Added by Mamta on January 1, 2016 at 4:01pm — 8 Comments
कोयला खदान की
काली अँधेरी सुरंगों में
निचुड़े तन-मन वाले खनिकर्मी के
कैप लैम्प की पीली रौशनी के घेरे से
कभी नहीं झांकेगा कोई सूरज
नहीं दीखेगा नीला आकाश
एक अँधेरे कोने से निकलकर
दूसरे अँधेरे कोने में दुबका रहेगा ता-उम्र वह
पता नहीं किसने, कब बताया ये इलाज
कि फेफड़ों में जमते जाते कोयला धूल की परत को
काट सकती है सिर्फ दारु
और ये दारू ही है जो एक-दिन नागा…
Added by anwar suhail on January 1, 2016 at 3:30pm — 3 Comments
१२२२ १२२ १२२२ १२२
मैं अपना घर सम्भालूँ वो अपना घर संभालें
ये बंदूकें हटा लें अमन से हल निकालें
झुलसती अब है धरती नहीं जमता हिमानी
अगन पीकर मही की चलो नदियाँ बचा लें
गले रोजाना मिलते , मिलाते हाथ भी हैं
कभी तो ऐ पड़ोसी दिलों को भी मिला लें
कली मुरझा रही है सिसकते हैं ये भंवरे
जहाँ में है अँधेरा चरागों को जला लें
बहुत रूठे हुए हैं हमारे अपने हमसे
चलो खुद आगे बढ़कर के रूठों…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on January 1, 2016 at 10:34am — 8 Comments
200
वही रवि, वही किरण,
वही धरा, वही गगन,
शीत के पुनीत कर्म में जुड़ा वही पवन।
वही रजनी, वही दिवा,
वही संध्या , वही उषा,
मयंक भी भटक रहा लिये सतत जिजीविषा।
पुरा वही, वही नया ,
कहें सभी नया, नया,
बदल रहे हैं मात्र अंक, बदल रही सतत प्रभा।
इसी गणन में अटका मन
निहारता रूपान्तरण,
किसे कहें विदा और करें किसका स्वागत जतन।
मौलिक एवं अप्रकाशित
०१ जनवरी…
ContinueAdded by Dr T R Sukul on January 1, 2016 at 9:00am — 6 Comments
2122 2122 2122 212
कामना आ ओ करें ऐसी जहाँ में रीत हो!
भूल जायें भेद सब नव वर्ष में बस प्रीत हो!!
पुष्प मुकुलित हों प्रिये आये मधुप लेकर नवल
रसभरी मधु-मालती को सिक्त करता गीत हो।
ज्योत्सना ऐसी खिलेअब रे खिले जन-मन मृदुल
हों सभी उन्मुक्त मन फिरअब नहीं कुछ भीत हो।
पी अमर रस पीक जब टेरे खड़ा फिर रे पिकी
छेड़ती हो धुन अमर गुंजित जहाँ हो जीत हो।
हों नियति के सब सभासद रुख लिए अनुकूल ही
हो निशा का अंत फूटे रोशनी नव नीत हो।
चंप-लतिका फेरती हो शीश…
Added by Manan Kumar singh on January 1, 2016 at 8:30am — 6 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 31, 2015 at 10:58pm — 8 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on December 31, 2015 at 9:40pm — 5 Comments
Added by somesh kumar on December 31, 2015 at 1:00pm — 2 Comments
Added by Abha on December 31, 2015 at 1:12am — 2 Comments
रात की सरहदें,
चाँद का दबदबा,
जिनको करने फ़तह,
है सुबह चल पड़ी
नींद के सब किले,
बाँध लो तुम ज़रा,
ख़्वाब की ज़िन्दगी,
अब बहुत कम बची
सुबह और रात में,
जंग लो छिड़ गयी,
क़त्लो-ग़ारत हुई,
रात फिर छट गयी,
लाश तारों की उफ़!,
ओस बन बिछ गयी,
रौशनी, रौशनी,
हर तरफ चढ़ गयी
जीत का जश्न फिर,
खूब दिन भर चला,
आसमां रौंद कर,
देखो सूरज चला,
कितना मगरूर था,
हाय! कितना गुमां,…
Added by Karunik on December 30, 2015 at 11:30pm — 3 Comments
122-122-122-122
.
