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All Blog Posts (19,126)

गर्व ....

गर्व ....

रोक सको तो

रोक लो

अपने हाथों से

बहते लहू को

मुझे तुम

कोमल पौधा समझ

जड़ से उखाड़

फेंक देना चाहते थे

मेरे जिस्म के

काँटों में उलझ

तुमने स्वयं ही

अपने हाथ

लहू से रंग डाले

बदलते समय को

तुम नहीं पहचान पाए

शर्म आती है

तुम्हारे पुरुषत्व पर

वो अबला तो

कब की सबला

बन चुकी ही

जिसे कल का पुरुष

अपनी दासी

भोग्या का नाम देता था

देखो

तुम्हारे…

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Added by Sushil Sarna on April 28, 2017 at 5:00pm — 6 Comments

यकीं के बाम पे ...



यकीं के बाम पे ...

हो जाता है

सब कुछ फ़ना

जब जिस्म

ख़ाक नशीं

हो जाता है

गलत है

मेरे नदीम

न मैं वहम हूँ

न तुम वहम हो

बावज़ूद

ज़िस्मानी हस्ती के

खाकनशीं होने पर भी

वज़ूद रूह का

क़ायनात के

ज़र्रे ज़र्रे में

ज़िंदा रहता है

ज़िंदगी तो

उन्स का नाम है

बे-जिस्म होने के बाद भी

रूहों में

इश्क का अलाव

फ़िज़ाओं की धड़कनों में

ज़िंदा रहता है

लम्हे मुहब्बत…

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Added by Sushil Sarna on April 28, 2017 at 2:05pm — 7 Comments

चला गया ये बचपन बनके यादों का बराती

शीर्षक : चला गया ये बचपन बनके यादों का बराती



" बचपन. .. के दिन हमने भी.. थे देखे

जवानी की रातें हमने भी.. हैं काटी ..

बलखा के गिरती .. वो लाखों पतंगे ,

डगमगा के चलती हुयी.. ये जवानी... |

फुदकता-उछलता .. मन वो हमारा ..

थिरकती दिलों पे.. ये अब की रवानी ,

कि पापा के कांधे पे गुजरा..वो ऑगन..

तकिये भिगोता अब के रातों का सावन |

माँ के आँचल.. तले बीते हुये वो लम्हें ..

कि कॉलेज.. मे होते वो नयन.. ईशारे ,

कि रंगों से दिवारों पे.. चित्रकारी… Continue

Added by Vivek Kumar on April 28, 2017 at 1:23pm — 3 Comments

मत भूल तुझमें रक्त का दौड़ता उबाल है

माना तेरा परिचय रूप है श्रंगार है.. पर,

मत भूल तुझमें रक्त का दौड़ता उबाल है |

सब पीर हैं तुझसे तृषित संसार की..

पर कैद सीने मे तेरे भी सहन का भण्डार है |

तू मूर्त है अभिमान की और गर्व भी अपार है,

तोड़ पैरों की बेड़ियाँ ये तेरा भी संसार है |

प्रेम की ओढ़े चुनरिया तू त्याग का गुबार है,

मत भूल तुझमें रक्त का दौड़ता उबाल है ||

गर जमीर तेरा साफ है तो जरूरत नही प्रमाण की,

कि दर्द तेरा हार और परिस्थिति श्रंगार है |

दुनिया ने देखी है तेरी सौंदर्य की…

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Added by Vivek Kumar on April 27, 2017 at 10:30pm — 2 Comments

बाल ग ज ल

22 22 22 22 2
ढ़ेरों रंगों के गोल टमाटर
होते हैं कितने लोल टमाटर!1

पककर वे लाल हुए जाते हैं
गिरते,कहते ले तोल, टमाटर।2

अपने अंदर हैं लौह-विटामिन
कहते,खा दिल खोल टमाटर।3

वे खूब चहकते हैं डालों पर
झूलते हैं झूला डोल टमाटर।4

झोंके लगते हैं जोर हवा के
गिरते हैं ढ़म -ढ़म ढ़ोल टमाटर।5
'मौलिक व अप्रकाशित'

Added by Manan Kumar singh on April 26, 2017 at 7:31pm — 3 Comments

ग़ज़ल--खुदा की कसम शायरी हो न पाई

ग़ज़ल

फ ऊलन -फ ऊलन- फ ऊलन- फ ऊलन 

.

