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एक गज़ल....होली पर

एक गज़ल....होली पर
 
इसलिये प्यार है.
अपनी सरकार है.
 
कहता बदमाश पर,
करता सत्कार…
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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 23, 2016 at 10:31am — 2 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
सॉनेट : एक प्रयास (मिथिलेश वामनकर)

क्या है जीवन, आज समझने मैं आया हूँ

कठिन समय का दर्द सदा ही पाया मैंने

बस आशा का गीत   हमेशा गाया मैंने

जब तुम बनते धूप, बना तब मैं साया हूँ

 

जन्म काल से सत्य एक जो जुड़ा हुआ है

मानव की उफ़ जात बनी ये आदत कैसी

सदा ज्ञात यह बात मगर क्यों भूले जैसी

वहीँ शून्य आकाश एक पथ मुड़ा हुआ है

 

आया है जो आज उसे निश्चित है जाना

इस माटी का मोह, रहे क्यों साँझ सकारे?

इस माटी का रूप बदल जायेगा प्यारे 

फिर भी रे इंसान…

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Added by मिथिलेश वामनकर on March 22, 2016 at 10:44pm — 31 Comments

नव गीत

धूसरित था मलिन-मुख हम स्वच्छ दर्पण कर रहे

झूठ को अपना लिया हर सत्य से अब डर रहे  

 

अवधान तुमने किया था

हमने उसे माना नहीं

पाखण्ड यौवन का सदा

उद्दाम था जाना नही

पत्र अब इस विटप-वपु के सब समय से झर रहे

 

चेतना या समझ आती

है मगर कुछ देर से

बच नहीं पाता मनुज

दिक्-काल के अंधेर से

जो किया पर्यंत जीवन अब उसी को भर रहे

 

हम अकेले ही नहीं 

संतप्त है इस भाव में

जल रहा है अखिल…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 22, 2016 at 7:50pm — 12 Comments

मन बहुत उदास है ...

मन बहुत उदास है ...

जाने क्यूँ आज

मन बहुत उदास है

वज़ह भी कोई ख़ास नहीं

फिर भी एक

अंजानी से उदासी ने

हृदय में पाँव पसार रखे हैं //

लगता है शायद

कुछ ऐसा रह गया

जो अपनी पूर्णता को

प्राप्त न कर सका हो //

या फिर कोई लम्हा

शब की चादर में

अधूरी ख्वाहिशों की उदासी के साथ

धीरे धीरे अंगड़ाई लेते लेते

जाग गया हो //

या फिर कोई याद

तन्हाईयों में रक्स करती

उदासी के घरौंदे में…

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Added by Sushil Sarna on March 22, 2016 at 4:25pm — 4 Comments

कुण्डलिया छंद - लक्ष्मण रामानुज

होली  पर्व  की  हार्दिक शुभकामनाओं सहित  प्रस्तुत -

कुंडलिया  छंद 

=========

होली का त्यौहार ये, लगता सदा बहार

भारत वासी मानते, सतरंगी त्यौहार,

सतरंगी त्यौहार, मनाते घर घर खुशियाँ

बजता ह्रदय मृदंग, रंग बरसाते हुरियाँ |

लक्ष्मण देखे लोग,बनाते अपनी टोली

जीजा साली संग, खेलते खुलकर होली |

 (2)

होली में दिल खोलकर, करे आप सत्कार

घर में खुशियों के लिए,आया यह त्यौहार

आया यह त्यौहार, यहाँ पर सभी मनाते

फाग खेलते…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 22, 2016 at 10:48am — 4 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मुहब्बत का करो इजहार होली में (ग़ज़ल 'राज '

बह्र --हजज मुसद्दस सालिम

१२२२ १२२२ १२२२

गुलाबी रंग दो रुख्सार होली में

खुमारी भंग की हो यार होली में

 

मिटा दो दुश्मनी मिलकर गले यारो   

मुहब्बत का करो इजहार होली में

 

कहानी प्रीत की फिर से नई लिक्खो  

पुरानी भूल कर तकरार होली में

 

अनेकों रंग मिलकर एक हो जाओ

करो मत धर्म का व्यापार होली में

 

