Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 29, 2017 at 11:00am — 16 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 28, 2017 at 9:22pm — 2 Comments
जब भी गाया तुमको गाया , तुम बिन मेरे गीत अधूरे,
तुमको ही बस ढूंढ रहा मन, तुम बिन मेरे सपने कोरे,
तुमको ही अपने जीवन के नस नस में बहता ज्वार कहा,
मेरे मन की सीपी के तुम ही हो पहला प्यार कहा,
एकाकी मन के आँगन में, बरसो बन कर मेघ घनेरे,
तुमको ही बस ढूंढ रहा मन, तुम बिन मेरे सपने कोरे,
तुम इन्हीं पुरानी राहों के राही हो कैसे भूल गये,
आँखों से आँखों में गढ़ना सपन सुहाने भूल गये,
तुमको ही मन गुनता रहता हर दिन, हर पल, शाम सवेरे,…
Added by Anita Maurya on January 28, 2017 at 3:23pm — 5 Comments
आओ प्रिय बैठो पास ,
क्यों रहती हो तुम उदास ,
दिल में तुम हो मेरे खास,
देखो हरी-हरी ये घास,
जगा रही है मन में प्यास,
चितवन देख तुम्हारी आज,
लगती मुझको तुमसे आस,
पर तुमको क्यों आती लाज,
प्रेम को समझो तुम भी…
ContinueAdded by Naval Kishor Soni on January 27, 2017 at 5:00pm — 2 Comments
देश के संविधान दिवस का उत्सव समाप्त कर एक नेता ने अपने घर के अंदर कदम रखा ही था कि उसके सात-आठ वर्षीय बेटे ने खिलौने वाली बन्दूक उस पर तान दी और कहा "डैडी, मुझे कुछ पूछना है।"
नेता अपने चिर-परिचित अंदाज़ में मुस्कुराते हुए बोला, "पूछो बेटे।"
"ये रिपब्लिक-डे क्या होता है?" बेटे ने प्रश्न दागा।
सुनते ही संविधान दिवस के उत्सव में कुछ अवांछित लोगों द्वारा लगाये गए नारों के दर्द ने नेता के होंठों की मुस्कराहट को भेद दिया और नेता ने गहरी सांस भरते हुए…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on January 27, 2017 at 9:11am — 4 Comments
1222-1222-1222-1222
जहां में आप सा हमको कोई कामिल नहीं मिलता
मिले हमको कई अच्छे मगर आकिल नहीं मिलता
जिन्हें तूफ़ान से लड़ना उन्हें फिर कौन रोकेगा
वही पाते हैं मंजिल को जिन्हें साहिल नहीं मिलता
तुम्हें मालूम है लेकिन बता सकते नहीं किस्सा
अजब घटना घटी देखो हमें फाजिल नहीं मिलता
खुदा मालिक है दुनिया का उसे सबसे मुहब्बत है
सहारा वो नहीं देता कभी साहिल नहीं मिलता
गगन मिट्टी हवा पानी हमें जीने को देता है
बसा…
Added by munish tanha on January 26, 2017 at 10:00pm — 5 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 26, 2017 at 9:30pm — 3 Comments
Added by Ravi Prakash on January 26, 2017 at 7:43pm — 2 Comments
छंद--तांटक
-.-
शान बड़ी गणतंत्र दिवस की , दुनियां को दिखलायें क्यों
.
ख़ौफ़ ज़दा सड़को पर चलती, डर के साये में जीती
देश की बेटी न बोलेगी , क्या क्या उस पर है बीती
नन्ही नन्ही कलियाँ खिलने, से पहले ही तोडा है
जननी को जो जन्मा तो फिर, नारी के सर कोड़ा है
क्या पहने पोशाक यहाँ हम , मुनिया को समझायें क्यों
शान बड़ी गणतंत्र दिवस की......
.
वादों का सैलाब लिए वो, पाँच साल में आते है
अपनी जेबें भरते है पर जन सेवक कहलाते…
Added by अलका 'कृष्णांशी' on January 26, 2017 at 7:00pm — 7 Comments
तुम्ही कहो, कैसे आऊँ,
सब छोड़ तुम्हारे पास प्रिये?
एक कृषक कल तक थे लेकिन अब शहरी मजदूर बने।
सृजक जगत के कहलाते थे, वो कैसे मजबूर बने?
वे बतलाते जीवन गाथा, पीड़ा से घिर जाता हूँ।
कितने दुख संत्रास सहे हैं, ये लिख दूँ, फिर आता हूँ।
कर्तव्यों के नव बंधन को तोड़ तुम्हारे पास प्रिये,
तुम्ही कहो, कैसे आऊँ,
सब छोड़ तुम्हारे पास प्रिये?
