छोड़ शहर की रौनक,जिसके
गाँव में बसते प्राण।
जिसकी पावन धरती ने है
जने वीर संतान।
जिसकी गौरव-गाथा का
करे विश्व गुणगान।
है देशों में वो देश महान।
अपना प्यारा हिन्दुस्तान।।
सूरत से भी ज़्यादा उनकी
होती सीरत प्यारी।
हृदय में जिनके बहती है
करुणा जग की सारी।
वक़्त पड़े तो रणभूमि में
जौहर दिखलाती नारी।
अत्याचार को देख के जिनके
दिल में उठता है तूफ़ान।।
राजतंत्र को मिटा जिन्होंने
गणतंत्र हमें…
Added by जयनित कुमार मेहता on December 13, 2015 at 9:30pm — 6 Comments
बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
देख तेरे संसार की हालत सब्र छूटने लगता है
जिसको ताकत मिल जाती है वही लूटने लगता है
सरकारी खाते से फ़ौरन बड़े घड़े आ जाते हैं
मंत्री जी के पापों का जब घड़ा फूटने लगता है
मार्क्सवाद की बातें कर के जो हथियाता है सत्ता
कुर्सी मिलते ही वो फौरन माल कूटने लगता है
जिसे लूटना हो कानूनन मज़लूमों को वो झटपट
ऋण लेकर कंपनी खोलता और लूटने लगता है
बेघर होते जाते मुफ़लिस, तेरे…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 13, 2015 at 2:49pm — 10 Comments
कहने को दोस्त हैं बहुत
लेकिन दोस्त,
सच में
तुम ही "एक" दोस्त थी मेरी
अपरिभाषित दिशाओं के पट खोल
सुविकसित कल्पनाओं को बहती हवाओं में घोल
मुझको अँधियाले ताल के तल से
प्रसन्नता की नभचुम्बी चोटी पर ले गई थी
वह तुम ही तो थी
हर हाल में मुझको
लगती थी अपनी
इतनी
कि मैं पैरों के घिसे हुए तलवों को
मन की फटी हुई चादर की सलवटों को
दिखाने में संकोच नहीं करता था...
सवाल ही नहीं उठता…
ContinueAdded by vijay nikore on December 13, 2015 at 9:17am — 12 Comments
पवन व अशोक बहुत अच्छे दोस्त, मगर जब भी कभी पवन, अशोक से समाज की किसी समस्या के बारे में बात होती तो उस का बना बनाया एक ही जवाब होता ।
“कि मेरे साथ राजनीती की बात न करो, सायद उस ने सोच रखा है कि जिन बातों का उस के घर, बच्चों व नौकरी से संबध नहीं, वो सभी बातें फजूल है ।“
अशोक को घर में भी ऐसी बहस फजूल सी लगती ।
पवन को बात शुरू करते ही अशोक कह देता और कोई बात करो , राजनीती नहीं , वरना वह शुरू होते ही विराम लगा देता,और कई बार वहाँ से उठ कर चला जाता ।
मगर पवन ने…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on December 12, 2015 at 10:30pm — 2 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 12, 2015 at 10:18pm — 8 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2015 at 8:19pm — 10 Comments
लावनी छंद |
नारी की असीम ताक़त है , मिट्टी को करती सोना |
जंगल में मंगल कर देती , सारे रश्मों को ढोना |
बनती बेटी ससुराल बहू , माँ को छोड पड़े रोना |
अजनवी घर अपना बनाती , हर सुख दुःख पड़े ढोना |
नारी जीवन की धारा है , साथ साथ साथ निभाती |
खुशी खुशी बच्चों को पाले , सबके संग घर चलाती |
घरनी बिन घर सूना लागे , जब छोड़ मायके जाती |
आये जब घर आँगन खिलता , जीवन में खुशियाँ लाती |
पति जाये जब गलत राह पर , विनय कर उसे समझाती |
पर अपने को अबला समझे…
Added by Shyam Narain Verma on December 12, 2015 at 6:00pm — 2 Comments
सब उसे पागल कहते थे, लेकिन एक बुद्धिजीवी का दिमाग उसे पागल नहीं मानता था|
आज उस बुद्धिजीवी ने देखा कि वो एक मंदिर में गया, वहां नमाज़ पढ़ी|
फिर एक गुरूद्वारे में गया और वहां कैरोल गाया|
और एक गिरजे में गया और आरती की|
फिर एक मस्जिद में गया और वहाँ अरदास की|
आखिर में अपनी जगह पर जाकर बहुत रोया,
बुद्धिजीवी ने कारण पूछा तो उसके उत्तर में भी एक प्रश्न था, "हर धार्मिक-स्थल पर दान दिया था| वो बिकता तो है, लेकिन मिलता कहाँ है?"
