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तरही गजल-सतविन्द्र राणा

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भले ही' मैं अंजाना हूँ

सारी बात समझता हूँ



कड़वा चाहे लगता हूँ

सच की रो में बहता हूँ।



सुख दुख के हर पहलू को

चुपके-चुपके सहता हूँ।



बोल रहा उनके आगे

जिनको सुनता आया हूँ।



काम बहुत करना मुझको

लेकिन मैं अलसाया हूँ।



जख्म नहीं हूँ दे सकता

जब मरहम के जैसा हूँ



देख भुलाकर रंजो गम

गुल बनकर फिर महका हूँ।



जिससे धारा फ़ूट पड़े

टूटा वही किनारा हूँ।



आँखों में क्या ढूँढ… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on February 5, 2017 at 9:00pm — 9 Comments

ग़ज़ल- नवजीवन की आशा हूँ

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नवजीवन की आशा हूँ।
दीप शिखा सा जलता हूँ।।

रक्त स्वेद सम्मिश्रण से।
लक्ष्य सुहाने गढ़ता हूँ।।

जीवन के दुर्गम पथ पर।
अनथक चलता रहता हूँ।।

प्रभु पर रख विश्वास अटल।
बाधाओं से लड़ता हूँ।।

घोर तिमिर के मस्तक पर।
अरुणोदय की आभा हूँ।।

भावों का सम्प्रेषण मैं।
शंखनाद हूँ कविता हूँ।।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by डॉ पवन मिश्र on February 5, 2017 at 6:58pm — 12 Comments

दोहे-रामबली गुप्ता

कृपा करो जगदीश हे! करो जगत कल्याण।

प्रेम दया सद्भाव दो, हो शुभ तन-मन-प्राण।।1।।



हो कण-कण में व्याप्त तुम, हे! जग पालनहार।

पद-पावन में तीर्थ सब, है सुरसरि की धार।।2।।



सदा तुम्हारी भक्ति में, रहूँ समर्पित नाथ!

ऐसा दो वरदान अब, रखो शीश पर हाथ।।3।।



प्रभो! सकल ब्रह्माण्ड के, एक तुम्ही हो नाथ।

सदा कामना है यही, रहे कृपा-कर माथ।।4।।



सूर्य-चंद्र-तारक सभी, जीव-जन्तु इत्यादि।

सबका तुम से अंत हरि! है तुमसे ही… Continue

Added by रामबली गुप्ता on February 5, 2017 at 6:00pm — 23 Comments

विवश वेदना

बियाबान-सी रात, मद्धम है चाँदनी

एक अधूरे रिश्ते के आकुलित अनुभव

बिखरे-बिखरे-से... कोने-कोने में

बेचैन इस दर्द भरे अन्धेरे में

चेहरे पर भय की रेखाएँ



माना कि बीच हमारे अब कोई दीवार

बहुत ऊँची बहुत ऊँची

ढरते-भुरते विश्वास के आईने पर

घावों की छायाओं के धब्बेे

भी गहरे अब बहुत गहरे



फिर भी कुछ जीवित है



समय की टूटी सीढ़ी चढते

क्षण-भर को भी भाव-विभोर हो

आ सको तो आओ

पाओ मुझमें…

Continue

Added by vijay nikore on February 5, 2017 at 5:07pm — 15 Comments

ए ज़िन्दगी गुनगुनाने दे यूँ ही-पंकज मिश्र

ए ज़िन्दगी गुनगुनाने दे यूँ ही



मासूम बच्चों की किलकारियों में

खोया हुनर अपना हम आज ढूंढें



चलते ठुमक कर के नन्हें पगों सं'ग

हम भी तो चलने का कुछ सीख लें ढं'ग



जीने का अंदाज़ पाने दे यूँ ही

ए ज़िन्दगी गुनगुनाने दे यूँ ही।।



गिल्लू फुदकती, चहकते परिंदे

हम सीख लें मस्त, रहना तो इनसे



कल कल का संगीत बहती नदी से

कोयल की कू कू, से स्वर सीखने दे



हो के मगन मुस्कुराने दे यूँ ही

ए ज़िन्दगी गुनगुनाने दे यूँ… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 5, 2017 at 4:15pm — 4 Comments

कथा लिखो (लघुकथा)

महाबुद्ध से शिष्य ने पूछा, “भगवन! समाज में असत्य का रोग फैलता ही जा रहा है। अब तो इसने बच्चों को भी अपनी गिरफ्त में लेना शुरू कर दिया है। आप सत्य की दवा से इसे ठीक क्यों नहीं कर देते?”

