हाँ तुम सपने में आई थी
होठों पर मुस्कान सजाये
बालों में बादल लहराए
गालों पर थी सुबह लालिमा
माथे पर बिंदिया चमकाए
जब तुमको मैंने देखा था
पास खड़ी तुम मुस्काई थी
हाँ तुम सपने में आई थी…
Added by आशीष यादव on January 19, 2017 at 1:45pm — 10 Comments
"तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो", बालों में अंगुलियां फिराते हुए उसने कहा|
"हूँ", कहते हुए वह खड़ी होने लगी|
"थोड़ी देर और बैठो ना", उसने उसका हाथ पकड़ कर खींच लिया| वह वापस बिस्तर पर बैठ गयी|
"सच में तुमको देखे बिना चैन नहीं मिलता", एक बार फिर उसने उसका हाथ पकड़ा|
वह उसको लगभग अनदेखा करते हुए बैठी रही| थोड़ी देर बाद वह फिर से उठने लगी तो उसने कहा "तुम जवाब क्यों नहीं देती, क्या मैं तुम्हें अच्छा नहीं लगता?
"लगते तो हो, लेकिन तुम्हीं नहीं, बाकी सब भी", उसने एक गहरी नजर डाली और…
Added by विनय कुमार on January 18, 2017 at 9:51pm — 14 Comments
भोजन कक्ष में बैठ कर परिवार के सभी सदस्यों ने भोजन करना प्रारंभ किया ही था कि बाहर से एक कुत्ते के रोने की आवाज़ आई। घर की सबसे बुजुर्ग महिला यह आवाज़ सुनते ही चौंकी, उसने सभी सदस्यों की तरफ देखा और फिर चुपचाप भोजन करने लगी।
उसने मुश्किल से दो कौर ही खाये होंगे और कुत्ते के रोने की आवाज़ फिर आई, अब वह बुजुर्ग महिला चिंताग्रस्त स्वर में बोली, "यह कुत्ता क्यों रो रहा है?"
उसके पुत्र ने उत्तर दिया, "चिंता मत करो, होगी कुछ बात।"
"नहीं! यह तो अपशगुन…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on January 18, 2017 at 8:59pm — 11 Comments
“भैय्या, जल्दी बस रोकना!!” अचानक पीछे से किसी महिला की तेज आवाज आई|
सभी सवारी मुड़ कर उस स्त्री को घूरती हुई नजरों से देखने लगी शाम होने को थी सभी को घर पँहुचने की जल्दी थी|
महिला के बुर्के में शाल में लिपटी एक नन्ही सी बच्ची थी जो सो रही थी |ड्राइवर ने धीरे धीरे बस को एक साइड में रोक दिया| पीछे से वो महिला आगे आई और तुरत फुरत में बच्ची को ड्राईवर की गोद में डाल कर सडक के दूसरी और झाड़ियों में विलुप्त हो गई|
ड्राईवर हतप्रभ रह गया कभी बच्ची को कभी सवारियों को देख…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 18, 2017 at 7:16pm — 18 Comments
इंतज़ार ...
छोड़िये साहिब !
ये तो बेवक़्त
बेवज़ह ही
ज़मीं खराब करते हैं
आप अपनी उँगली के पोर
इनसे क्यूं खराब करते हैं
ज़माने के दर्द हैं
ज़माने की सौगातें हैं
क्योँ अपनी रातें
हमारी तन्हाईयों पे
खराब करते हैं
ज़माने की निगाह में
ये
नमकीन पानी के अतिरिक्त
कुछ भी नहीं
रात की कहानी
ये भोर में गुनगुनायेंगे
आंसू हैं,निर्बल हैं
कुछ दूर तक
आरिजों पे फिसलकर
खुद-ब-खुद ही सूख जायेंगे
हमारे दर्द…
Added by Sushil Sarna on January 18, 2017 at 6:34pm — 13 Comments
2122 1212 22
गर वो करता है बात बेपर की ?
