For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,988)

अब की बार दिल की सुन लो

Continue

Added by amita tiwari on February 16, 2017 at 8:30am — 3 Comments

गजल

 221 2121 1221 212

 

बदनाम है जरूर मगर नाम तो हुआ 

अफसाना जिदगी का सरे आम तो हुआ

 

आँखों में बंद था कभी सागर शराब का  

वह तज्रिबे आशिक से लबे जाम तो हुआ

 

महफिल थी जम गयी उनके खयाल की  

था जश्न थोड़ी देर पर दिल-थाम तो हुआ

 

उतरा था एक बार मुहब्बत की जंग में

नाकाम जंग होना था नाकाम तो हुआ   

 

कहते है यार इश्क है अंजाम-बद बहुत

होना था जो अंजाम वो अंजाम तो…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 15, 2017 at 8:39pm — 13 Comments

कब ख़ुद को मुख्तार करोगे

22/22/22/22



तूफाँ से गर प्यार करोगे,

बाहों को पतवार करोगे।



अब कर दो इज्हार-ए-मुहब्बत,

कब तक छुप छुप प्यार करोगे।



छोड़ोगे कब हुक़्म बजाना,

कब ख़ुद को मुख्तार करोगे।



पेश आएंगे सभी अदब में,

जब खुद शिष्ट आचार करोगे।



दरिया पार तभी होगा जब,

ज़र्फ़ अपना पतवार करोगे।



इश्क़ में' हद से' गुज़रने वालों,

तुम ख़ुद को बीमार करोगे।



शाम हुई फैला अँधियारा,

जाने कब इज़्हार* करोगे।

*चराग़ रौशन करना…

Continue

Added by रोहिताश्व मिश्रा on February 15, 2017 at 4:30pm — 11 Comments

कमली -- लघु कथा

सुबह-सुबह कॉलेज जाने की तैयारी कर ही रही थी कि ऊपर वाली चाची की सीढ़ियों से उतरने की धमक के साथ ही उनकी आवाज सुनाई दी – "ए नीलम, सुनलू ह· कि ना, कमली म·र गइल ।" मुझे थोड़ा गुस्सा भी आया पर संस्कारगत  आदत के मारे कुछ जतला नहीं पायी । इतना तो समझ आ ही गया कि अब आज का पहला पीरियड अटेण्ड नहीं कर पाऊँगी । अब चाची आ ही गयी हैं तो थोड़ा बैठना ही ठीक होगा और मैंने उन्हें बैठा कर झट पानी का ग्लास पकड़ाया ।…

Continue

Added by Neelam Upadhyaya on February 15, 2017 at 3:30pm — 10 Comments

गजल(इश्क को तोलते हैं कहाँ)

212 212 212
इश्क को तोलते हैं कहाँ,
जो तुले,बोलते हैं कहाँ?1

सिसकियाँ हों बँधी गाँठ में,
बावरी! खोलते हैं कहाँ?2

ऐ हवा! तू उड़ा के चुनर
पूछ, हम डोलते हैं कहाँ?3

गम पिये बस जिये अब तलक,
हम जहर घोलते हैं कहाँ?4

चूमते धड़कनें चाव से,
खुद कभी बोलते हैं कहाँ?5
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

Added by Manan Kumar singh on February 14, 2017 at 8:39pm — 16 Comments

ग़ज़ल....मुहब्बत आह भरती है इबादत हार जाती है

1222 1222 1222 1222

सदा पत्थर से टकरा कर मेरी बेकार जाती है

मुहब्बत आह भरती है इबादत हार जाती है



हमारे दर्द के किस्से बराए आम हैं कब से

तुम्हारे आसरों तक भी कुई चीत्कार जाती है ?



अज़ब सी बहशतों में आजकल डूबा हुआ है दिल

सँभालूँ जो मैं दरवाजा दरक दीवार जाती है



जरा सा रोक लो ये गम जरा सीं राहतें दे दो

मुसलसल बेरुखी भी अब ह्रदय के पार जाती है



तुम्हें भी इल्म हो जायेगा तुम भी जान जाओगे

क्षितिज के पार सच्चे इश्क़ की झनकार जाती… Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 14, 2017 at 5:30pm — 10 Comments

ग़ज़ल (प्यास दिल की न यूँ बढ़ाओ तुम)

ग़ज़ल (प्यास दिल की न यूँ बढ़ाओ तुम)



