सामने माँ नजर नहीं आयी तो वह बेचैन हो गयी| जल्दी से उसने पिछले कमरे में प्रवेश किया तो माँ को खाट पर बैठे पाया|

"तू यहाँ बैठी है और जवाब भी नहीं दे रही है, मैं तो घबरा गयी थी| आज रग्घू क्यों आया था घर, तूने तो नहीं…

Continue

Added by विनय कुमार on July 2, 2017 at 12:30am — 4 Comments

आजादी(लघुकथा)

जंगल आजाद हुआ।पशु-पक्षियों को शासन की कमान मिली।आदमी काफी दूर निकल चुके थे। नृत्य-कला की प्रवीणता से मोर को सबसे बड़ी कुर्सी मिली।विभिन्न जानवरों और परिंदों को मंत्री पद मिले।लक्ष्मी जी की सवारी को वित्त का जिम्मा सौंपा गया।खान-पान के सामान और महंगे हो गये।लूट तरक्की का सामान बन गयी।छोटे-छोटे जीवों की बचत बड़े-बड़े दिग्गज जानवर गटकने लगे।माद्दा होता कर्ज लेने का,फिर सारी राशि हड़प जाने का।उधर सरकारी ऐलान होता कि तिजोरी खाली है,जनता सरकार का का सहयोग करे।खर्च कम करे,कर चुकाये।उधर जंगल(देश-जनता) की… Continue

Added by Manan Kumar singh on July 1, 2017 at 9:29pm — 12 Comments

मजाक ( लघुकथा )

कहो बिरजू कैसे आये ? वह भी सवेरे-सवेरे’

 बिरजू रैदास हमारे यहाँ हलवाही का कार्य करते थे. खेती के नए उपकरण आ जाने और उम बढ़ जाने से उन्होंने अब यह कार्य छोड़ दिया था.

‘मलकिन, बिटिया की शादी तय कर दी है. अब आप से कुछ मदद होइ जाय ?’

‘अच्छा तो दिविया इतनी बड़ी हो गयी , जरूर-जरूर हमारी भी तो बेटी ही है’ –मैंने सकुचाते हुए उसे तीस ह्जार का चेक दिया.

‘जुग-जुग जियो मलकिन. बिटिया तरक्की करे‘ -वह आशीर्वाद देकर चला…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 1, 2017 at 12:00pm — 8 Comments

शायरी चीज़ ही ऐसी है यार (ग़ज़ल)

2122 1122 22



हर घड़ी? चीज़ ही ऐसी है यार..!

शायरी चीज़ ही ऐसी है यार..!



तिश्नगी और भड़क जाती है,

उफ़! नदी चीज़ ही ऐसी है यार..!



कोई हँसता है, कोई रोता है

ज़िन्दगी चीज़ ही ऐसी है यार..!



चाँद का नूर भी फीका पड़ जाए

सादगी चीज़ ही ऐसी है यार..!



लो! हुआ मैं भी अब आदम से मशीन

नौकरी चीज़ ही ऐसी है यार..!



साथ अश्क़ों के गुज़रती है उम्र

आशिक़ी चीज़ ही ऐसी है यार..!



सारा दरिया पी के भी बाक़ी है

तिश्नगी चीज़ ही… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on June 30, 2017 at 11:38pm — 1 Comment

ग़ज़ल --- बचपन था कोई झौंका सबा का बहार का ( दिनेश कुमार )

221____2121____1221____212



बचपन था कोई झौंका सबा का बहार का

लौट आए काश फिर वो ज़माना बहार का



खिड़की में इक गुलाब महकता था सामने

बरसों से बन्द है वो दरीचा बहार का



ख़ुशबू सबा की, ताज़गी-ए-गुल, बला का हुस्न

दिल के चमन को याद है चेहरा बहार का



अर्सा गुज़र गया प लगे कल की बात हो

उस बाग़े-हुस्न में मेरा दर्जा बहार का



दौरे-ख़िज़ाँ में दिल के बहलने का है सबब

आँखों में मेरी क़ैद नज़ारा बहार का



कलियाँ को बाग़बाँ ही… Continue

Added by दिनेश कुमार on June 30, 2017 at 8:08pm — 6 Comments

भाई बैरी से मिलके भाई को मार डाले |

२२     २२    २२    २२   २२   २२  २२ 
भाई  बैरी  से मिलके भाई को मार डाले |
जिस ने नाजों से पाला उसको ही जार डाले | 
अनबन गर कभी हो जाये बोले ना  भाई से     , 
जलता है दिल में  जैसे…
Continue

Added by Shyam Narain Verma on June 30, 2017 at 6:14pm — 3 Comments

21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर विशेष

21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर विशेष.....



प्रतिदिन योग करे जो कोई,

वो रोगों से दूर रहे,

तन मन में स्फूर्ती आये ,

चेहरे पेे चमकता नूर रहे,

जो सुबह सुबह भस्त्रिका करे,

और शुद्ध वायु तन मन में भरे,

जो करे नित्य प्रति शशकासन,

उत्साह से वो भरपूर रहे,

अनुलोम विलोम , कपालभाति,

सुखमय जीवन की थाती है,

ना उदर रोग ना तन मन में,

कोई पीड़ा रह पाती है,

रह खाली पेट करें योगा ,

बस इतना ध्यान जरूर रहे.