ये हसरत मुकम्मल कभी हो न पाई।

मिले वह मगर दोस्ती हो न  पाई ।

मुलाक़ात का सिलसिला तो है जारी

मगर इब्तदा प्यार की हो न पाई ।

त अज्जुब है बदले हैं महबूब कितने

मगर काम रां आशिक़ी हो न पाई।

गए वह तसव्वुर से जब से निकल कर 

खुदा की क़सम शायरी हो न पाई ।

करें नफ़रतें भूल कर सब मुहब्बत

अभी तक ये जादूगरी हो न पाई ।

मुसलसल वो करते रहे बे…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on April 26, 2017 at 7:30pm — 8 Comments

"फाॅर्मलिटी" /लघुकथा :अर्पणा शर्मा

"देखिये, मेरे फ्लैट की रजिस्ट्री की सारी रकम आपके बताए सर्विस प्रोवाइड़र के खाते में भिजवा दी गई है , आज रजिस्ट्री की आखिरी तारीख है और अभी तक  आपने मेरे पेपर तैयार नहीं किये",

 सुबह -शाम बिल्ड़र के ऑफिस के चक्कर लगा-लगा कर त्रस्त हुए जयेश ने अंततः लगभग गिड़गिड़ा कर उसके मैनेजर से कहा।



"देखिए मिस्टर जयेश रजिस्ट्री की बाकी फाॅर्मेलिटी आपने पूरी नहीं की, आप मेरे साथ को-ऑपरेट नहीं करेंगे तो कैसे चलेगा" ,

बिल्ड़र के मैनेजर ने नितांत सधे हुए और सर्वथा व्यावसायिक लहजे में जयेश को… Continue

Added by Arpana Sharma on April 26, 2017 at 5:39pm — 4 Comments

लिस्ट में नाम (लघुकथा)

                                                       

 

लिस्ट में से नाम और पता लेकर अमर ने खुद को विजट पर जाने के लिए तैयार कर लिया मोटर साइकल स्टार्ट कर वो सलेमपुर की तरफ निकल पड़ा।

अपना प्रोग्राम उसने ऐसे तैयार किया था कि कम से कम तीन कैंसर पीड़ित मैंबर के किसी फैमली मैंबर से वह मिल सके ।

चलने से पहले लिस्ट क्रम में इक नंबर पर महिंद्र कौर के घर वालों की तरफ से दिए गए नंबर पर उसने फौन लगाया ऐसा करना इस लिए भी जरूरी था कि कोई घर मिल जाए खास करके वह आदमी…

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Added by मोहन बेगोवाल on April 25, 2017 at 5:13pm — 1 Comment

क़ैद रहा ...

क़ैद रहा ...

वादा
अल्फ़ाज़ की क़बा में
क़ैद रहा

किरदार
लम्हों की क़बा में
क़ैद रहा

प्यार
नज़र की क़बा में
क़ैद रहा

इश्क
धड़कनों की क़बा में
क़ैद रहा

कश्ती
ढूंढती रही
किनारों को
तूफ़ां
शब् की क़बा में
क़ैद रहा

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on April 25, 2017 at 5:00pm — 11 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
कितने अच्छे थे मेरा ऐब बताने वाले

2122 1122 1122 22/112

कितने अच्छे थे मेरा ऐब बताने वाले

वो मेरे दोस्त मुझे रस्ता दिखाने वाले



वक्त ने, काश! उन्हें रुकने दिया होता ज़रा

साथ ही छोड़ गए साथ निभाने वाले



मुफ़लिसी मक्र की छाई है सियाही अब भी

पर बताओ हैं कहाँ शम्अ जलाने वाले



अपने क़ातिल से शिकायत नहीं कोई मुझको

कर गए ग़र्क मेरी कश्ती, बचाने वाले



खूब तासीर नज़र आई मुहब्बत की यूँ

रो पड़े जाँ को मेरी फ़ैज़ उठाने वाले



एकता टूटने पाए न कभी, मसनद पर

आके बैठे…

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Added by शिज्जु "शकूर" on April 25, 2017 at 11:30am — 19 Comments

