२१२२/११२२/११२२/२२
कब चुना हमने मुसलमान या हिन्दू होना
न तो माँ बाप चुनें और न घर ही को चुना
हम ने ये भी न चुना था कि बशर हो जायें.
हम को इंसान बना कर था यहाँ भेजा गया,
कैसे मज़हब के कई ख़ानों में तक्सीम हुए?
क्यूँ सिखाये गए हम को ये सबक नफरत के?
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हम ने दहशत से परे जा के बुना इक सपना
अपनी दुनिया न सही, काश हो आँगन अपना
ऐसा आँगन कि जहाँ साथ पलें राम-ओ-रहीम.
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जुर्म ये था कि जलाया था अँधेरों में चराग़
हम ने नफ़रत की हवाओं के…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 14, 2017 at 9:30pm — 8 Comments
दूर से ढोल मजीरे की ताल पर हुरियारों की आवाज आ रही थी – ‘अवध माँ राना भयो मरदाना कि हाँ--- हाँ -----राना भयो मरदाना ‘
हाथ में पिचकारी लिए एक युवक ने किसी वृद्ध से पूंछा – ये राना कौन है ? कौनो बड़े हुरियार थे का जो इनके नाम की होरी गाई जा रही है.’
बुजुर्ग ने आश्चर्य से युवक की और देखा और कहा –‘तुम का पढ़े हो, तुम्हे अपने बैसवारे का इतिहास भी नहीं मालूम. अरे राना यहीं शंकरपुर के ताल्लुकेदार थे, जिन्होंने सन सत्तावन की क्रान्ति में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी और आखिर तक…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 14, 2017 at 9:12pm — No Comments
छन्न पकैया छन्न पकैया ,बोले मीठी बोली ।
गाँवों , बाग़ो़ं गलियों छाई , टेसू की रंगोली ।।
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छन्न पकैया छन्न पकैया , देखो, खिलता पलाश ।
पागल मतवाले भँवरों को , कलियों की है तलाश ।।
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छन्न पकैया छन्न पकैया , टेसू मन को भाया ।
मतवाला, दीवाना, पागल, भँवरा भी इठलाया ।।
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छन्न पकैया छन्न पकैया , उड़ता अबीर-गुलाल ।
यारों, संगी-साथी मिलकर ,करते मस्ती धमाल ।।
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छन्न पकैया छन्न पकैया , पलाश के हैं झूमर ।
मौसम, यौवन, कलियाँ…
Added by Mohammed Arif on March 14, 2017 at 7:00pm — 7 Comments
"साहेब, कोई पुराना चद्दर हो तो दे दीजिये । बहुत ठंढा गिरने लगा है । कोई पुराना चद्दर दे दीजिये ।"
यूं तो वर्किंग डे पर रात के किसी भी आयोजनों में जाने का प्रोग्राम कम ही बनता है । लेकिन फिर भी कभी-कभी कुछ ऐसे मौके भी आ ही जाते हैं जब इस तरह के किसी आयोजन में जाना पड़ जाता है । ऐसे ही एक आयोजन को अटेण्ड कर वापस आते-आते रात के साढ़े ग्यारह बज गए । गोल्फ कोर्स मेट्रो स्टेशन से घर तक जाने के लिए आटो…
ContinueAdded by Neelam Upadhyaya on March 14, 2017 at 4:23pm — 4 Comments
नई शुरुआत-----
जो हो चुका सो हो चुका,
तुम इक नई शुरुआत करो.
हर चीज बदलती है,
अपनी आखिरी साँस के साथ,
तुम फिर से कोई जुदा बात करो.
उजड़ गया गर शहरे-आलम सारा,
तुम फिर नया अहसास…
ContinueAdded by Naval Kishor Soni on March 14, 2017 at 12:15pm — 3 Comments
सरसी छंद
वृन्दावन की ले पिचकारी,बरसाने का रंग|
अंग अंग धो डालो पीकर ,महादेव की भंग|
राधा जैसी पावनता ले ,कान्हा जैसा प्यार|
बरसाओ पावन रंगों की ,रिमझिम मस्त फुहार|
चन्दा से लेकर कुछ चाँदी ,औ सूरज से स्वर्ण|
केसर की क्यारी से चुनकर ,केसरिया नव पर्ण|
सच्चाई मन की अच्छाई ,साथ मिलाकर घोट|
पावन रंग बनाना सच्चा ,नहीं मिलाना खोट|
द्वेष क्लेश से मैले मुखड़े ,जग में मिलें अनेक|
भूल हरा केसरिया आओ ,हों जाएँ सब…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 13, 2017 at 7:29pm — 14 Comments
प्रतिशोध - लघुकथा –
"मोहन बाबू, पूरा मोहल्ला बाहर होली खेल रहा है। आप सारे परिवार के साथ घर में ही हैं"।
" सुखराम जी, हम लोग होली नहीं खेलते"।
"कोई खास कारण"?