2122 1212 22,





प्यास दिल की न यूँ बढ़ाओ तुम,

जान ले लो न पर सताओ तुम।



पास आ के जरा सा बैठो तो,

फिर गले चाहे ना लगाओ तुम।



दिल को समझाना है बड़ा मुश्किल,

बेरुखी और ना दिखाओ तुम।



गिर गया हूँ मैं खुद की नज़रों से,

और नज़रों से मत गिराओ तुम।



चोट खाई बहुत जमाने से,

यूँ बहाने न फिर बनाओ तुम।



मिल सका वो न जिस को भी चाहा,

अनबुझी प्यास को बुझाओ… Continue

Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on February 14, 2017 at 4:30pm — 13 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
प्रेम कहाँ पूरा होता है.... गीत / डॉ० प्राची

इक क़तरा भी रह न जाए, करना होगा ख़ुद को अर्पण,

प्रेम कहाँ पूरा होता है, अगर अधूरा रहे समर्पण।



लहर-लहर लहरें इतराकर

जी भर चंचलता तो जी लें,

हो वाचाल अगर अंतः तो

कैसे फिर होठों को सी लें,

तृप्त हुई लहरें खुद थम कर आखिर बन जाती हैं दर्पण।

प्रेम...



बारी-बारी इक दूजे में

आओ हो जाएँ हम-तुम गुम,

मुझको भी अभिव्यक्ति मिले और

ख़ुद को भी अभिव्यक्त करो तुम,

रात दिवस से, दिवस रात से, यही कहा करते हैं क्षण-क्षण।

प्रेम...…

Continue

Added by Dr.Prachi Singh on February 14, 2017 at 12:00pm — 7 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
जनता कहती, कि सुने जनता (मदिरा सवैया) // -सौरभ

मदिरा सवैता  [भगण (२११) x ७ + गु]

 

पाँच विधानसभा फिर भंग हुई, नव रूप बुने जनता   

राज्य हुए फिर उद्यत आज नयी सरकार चुने जनता
शासन और प्रशासन हैं नतमस्तक, आज गुने जनता
तंत्र चुनाव विशिष्ट लगे.. जनता कहती, कि सुने जनता..
*********
-सौरभ

Added by Saurabh Pandey on February 13, 2017 at 10:47pm — 13 Comments

ग़ज़ल :चुनाव के दिन हैं

1212 1122 1212 22



हमें न ख़्वाब दिखाओ चुनाव के दिन हैं,

अभी तो होश में आओ चुनाव के दिन है ।



बला से कोई बने शाह मुल्क में माना,

तुम अपना फ़र्ज़ निभाओ चुनाव के दिन हैं।



ख़ता मुआफ़ उसूलों को आज रहने दो,

अदू से हाथ मिलाओ चुनाव के दिन हैं।



ये इत्तिहाद मुबारक़ हो ओहदों के लिए,

हिसाब और लगाओ चुनाव के दिन हैं।



गुज़िश्ता पाँच बरस का हिसाब पूछेंगे

कहाँ थे आप बताओ चुनाव के दिन हैं।



सहीह आज ये मौका बदल दो सूरते… Continue

Added by Ravi Shukla on February 13, 2017 at 6:32pm — 18 Comments

हार में भी जीत-पहला प्रयास लघु कथा

अपने जीवन की पहली लघु कथा लिखने के बाद बार बार

उसे पढ़कर प्रकाशित करने की मनःस्थिति बना ही रहा था तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी।" आओ -मित्र ! आओ "दरवाजा खोलते ही मैंने अपने मित्र आलोक से कहा।"आज कौन सी कविता ऑनलाइन प्रकाशित कर रहे हो"आलोक ने हमेशा की तरह पूंछा।"आज मैंने पहली लघु कथा लिखी है उसे ही प्रकाशित करने जा रहा हूँ"कंप्यूटर पर टाइप करते हुए मैंने जबाब दिया।" लेकिन-पहले प्रयास को सीधे प्रकाशित करते तुम्हे अजीब सा नहीं लग रहा है-"रचना के ठीक होने पर मिलने वाली संतोष जनक प्रतिक्रियाओ… Continue

Added by Dr Ashutosh Mishra on February 13, 2017 at 3:04pm — 20 Comments

ग़ज़ल -यतीम घर से कोई माँ कई दफ़ा पहुँची

1212 1122 1212 22

ये जिंदगी है अभी तक नहीं दुआ पहुँची ।

खुदा के पास तलक भी न इल्तजा पहुँची।।



गमो का बोझ उठाती चली गई हँसकर ।

तेरे दयार में कैसी बुरी हवा पहुँची ।।



अजीब दौर है रोटी की दास्ताँ लेकर ।

यतीम घर से कोई माँ कई दफ़ा पहुची ।।



तरक्कियों की इबारत है सिर्फ पन्नों तक ।

है गांव अब भी वही गाँव कब शमा पहुँची ।।



यहां है जुल्म गरीबी में टूटना यारो ।

मुसीबतों में जफ़ा भी कई गुना पहुँची।।



है फरेबों का चमन मत…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on February 13, 2017 at 1:00pm — 7 Comments