कौन दिशा में कितने पग अब कैसे-कैसे है चलना?
अर्थजगत के नए मंच पर, कैसे या कितना…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on January 26, 2017 at 2:00pm — 23 Comments
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on January 26, 2017 at 10:00am — 3 Comments
2122 2122 212
देखिये सबको रिझातीं टोपियाँ
नाच कितनों को नचातीं टोपियाँ।1
आपकी धोती कहाँ महफूज है?
फाड़कर कुर्ते बनातीं टोपियाँ।2
जो नहीं सोचा कभी था आपने
रंग वैसे भी दिखातीं टोपियाँ।3
पीठ पर दे हाथ वे पुचकारतीं
पेट में ख़ंजर चुभातीं टोपियाँ।4
दोस्ती का दे हवाला हर बखत
दुश्मनी फिर-फिर निभातीं…
Added by Manan Kumar singh on January 26, 2017 at 9:51am — 6 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on January 26, 2017 at 12:44am — 4 Comments
2122 2122 212
गीत पहले प्यार के मधु छंद सा
नीरजा के झर रहे मकरंद सा
नाव पर संगीत मांझी का मुखर
लोक को देता सुनायी मंद सा
है वही ब्रज और गोकुल की गली
नहीं दिखता किन्तु नंदन-नंद सा
छुप गया जो बांस के पीछे वहाँ
बादलों की ओट में है चंद सा
है मृगी बेचैन, व्याकुल भीत भी
बीहड़ों में कुछ दिखा है फंद सा
देवता सब हो गए है कैद अब…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 25, 2017 at 8:00pm — 5 Comments
1212 1212 1212 1212
फँसा रहे बशर सदा गुनाह ओ सवाब में
हयात झूलती सदा सराब में हुबाब में
बची हुई अभी तलक महक किसी गुलाब में
बता रही हैं अस्थियाँ छुपी हुई किताब में
जहाँ जुदा हुए कभी रुके वहीं सवाल हैं
गुजर गई है जिन्दगी लिखूँ मैं क्या जबाब में
लिखें जो ताब पर ग़ज़ल सुखनवरों की बात अलग
वगरना लोग देखते हैं आग आफ़ताब में
फ़िज़ूल में ही अब्र ये छुपा रहा है चाँद को
जमाल हुस्न का कभी न छुप सका…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 25, 2017 at 11:00am — 13 Comments
2122 2122 212
दिल से जब नाम-ए ख़ुदा जाता रहा
दरमियानी मो’जिजा जाता रहा
ख़ुद पे आयीं मुश्किलें तो, शेख जी
क्यूँ भला हर फल्सफ़ा जाता रहा
जो इधर थे हो गये जब से उधर
कह दिये , हर वास्ता जाता रहा
अब ख़बर में वाक़िया कुछ और है
था जो कल का हादसा जाता रहा
गर हुजूम –ए शहर का है साथ , तो
जो किया तुमने बुरा जाता रहा
आँखों में पट्टी, तराजू हाथ में
जब दिखे, तो…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 25, 2017 at 8:18am — 27 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on January 24, 2017 at 6:28pm — 7 Comments
ये अश्क ...
नहीं होता
चेहरा
दुःख का
कोई
नहीं होती उम्र
मौत की
कोई
ज़िन्दगी
खुशियों का
आसमां नहीं
ग़मों की
धूप है
ज़िन्दगी की धूप में
ख़ुशी तो बस
छाया का नाम है
पल भर का सुकून है
फिर गमों की
दास्तान है
यादों के
खंज़र हैं
कुछ आँखों से
बाहर हैं
कुछ आँखों के
अंदर हैं
कह गए
बह के
और
कुछ अभी
दिल में…
Added by Sushil Sarna on January 24, 2017 at 6:18pm — 6 Comments
दर्द जो नातवां से उठता है
शोर वो आस्तां से उठता है
गीत भी देख लो छुपे भीतर
दर्द दिल में जहां से उठता है
नाम की भूख ने बदल डाला
क्यूँ धुंआ अब यहाँ से उठता है
प्यार बांटो सदा जमाने में
बोल सच्चा फुगां से उठता है
उम्र बीती समझ नहीं आया
रोज झगड़ा बयां से उठता है
जिंदगी आज बन्दगी 'तन्हा'
नाम उसका ही जां से उठता है....
.
मुनीश 'तन्हा'.
मौलिक व अप्रकाशित
Added by munish tanha on January 24, 2017 at 5:30pm — 5 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 24, 2017 at 9:52am — 15 Comments
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