महाबुद्ध ने शिष्य को एक गोली दी और कहा, “शीघ्र एवं सम्पूर्ण असर के लिये इसे चबा-चबाकर खाओ, महाबुद्धि।”

महाबुद्धि ने गोली अपने मुँह में रखी और चबाने लगा। कुछ ही क्षण बाद उसे जोर की उबकाई आई और वो उल्टी करने लगा। गोली के साथ साथ उसका खाया पिया भी बाहर आ गया। वो बोला, “प्रभो ये गोली…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 5, 2017 at 10:30am — 16 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल -मेरा ग़रीब खाना है ऊँचे भवन के बाद - ( गिरिराज )

( अज़ीम शायर मुहतरम जनाब कैफ़ी आज़मी साहब की ज़मीन पर एक प्रयास )

221  2121   1221    212

मुझको कहाँ अज़ीज़ है कुछ भी चमन के बाद

क्या मांगता ख़ुदा से मैं हुब्ब-ए-वतन के बाद



तहज़ीब को जो देते हैं गंग-ओ-जमुन का नाम

ये उनसे जाके पूछिये , गंग-ओ-जमन के बाद ?



वो लम्स-ए-गुल हो, या हो कोई और शय मगर

दिल को भला लगे भी क्या तेरी छुवन के बाद



वो चिल्मनों की ओट से देखा किये असर

बातों के तीर छोड़ के हर इक चुभन के…

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Added by गिरिराज भंडारी on February 5, 2017 at 7:46am — 24 Comments

ग़ज़ल( किया है अपनों ने जब किनारा ) --------

ग़ज़ल

--------

(मफ़ाइलातुन--मफ़ाइलातुन)

किया है अपनों ने जब किनारा |

दिया है अग्यार ने सहारा |

करम हुआ दोस्तों का जब से

वफ़ा का गर्दिश में है सितारा |

अगर गिला है तो सिर्फ़ है यह

न दे सके साथ वो हमारा |

हुआ है दीदार जब से उनका

लगे न मंज़र कोई भी प्यारा |

हसीन रुख़ में ज़रूर कुछ है

जो देखे हो जाए वो तुम्हारा |

हो और मज़बूत अपनी यारी

कहाँ ज़माने को है गवारा…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on February 4, 2017 at 9:42pm — 6 Comments

आज के पुजारी बन बैठे भगवान ।

दुनिया में है अपना देश महान

आज के पुजारी बन बैठे भगवान ।

करुणा, दया,और धर्म से वंचित

मानवता को करते ये लज्जित

प्रभु के ऊपर खुद होते सुशोभित

कहते जग में हम सबसे विद्वान  

आज के पुजारी बन बैठे भगवान ॥

शील समाधि प्रज्ञा सबसे वंचित

सभी को पता है इनकी हकीकत

अज्ञानता से चलती है सियासत

वेद ज्ञान से विमुख ये पुरोहित

देश में चहुं दिश फैला अज्ञान

आज के पुजारी बन बैठे भगवान ॥

देव दासी प्रथा खूब थी…

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Added by Ram Ashery on February 4, 2017 at 5:30pm — 5 Comments

सीढ़ियाँ – लघुकथा -

   सीढ़ियाँ – लघुकथा -

 "सर, यह क्या सुन रही हूँ।आप तो डाइरेक्टर बनने वाले थे।मगर आप को जी एम से डिमोट कर के मैनेजर बना दिया"।

"यह सब तुम्हारी वज़ह से हुआ है लीला", वर्मा जी अपनी सैक्रेटरी पर झल्ला पड़े।

"सर, मैंने क्या किया। मैं तो सदैव वही करती रही  हूं, जो आप कहते रहे हो"।

"पर इस बार नहीं किया ना,मैंने तुम्हें शनिवार को सी एम डी के बंगले पर जाने को कहा था"।

"सर, मैंने सुना था कि नया सी एम डी बहुत खड़ूस है।मैं डर गयी थी।पर आपने मेरी जगह दूसरी लड़की भेज दी थी…

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Added by TEJ VEER SINGH on February 4, 2017 at 1:44pm — 15 Comments

देश ये महान है--घनाक्षरी// अलका ललित

घनाक्षरी में आज का प्रयास

***

चेहरा चमक रहा

बटुआ खनक रहा

सबका है मन काला

देश ये महान है

.