आशा का पौधा

एक पौधा हमने रोपा था

सात वर्ष पहले

सोचा था वह

बढेंगा , फूलेगा, फलेगा।

धीरे-धीरे

उसमें आया विकास का

बवंडर

जो हिला गया

चूल-चूल उस वृक्ष के

जिसके लिए हम सोच रहे थे

कि कैसे उसे जड़ से

उखाड़ फेंके

एक ही झटके से उखड़ कर

धराशायी हो गया

हमने चैन की सांस ली

उस तरफ देखा तो

हमारा पौधा जो

अभी नाबालिग बच्चा था

अपनी हरियाली लिए

धीरे-धीरे झूम रहा था

हमें यह देख कर प्रसन्नता हुयी

उससे आशा की…

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Added by indravidyavachaspatitiwari on April 25, 2017 at 7:30am — 2 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
मैं अलमस्त फकीर ..... गीत / डॉ० प्राची

टिपर-टिपर-टिप

टिपर-टिपर-टिप

पानी की इक बूँद झूम कर

मुस्काई फिर ये बोली...

मैं अलमस्त फकीर

टिपर-टिप

मैं अलमस्त फकीर...



चंचलता जब ओस ढली तो

पत्तों नें भी जोग लिया,

उनके हिस्से जितना मद था

सब का सब ही भोग लिया,



बाँध सकी पर बूँदों को कब

कोई भी ज़ंजीर...

टिपर-टिप

मैं अलमस्त फकीर...



रिमझिम-रिमझिम जब बरसी तो

जीवन के अंकुर फूटे,

अम्बर की सौंधी पाती ने

जोड़े सब रिश्ते टूटे,



बूँदें ही…

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Added by Dr.Prachi Singh on April 24, 2017 at 10:00pm — 8 Comments

ग़ज़ल-नूर की- ऐसा लगता है फ़क़त ख़ार सँभाले हुए हैं,

2122/1122/1122/22

.

ऐसा लगता है फ़क़त ख़ार सँभाले हुए हैं,

शाख़ें, पतझड़ में भी क़िरदार सँभाले हुए हैं.

.

जिस्म क्या है मेरे बचपन की कोई गुल्लक है  

ज़ह’न-ओ-दिल आज भी कलदार सँभाले हुए हैं.   

.

आँधियाँ ऐसी कि सर ही न रहे शानों पर,

और हम ऐसे में दस्तार सँभाले हुए हैं.

.

वक़्त वो और था; तब जान से प्यारे थे ख़ुतूत

अब ये लगता है कि बेकार सँभाले हुए हैं.

.

टूटी कश्ती का सफ़र बीच में कुछ छोड़ गए,  

और कुछ आज भी पतवार सँभाले हुए…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on April 24, 2017 at 8:59pm — 20 Comments

"तेरा साथ" कविता (मल्हार)

तेरा मेरा साथ अगर हो जाये  

तो जीना मेरा पुख़्ता हो जाये

धूप कभी गर लगे जो मुझको

छांव तेरी जुल्फों का हो जाये

ना कोई वादा ना कोई कसमें

निभाते चलें बस प्यार की रस्में 

सांस अधूरी धड़कन अधूरी 

जब तुम ना थे तब हम अधूरे

पूरा है अब चाँद फलक पर

अब तू भी पूरा में भी पूरा।       

  रोहित डोबरियाल"मल्हार" 

    मौलिक व अप्रकाशित

 

 

 

Added by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on April 24, 2017 at 8:24pm — No Comments

जंगल के फूल -सीमा पांडे मिश्रा "सुशी"

आखिर आज शो का दिन आ ही गया| गाँव की चौपाल पर सुरीली तान छेड़ने वाला रामा बहुत घबराया हुआ था| दोस्त के कहने पर, गायकी के शो में जब चयनित होकर आया तो शहर की चकाचौंध देखता रह गया था| होटल के ए सी रूम में उसकी आवाज़ भी बंद हो गयी|

साथी प्रतियोगियों के लिए अजूबा सा रामा, हीन महसूस करता| बस खुसुर-पुसुर और व्यंगात्मक हँसी| लज्जित, अपमानित होकर मन हीनता के बोध से मुरझा-सा गया| उच्चारण और सुर के लिए जो बातें बताई गईं, समझ से परे थीं| बालों का स्टाइल बनाकर, डिजाइनर कपड़े पहनाए गए| असहज हो…

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Added by Seema Mishra on April 24, 2017 at 5:09pm — 8 Comments

हार गई जिंदगी (लघुकथा)

  

