Added by दिनेश कुमार on February 2, 2017 at 4:13pm — 4 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on February 2, 2017 at 1:13pm — 10 Comments
1222 1222 1222 1222
जुबाँ पर वो नहीं चढ़ता मनन उसका नहीं होता
जो बाँटा खौफ करता हो भजन उसका नहीं होता।1।
जो करता बात जयचंदी वतन उसका नहीं होता
जिसे हो प्यार पतझड़ से चमन उसका नहीं होता।2।
जिसे लालच हो कुर्सी का जो करता दोगली बातें
वतन हित में कभी लोगों कथन उसका नहीं होता।3।
गगन उसका हुआ करता जो दे परवाज का साहस
जो काटे पंख औरों के गगन उसका नहीं होता।4।
समर्पण माँगता है प्यार निश्छल भाव वाला बस
नजर हो सिर्फ दौलत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2017 at 11:21am — 6 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 2, 2017 at 9:30am — 8 Comments
22 22 22 22 22 2 ( बहरे मीर )
किसी हाथ में अब तक खंज़र ज़िन्दा है
***********************************
सबके अंदर एक सिकंदर ज़िन्दा है
इसीलिये हर ओर बवंडर ज़िन्दा है
सब शर्मिन्दा होंगे, जब ये जानेंगे
अभी जानवर सबके अंदर ज़िन्दा है
मरा मरा सा बगुला है बे होशी में
लेकिन अभी दिमाग़ी बन्दर ज़िन्दा है
फूलों वाला हाथ दिखा असमंजस में
किसी हाथ में अब तक खंज़र ज़िन्दा है
परख नली की बातों…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 2, 2017 at 8:30am — 15 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 1, 2017 at 12:25pm — 6 Comments
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on February 1, 2017 at 11:42am — 3 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on February 1, 2017 at 11:00am — 14 Comments
करूँ वंदना आज वागीश्वरी की, सुनो प्रार्थना माँ हमारी सभी।
भरो ज्ञान का मात भंडार ऐसे, लुटाऊँ जहाँ में न रीते कभी।।
विराजो सदा आप वाणी हमारी, फलीभूत हो कामना माँ सभी।
लिखूँ गीत गाऊँ सुनाऊँ ख़ुशी से, दुलारा जहाँ में कहाऊँ तभी।१।
दिलों में अँधेरा समाया सभी के, उजाला दिलों में करो ज्ञान से।
मुझे मात दो कंठ ऐसा सुरीला, झरे माँ सुधा गीत के गान से।।
करो लेखनी की जरा धार पैनी, निखारो सदा शिल्प के सान से।
कला पक्ष औ भाव दोनों सँवारो, सधे साधना आपके ध्यान…
Added by Satyanarayan Singh on February 1, 2017 at 12:30am — 7 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on January 31, 2017 at 10:30pm — 12 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on January 31, 2017 at 9:11pm — 12 Comments
सिमटी रही
दो रोटियों के बीच
पूरी जिंदगी
ढूँढते रहे
जिंदगी भर सार
पर निस्सार
किसका बस
आज है कल नहीं
जिंदगी का क्या
आदि से अंत
बने अनंत, दूर
क्षितिज पर
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neelam Upadhyaya on January 31, 2017 at 4:00pm — 6 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on January 31, 2017 at 11:30am — 6 Comments
Added by दिनेश कुमार on January 30, 2017 at 9:00pm — 10 Comments
212 2112 2112 222
सू ए मंजिल तुझे हर हाल में जाना होगा|
आज तन्हा है तो कल साथ ज़माना होगा|
मैं तो दुश्मन हूँ भला पीठ पे कैसे मारूं
इस लिए दोस्त तुझे दोस्त बनाना होगा |
जाग उठते है मेरे मन में सवालात कई
हर किसी दर पे न अब सर को झुकाना होगा |
एक दिन देखना छिड़केंगे नमक ज़ख्मों पर
शर्त है ज़ख्म सब अपनों को दिखाना होगा|
फ़ितनागर लोग ज़माने में बहुत देखे हैं,
हर किसी को न यहाँ दोस्त बनाना…
Added by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on January 30, 2017 at 8:00pm — 9 Comments
लो फिर चुनाव आ गये.
हम हर दल के नेता को भा गए.
‘दल-दल’ से निकल कर सब नेता,
शहर-गाँव में आ गये.
कोई मोबाइल, लैपटॉप दे रहा.
कोई दे रहा दाल घी,
खुले आम दरबार लगा है,
चाहे जितना खा और पी.
पांच साल हमने भोगा है,
कुछ दिन तुम भी लो भोग.
चुनावी वादें है, वादों का क्या,
समय के साथ भूल जाते है लोग.
गरीबों का हक हम खा गये,
लो फिर चुनाव आ गये.
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Naval Kishor Soni on January 30, 2017 at 5:48pm — 6 Comments
चाँद बोला चाँदनी, चौथा पहर होने को है.
चल समेटें बिस्तरे वक्ते सहर होने को है.
चल यहाँ से दूर चलते हैं सनम माहे-जबीं.
इस जमीं पर अब न अपना तो गुजर होने को है.
है रिजर्वेशन अजल, हर सम्त जिसकी चाह है.
ऐसा लगता है कि किस्सा मुख़्तसर होने को है.
गर सियासत ने न समझा दर्द जनता का तो फिर.
हाथ में हर एक के तेगो-तबर होने को है.
जो निहायत ही मलाहत से फ़साहत जानता.
ना सराहत की उसे कोई कसर होने को…
ContinueAdded by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on January 30, 2017 at 2:30pm — 9 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on January 30, 2017 at 10:41am — 10 Comments
ये ,कैसा घर है ....
ये
कैसा घर है
जहां
सब
बेघर रहते हैं
दो वक्त की रोटी
उजालों की आस
हर दिन एक सा
और एक सी प्यास
चेहरे की लकीरों में
सदियों की थकन
ये बाशिंदे
अपनी आँखों में सदा
इक उदास
शहर लिए रहते हैं
ये
कैसा घर है
जहां सब
बेघर रहते हैं
उजालों की आस में
ज़िन्दगी
बीत जाती है
रेंगते रेंगते
फुटपाथ पे
साँसों से
मौत जीत जाती है
बेरहम सड़क है…
Added by Sushil Sarna on January 29, 2017 at 7:30pm — 13 Comments
2122 2122 2122
आज तुम यह क्या किये बैठे हुए हो
बेवजह का गम लिये बैठे हुए हो।1
कौन सुनता है यहाँ कुछ बात ढब की
दिल नसीहत को दिये बैठे हुए हो।2
और होता मौन का मतलब यहाँ पर
क्या पता क्यूँ मुँह सिये बैठे हुए हो।3
बदगुमानों की यहाँ बल्ले हुई बस
आशिकी का भ्रम जिये बैठे हुए हो।4
एक से बढ़ एक नगमे बुन रहे…
Added by Manan Kumar singh on January 29, 2017 at 12:26pm — 16 Comments
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