क्या ज़रूरत नहीं है पत्थर की
क्या हुकूमत लगा रही है अब ?
कीमत उस फतवे से किसी सर की
सिर्फ तहरीर में मिले भाई
सुन कहानी तू दाउ- गिरधर की
जिनके अजदाद आज ज़िन्दा हों
वो करें बात गुज़रे मंज़र की
क्या मुहल्ला तुझे बतायेगा ?
आग भड़की थी कैसे उस घर की
दीन ओ ईमाँ की बात करता है
क्या हवा लग न पायी बाहर की
रोशनी आज…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 18, 2017 at 8:30am — 15 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on January 18, 2017 at 6:56am — 7 Comments
Added by नाथ सोनांचली on January 18, 2017 at 4:21am — 12 Comments
आधार छन्द : 16+14 लावणी व कुकुभ मिश्रित,,
कोयल कुहुकी मैना बोली,भौंरे गूँजे भोर हुई ।।
आँख चुराये चन्दा भागा,रैन बिचारी चोर हुई ।।
कोयल कुहुकी,,,,
पूरब में ज्यों लाली निकली,सजा आरती धरा खड़ी,
उत्तुंग हिमालय पर लगता,कंचन की हो रही झड़ी,
बर्फ लजाकर लगी पिघलने,हिमनद रस की पोर हुई ।।(1)
कोयल कुहकी मैना बोली,भौंरे,,,,
सात अश्व के रथ पर चढ़कर,आ गए दिवाकर द्वारे,
स्वागत में मुस्काई कलियाँ,भँवरों नें मन्त्र उचारे,
सूर्यमुखी को देख…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 18, 2017 at 12:00am — 4 Comments
धूल , मिट्टी और गारे से सनी
एक कविता लिखना चाहता हूँ
इस आपाधापी से बचना चाहता हूँ
मिट्टी की सौंधी महक वाली
गोबर से लीपे आँगन वाली
एक कविता लिखना चाहता हूँ
इस आपाधापी से बचना चाहता हूँ
टूटे खाट पर बैठी
जाड़े में धूप सेंकती
सौ बरस की बुढ़िया पर
एक कविता लिखना चाहता हूँ
इस आपाधापी से बचना चाहता हूँ
कुएँ , चौपाल , चरवाहें
खूँटे से बंधे चौपायों पर
एक कविता लिखना चाहता हूँ
इस आपाधापी से बचना चाहता हूँ
आम , इमली , नीम ,…
Added by Mohammed Arif on January 17, 2017 at 10:30pm — 7 Comments
1 2 2 2 1 2 2 2
नया नग्मा कोई गाओ
पुराने ग़म चले आओ
तुम्हें उड़ना सिखा दूँगा
मिरे पिंजड़े में आ जाओ
अकेलापन अगर अखड़े
उदासी को बुला लाओ
अरे भँवरे, अरी चिड़िया
ग़ज़ल कोई सुना जाओ
शजर बोला परिंदे से
मुहाजिर लौट भी आओ
हमारा दिल तुम्हारा घर
कभी आओ, कभी जाओ
मौलिक और अप्रकाशित
...दीपक कुमार
Added by दीपक कुमार on January 17, 2017 at 1:37pm — 9 Comments
क्या जवाब दूँ तुम्हे मैं...ये जो सवाल है तुम्हारा...
हर रोज्र हारता हूँ...यहीं तो हाल है हमारा...
ये ख्वाब हीं बुरे हैं...
या फिर बुरा सा मैं हूँ...
सौ बार सोचता हुँ...
कुछ तो भला सा कह दूँ..
हर वक़्त एक सपना...
हाफीज्र सदा है मेरे...
कुछ पास है हमारे...
कुछ पास में है तेरे...
मै वक़्त का मुसाफिर...
