दुनिया का सबसे अद्भुत
पति पत्नी के बीच अमर प्रेम का स्मारक
विश्व के तथाकथित आश्चर्यों में से एक
जहा दफ़न है दो आत्माएं
जिसे बनवाया था
मुग़ल शहंशाह शाहजहाँ ने
अपने बेमिसाल पत्नी प्रेम के आडम्बर में
या फिर अपने वैभव की झूठी शान में
जो उसके बेटे ने ही ख़त्म की
उन्हें कैद में डालकर
ताजमहल
जिसे खुद शाहजहाँ ने नहीं बनाया
उसे गढा था
उस युग के बेमिसाल वास्तुकारों ने
स्तब्ध किया था दुनिया…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 2, 2017 at 8:54pm — 5 Comments
1. झुलसी काया
आतंकी-सा सूरज
बेचैन सब ।
2.सूनी सड़कें
पसरा है सन्नाटा
जारी खर्राटे ।
3.डाल से टूटे
बरगद के पत्ते
सुनाए राग ।
4. सूखने लगे
पोखर औ तालाब
छोटी रात ।
5.नन्ही चीड़िया
करके जलपान
फुर्र हो जाए ।
6.चैत्र महीना
रात-दिन तपाए
किधर जाएँ ।
7.लू के थपेड़े
साँय-साँय सन्नाटा
सुस्ती में तन ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Added by Mohammed Arif on April 2, 2017 at 3:30pm — 15 Comments
Added by मनोज अहसास on April 2, 2017 at 3:17pm — 18 Comments
ग़ज़ल (मुहब्बत ही निभाई दोस्तों )
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2122 -2122 -2122 -212
आँख उसने जब भी नफ़रत की दिखाई दोस्तों |
मैं ने बदले में मुहब्बत ही निभाई दोस्तों |
रुख़ तअस्सुब की हवा का भी अचानक मुड़ गया
जिस घड़ी शमए वफ़ा हम ने जलाई दोस्तों |
गम है यह इल्ज़ाम साबित हो नहीं पाया मगर
आज़माइश फिर भी क़िस्मत में है आई दोस्तों |
बन गया दुश्मन अमीरे शह्र मेरा इस लिए
हक़ की खातिर ही क़लम मैं ने…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on April 2, 2017 at 12:07pm — 15 Comments
हाजिरी वो ज्यों लगाने आ गए
याद उनको फिर बहाने आ गए
मुट्ठियों में वो नमक रखते तो क्या
जख्म हमको भी छुपाने आ गए
चल पड़े थे हम कलम को तोड़कर
लफ्ज़ हमको खुद बुलाने आ गए
जेब मेरी हो गई भारी जरा
दोस्त मेरे आजमाने आ गए
रोज लिखना शायरी उनपर नई
याद हमको वो फ़साने आ गए
शमअ इक है लाख परवाने यहाँ
इश्क में खुद जाँ लुटाने आ गए
झील में अश्जार के धुलते …
ContinueAdded by rajesh kumari on April 2, 2017 at 11:00am — 24 Comments
Added by ASHUTOSH JHA on April 2, 2017 at 12:06am — 6 Comments
22 22 22 22 22 2
रंग बदलते रुख़सारों से क्या लेना ।
रोज मुकरते किरदारों से क्या लेना ।।
गंगा को मैली करती हैं सरकारें ।
उनको जग के उद्धारोँ से क्या लेना ।।
खूब कफ़स का जीवन जिसको भाया है ।
उस पंछी को अधिकारों से क्या लेना ।।
जंतर मंतर पर बैठा वह अनसन में ।
राजा को अब लाचारों से क्या लेना ।।
टूट चुका है उसका अंतर मन जब से ।
जग में दिखते मनुहारों से क्या लेना ।।
फुटपाथों पर जिस्म बिक रहा खबरों में…
Added by Naveen Mani Tripathi on April 1, 2017 at 10:30pm — 5 Comments
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
(एक शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ नज़र अंदाज़ कर दें)
जो कहूँ जो लिखूँ ओबीओ के लिये
यूँ समर्पित रहूँ ओबीओ के लिये
माँगता हूँ यही आजकल मैं दुआ
जब तलक भी जियूँ ओबीओ के लिये…
Added by Samar kabeer on April 1, 2017 at 2:30pm — 43 Comments
हम तुम
दो तट नदी के
उद्गम से ही साथ रहें हैं
जलधारा के साथ बहे हैं
किन्तु हमारे किस्से कैसे, हिस्से कैसे
सबने देखा, सबने जाना,
रीति-कुरीति, रस्म-रिवाज, अपने-पराये
सब हमारे बीच आये
एक छोर तुम एक छोर मैं
इनकी बस हम दो ही सीमाएं
जब इनमे अलगाव हुआ दुराव हुआ
धर्म-जाति का भेदभाव हुआ
क्षेत्रवाद और ऊँच-नीच का पतितं आविर्भाव हुआ
तब हम तुम
इस जघन्य विस्तार से और दूर हुए
तब भी इन्हें हमने ही हदों…
Added by आशीष यादव on April 1, 2017 at 1:30pm — 6 Comments
मेरी आँखों में नज़र ये ढूँढती क्या चीज़ है
कुछ तो बतला दे कि तेरी खो गई क्या चीज़ है ॥
रात दिन सीने की दीवारों पे ये पटके है सर
ऐ खुदा इस बुत में तूने डाल दी क्या चीज़ है ॥