योजनाएं बड़ी बड़ी

बनाते है हर दिन

कैसे करना घोटाला

देश ये महान है

.

हर योजना में यहॉ

देश के खजाने पर

हुआ गड़बड़ झाला 

देश ये महान है

.

बेटियां सुबक रही

डर के…

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Added by अलका 'कृष्णांशी' on February 4, 2017 at 11:00am — 9 Comments

गजल(तीर चले चुन चुन के कस कस)

22222222

तीर चले चुन-चुन के कस-कस

मन तो भूला जाता सरबस।1



बूढ़ा बरगद बौराया है

अँगिया- गमछा करते सरकस।2



छौंरा- छौंरी छुछुआये हैं

पुरवा घर-घर करती बतरस।3



बढ़नी लेकर काकी दौड़ी

सच तो सहना पड़ता बरबस।4



फागुन की फुनगी अँखुआयी

चौरा-चौरा होता चौकस।5



आतुर होकर आज हवाएँ

ढूँढ़ रहीं निज मरकज,बेकस।6



मन का मीत कहीं मिल जाये

मनुआ दौड़ चला जस का तस।7



रंग चढ़ा जिसको,वह उछले

बाकी कहते,रहने दो…

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Added by Manan Kumar singh on February 4, 2017 at 8:30am — 22 Comments

भगवान तू है कहां (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"मैं धर्म, धार्मिक ग्रंथों और प्रवचनों की सीढ़ियों पर चढ़कर सच्चे सुख की तलाश करता हुआ ईश्वर को तलाश रहा था!" अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए एक आदमी ने अपने साथियों से कहा।



दूसरे ने अपने अनुभव सुनाते हुए कहा- "मैं विज्ञान, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तकनीकी यंत्र-तंत्र की सीढ़ियों पर चढ़कर सच्चा सुख तलाशते हुए भगवान को चुनौती देकर विज्ञान को ही भगवान समझने लगा!"



तीसरा अपने दोनों साथियों से बोला- "मुझे जब जैसा मौक़ा मिला उसी अनुसार सीढ़ियों को चुनता रहा धन को ही भगवान समझ कर। कभी… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 3, 2017 at 11:30pm — 8 Comments

मौसम-ए-हिज्र ने इक फूल खिलाया है अभी (ग़ज़ल)

2122 1122 1122 22



सिवा उसके कोई मंज़र नहीं दिखता है अभी

गोया आँखों में वही नक़्श ही ठहरा है अभी



मौसम-ए-हिज्र ने इक फूल खिलाया है अभी।

बाद मुद्दत के उसे ख़्वाब में देखा है अभी



शब गुज़र भी चुकी महताब भी घर अपने चला

पर मेरी शम्अ-ए-उम्मीद को जलना है अभी



जानता हूँ कि कोई लहर मिटा ही देगी

आदतन नाम वो फिर रेत पे लिक्खा है अभी



मैं कलंदर हूँ, मुझे भूल से मुफ़लिस न समझ

कि मेरी जेब में ईमान का सिक्का है अभी



चाहते भी हैं… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on February 3, 2017 at 8:56pm — 5 Comments

ग़ज़ल...गम जहाँ के पहलू में दो चार आ कर बैठ गए

फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन

2122 2122 2122 212

गम जहाँ के पहलु में दो चार आ कर रुक गये

हम उसी दोराहे पे तब सकपका कर रुक गये



रहगुज़र तपती हुई होती बसर भी कब तलक

दर्द था इफरात में वो छटपटा कर रुक गये



ये अदा भी खूब है उस संगदिल महबूब की

बिन बताये दिल में आये मुस्कुरा कर रुक गये



ज़ुस्तज़ू दीदार की होती मुकम्मल किस तरह

वो अदा से ओढ़ कर घूँघट लजा कर रुक गये



है फ़ज़ाओं में खबर गुजरेंगे वो इस राह से

मोड़ पर हम सर झुका आँखें… Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 3, 2017 at 8:30pm — 26 Comments

स्नेह-लहरी

हर पर्व से पहले आते थे तुम

हँसती-हँसती, मैं रंगोली सजा देती ...