अब वक़्त ढुँढता…
ContinueAdded by Aditya lok on January 16, 2017 at 10:30pm — 4 Comments
2122 2122 212
रोज करता खेल शह औ मात का।
रहनुमा पक्का नहीं अब बात का।।
कब पलट कर छेद डाले थालियाँ।
कुछ भरोसा है नहीं इस जात का।।
पत्थरों के शह्र में हम आ गए।
मोल कुछ भी है नहीं जज़्बात का।।
ख्वाहिशें जब रौंदनी ही थी तुम्हे।
क्यूँ दिखाया ख़्वाब महकी रात का।।
इंकलाबी हौसलें क्यों छोड़ दें।
अंत होगा ही कभी ज़ुल्मात का।।
मेंढकों थोड़ा अदब तो सीख लो।
क्या भरोसा…
ContinueAdded by डॉ पवन मिश्र on January 16, 2017 at 9:34pm — 17 Comments
2122 2122 212
.
गुलसितां दिल का खिलाते रह गए
फासले दिल के मिटाते रह गए
गुलसितां दिल का........
.
चाहतें अपनी बड़ी नादान थी
इश्क की राहें कहा आसान थी
फिर भी हम कसमें निभाते रह गए
फासले दिल के मिटाते ......
.
हाथ में तेरे मेरा जब हाथ हो
जिंदगी कट जाएगी गर साथ हो
हम भरोसा ही जताते रह गए
फासले दिल के मिटाते ...
.
चाह थी तो छोड़ कर ही क्यूँ गया
वास्ता देकर वफ़ा का क्यूँ भला
बेवजह दामन हि थामे रह…
Added by अलका 'कृष्णांशी' on January 16, 2017 at 9:00pm — 12 Comments
Added by दिनेश कुमार on January 16, 2017 at 6:30pm — 5 Comments
2 1 2 2 1 2 1 2 2 2/1 1 2 /2 2 1/1 1 2 1
दिल ने धड़कन उधार ले ली है
कितनी मोटी पगार ले ली है
ख़ूबसूरत लगी तो हमने भी
इक उदासी उधार ले ली है
फिर हवाओं से एक ताइर ने
दुश्मनी बार-बार ले ली है
हमने सुनसान राह में यादों की
इक रिदा ख़ुशगवार ले ली है
हँस-हँसा कर ज़रा संवर जाओ
आँसुओं से निखार ले ली है
मौलिक और अप्रकाशित
...दीपक कुमार
Added by दीपक कुमार on January 16, 2017 at 3:00pm — 5 Comments
बह्र 2122 2122 2122
रंजो ग़म में दिल मेरा उलझा हुआ है।
अश्क़ से तकिया तभी भीगा हुआ है।।
तू समझ पाये भी कैसे ये रवानी।
इश्क़ का दरिया तेरा सूखा हुआ है।।
साथ रहकर साथ वो क्योंकर नही था।
हर ज़ुबां पे ये सवाल आया हुआ है।।
ग़म मुझे दो और तुम हद से ज़ियादा।
क्योंकि ये चेहरा मेरा हँसता हुआ है।।
रास्ते भटकूँगा आख़िर क्यों भला मैं।
वक़्त का पहलू मेरा देखा हुआ है।।
पी के सब कड़वाहटें इस ज़िन्दगी की।
दोस्तों लहजा मेरा…
Added by gaurav kumar pandey on January 16, 2017 at 12:30pm — 10 Comments
हर रोज कहानी तेरी...
हर रोज तेरा अफसाना...
हम गूंथ रहे ख्वाबों में...
इस दिल का ताना बाना...
बस एक वो तेरी …
ContinueAdded by Aditya lok on January 16, 2017 at 12:30pm — 3 Comments
Added by नाथ सोनांचली on January 16, 2017 at 8:38am — 10 Comments
Added by Ravi Prakash on January 16, 2017 at 8:33am — 7 Comments
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