बुद्धिजीवी समझ गया वो पागल ही…
Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 12, 2015 at 11:04am — 3 Comments
सूने आंगन में जाल बिछा चांदनी रात सोयी रोकर
मेरी अभिलाषा जाग रही रागायित हो पागल होकर
मैं समय काटता रहा विकल
दायें-बायें करवटें बदल
घिर आये मानस-अम्बर पर
स्वर्णिम सपनीले बादल-दल
बौराया घूम रहा मारुत अपनी सब शीतलता खोकर
सपनो में चल घुटनों के बल
सरिता तट पर आया था जब
कह डाला कुछ मन की मैंने
वह बज्र प्रहार हुआ था तब
सायक सा टूटा था अंतस निर्दयता की खाकर ठोकर
यह नाग आँख में है अविरल
छोड़ता निरंतर…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 10, 2015 at 8:30pm — 5 Comments
मानों कयामत बरपा हो गई। पूरा शहर लबालब भरा है।चारों ओर त्राही-त्राही मची हुई है। शिवानी प्रसव वेदना से तड़प रही है। शरद पैदल ही उसे अस्पताल ले जा रहा है
"अब बचना मुश्किल है।"कराहते हुए शिवानी बोली।
पानी गले-गले तक पहुँच गया।जीवन की आशा क्षीण हो चली है। एक अज़नबी तैरता हुआ करीब आया।
"मैं आप लोगों को सुरक्षित जगह पहुंचाने आया हूँ।"
उसकी मदद से शरद समय पर शिवानी को अस्पताल पहुंचाने में सफ़ल हो गया।
"शुक्रिया ! आज़ तुम न होते तो जाने क्या होता? "शरद ने कहा।
"ये तो…
Added by Janki wahie on December 10, 2015 at 5:30pm — 10 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on December 10, 2015 at 11:11am — 3 Comments
पुलिस चौकी को कार्यक्रम स्थल मे बदल दिया गया है , सामने लोगो का मजमा लगा हुआ है | उसे देखने के लिये सब बडे आतुर है । आज वो आत्मसमर्पण करने वाली है प्रदेश के सी.एम के सामने । तभी पीली बत्ती की गाड़ी भांय-भांय कर कार्यक्रम स्थल मे प्रविष्ट होती है । तथाकथित सारे उच्चाधिकारी उन्हे घेरे खड़े है ।
कडे सुरक्षा कवच के बीच अंतत वह अपनी बंदूक उनके चरणों मे रख आत्मसमर्पण कर देती है । अन्य औपचारिकता के बाद कार्यक्रम समाप्ती की घोषणा हो जाती है ।
सभी समाचार पत्रों के कुछ तथाकथित …
ContinueAdded by नयना(आरती)कानिटकर on December 10, 2015 at 9:26am — 3 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on December 10, 2015 at 6:36am — 6 Comments
मुझको तुम्हारी याद ने सोने नहीं दिया
तन्हाइयों की भीड़ में खोने नहीं दिया
चाहा तो बार बार के हो जाऊँ बेवफ़ा
लेकिन तुम्हारे प्यार ने होने नहीं दिया
अब तो धुंवाँ धुंवाँ सी हुई मेरी ज़िंदगी
जलने दिया न, राख़ भी होने नहीं दिया
लब पे सजा लिए हैं तवस्सुम की झालरें
एहसास ग़म का दुनिया को होने नहीं दिया
आँखों में अश्क आप की आ जाएँ ना कहीं
इस डर से अपने आप को रोने नहीं दिया
अपना सका मुझे न…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on December 9, 2015 at 11:30pm — 9 Comments
बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’
अरकान - 212 212 212 212
हो के मुझसे तू ऐसे खफ़ा ज़िन्दगी |
जा बसी है कहाँ तू बता ज़िन्दगी|
जग को ठुकरा दिया मैंने तेरे लिए,