गाँव की होली (लघु कथा)

गाँव में होली

 गाँव में होली अपनी उफान पर थी । चंदू  के द्वार पर सुबह से ही चौपाल बैठ गयी थी । उनका भतीजा कहीं बाहर कुछ काम करता था । उसीने शराब की कुछ बोतलें घर भेज रखी थीं । गाँव में उसका बड़ा भतीजा रहता था ; कुछ काम का, न काज का, बस दोस्त समाज का !खाने –पीनेवालों का ताँता सुबह से उसके दर पे लगने  लगा,मुफ्त में शराब और गोश्त के कुछ पर्चे मयस्सर जो हो रहे थे । बीच –बीच में माँ –बहन की भी हो जा रही थी। सुननेवालों के मजे –ही –मजे थे । हम भी अपने दरवाजे पर…

Continue

Added by Manan Kumar singh on February 12, 2017 at 7:41pm — 4 Comments

झुग्गियाँ

आज सुनो मैं तुमको यारों, सच्ची बात बताता हूँ |

झुग्गी में रहने वालों की, इक तस्वीर दिखाता हूँ ||

दूषित पानी हवा विषैली, जैसी कई निशानी है |

ये प्यासे नित कूँआ खोदें, इनकी यही कहानी है |1|



कोई बच्चा फेंका जूठन, जहाँ प्यार से खाता है |

कोई बचपन से ही घर का, सारा बोझ उठाता है ||

यहाँ घरों में हर बालक का, जन्म कर्ज में होता है |

उम्र कर्ज में ही कटती है, कर्ज लिए ही सोता है |2|



कोई नन्ही बुधिया मुनिया, नग्न बदन दिख जाती है |

कोई बुढ़िया बिन… Continue

Added by नाथ सोनांचली on February 12, 2017 at 2:30pm — 12 Comments

***लंबे तार***(लघुकथा)राहिला

घर से एक घंटे पहले निकलने के बावजूद आज फिर वह आधा घंटा देर से विद्यालय पंहुचा ।जबकि ऑटो स्टैंड से विद्यालय की दूरी मात्र पंद्रह मिनिट की थी । और जैसे ही उसने स्कूल में क़दम रखा,सामने कमिश्नर साहब को देख कर उसका हलक सूख गया ।

" घड़ी देखिये जरा..,क्या समय हो रहा है?ये आपके विद्यालय आने का समय है?"साहब के कहने अंदाज ऐसा था कि ग़ाज गिरी समझो।

"जी...जी!बस आज ही देर हो गयी।"उसने हकलाते हुए अपना बचाव करने की कोशिश की।

"झूठ बोलते हो ,सारे गाँव वालों ने शिकायत की है ।आप रोज ही देर से आते… Continue

Added by Rahila on February 12, 2017 at 2:00pm — 13 Comments

कोई इस तरह न तोड़े सपने (ग़ज़ल)

2122 1122 22



उम्र-भर चुभते हैं बिखरे सपने

कोई इस तरह न तोड़े सपने



टूट जाती है तभी नींद मेरी

जब कभी आते हैं अच्छे सपने



पूरे होने की कोई शर्त नहीं?

पूरे होते नहीं ऐसे सपने



हम हकीकत में यकीं रखते है

हों मुबारक़ तुझे तेरे सपने



वस्ल का वक़्त है नज़दीक बहुत

सुब्ह आते है अब उसके सपने



नींद अब मुझसे ख़फ़ा है, यानी

उसको रास आ गए मेरे सपने



अपनी क़िस्मत में फ़क़त प्यास ही थी

पर थे आँखों में नदी के… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on February 12, 2017 at 11:55am — 12 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
बस लहर थामे रहे व्यवहार .....गीत/प्राची

जानती हूँ वायदों के बंध होते हैं जटिल

मुक्त हों हर बंध से मैं प्यार इतना चाहती हूँ...



ताज़गी की आड़ में कितनी थकन थी, क्या कहूँ

खिड़कियाँ सारी खुलीं थीं पर घुटन थी, क्या कहूँ

अब मिले हर स्वप्न को विस्तार इतना चाहती हूँ...