हो नाम देश का ऊँचा…

Continue

Added by Ajay Kumar Sharma on June 28, 2017 at 9:30pm — 2 Comments

दोहे

सुंदर चितवन उर बसे ,सुंदर सुंदर नैन ।

मृगनैनी को देखकर खोया खोया चैन ।।



अलक छटा बिखरी हुई यौवन पर मधुमास ।

मेघ तृप्त करने चला शुष्क धरा की प्यास ।।



श्वास श्वास में दीर्घता ,अग्नि हुई उच्छ्वास ।

दहकी सारी देह है ,प्रियतम तेरे पास ।।



ज्वाला मुखरित जब हुई,प्रणय बना उन्माद ।

प्रिय के स्वर करते गए,जीवन भर अनुनाद ।।



प्रियतम का है आगमन ,मन में हाहाकार ।

दर्पण पर होने लगी ,प्रश्नों की बौछार ।।



क्षण प्रतिक्षण वह…

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Added by Naveen Mani Tripathi on June 28, 2017 at 4:00pm — 6 Comments

ईद का तोहफ़ा – लघुकथा –

ईद का तोहफ़ा – लघुकथा –

"चलो ना बाबा, देर हो रही है। मेरा दोस्त इंतज़ार कर रहा होगा, उसके लिये तोहफ़ा भी लेना है"

रघु के छह साल के नाती ने जैसे ही रघु के सामने अपने दोस्त के घर ईद की बधाई देने जाने की ज़िद की तो उसके सामने   पचास साल पहले की वह घटना चलचित्र की तरह घूम गयी।

रघु उस समय छटी कक्षा में था।  असलम भी उसी के साथ पढ़ता था। उस दिन ईद के कारण स्कूल की  छुट्टी थी। शाम को सब बच्चे खेल रहे थे कि तभी इंदर ने सुझाव दिया कि चलो असलम को ईद की बधाई देकर आते हैं। सब इकट्ठे होकर…

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Added by TEJ VEER SINGH on June 28, 2017 at 11:15am — 14 Comments

दुमदार दोहे --

जिसको जो मिलता नहीं, वही लगे बस खास।
वह सब लगता तुच्छ सा, जो है जिसके पास।।
कभी संतुष्टि न होती।

जीवनभर होता नहीं, इच्छाओं का अंत।
जो इनको वश में करे, उसे मानिए संत।।
सुखी रहता संतोषी।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**

Added by Hariom Shrivastava on June 27, 2017 at 11:44pm — 10 Comments

दुःख और सुख-- लघुकथा

"लकवा मार गया है, अब बिस्तर पर ही रहना पड़ेगा इसको| शायद मालिश और दवा से कुछ फायदा हो और चलने फिरने लायक हो जाए कुछ दिन में", डॉक्टर ने एक कागज पर कुछ दवा लिखा और बाहर निकलने लगा|

"हस्पताल में भर्ती कराने से कुछ फायदा होगा क्या डॉक्टर साहब", बिटिया ने पूछा|

"कह नहीं सकता, हो भी सकता है", कहकर डॉक्टर निकल गया|

"माँ, बापू को हस्पताल ले चलते हैं, शायद ठीक हो जाए", बिटिया ने माँ की तरफ देखते हुए कहा|

उसने एक बार खाट पर पड़े लल्लू को देखा और फिर अपनी कमर में बंधे गांठ से कुछ…

Continue

Added by विनय कुमार on June 27, 2017 at 11:41pm — 10 Comments

ग़ज़ल-करना ख़ुद की वाह वाह ठीक नहीं

करना ख़ुद की वाह वाह ठीक नहीं
बात यह आलमपनाह ठीक नहीं।

.
राहे मंज़िल के हों निशां ज़्यादा
मुझको लगती वो राह ठीक नहीं।

.
कैसे इंसाफ़ मिले मुलजिम को
हो जो मुंसिफ़, गवाह ठीक नहीं।

.
चश्मे बातिन अता है औरत को
किसकी कैसी निगाह ठीक नहीं।

.
हो भी जाने दो अब रिहा इसको
इतनी भी जब्ते आह ठीक नहीं।

.
"अश्क" रंज़ो अलम से घबरा कर
मैक़शी में पनाह ठीक नहीं।

स्व-रचित एवं अप्रकाशित

Added by dinesh malviya "Ashk" on June 27, 2017 at 8:00pm — 5 Comments

ग़ज़ल --ईद (ईद मुबारक बोल के फिर हम ईद मनाएंगे यारो )

ग़ज़ल --ईद (ईद मुबारक बोल के फिर हम ईद मनाएंगे यारो )

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(बह्र हिन्दी --मुत्क़ारिब ,मुसम्मन ,मुज़ायफ )

रस्म गले मिलने की निभा कर हाथ मिलाएंगे यारो |

ईद मुबारक बोल के फिर हम ईद मनाएंगे यारो |

ख़ुद ही निकल जाएगी पुरानी सारी कड़वाहट दिल की

आज सिवैयाँ घर पे तुम्हें हम इतनी खिलाएंगे यारो |

सदक़ा और फितरे से ही यह अपनी ईद मनाते हैं

ईद के इस अहसान को मुफ़लिस कैसेभुलाएंगे यारो…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on June 27, 2017 at 3:58pm — 14 Comments

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