खुले दिल से बिना डर के खिलें कलियाँ

हटाओ रास्ते से ख़ार होली में

 

मिटाकर दूरियाँ…

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Added by rajesh kumari on March 22, 2016 at 10:10am — 4 Comments

खिलौने वाली गन (लघुकथा) – शुभ्रान्शु पाण्डॆय

खिलौने वाली गन (लघुकथा) – शुभ्रान्शु पाण्डॆय

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“पापा, वो वाली गन !  देखो न, कितनी असली सी लगती है !” – सुपर बाज़ार की भीड़-भाड़ में बिट्टू उस खिलौने वाली गन के पीछे हठ कर बैठा था ।

“नहीं बेटा.. हमें वो चावल वाली सेल के पास चलना है । जल्दी करो, नहीं तो वो खत्म हो जायेगा..”

“पापा, इस पर भी सेल की बोर्ड लगा रखी है.. पापा ले लो ना…प्लीऽऽज..”,

बिट्टू की मनुहार भरी आवाज सुन कर किसी का मन न रीझ जाये । लेकिन रमेश अपने एक मात्र हजार…

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Added by Shubhranshu Pandey on March 22, 2016 at 9:30am — 10 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
होली पर एक प्रेम गीत....//डॉ. प्राची

माही तेरा रंग गुलाबी, सब रंगो में सबसे से गहरा



रंग भरी ले कर पिचकारी

क्यों करता नटखट अठखेली,

हाय! मेरी चूनर रंग डाली

चुहल करे हर एक सहेली,

पायल की रुनझुन में गुपचुप, मगर लाज का गूँजा पहरा।



इस अबीर का रंग है पक्का

लग जाए फिर ये ना छूटे,

बंधन ऐसा प्रेमपाश का

जुड़ जाए फिर ये ना टूटे,

शब्द-शब्द अंतर से उतरा, पर आँखों में आ कर ठहरा।



माही के रंगो में सोनी

सोनी के रंग रंगा माही,

ढले एक दूजे के ढंग में

जन्मों के जैसे… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on March 21, 2016 at 8:27pm — 2 Comments

पुन्न (पुण्य) लधु कथा

पुन्न (पुन्य)

आज बड़ी बुआ आ गई,थैला और पेटी के साथ ।

"ये लल्लू ,पइसा दे दे रिक्शा बाले को,मेरे पास फुटकर नहीं हैं ।"

रिक्शा के पैसे दे ,चरणस्पर्श का आशीर्वाद लेकर पेटी अम्मा के कमरे में रख दी ।बुआ ने पेटी पलंग के नीचे खिसका ,ताला हिला कर तसल्ली कर ली ।इस बार पेटी कुछ ज्यादा ही भारी है।पेटी पर लगा अलीगढ़ी ताला ,जिसकी चाबी उनके गले में पड़ी तीन तोले की चेन में लटकी रहती ।

क्या किस्मत है,इस लोहे की चाबी की ,चौदह वर्ष की उम्र से ब्लाउज के अंदर उनके साथ। बाल विधवा बुआ ने…

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Added by Pawan Jain on March 21, 2016 at 2:30pm — 5 Comments

संग तुम्हारे नाम के ......

संग तुम्हारे नाम के ......

इस लम्हा

जब शून्यता ने

मुझे अंगीकार कर लिया है //

मेरे ख्वाब

सूखे शज़र के ज़र्द पत्तों से

बिखर गए हैं 

कम से कम

मुझ पर इतना तो रहम कर दो

तुम अपनी याद का

इक चराग तो जलने दो//

इस लम्हा

जब मेरा वज़ूद

ख़ाक में मिलने से पहले

अंतिम साँसों से

जीने की जिद्दो ज़हद में उलझा है

अपने अस्तित्व की याद को

मेरे ज़हन में जी लेने दो//

इस लम्हा जब

मेरी तमाम हसरतें…

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Added by Sushil Sarna on March 21, 2016 at 2:15pm — 4 Comments

ज़िंदा अभी तलक हैं, रावण दहेज़ वाले

2212 122 2212 122

दुःख सर पे चढ़ गया है, पीड़ा पिघल रही है।

हालात की तपिश से, नदिया निकल रही है।।

 

