Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 27, 2017 at 11:54am — 11 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 27, 2017 at 12:01am — 10 Comments
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on June 26, 2017 at 10:38am — 15 Comments
22 22 22 2
सुख दुख में सम रहता हूँ।
मैं दरिया सा बहता हूँ।।
कह कर सच्ची बात यहाँ।
तंज़ सभी के सहता हूँ।।
मिट्टी की इस दुनिया में।
मिट्टी जैसे रहता हूँ।।
जैसे को तैसा मिलता।
सच यह सबको कहता हूँ।।
तल्ख़ हक़ीक़त दुनिया की।
रोज ग़ज़ल में कहता हूँ।।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by surender insan on June 26, 2017 at 12:00am — 6 Comments
ज़िंदगी के सफ़हात ...
हैरां हूँ
बाद मेरे फना होने के
किसी ने मेरी लहद को
गुलों से नवाज़ा है
एक एक गुल में
गुल की एक एक पत्ती में
उसके रेशमी अहसासों की गर्मी है
नाज़ुक हाथो की नरमी है
कुछ सुलगते जज़्बात हैं
कुछ गर्म लम्हों की सौगात है
काश
तुम मेरे शिकवों को समझ पाते
जलते चिराग का दर्द समझ पाते
मेरी पलकों को
इंतज़ार की चौखट में
कैद करने वाले
कितना अच्छा होता
साथ इन गुलों के
तुम भी आ जाते…
Added by Sushil Sarna on June 25, 2017 at 9:30pm — 4 Comments
२२१ १२२१ १२२१ १२२
पिस्तौल-तमंचे से ज़बर ईद मुबारक़
इन्सान पे रहमत का असर, ईद मुबारक़
पास आए मेरे और जो ’आदाब’ सुना मैं
मेरे लिए अब आठों पहर ईद मुबारक़
हर वक़्त निग़ाहें टिकी रहती हैं उसी दर
पर्दे में उधर चाँद, इधर ईद मुबारक़ !
जिस दौर में इन्सान को इन्सान डराये
उस दौर में बनती है ख़बर, ’ईद मुबारक़’ !
इन्सान की इज़्ज़त भी न इन्सान करे तो
फिर कैसे कहे कोई अधर ईद मुबारक़ ?
जब धान उगा कर मिले…
Added by Saurabh Pandey on June 25, 2017 at 3:30pm — 28 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on June 25, 2017 at 3:28pm — 6 Comments
Added by Mohammed Arif on June 25, 2017 at 9:30am — 10 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on June 24, 2017 at 8:33pm — 10 Comments
" बहुत अच्छा करती हो जो अब गोष्ठियों में आने लगी हो , अच्छा लगा आपको यहाँ देखकर । " एक वरिष्ठ साहित्यकार ने एक महिला से कहा ।
" जी नमस्ते सर , नहीं ऐसा कुछ नहीं है , समय अनुसार आ जाती हूँ , विविध रचनाकारों को सुनने का अवसर मिल जाता है । " उस महिला ने उत्तर दिया ।
" ओह तो श्रोता बनकर आती हो ? "
" जी , वैसे सुना है आज कल श्रोता नहीं मिलते ? जो भी आते है उन सभी को मंच की लालसा होती है । "
" बिलकुल सही कह रहीं हैं आप", अट्हास लेते हुए उन्होंने अपने साथी की तरफ देखते हुए कहा , एक…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 24, 2017 at 2:30pm — 11 Comments
खाला अपने रसोई में लगी हुई थीं, अब रमजान महीने के बस दो ही दिन तो बचे थे और अलीम बड़के शहर से आज ही आ रहा था. सबेरे सबेरे उन्होंने पड़ोसी मियां की दूकान से एक बार फिर लगभग गिड़गिड़ाते हुए सामान ख़रीदा था. अभी पिछले महीने का भी पूरा पैसा दिया नहीं था उन्होंने तो उम्मीद कम ही थी कि सामान मिल ही जायेगा. लेकिन एक तो उन्होंने बेटे के आने की खबर सुना दी थी और दूसरे आने वाली ईद, मियां ने थोड़े ना नुकुर के बाद सामान दे दिया.