नाउमीदी में भी कोई उमीद हो मानो

मेरी अकुलाती इच्छाएँ तुम्हारी राह तकती थीं

श्रद्धा के द्वार पर अभी भी मेरे प्रिय परिजन

सूर्य की किरणें ठहर जाती हैं

चाँद जहाँ भी हो, पर्व की रातों कोई आस लिए

आकर छत पर रुक जाता है

तन्हा मैं, सोच-सोच में

ढूँढती हूँ बाँह-हाथ तुम्हारे

स्पर्श से पूर्व विलीन हो जाते हैं स्पर्श

उदास साँवले दिन की…

Continue

Added by vijay nikore on February 3, 2017 at 11:50am — 15 Comments

हाइकू (आरिफ मोहम्मद)

1.

सौंधी महक
मिट्टी पड़ी गिरवी
विदेशी चाल ।

2.

बाज़ार भाव
रोज़ की घट-बढ़
है सोची चाल ।
3.

होली दस्तक
अब रंगों में हिंसा
फैला तनाव ।

4.

नंगा बदन
फैशन का कमाल
धन की लूट ।

5.

कहाँ को जाएँ
लूटी हुई है शांति
दिशा बेहाल ।

.
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Mohammed Arif on February 3, 2017 at 8:30am — 10 Comments

आया मधुमास (अति बरवै पर आधारित गीत)

सजनी ने साजन को, खींच लिया पास |

अमराई फूल गई, आया मधुमास ||

  

धूप खिली निखरी-सी, आयी मुस्कान |

बागों में छेड़ दिया, भँवरों ने तान ||

कलियों के मन जागी, खिलने की आस......... 

खिड़की से झाँक रही, जिद्दी है धूप |

रंग बिना लाल हुआ, गोरी का रूप  ||

सखियों की सुधियों में, कौंधा परिहास........... 

 

डाली है अल्हड पर , फिरभी है भान |

बौराए महुए के , खींच रही कान ||

महक रहे वन-कानन, महका…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on February 2, 2017 at 11:00pm — 21 Comments

जंबूरा (लघुकथा)राहिला

"पकड़ो,पकड़ो घेर लो इसे ,कस कर बांध दो भागने ना पाए"।अचानक हुए इस हमले ने उसकी सिट्टी पिट्टी गुम कर दी ।

"आज यहाँ,कहाँ रास्ता भूल गया यह!"

"हाँ दादा!सालों बाद दिखाई पड़ा ।जरूर कोई गरज पड़ी होगी वरना यह और यहाँ...।"

"अब हाथ आ ही गया है तो निकाल लो कसर ,डालो गले में पट्टा और नचवाओ इसे! इसने भी कोई कसर नहीं छोड़ी ..खूब इशारों पर नचवाया है हमें।आज यह करेगा हमारा मनोरंजन ।"उन्हीं में से एक दांत पीसता हुआ बोला।और फिर शुरू हुआ तमाशा।खबर पाकर दूर ,दूर से लोग इकट्ठा होने लगे,थोड़ी ही देर में… Continue

Added by Rahila on February 2, 2017 at 10:16pm — 10 Comments

गजल/// मगर आप गंगा नहाने लगे

122 122 122 12

     

कि जब आप उनके कहाने लगे

मुझे सारे वादे बहाने लगे

 

किया चाक दिल था हमारा अभी            

महल ख्वाब का क्यूँ ढहाने लगे

 

यकीं था मुझ्र भूल जाओगे अब   

गमे याद तुम तो तहाने लगे

 

कहा था अगम एक सागर हूँ मैं

गजब है कि सागर थहाने लगे

 

चिता ठीक से जल न पाई अभी

मगर आप गंगा नहाने लगे

(मौलिक/अप्रकाशित)

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 2, 2017 at 8:00pm — 8 Comments

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