हिज्र में जिस ने सुनी हों ग़ज़लें तन्हा बैठ कर
उससे जाकर पूछिए ये शायरी क्या चीज़ है ॥
तेरे ख्वाबों से उठा तुझ को न पाया सामने
अब समझ में आ रहा है तिश्नगी क्या चीज़ है ॥
यूँ तो जीने का तजुर्बाहै बहुत हम को मगर
अब तलक समझे नहीं हैं ज़िंदगी क्या चीज़ है…
Added by Gurpreet Singh jammu on April 1, 2017 at 10:00am — 13 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 31, 2017 at 2:26pm — 4 Comments
2122 2122 2122 212
दिन सुहाने हो गए राते सुहानी हो गईं,
उनके आते ही बहारें जाफ़रानी हो गईं।
रंग और खुशबू की बातें अब कहानी हो गईं,
मुश्किलें लगता है जैसे जाविदानी हो गईं।
आसमाँ ने जब उफ़क पर चूम धरती को लिया,
कमसिनी को छोड़कर ऋतुएं सुहानी हो गईं।
बेकरारी आज जितनी है कभी पहले न थी,
आदतें भी सब्र की जैसे कहानी हो गईं।
मिहनतों को जब मिला तेरा सहारा ए ख़ुदा,
मुश्किलें भी मेरी घट कर दरमियानी हो गईं।
रेत का इक सैल…
Added by Ravi Shukla on March 31, 2017 at 11:06am — 17 Comments
एक स्टोर के अंदर हाथ में ब्लैक चेक्स शर्ट लेकर खड़ी ऋषिता अमन को दिखाकर पूछ रही थी- "ये रहा तुम्हारा मन पसंद कलर" ! अमन शर्ट को देखते हुए - "अरे इसकी क्या जरुरत थी ?, " हर बात की कोई जरुरत हो जरूरी भी नही "- अमन के चेहरे को देखकर मुस्कुराती हुई वो जवाब देती है! उसका अंतर्मन आज दुखी है परंतु अमन को कैसे बताये वो खुद को तोड़ देने वाली बात की "अब हमें बिछड़ना होगा", अब वक़्त आ गया है हमारे प्रेम को उसकी मंजिल तक पहुँचाने का"! प्रेम तो होता ही ऐसा है या तो मिलकर मुस्कुराते है या बिछड़कर मुरझाते है!…
ContinueAdded by Ravi Sharma on March 31, 2017 at 9:00am — 4 Comments
२१२२/२१२२/२१२
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जैसी उस ने सौंपी थी वैसी मिले,
ये न हो चादर उसे मैली मिले.
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इस सफ़र में रात जब गहरी मिले
शम’अ कोई या ख़ुदा जलती मिले.
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याद रखने के लिये दुनिया रही
भूल जाने के लिये हम ही मिले.
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ये बग़ावत है तो हम बाग़ी सही,
सच कहेंगे, फिर सज़ा इस की मिले.
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हाँ! शुरू में रोज़ मिलते थे.. मगर
बाद में कुछ यूँ हुआ कम ही मिले.
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सर…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 31, 2017 at 8:35am — 16 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on March 30, 2017 at 1:30pm — 13 Comments
Added by नाथ सोनांचली on March 29, 2017 at 4:03pm — 21 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on March 29, 2017 at 3:00pm — 3 Comments
Added by Manan Kumar singh on March 29, 2017 at 7:31am — 13 Comments
२२१२/२२१२/२२१२
बाजा़र मे दिल आज़माया कर कभी,
दिल बेचने भी यार आया कर कभी।
दिल टूटने का दर्द अब होगा नही,
इन पत्थरों से दिल लगाया कर कभी।
माना सितारों से बहुत हैं प्यार पर,
जुगनूओं को घर भी बुलाया कर कभी।
दुनिया अमीरों के मुआफ़िक हैं मगर,
कुछ घर ग़रीबी के सज़ाया कर कभी।
बे-शक ये रास्ते हैं तरक़्की़ के मगर,
पैमाना पर इनका बनाया कर कभी।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Hemant kumar on March 28, 2017 at 9:00pm — 7 Comments
समीक्षार्थ
मत्तगयन्द सवैया...... (एक प्रयास)
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मंगल हो नववर्ष खिले मन वैभव ज्ञान सगे हरषाए
शीतल वायु बहे नित वासर धान फलें नहिं रोग सताए
भाग्य बने अरु धर्म जगे नवरोज़ शुभ यश गान सुनाए
जीवन में नित प्रीत पले रिपु बैर तजें स सखा बन जाए
..
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by अलका 'कृष्णांशी' on March 28, 2017 at 4:00pm — 7 Comments
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