"हाँ, कुछ ऐसा ही समझ लीजिये"।
"अगर बुरा ना लगे तो क्या मैं जान सकता हूँ"?
"पूरा मोहल्ला जानता है, आप भी जान जाओगे, अभी नये नये आये हो"।
"क्या आप को बताने में ऐतराज़ है"?
"ऐसी तो कोई बात नहीं है, आइये"।
दोनों पड़ोसी बैठ गये।
"सुखराम जी मेरी तीन बेटियाँ थीं। सबसे…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 13, 2017 at 6:30pm — 12 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on March 13, 2017 at 2:53am — 3 Comments
पानी वाला बादल हो ,
नदियों में फिर हलचल हो ।
गाँवों की पनघट पे अब ,
फिर से बजती पायल हो ।
झूठे वादों से ऊपर ,
कोई तो ऐसा दल हो ।
जिसमें राहत हो सबको ,
आने वाला वो कल हो ।
सारे दुख सह जाऊँ मैं ,
सर पे माँ का आँचल हो ।
साफ़ हवा पानी पायें ,
पेड़ों वाला जंगल हो ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Mohammed Arif on March 12, 2017 at 1:30pm — 3 Comments
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on March 12, 2017 at 1:22pm — 3 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 10, 2017 at 9:30pm — 14 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 9, 2017 at 9:59pm — 6 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 9, 2017 at 8:30pm — 4 Comments
महिला दिवस पर रचित दोहे -
मही रूप देवी धरे, धैर्य गुणों की खान
साहस की प्रतिमूर्ति भी, नारी को ही मान |
सृष्टि सृजनकर्ता यही,यही मही का अर्थ,
रणचण्डी भी बन सके, नारी सभी समर्थ ।
महिला से महके सदा,घर आँगन में फूल
वही सजाती घर सदा, मौसम के अनुकूल ।
जीवन के हर रूप में, नारी मन उपहार,
आलोकित जीवन करे, खुशियों के…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 9, 2017 at 4:30pm — 4 Comments
Added by Arpana Sharma on March 9, 2017 at 3:04pm — 2 Comments
विश्व महिला दिवस - लघुकथा –
सुक्कू बाई आज फिर लेट हो गयी थी इसलिये डरते डरते मिसेज सिन्हा के घर में घुसी। सारा घर साफ़ सुथरा दिख रहा था। रसोईघर में सब वर्तन धुले हुए करीने से लगे थे। बाथरूम में देखा मैले कपड़ों का ढेर भी गायब था। लॉन में गयी तो देखा बाहर धुले कपड़े सूख रहे थे । उसने सोचा कि उसके रोज रोज लेट आने और नागा करने से परेशान होकर मैम साब ने दूसरी बाई रख ली।
मैम साब पूजा घर में थी। मैम साब बाहर निकली और सीधे रसोईघर में चली गयीं। थोड़ी देर बाद ट्रे में चाय और…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 9, 2017 at 1:02pm — 8 Comments
आशिक़ तू आशिक़ी से पहले, करना ज़रूर गौर,
इश्क़ की राह मे आया है नया दौर,
हाथो मे हाथ लिए निकले तो थे,
हमराह बनकर भी तू, चला गया कहीं और.
क्यूँ किया तूने, ये तू क्या कर गई,
बिना कुछ किए ही मेरी जान ले गई....
लफ़्ज़ों की एहमियत को, तू ना समझ पाया,
जाने के बाद मेरे, मैं तुझे याद आया,
की थी क्या ख़ाता मैने, जो तूने था मुंह मोड़ा,
काँच से भी बदतर, तूने दिल मेरा है तोड़ा.
क्यूँ किया तूने, ये तू क्या कर गई,
बिना कुछ किए ही मेरी जान ले…
Added by M Vijish kumar on March 9, 2017 at 10:00am — 2 Comments
Added by Mahendra Kumar on March 8, 2017 at 8:30pm — 14 Comments
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है हर सू फ़क़त धूप,साया कहाँ है?
ये आख़िर मुझे इश्क़ लाया कहाँ है!
अमीरी को अपनी दिखाया कहाँ है?
तुम्हें शह्र-ए-दिल ये घुमाया कहाँ है?
अभी सहरा में एक दरिया बहेगा
अभी क़ह्र अश्क़ों ने ढाया कहाँ है?
अभी देखिएगा अँधेरों की हालत
उफ़ुक़ पर अभी शम्स आया कहाँ…
ContinueAdded by जयनित कुमार मेहता on March 8, 2017 at 3:30pm — 6 Comments
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on March 8, 2017 at 10:30am — 10 Comments
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