बहुत देर हुई …
Added by amita tiwari on February 16, 2017 at 8:30am — 3 Comments
221 2121 1221 212
बदनाम है जरूर मगर नाम तो हुआ
अफसाना जिदगी का सरे आम तो हुआ
आँखों में बंद था कभी सागर शराब का
वह तज्रिबे आशिक से लबे जाम तो हुआ
महफिल थी जम गयी उनके खयाल की
था जश्न थोड़ी देर पर दिल-थाम तो हुआ
उतरा था एक बार मुहब्बत की जंग में
नाकाम जंग होना था नाकाम तो हुआ
कहते है यार इश्क है अंजाम-बद बहुत
होना था जो अंजाम वो अंजाम तो…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 15, 2017 at 8:39pm — 13 Comments
22/22/22/22
तूफाँ से गर प्यार करोगे,
बाहों को पतवार करोगे।
अब कर दो इज्हार-ए-मुहब्बत,
कब तक छुप छुप प्यार करोगे।
छोड़ोगे कब हुक़्म बजाना,
कब ख़ुद को मुख्तार करोगे।
पेश आएंगे सभी अदब में,
जब खुद शिष्ट आचार करोगे।
दरिया पार तभी होगा जब,
ज़र्फ़ अपना पतवार करोगे।
इश्क़ में' हद से' गुज़रने वालों,
तुम ख़ुद को बीमार करोगे।
शाम हुई फैला अँधियारा,
जाने कब इज़्हार* करोगे।
*चराग़ रौशन करना…
Added by रोहिताश्व मिश्रा on February 15, 2017 at 4:30pm — 11 Comments
सुबह-सुबह कॉलेज जाने की तैयारी कर ही रही थी कि ऊपर वाली चाची की सीढ़ियों से उतरने की धमक के साथ ही उनकी आवाज सुनाई दी – "ए नीलम, सुनलू ह· कि ना, कमली म·र गइल ।" मुझे थोड़ा गुस्सा भी आया पर संस्कारगत आदत के मारे कुछ जतला नहीं पायी । इतना तो समझ आ ही गया कि अब आज का पहला पीरियड अटेण्ड नहीं कर पाऊँगी । अब चाची आ ही गयी हैं तो थोड़ा बैठना ही ठीक होगा और मैंने उन्हें बैठा कर झट पानी का ग्लास पकड़ाया ।…
ContinueAdded by Neelam Upadhyaya on February 15, 2017 at 3:30pm — 10 Comments
Added by Manan Kumar singh on February 14, 2017 at 8:39pm — 16 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 14, 2017 at 5:30pm — 10 Comments
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on February 14, 2017 at 4:30pm — 13 Comments
इक क़तरा भी रह न जाए, करना होगा ख़ुद को अर्पण,
प्रेम कहाँ पूरा होता है, अगर अधूरा रहे समर्पण।
लहर-लहर लहरें इतराकर
जी भर चंचलता तो जी लें,
हो वाचाल अगर अंतः तो
कैसे फिर होठों को सी लें,
तृप्त हुई लहरें खुद थम कर आखिर बन जाती हैं दर्पण।
प्रेम...
बारी-बारी इक दूजे में
आओ हो जाएँ हम-तुम गुम,
मुझको भी अभिव्यक्ति मिले और
ख़ुद को भी अभिव्यक्त करो तुम,
रात दिवस से, दिवस रात से, यही कहा करते हैं क्षण-क्षण।
प्रेम...…
Added by Dr.Prachi Singh on February 14, 2017 at 12:00pm — 7 Comments
मदिरा सवैता [भगण (२११) x ७ + गु]
पाँच विधानसभा फिर भंग हुई, नव रूप बुने जनता
राज्य हुए फिर उद्यत आज नयी सरकार चुने जनता
शासन और प्रशासन हैं नतमस्तक, आज गुने जनता
तंत्र चुनाव विशिष्ट लगे.. जनता कहती, कि सुने जनता..