हार गई जिंदगी

चार दिन से ऋचा ड्यूटी पर नहीं जा रही थी, बुखार के साथ शरीर में लाल्गी आने से परेशानी और बढ़ गई थी जिस कारण अब बिस्तर से उठकर चलना भी मुश्किल हो रहा था।

प्रशिक्षण दौरान पढ़ाया गया था कि अगर माता रानी की क्रोपी बढ़ी ऊम्र में हो जाए तो रोग जानलेवा भी हो सकता है ।

यह बात वह पति परमेशर कई बार बता चुकी थी, लेकिन अभी तक कोई जवाब उसके द्वारा नहीं मिल रहा था इक बार ऋचा ने कहा कि वह माँ के घर जा आती है, लेकिन सासू माँ ने इनकार कर दिया…

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Added by मोहन बेगोवाल on April 24, 2017 at 5:00pm — 1 Comment


सदस्य कार्यकारिणी
“किन्नर” (लघु कथा 'राज')

पांच मिनट के लिए स्टेशन पर गाड़ी रुकी जनरल बोगी में पहले ही बहुत भीड़ थी उसपर बहुत से लोग और घुस आये जिनमे सजे धजे परफ्यूम की सुगंध बिखेरते चार किन्नर भी थे| कुछ लोगों के चेहरे पर अजीब सी मुस्कान आ गई जैसे की कोई मनोरंजन का सामान देख लिया  हो कुछ लोगों ने अजीब सा मुंह बनाया तथा एक साइड को खिसक लिए जैसे की कोई छूत की बीमारी वाले आस- पास आ गए हों|

“अब ये  अपने धंधे पर लगेंगे” वहाँ बैठे लडकों के ग्रुप में से एक ने कहा| “हाँ यार आज कल तो ट्रेन में भी आराम से सफ़र नहीं कर सकते अच्छी…

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Added by rajesh kumari on April 24, 2017 at 12:08pm — 26 Comments

ग़ज़ल...जहर से भरी वादियों में हवा है

कश्मीर के हालातों को लेकर मन की उपज
122 122 122 122
दवा काम आये न लगती दुआ है
जहर से भरी वादियों में हवा है

यहाँ आदमी मुख़्तलिफ़ है खुदी से
न मुददा है कोई न ही माज़रा है

रुको मत लहू आखरी तक निचोड़ो
अभी जिस्म में जान बाकी जरा है

कहीं उड़ न जाये वफ़ा का परिंदा
अभी और मारो अभी अधमरा है

सरे राह घर है औ धरती बिछौना
भला मुफलिसों की जरुरत भी क्या है
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 23, 2017 at 4:30pm — 18 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - दुश्मनी घुट के मर न जाये कहीं - ( गिरिराज )

2122   1212   22 /112

मेरी साँसें रवाँ - दवाँ कर दे  

फिर लगे दूर आसमाँ कर दे

 

प्यासे दोनों तरफ़ हैं , खाई के

है कोई.. ? खाई जो कुआँ कर दे 

 

वो ठिकाना जहाँ उजाला हो

सब की ख़ातिर उसे अयाँ कर दे

 

दुश्मनी घुट के मर न जाये कहीं

आ मेरे सामने , बयाँ कर दे

 

ऐ ख़ुदा, क्या नहीं है बस में तिरे

हिन्दी- उर्दू को एक जाँ कर दे

 

कैसे देखूँगा मै ये जंग ए अदब

मेरी आँखे धुआँ धुआँ कर…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on April 23, 2017 at 11:11am — 23 Comments

"तन्हा" सपना (मल्हार)

तू ही तो मेरा अपना है

लगता यह इक सपना है 

कहता मेरा पागल दिल 

बस तेरे लिए धड़कना है

ना मेरे दिल ना मेरे में कोई बुराई है

लगता है किस्मत में  ही जुदाई है

चल दिल भी तेरा मैं भी तेरा 

यह सपना तू कर दे बस पूरा

अल्फ़ाज़ के कुछ तो कंकर फ़ेंको,

इस दिल में बड़ी गहराई  है

अब अकेला हूँ मैं यारों …. 

बस साथ मेरी तन्हाई  है 

बस साथ मेरी तन्हाई है 

                    "मल्हार"

  मौलिक व अप्रकाशित

Added by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on April 22, 2017 at 9:06pm — 4 Comments

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