हर ख़ुशी मुझको मिली है आप जबसे मिल गए

आस के जो फूल मुरझाए हुए थे, खिल गए

गूँजता हर पल रहे मल्हार इतना चाहती हूँ...



आप तक आवाज़ पहुँचे मैं पुकारूँ जब कभी

आप भी जब-जब पुकारें मैं चली आऊँ तभी

प्यार का विश्वास…

Continue

Added by Dr.Prachi Singh on February 12, 2017 at 11:00am — 10 Comments

ये मान सरोवर का पंकज, आँखों में ढूंढे है पानी- पंकज मिश्रा की गजल

22 22 22 22 22 22 22 22



कब रात हुई कब सुब्ह हुई, इस पत्थर ने कब है जानी

जब ताप चढ़ा ग़म का बेहद, तब धड़कन ने की मनमानी



चिंगारी पैदा होनी है, इस पत्थर से मत टकराओ

शोला ए इश्क़ ही भड़केगा, ग़र तूने बात नहीं मानी



वो सभी कथानक कल्पित हैं, जिनमें प्रियतम से मिलन हुआ

इस देवदास की प्यास अमिट, जो साथ घाट तक है जानी



ले जाना है तो ले जाओ, ये कुंडल कलम व ग़ज़ल कवच

इतिहास भला कैसे बदले, हर युग में कर्ण परम् दानी



इस दर पर लक्ष्मण का स्वागत,… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 12, 2017 at 11:00am — 19 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
यूँ चाँद का नकाब उतारा न कीजिये (ग़ज़ल 'राज')

२२१ २१२१ १२२१ २१२

बह्र-ए-मज़ारअ मुसम्मिन अखरब मकफूफ़

 

यूँ भीड़ में जनाब पुकारा न कीजिये

रुसवा हमें यूँ आप दुबारा न कीजिये

 

बिलकुल खुली किताब है चेहरा ये आपका

हर रोज पढ़ रहे हैं इशारा न कीजिये

 

नाराज हो न जाएँ सितारे औ आसमाँ

यूँ चाँद का नकाब उतारा न कीजिये

 

मौजे मचल रही हैं तुम्हे देख देख कर

गर पाँव चूम लें तो किनारा न कीजिये

 

गुलशन उदास होगा परेशान डालियाँ

यूँ रास्ते गुलों से…

Continue

Added by rajesh kumari on February 12, 2017 at 8:54am — 23 Comments

माता - पिता ( रोला गीत )

पिता धरा की शक्ति, धारणा के वाहक हैं।

माता धरा समान, सृष्टि की संचालक हैं।

दिया आपने जन्म, न उतरे ऋण की थाती।

मात- पिता गुणगान, आज ये जिह्वा गाती।

पिता धरातल ठोस, और मां ममता धारा।

पिता स्वयं वट वृक्ष, छांव मां ने पैसारा।

हम सब फल रसदार, मिष्‍ठता उनसे आती।

मात- पिता गुणगान, आज ये जिह्वा गाती।…

Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 11, 2017 at 3:08pm — 8 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"आ. भाई सत्यनारायण जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
11 hours ago
Dayaram Methani commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, गुरु की महिमा पर बहुत ही सुंदर ग़ज़ल लिखी है आपने। समर सर…"
22 hours ago
Dayaram Methani commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"आदरणीय निलेश जी, आपकी पूरी ग़ज़ल तो मैं समझ नहीं सका पर मुखड़ा अर्थात मतला समझ में भी आया और…"
22 hours ago
Shyam Narain Verma commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और उम्दा प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"आदाब।‌ बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब।"
Oct 1
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी।"
Sep 30
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी। आपकी सार गर्भित टिप्पणी मेरे लेखन को उत्साहित करती…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"नमस्कार। अधूरे ख़्वाब को एक अहम कोण से लेते हुए समय-चक्र की विडम्बना पिरोती 'टॉफी से सिगरेट तक…"
Sep 29
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"काल चक्र - लघुकथा -  "आइये रमेश बाबू, आज कैसे हमारी दुकान का रास्ता भूल गये? बचपन में तो…"
Sep 29
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"ख़्वाबों के मुकाम (लघुकथा) : "क्यूॅं री सम्मो, तू झाड़ू लगाने में इतना टाइम क्यों लगा देती है?…"
Sep 29
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"स्वागतम"
Sep 29
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"//5वें शेर — हुक्म भी था और इल्तिजा भी थी — इसमें 2122 के बजाय आपने 21222 कर दिया है या…"
Sep 28

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service