*********
-सौरभ
Added by Saurabh Pandey on February 13, 2017 at 10:47pm — 13 Comments
Added by Ravi Shukla on February 13, 2017 at 6:32pm — 18 Comments
Added by Dr Ashutosh Mishra on February 13, 2017 at 3:04pm — 20 Comments
1212 1122 1212 22
ये जिंदगी है अभी तक नहीं दुआ पहुँची ।
खुदा के पास तलक भी न इल्तजा पहुँची।।
गमो का बोझ उठाती चली गई हँसकर ।
तेरे दयार में कैसी बुरी हवा पहुँची ।।
अजीब दौर है रोटी की दास्ताँ लेकर ।
यतीम घर से कोई माँ कई दफ़ा पहुची ।।
तरक्कियों की इबारत है सिर्फ पन्नों तक ।
है गांव अब भी वही गाँव कब शमा पहुँची ।।
यहां है जुल्म गरीबी में टूटना यारो ।
मुसीबतों में जफ़ा भी कई गुना पहुँची।।
है फरेबों का चमन मत…
Added by Naveen Mani Tripathi on February 13, 2017 at 1:00pm — 7 Comments
गाँव में होली
गाँव में होली अपनी उफान पर थी । चंदू के द्वार पर सुबह से ही चौपाल बैठ गयी थी । उनका भतीजा कहीं बाहर कुछ काम करता था । उसीने शराब की कुछ बोतलें घर भेज रखी थीं । गाँव में उसका बड़ा भतीजा रहता था ; कुछ काम का, न काज का, बस दोस्त समाज का !खाने –पीनेवालों का ताँता सुबह से उसके दर पे लगने लगा,मुफ्त में शराब और गोश्त के कुछ पर्चे मयस्सर जो हो रहे थे । बीच –बीच में माँ –बहन की भी हो जा रही थी। सुननेवालों के मजे –ही –मजे थे । हम भी अपने दरवाजे पर…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on February 12, 2017 at 7:41pm — 4 Comments
Added by नाथ सोनांचली on February 12, 2017 at 2:30pm — 12 Comments
Added by Rahila on February 12, 2017 at 2:00pm — 13 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on February 12, 2017 at 11:55am — 12 Comments
जानती हूँ वायदों के बंध होते हैं जटिल
मुक्त हों हर बंध से मैं प्यार इतना चाहती हूँ...
ताज़गी की आड़ में कितनी थकन थी, क्या कहूँ
खिड़कियाँ सारी खुलीं थीं पर घुटन थी, क्या कहूँ
अब मिले हर स्वप्न को विस्तार इतना चाहती हूँ...
हर ख़ुशी मुझको मिली है आप जबसे मिल गए
आस के जो फूल मुरझाए हुए थे, खिल गए
गूँजता हर पल रहे मल्हार इतना चाहती हूँ...
आप तक आवाज़ पहुँचे मैं पुकारूँ जब कभी
आप भी जब-जब पुकारें मैं चली आऊँ तभी
प्यार का विश्वास…
Added by Dr.Prachi Singh on February 12, 2017 at 11:00am — 10 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 12, 2017 at 11:00am — 19 Comments
२२१ २१२१ १२२१ २१२
बह्र-ए-मज़ारअ मुसम्मिन अखरब मकफूफ़
यूँ भीड़ में जनाब पुकारा न कीजिये
रुसवा हमें यूँ आप दुबारा न कीजिये
बिलकुल खुली किताब है चेहरा ये आपका
हर रोज पढ़ रहे हैं इशारा न कीजिये
नाराज हो न जाएँ सितारे औ आसमाँ
यूँ चाँद का नकाब उतारा न कीजिये
मौजे मचल रही हैं तुम्हे देख देख कर
गर पाँव चूम लें तो किनारा न कीजिये
गुलशन उदास होगा परेशान डालियाँ
यूँ रास्ते गुलों से…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 12, 2017 at 8:54am — 23 Comments
पिता धरा की शक्ति, धारणा के वाहक हैं।
माता धरा समान, सृष्टि की संचालक हैं।
दिया आपने जन्म, न उतरे ऋण की थाती।
मात- पिता गुणगान, आज ये जिह्वा गाती।
पिता धरातल ठोस, और मां ममता धारा।
पिता स्वयं वट वृक्ष, छांव मां ने पैसारा।
हम सब फल रसदार, मिष्ठता उनसे आती।
मात- पिता गुणगान, आज ये जिह्वा गाती।…
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 11, 2017 at 3:08pm — 8 Comments
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