मैं रूठा हूँ तुमसे, मना क्यूँ न लेती।
अदाओं का जादू, चला क्यूँ न लेती।।
गज़ब का नशा है जो,तेरी नज़र में।
तो हाला ये तू, आज़मा क्यूँ न लेती।।
पता है मुझे सिर्फ़, धोखाधड़ी है।
हक़ीक़त पता तू,लगा क्यूँ न लेती।।
जो डरती है हासिल,गँवाने से ग़र तू।
तो इन आंसुओं को छिपा क्यूँ न लेती।।
सुना है तेरे जिस्म में दामिनी है।
चिता पर हूँ लेटा,जला क्यूँ न देती।।
मौलिक एवम् अप्रकाशित
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on December 30, 2015 at 10:30pm — 10 Comments
२१२ २१२
आपका नाम था
मेरा तो जाम था
हर किसी धर्म में
प्यार पैगाम था
रब मिला ही नहीं
उससे कुछ काम था
वो ख़ुदा था कहीं
पर कहीं राम था
थी ख़ुशी ख़ास में
गम मगर आम था
प्रेम इंसानियत
अब भी गुमनाम था
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Added by gumnaam pithoragarhi on December 30, 2015 at 7:28pm — No Comments
उस दिन जब हम मिले थे
पहली बार
हम चुप रहे
या यूँ कहो बोल ही न सके
और फिर यूँ ही मिलते रहे
तब तक
जब तक तुमने शुरु नही किया
बोलना
हालांकि मैं
बोल न सकी फिर भी
अधर थरथराये जरूर
पर खोल न सकी मुख
पर तुमने जब शुरू किया
तो जाने कहाँ से
शब्दों का समंदर उमड़ पड़ा
और मैं
उसके घात-प्रतिघात के बीच
खाती रहे हिचकोले
मंत्र-मुग्ध, आतुर, विह्वल
मैं जानती…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 30, 2015 at 4:37pm — 4 Comments
फूल बिना भौंरे का जीवन , जग में है कितना लाचार । |
जब बाग वन कहीं खिले कली , आ जाये बिकल बेकरार । |
रंग रूप ना दूरी देखे , नैनों से करता इजहार । |
खार वार कुछ भी ना देखे , जोश में आये बार… |
Added by Shyam Narain Verma on December 30, 2015 at 12:30pm — 1 Comment
1222 1222 1222 1222
सियासत काम कम करती मगर तकरार जादा अब
बुढ़ापा चढ़ गया है या पड़ी बीमार जादा अब /1
जवानी क्या खुदा ने दी फरामोशी चढ़ी सर पर
लगे कम माँ की ममता जो सनम का प्यार जादा अब /2
बहुत था शोर पर्दे में रखे हैं खूब अच्छे दिन
उठा पर्दा तो ये जाना पड़ेगी मार जादा अब /3
कहा हाकिम ने है यारो चलेगी सम विषम जब से
हुए खुश यार निर्माता बिकेंगी कार जादा अब /4
जहर लगती है मुझको तो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 30, 2015 at 11:00am — 4 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 30, 2015 at 8:40am — 1 Comment
क्या हासिल हर किये-धरे का ?
गुमसी रातें
बोझिल भोर !
हर मुट्ठी जब कसी हुई है
कोई कितना करे प्रयास
आँसू चाहे उमड़-घुमड़ लें
मत छलकें पर
बनके आस
…
Added by Saurabh Pandey on December 30, 2015 at 2:32am — 6 Comments
पहेली दिल की सुलझाऊँ तो कैसे
मैं इससे हार भी जाऊं तो कैसे।
लिपट जातें हैं पावों से बगूले
मैं बाहर दश्त से आऊँ तो कैसे।
पुकारे आसमां बाहें पसारे
परों बिन पास मैं जाऊं तो कैसे ।
धड़कता है वो दिल में दर्द बनकर
मैं उसको भूल भी जाऊं तो कैसे ।
गुलो पर बूँद मैं शबनम की बनके
हवा में फिर से घुल जाऊं तो कैसे।
उमड़ती ज़ह्ण में ख़्वाबों की नदियां
समन्दर मुट्ठी में लाऊँ तो कैसे
बदन पर पैरहन यादों का तेरा
नज़र…
Added by सीमा शर्मा मेरठी on December 29, 2015 at 10:00pm — 13 Comments
नई हसरत नई हिम्मत नई परवाज़ देगा कल
मिटाने तीरगी सबकी नया सूरज उगेगा कल
नये सपने उगाये खेत में देखो सियासत ने
फ़लक तक कीमतें पाकर बशर बेबस हँसेगा कल
नये इस दौर में आकर हुआ नेता कलम मेरा
अधूरा छोड़ कर कल का नया वादा लिखेगा कल
किसी भी रोज दफ्तर में किया कुछ भी नहीं जिसने
कसीदे काम के पिछले सुना है वो पढ़ेगा कल
जो पिछले साल सोचे थे हुए पूरे कहाँ उसके
भुलाकर वो पुराने अब नये संकल्प लेगा…
ContinueAdded by rajesh kumari on December 29, 2015 at 8:30pm — 10 Comments
२१२ २१२ २१२ २१२
दो घड़ी जब ठहरना नहीं आपको
तय ही है प्यार करना नहीं आपको
चाँद अम्बर पे भी चाँद छत पे भी है
कुछ भी हो है बहकना नहीं आपको
रात दिन हुस्न क्यूँ यूं संवरता फिरे
आँखों से कुछ समझना नहीं आपको
बात गुल बुलबुलों तोता मैना कि क्या
है कभी जब चहकना नहीं आपको
सूखती जूड़े में नित नयी गुल कली
खूब समझे बदलना नहीं आपको
कितना भी यूं घटाओं सा उमड़ो मगर
अब्र जैसे…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on December 29, 2015 at 6:30pm — 8 Comments
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