मरघट सा हो गया है, हर रास्ता शहर का।

इंसानियत चिता पर, हर ओर जल रही है।।

 

ज़िंदा अभी तलक हैं, रावण दहेज़ वाले।

अब भी दहेज़ वाली, क्यों सोच पल रही है।।

 

विद्रोह कर रही है, अब सोच भी हमारी।

क्यों मौन हूँ अभी तक, ये बात खल रही है।।

 

ग़र चे कलम के बदले, हथियार उठ गया तो।

पंकज से फिर न…

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Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 21, 2016 at 11:30am — 6 Comments

गीत-ये प्रथम मिलन की रात

ये प्रथम मिलन की रात प्रिये!

तुम भूल न जाना।

तन-यौवन-रूप सजाया ज्यों,

घर-बार सजाना।।

ये प्रथम मिलन की रात प्रिये!

तुम भूल न जाना।



सुख-दुख में तुम सहभागी अब,

ये मन तुम पर अनुरागी अब।

तुमसे कुछ नही छिपाना है,

हिय का सब हाल बताना है।।

निश्छल मन में, निश्छल मन से,

अब तुम बस जाना।

ये प्रथम मिलन की रात प्रिये!

तुम भूल न जाना।।



पतझड़-सा सूना जीवन था,

नीरस मेरा घर आँगन था।

अब तुम जीवन में आई हो,

सतरंगी सपने… Continue

Added by रामबली गुप्ता on March 21, 2016 at 10:57am — 11 Comments

जोंक (लघुकथा )राहिला

"हजूर,मांई बाप! कुछ रूपया मिल जाता तो बड़ी मेहरबानी हो जाती।"

"कितने चाहिये?"आवाज में दबंगी की खनक थी ।

"यात्रा लाक(लायक)हजूर!बस दो हजार।"

"अच्छा...चैत काटने जा रहे हो।"

"हओ मालिक! "

"हूँsss..कोई गारंटी या कुछ गिरवी रखने लाये हो?"जोंक को जैसे शिकार मिला ।

"काहे मजाक करते हो सरकार!हम गरीबों के पास क्या धरा?"

"देखो भई!मैं लेनदेन का काम कच्चा करता ही नहीं ।बिना कुछ गिरवी रखे एक दमड़ी नहीं दूंगा।"शब्दों को चबाते हुये वे कुछ रूके,फिर पुनः बोले-वैसे...,एक चींज है… Continue

Added by Rahila on March 20, 2016 at 11:10pm — 18 Comments

एक ग़ज़ल

२१२२ २२१२ २२,

जख्म जब दिल कोई छुपाता है।

दर्द होठों पर मुस्कुराता है।

******

मद भरी आँखे होठ के प्याले,

शाम ढलते ही याद आता है।

******

वो भला कैसे सँभलना जाने,

जो नही कोई चोट खाता है।

******

जाम पीकर भी प्यास कब बुझती,

बस कदम ही तो लड़-खड़ाता है।

******

लूट ले फिर इक बार आ करके,

आ तुझे दिल फिर बुलाता है।

*******

ख़ाक परवाने हो चलें देखो,

अब चिरागों को क्यों बुझाता है।

******

मौलिक अप्रकाशित…

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Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on March 20, 2016 at 11:30am — No Comments


मुख्य प्रबंधक
अतुकांत कविता : खेती (गणेश जी बागी)

ऊँची, नीची, मैदानी, पठारी, 

उथली, गहरी...

दूर तक विस्तृत

उपजाऊ जमीन.

 

यहाँ नहीं उपजते

गेहूँ, धान

फल, फूल,

न उगायी जाती हैं साग, सब्जियाँ

किन्तु,

जो उपजता हैं

उससे....

करोड़ों कमाती हैं

बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ

 

तय होतें हैं

सियासी समीकरण

 

बनती बिगड़ती हैं

सरकारें

 

पैदा होता है

विकास

आते हैं

अच्छे…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 20, 2016 at 9:00am — 16 Comments

पीढ़ियां.....

पीढ़ियां !

सीढ़ियों पर चढ़ कर

पीढ़ियां !

