221 2121 1221 212
सारे जहाँ को आप तो नादाँ समझते हैं
हद ये है अपने आप को इंसाँ समझते हैं
अह्ल ए अदब जो चमके है औरों के ताब से
खुद को मगर वो लाल ए बदख़्शाँ समझते हैं
आमाल में हमारे ही कमियाँ न हों जनाब
शैतान को भी लोग मुसलमाँ समझते हैं
बातों से जब न बात बनी, सर झुका लिया
धोखे में हैं जो उसको पशेमाँ समझते हैं
फिरती है वो हलक में लिए जान, और आप
कुत्तों के बीच जीने को आसाँ समझते…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on January 11, 2017 at 11:40am — 12 Comments
ये दुनिया है भूलभुलैया
रची भेड़ियों ने
भेड़ों की खातिर
पढ़े लिखे चालाक भेड़िये
गाइड बने हुए हैं इसके
ओढ़ भेड़ की खाल
जिन भेड़ों की स्मृति अच्छी है
उन सबको बागी घोषित कर
रंग दिया है लाल
फिर भी कोई राह न पाये
इस डर के मारे
छोड़ रखे मुखबिर
भेड़ समझती अपने तन पर
खून पसीने से खेती कर
उगा रही जो ऊन
जब तक राह नहीं मिल जाती
उसे बेचकर अपना चारा
लायेगी दो…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 10, 2017 at 8:13pm — 6 Comments
"सर, मिश्राजी का फोन आया था, थोड़ी देर में किसी के साथ आ रहे हैं", जैसे ही वह ऑफिस में आया, सेक्रेटरी ने आकर बताया|
"ठीक है, अंदर भेजने से पहले एक बार मुझसे पूछ लेना", उसने कहा लेकिन उसके चेहरे पर थोड़ी तिक्तता फ़ैल गयी| मिश्राजी उसके अध्यापक थे, जब वह हाई स्कूल में था और पिछले महीने ही वह उनसे मिला था| इस नए स्थान पर पोस्टिंग के समय तो उसे उम्मीद भी नहीं थी कि इस तरह से कोई पुराना परिचित मिल जायेगा, लेकिन मिश्राजी को उसने देखते ही पहचान लिया था| दो बार पहले भी वह आ चुके थे यहाँ लेकिन कभी…
Added by विनय कुमार on January 10, 2017 at 7:58pm — 16 Comments
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on January 10, 2017 at 6:24pm — 7 Comments
अधूरी प्रीत से ....
लब
खामोश थे
पलकें भी
बन्द थीं
कहा
मैंने भी
कुछ न था
कहा
तुमने भी
कुछ न था
फिर भी
इक
अनकहा
नन्हा सा लम्हा
आँखों की हदें तोड़
देर तक
मेरी हथेली पे बैठा
मुझे
मिलाता रहा
मेरे अतीत से
अधूरी तृषा में लिपटी
अधूरी प्रीत से
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 10, 2017 at 2:22pm — 4 Comments
Added by Arpana Sharma on January 10, 2017 at 2:03pm — 9 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on January 10, 2017 at 6:16am — 12 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on January 10, 2017 at 1:30am — 9 Comments
Added by दिनेश कुमार on January 9, 2017 at 10:00pm — 9 Comments
हिम बसंत ...
प्रथम प्रणय का
प्रथम पंथ हो
हिय व्यथा का
तुम ही अंत हो
शिशिर ऋतु का
शिशिरांशु हो
विरह पलों का
शिशिरांत हो
शीत पलों की
मधुर सिहरन हो
नयन सिंधु का
मौन कंपन्न हो
मधु पलों में
मेरे प्रिय तुम
मधु स्मृतियों का
हिम बसंत हो
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 9, 2017 at 8:40pm — 8 Comments
2122 2122 2122 212
किसने होंटों पे तबस्सुम को सजाया कौन था
छुप के दिल में वस्ल का दीपक जलाया कौन था
साँसे मेरी जीस्त मेरी मेरा अपना था वजूद
धडकनों पे मेरी जिसने हक जमाया कौन था
जब कभी भीगी तख़य्युल में कहीं पलकें मेरी
शबनमी उन झालरों से मुस्कुराया कौन था
गुफ्तगू के उस सलीके पर मेरा तन मन निसार
बातों बातों में मुझे अपना बनाया कौन था
जब तेरी फ़ुर्कत…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 9, 2017 at 3:00pm — 18 Comments
Added by Manan Kumar singh on January 9, 2017 at 7:00am — 8 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on January 8, 2017 at 4:09pm — 8 Comments
Added by Manan Kumar singh on January 8, 2017 at 12:30pm — 11 Comments
221 2121 1221 212
तंग आ गया हूँ हालते क़ल्ब-ओ-ज़िगर से मैं
उकता गया हूँ ज़िंदगी, तेरे सफर से मैं
होश ओ हवास ओ-बेख़ुदी की जंग में फ़ँसे
दिल सोचने लगा है कि जाऊँ किधर से मैं
मंज़िल मेरी उमीद में जीती है आज भी
पर इलतिजाएँ कर न सका रहगुज़र से मैं
ऐसा नहीं गमों से है नाराज़गी कोई
उनकी ख़बर तो लेता हूँ शाम-ओ-सहर से मैं
अब नफरतों, की शक़्ल भी आतिश फिशाँ हुईं
डर है झुलस न जाऊँ कहीं इस शरर से…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 8, 2017 at 10:00am — 19 Comments
Added by नाथ सोनांचली on January 7, 2017 at 9:00pm — 13 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on January 7, 2017 at 8:46pm — 12 Comments
बर्फ़ीला मौन रिश्ते की आत्मा के फूलों पर
झुठलाती-झूठी अजनबी हुई अब बातें
स्नेह के सुनहरे पलों में हाथों में वेणी लिए
शायद बिना सोचे-समझे कह देते थे तुम ...
" फूलों-सी हँसती रहो, कोयल-सी गाती रहो "
" अब आज से तुम मेरी ज़िम्मेवारी हो "
और मैं झुका हुआ मस्तक लिए
श्रधानत, कुछ शरमाई, मुस्करा देती थी
कोई बातें कितनी जल्दी
इ..त..नी पुरानी हो जाती हैं
जैसे मैं और हम और हमारी
आपस में घुली एकाकार साँसें…
ContinueAdded by vijay nikore on January 7, 2017 at 5:22pm — 9 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 7, 2017 at 2:15am — 8 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 7, 2017 at 12:30am — 6 Comments
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