स्नेह की धारा है वह, है वात्सल्य की मूर्ति
वीरुध वही,वन वही, कालिका की वो पूर्ति
राष्ट्र , समाज और परिवार को वो समर्पित
स्व - पर, हित को करती प्राण भी अर्पित
वाणी वही, गिरिजा वही, है दामिनी भी वह
कल्पना वो, प्रतिभा वही है कामिनी भी वह
किरन है वह, है सुभद्रा , है महादेवी भी वह
सृजक है वो समाज की समाजसेवी भी वह
है मदर टेरेसा, ऐनी बेसेन्ट, यशोदा भी वह
है अनैतिक समर में संघर्षरत,योद्धा भी वह
बोझ नहीं है , अबला नहीं, न द्वितीय है वह
वह धरा पर…
Added by Naveen kumar jain on March 8, 2017 at 8:30am — 12 Comments
नारी तुम! सुकुमार कुमुदुनी
सौम्य स्नेह औ प्रेम प्रदाता ||
धरती पर हो शक्ति स्वरूपा
तुम रण चंडी भाग्य विधाता ||
संस्कारों की शाला तुम हो
तुम लक्ष्मी सावित्री सीता |
निर्वाहिनी सत्कर्म की तुम
तुम्ही वेद कुरान औ गीता ||
सह कर असह्य प्रसव वेदना
तुम लाल धरा पर लाती हो |
तुम हो धात्री अखिल जगत की
तुम्ही सृष्टि सृजन बढाती हो ||
हे रूपवती हे कमनीया
ईश्वर की तुम अद्भुत रचना ||
तलवार धरो जब कर में तो
मुश्किल…
Added by नाथ सोनांचली on March 8, 2017 at 8:30am — 12 Comments
2122 1212 22
कैसे कह दूँ मैं अलविदा तुझसे ।
चैन आया है हर दफ़ा तुझसे ।।
इक सुलगती हुई सी खामोसी ।
इक फ़साना लिखा मिला तुझसे ।।
वो इशारा था आँख का तेरे ।
दिल था पागल छला गया तुझसे ।।
भूल जाती मेरा तसव्वुर भी ।
क्यूँ हुई रात भर दुआ तुझसे ।।
बेखुदी में जो इश्क कर बैठा ।
उम्र भर बस वही जला तुझसे ।।
कर लूँ कैसे यकीन वादों पर ।
कोई वादा कहाँ निभा तुझसे ।।
कुछ रक़ीबों से गुफ्तगूं करके ।
तीर वाज़िब…
Added by Naveen Mani Tripathi on March 7, 2017 at 11:00pm — 6 Comments
पावन हो …….
सुना था
मतलब के लिए
जमीनों और घरों के
बंटवारे हो जाते हैं
इस धन लोलुप दुनिया में
जीते जी
जिन्दा रिश्तों के
बंटवारे हो जाते हैं
अपने स्वार्थ के लिए
इंसान के जहाँ में
इंसानों के बंटवारे हो जाते हैं
मगर ये क्या
आज अखबार के
एक कालम ने
दिल को द्रवित कर दिया
अपने को श्रवण कुमार
साबित करने के लिए
अपने मृत जन्म दाता को
श्रद्धान्जली देने के लिए
अखबार में अलग अलग विज्ञापन दे दिये…
Added by Sushil Sarna on March 7, 2017 at 9:08pm — 10 Comments
212 212 212 212
लोग सब पूछते, हम कहाँ जा रहे
आ गये दिन भले या अभी आ रहे।2
कौन क्या कह गया याद अब है कहाँ
रेवड़ी देखकर खूब ललचा रहे।2
कुल जमा देखिये बादलों की कला
हर बरस बूँद में खार बरसा रहे।3
रात के हाथ से बुझ गयीं बत्तियाँ
बोलते भी जरा कौन दिन ला रहे।4
जोर से पीटते ढ़ोर सब ढ़ोल हैं
कोकिला चुप हुई काग बस गा रहे।5
मौलिक व अप्रकाशित@
Added by Manan Kumar singh on March 7, 2017 at 8:00pm — 20 Comments
221 2121 1221 212
मंज़र न जाने कौन उसे क्या दिखा गया
या आइना था, जो उसे पत्थर बना गया
तू भी तवाफ ए दश्त में चलता, ऐ शह’र ! तो
कहता यही, सुकून मेरे दिल को आ गया
हँसने की कोशिशों से निकल आये अश्क़ क्यूँ
ये किसका दर्द रूह में मेरी समा गया
गिनते रहे वो रोटियाँ थाली में डाल कर
भूखा उसी समय ही जाँ अपनी लुटा गया
लाठी नुमा रहा था जो अंधे के साथ साथ
पत्थर समझ के राह का, कोई हटा…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 7, 2017 at 12:54pm — 20 Comments
थोड़ा आगे आने दो ,
मौक़ा उनको पाने दो ।
देखो, भटके फिरते हैं ,
उनको भी समझाने दो ।
कब तक सहना पाबंदी ,
दौर नया दिखलाने दो ।
सबको राहत मिल जाये ,
मौसम ऐसा आने दो ।
फिक्र करो मत दुनिया की ,
छोड़ो यारो जाने दो ।