कर न पायी तू मुझसे वफ़ा ज़िन्दगी|
तेरी सूरत ही थी मेरा दर्पण सदा,
तू मिले फिर सजूँ इक दफा ज़िन्दगी|
तू हंसाती भी है और रुलाती भी है,
तू दिखाती है क्या क्या अदा ज़िन्दगी|
पहले इतना बता क्या है मेरी ख़ता,
फिर जो चाहे तू देना सज़ा…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on December 9, 2015 at 10:33pm — 2 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on December 9, 2015 at 4:00pm — 4 Comments
विद्यालय में मध्यान्ह भोजन की दाल में असंख्य इल्ली, तिलूले ,देखकर मैं आपे से बाहर हो गई । तुरंत बच्चों की पंगत उठा कर मैं मध्यान्ह भोजन के ठेकेदार से जम कर उलझ पड़ी । लेकिन वो भी कम ना था, हर बात को "इत्तेफाक "कह के टालने लगा । मुझे दुःख इस बात से ज्यादा हो रहा था कि पता नही कितने दिनों से ये मासूम ऐसा खाना खा रहे है । इत्तेफाक तो मेरे साथ हुआ कि मैं आज प्रभार में थी और ये कृत मेरी जानकारी में आ गया । मैंने तुरंत लिखित कार्रवाई शुरू की । अपने खिलाफ कार्रवाई होते देख उसने गिरगिट की तरह रंग…
ContinueAdded by Rahila on December 9, 2015 at 12:00pm — 20 Comments
भावनाएँ साफ पानी से बनती हैं
तर्क पौष्टिक भोजन से
भूखे प्यासे इंसान के पास
न भावनाएँ होती हैं न तर्क
कहते हैं जल ही जीवन है
क्योंकि जीवन भावनाओं से बनता है
तर्क से किताबें बनती हैं
पत्थर भी पानी पीता है
लेकिन पत्थर रोता बहुत कम है
किन्तु जब पत्थर रोता है तो मीठे पानी के सोते फूट पड़ते हैं
प्लास्टिक पानी नहीं पीता
इसलिए प्लास्टिक रो नहीं पाता
हाँ वो ठहाका मारकर हँसता जरूर…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 8, 2015 at 10:07pm — 12 Comments
मर्यादा ....
चक्षु को चक्षु से देखा
करते हमने द्वंद
उलझे करों को
देख इक दूजे में
हम तो रह गये दंग
आँख बचा कर
कब बाला ने
बदला कपोल का रंग
वर्तमान में बेहयाई का
हुआ ये आम प्रसंग
संस्कारों को त्याग जोड़े ने
अधर मिलाये संग
समझ न आये
क्यूँ इस युग में
कपडे हो गये तंग
मृग नयनी का
नशा देख के
फीकी पड़ गयी भंग
बैठ बाईक पर
दौड़ चले फिर
इक दूजे के संग
शर्मो-हया की चिंता किसे अब
सतरंगी है मन…
Added by Sushil Sarna on December 8, 2015 at 7:15pm — 2 Comments
इलेक्शन के ऐलान के बाद राजनीती का बाज़ार गर्म होने लगा,गाँव में हर पार्टी अपने अपने पर तोलने लगी ।
सभी तरफ वोटर को लुभाने व उनका धर्म ज़ात व कीमत लगाने की तैयारी चल रही थी।
उस दिन मास्टर बजार में खड़ा कह रहा था “अब तो पहले जैसी राजनीती नहीं रही” ।
“अब तो साये की तरह साथ रहने वाले पार्टी वर्करों पर भी कोई यकीन नहीं रहा”
पास खड़े आदमी ने कहा “ऐसा क्यूँ”, तुम देखते नहीं रेलियों में भीड़ जितनी होती है, भीड़ को वोट में तब्दील करना एक टेढ़ी खीर बन गया है” । महिंद्र…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on December 8, 2015 at 6:30pm — 5 Comments
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