थूंकती आसमान पर

धरा आर्द्रवश सहेज लेती

नदियों के कछार

दलदल - सदाबहार वन

आमंत्रित मेघ

बरसते नहीं.

पीढ़ियां !

असमय कड़क कर चमकतीं

गिरती बिजलियां

जलते घास-पूस के छप्पर

ढह जाते दुर्ग

सम्मान के...

संस्कृति के.

बिखरे अवशेष कराहते

खण्डहर में उग आते बांस

सीढ़ियां बनने को उत्सुक

पीढ़ियां उत्साह में फिसल…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 20, 2016 at 8:30am — No Comments

दो बह्र एक गजल ...

दो बहरी गजल:-

1बह्र:-2122-1122-1122-112

2बह्र:-2122-2122-2122-212



बेसबब रिश्ते -ओ-नातों के लिए बिफरे मिले।।

जब मिले मुझको मेरे सपने बहुत उलझे मिले।।



ज़िन्दगी जिनसे मिला सब ही बड़े नम से मिले।।

मैं उसे समझू मसीहा जो जरा हँस के मिले।।



रुक जरा पूछे इन्हे कैसी कठिन राहें रही।

ये मुसाफिर हैं पुराने आज हम जिनसे मिले।।



उस नदी का है समर्पण जो सदा बहती रहे।

राह जीवन की चले चलते हुए सब से मिले।।



जिंदगी जिनसे गुलाबी है… Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on March 20, 2016 at 7:18am — 1 Comment

गद्दार (लघुकथा)

"ये लो इस गद्दार की लाश" एक सैनिक उस घर के बाहर खड़ा होकर चिल्लाया| आवाज़ सुनकर मोहल्ले के लोगों की भीड़ जमा हो गयी|

"इनका परिवार पुश्तों से सेना में है और आखिरी वंशज गद्दार निकला" मोहल्ले के लोगों में फुसफुसाहट होने लगी|

उसका पिता सिर झुकाये चुपचाप घर से बाहर निकला| उसकी लाल आँखें और उतरा हुआ चेहरा बता रहा था कि कुछ रातों से वह सोया नहीं है|

"देश के लोगों के खून के साथ होली खेलनी थी ना, तो आज होली के दिन ही लाये हैं" दूसरा सैनिक तल्खी से बोला|

"अब इस पर हस्ताक्षर…

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Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on March 19, 2016 at 10:30pm — 5 Comments

आपके तो पर परिंदों -ग़ज़ल -लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

2122    2122    2122    212

*******************************

दुश्मनों के डर को उसने अपना ही डर कर लिया

और दामन  दोस्तों  के  खून  से  तर कर लिया ।1।



जब  नगर  में  रह न पाए  दोस्तो  महफूज हम

आदिमों  के  बीच  हमने दश्त  में घर कर लिया ।2।



चोट  खाकर भी  हँसे  हैं   आँख  नम  होने न दी

सब गमों  को आज  हमने देखिए सर कर लिया ।3।



आपके तो  पर  परिंदों  फिर  भी  क्यों लाचार हो

हर कठिन परवाज  भी यूँ  हमने बेपर कर लिया ।4।



कह न  पाए  बात कोई…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 19, 2016 at 12:31pm — 10 Comments

आया सुखमय बसन्त-चौपाई छंद

आया सुखमय बसंत आया।

अंग-उमंग तरंगहि लाया।।

राग-रंग का ऋतु है भैया।

नाचे तन-मन ता ता थैया।।

नव पल्लव तरुओं पर आये।

पछुआ गुन-गुन गीत सुनाये।।

आम्रकुंज फूले बौराये।

सुरभित वात हृदय महकाए।।

सरसों के सुम पीले-पीले।

पीताम्बर-से भू पर फैले।।

सजी धरा-वधु हिय पुलकाए।

पीत वसन ज्यों तन पर छाए।।

पशु-पक्षी सब नाचे गायें।

कोयल नित नव राग सुनाये।।

मोर-मोरनी विहरें वन में।

नाचे-झूमें हरखें मन में।।

स्वच्छ गगन दिनकर ले… Continue

Added by रामबली गुप्ता on March 19, 2016 at 11:26am — 2 Comments

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