.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Mohammed Arif on March 7, 2017 at 11:30am — 22 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on March 7, 2017 at 9:00am — 12 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 7, 2017 at 8:00am — 10 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on March 6, 2017 at 10:30pm — 8 Comments
‘‘ अरे, सेठजी ! नमस्कार। अच्छा हुआ आप यहीं सब्जी बाजार में मिल गए, मैं तो आपके ही घर जा रहा था। समाचार यह है कि महाराज जी पधारे हैं, उनका कहना है कि इस एरिया में अहिंसा मंदिर का निर्माण कराना है जिसमें आपका सहयोग... ..।‘‘
‘‘ जी बिलकुल ! मेरी ओर से ग्यारह हजार , शाम को आपके पास पहुॅंचा दूॅंगा।‘‘
यह सुनकर, सब्जी का थैला टाॅंगे सेठजी के शिष्यनुमा नौकर से न रहा गया वह बोला,
‘‘सेठजी ! अभी आपने सब्जी की दूकान पर लौकी लेते समय लम्बी बहस के बाद, पूरे बाजार में बीस रुपये प्रति किलो…
Added by Dr T R Sukul on March 6, 2017 at 10:00pm — 12 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on March 6, 2017 at 7:06pm — 6 Comments
११२ ११२ ११२ ११२ ११२ ११२ ११२ ११२
भँवरे कलियाँ तरु झूम उठें जब फाग बयार करे बतियाँ|
दिन रैन कहाँ फिर चैन पड़े कतरा- कतरा कटती रतियाँ|
कविता, वनिता, सविता, सरिता ढक के मुखड़ा छुपती फिरती|
जब रंग अबीर लिए कर में निकले किसना धड़के छतियाँ|…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 6, 2017 at 3:19pm — 18 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on March 6, 2017 at 12:21pm — 9 Comments
Added by Rahila on March 6, 2017 at 12:18pm — 5 Comments
उसके मन में चल रहा अंतर्द्वंद चेहरे पर सहज ही परिलक्षित हो रहा था। वह अपनी पत्नी के बारे में सोच रहा था, “चार साल हो गए इसकी बीमारी को, अब तो दर्द का अहसास मुझे भी होने लगा है, इसकी हर चीख मेरे गले से निकली लगती है।“
और उसने मुट्ठी भींच कर दीवार पर दे मारी, लेकिन अगले ही क्षण हाथ खींच लिया। कुछ मिनटों पहले ही पत्नी की आँख लगी थी, वह उसे जगाना नहीं चाहता था। वह वहीँ ज़मीन पर बैठ गया और फिर सोचने लगा, “सारे इलाज कर लिये, बीमारी बढती जा रही है, क्यों न इसे इस दर्द से हमेशा के लिए…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on March 6, 2017 at 11:00am — 6 Comments
आँसू बहते आँख से, कौन जुगत हो बंद ?
जहाँ कुशल नलसाज के, असफल सारे फंद।
असफल सारे फंद, काम ना कोई आये।
केवल साँचा मीत, उसे तब कर दिखलाये।।
सत्य जगत में मीत, वही कहलाता धाँसू।
कर देता जो बंद, आँख से बहते आँसू।।
- मौलिक व अप्रकाशित
Added by Satyanarayan Singh on March 5, 2017 at 8:00pm — 8 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 5, 2017 at 7:34pm — 8 Comments
(मफ़ाईलुन-मफ़ाईलुन-फऊलॅन)
हसीनों में मुहब्बत ढूंढता है |
ज़मीं पर कोई जन्नत ढूंढता है |
दगा फ़ितरत हसीनों की है लेकिन
कोई इन में मुरव्वत ढूंढता है |
समुंदर से भी गहरी हैं वो आँखें
जहाँ तू अपनी चाहत ढूंढता है |
मिलेगा तुझको असली लुत्फ़ गम में
फरह में क्यूँ लताफत ढूंढता है |
हैं काग़ज़ के मगर हैं खूबसूरत
तू जिन फूलों में नकहत ढूंढता है |
सियासी लोग होते हैं…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on March 4, 2017 at 9:00pm — 10 Comments
Added by नाथ सोनांचली on March 4, 2017 at 3:30pm — 16 Comments
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