"देखो खाला, इस बार अगला पिछला सब हिसाब चुकता हो जाना चाहिए, मेरे भी बाल बच्चे…
Added by विनय कुमार on June 24, 2017 at 1:03pm — 10 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on June 24, 2017 at 11:15am — 2 Comments
सांसारिक स्वार्थग्रस्त प्रक्रियाओं से घबराकर
मुझसे ही कतराकर
चल बसी थी अकुलाती मेरी आस्था
उसके अंतिम संस्कार से पहले
टूटे विश्वास से फूटी तो थी रक्तधार
पर यह तो सदियों पुरानी बात है
समझ में न आए
कुलाँचते ख्यालों की अदृश्य रगों में
आज इतनी तपिश क्यूँ है
यादों के घावों को चोंच मार
छील गया कोई कैसे
कब से यहाँ जब कोई पास नहीं है
मेरी ही आन्तरिक कमज़ोरी को जानकर
तकलीफ़ भरे धूल…
ContinueAdded by vijay nikore on June 24, 2017 at 7:30am — 19 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 23, 2017 at 7:30pm — 8 Comments
पीते हैं ...
सब
कुछ न कुछ
पीते हैं //
रजनी
सांझ को
पी जाती है
और सहर
रजनी को
फिर सांझ
सहर को
सच
सब
कुछ न कुछ
पीते हैं //
अंत
आदि को
पंथ
पथिक को
संत
अनंत को
घाव
भाव को
सच
सब
कुछ न कुछ
पीते हैं //
नयन
नीर को
नीर
पीड़ को
समय
प्राचीर को
सरोवर
तीर को
सच
सब
कुछ न कुछ
पीते हैं…
Added by Sushil Sarna on June 23, 2017 at 7:22pm — 4 Comments
मैं पहुंचा ही था कि मुझे अपने घर से दो अजनबी लड़के निकलते हुए दिखाई दिए. इससे पहले कि मैं उनकी बाबत कुछ जान पाता. वे बाईक पर बैठकर रफ्फूचक्कर हो गये.
दरवाजे पर बेटा खडा था. मैंने उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा तो उसने बताया कि डोमेस्टिक गैस सर्विस’ से आये थे .यह वही गैस सर्विस थी जहां से मेरे घर एल पी जी सिलिंडर आता है.
‘क्यूँ आये थे ?’- मैंने यूँ ही पूंछ लिया.
‘अपना गैस स्टोव चेक करने आये थे ?’
‘ स्टोव-------मगर क्यों ?’ मैं हैरत में पड़ गया –‘ जब चूल्हा…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 23, 2017 at 7:09pm — 6 Comments
सौगंध के बंधन ....
मुझे
सब याद है
समय की गर्द में
कुछ भी तो नहीं छुपा
न तुम
न तुम्हारी
आँखों में आंखें डालकर
सात जन्मों तक
साथ निभाने की
सौगंध
चलते रहे
चलते रहे
साथ साथ
इक दूजे के दिल में
पुष्प भाव से गुंथे हुए
अर्थपूर्ण तृषा
और अर्थपूर्ण तृप्ति की
अभिलाष के साथ
इक दूसरे के
अंतर्मन को छूते हुए
कब यथार्थ की नदी पर
एक किनारे ने
दूसरे किनारे को जन्म…
Added by Sushil Sarna on June 23, 2017 at 4:21pm — 8 Comments
Added by Manan Kumar singh on June 23, 2017 at 8:53am — 3 Comments
अनकहा ...
कुछ तो
रहने दिया होता
मन की कंदराओं में
करवटें लेता
कोई भाव
अनकहा
क्या
ज़रूरी था
स्मृति पृष्ठ की
यादों को
नयन तीरों का
पता देना
आखिर
पता लग गया न
ज़माने को
सब कुछ
जो दबा के रखा था
दिल में
इक दूजे से
बांटने के लिए
सांझा दर्द
अनकहा
सांझ
कब तलक
तिमिर को रोकती
प्रतीक्षा की रेशमी डोरी
प्रभात की तीक्षण रश्मियों से…
Added by Sushil Sarna on June 21, 2017 at 3:25pm — 8 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on June 21, 2017 at 1:49pm — 15 Comments
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