घिर आई है शाम
यादें भटके जंगल-जंगल
नींद गई वनवास
अच्छे दिन परदेशी ठहरे
फ़ाग मिलन की आस |
बचपन यादें गहरी रंगी
खेले-कूदे संग
यौवन की लाल चुनरिया
डूबी पीया के रंग |
नंदे-देवर निकले हरजाई
करें ठिठोली छेड़ |
माघ कली झुलस चली
आन करो ना देर |
कीरत अर्जित करते जाते
तीर्थ है किस धाम
छोड़ो-अपनाओं दिल से
जब जोड़ा है नाम |
मीरा जैसा जीवन काटा
रुक्मणी बस…
ContinueAdded by somesh kumar on January 28, 2015 at 8:50am — 10 Comments
मैं सोचता था
कि वह खो गया है कहीं
मगर
गुनगुनी धूप से धुली
उस सुबह
एक मोड़ पर
वह अचानक मिला
मैं जानता था
कि वह रुकेगा
वह रुक गया
मैं
यह भी जानता था
कि वह
मुझसे बातेँ करेगा
और वह
मुझ से बातेँ करने लगा
और तभी मैंने चाहा कि
मैं
उन अचानक मिले
कुछ पलों में
वे सारे स्वप्न साकार कर लूं
जो मैंने संजोये थे
मगर
उसके लिए ये पल तो
सिर्फ
कुछ पल थे ,
और वह…
Added by ARVIND BHATNAGAR on January 27, 2015 at 11:00pm — 8 Comments
“सुनिए , जरा प्याज काट दीजिये । ”
“देख नहीं रही हो , अभी-अभी थक हार के घर लौटा हूँ ।”
अरे….मैं भी तो आज 5 बजे दफ्तर से आयीं हूँ ।
“हाँ तो कौन सा पहाड़ खोद कर आई हो ।”
“तो तुम ही कौन सा लोहा पिघला रहे थे ?”
“इतना सुनते ही पति ने चप्पल उठा के पत्नी के मुहँ पर दे मारी, पत्नी तमतमा कर आई और पास ही पड़ा जूता उठा कर पति के मुहँ पर जड़ दिया ।”
इधर खबर आ रही थी.. “अभी –अभी , वेंटिलेटर पर पड़ी भारतीय संस्कृति ने दम तोड़ दिया ।”
© हरि प्रकाश…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 27, 2015 at 10:00pm — 25 Comments
" क्या हुआ सलीम साहब , चेहरा इतना उतरा हुआ क्यूँ है ? कहीं फिर इस बार टिकट का मसला तो नहीं फंस गया "|
" नहीं , कुछ नहीं , बस यूँ ही तबीयत कुछ नासाज़ लग रही है "| टाल तो दिया उन्होंने लेकिन अंदर ही अंदर कुछ खाए जा रहा था | पिछली बार भी यही हुआ था , आखिरी समय तक आश्वासन मिलता रहा था कि सीट आपकी पक्की है , इस बार भी उम्मीद नहीं दिख रही |
अगले दिन उन्होंने अख़बारों में खबर छपवा दी " सलीम साहब ने अपनी पार्टी का टिकट ठुकराया "| शाम तक उनको दूसरी पार्टी ने अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया |…
Added by विनय कुमार on January 27, 2015 at 8:56pm — 19 Comments
शेखर वेश्यावृति पर केन्द्रित एक किताब लिख रहा था, किन्तु उसे पत्रकार समझ इस धंधे से जुड़ी कोई भी लड़की कुछ बताना नहीं चाहती थी, आखिर उसने ग्राहक बन वहाँ जाने का निर्णय लिया.
“आओ साहब आओ, पाँच सौ लगेंगे, उससे एक पैसा कम नहीं”
शेखर ने हाँ में सर हिलाया और उसके साथ कमरे में चला गया.
“सुनो, मैं तुमसे कुछ बात करना चाहता हूँ”
“बाssत ?”
“हां, कुछ सवाल पूछना चाहता हूँ”
“ऐ... साहेब, काहे को अपना और मेरा समय खोटी कर रहे हो, आप अपना…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 27, 2015 at 11:10am — 41 Comments
१२२२—१२२२—१२२२
उमंगों के चरागों को बुझाओ मत
उजाले को अँधेरों से डराओ मत
न फेंको तुम इधर कंकर तगाफ़ुल का तगाफ़ुल= उपेक्षा
परिंदे हसरतों के यूं उड़ाओ मत
उठाकर एड़ियाँ ऊँचे दिखो लेकिन
तुम इस कोशिश में कद मेरा घटाओ मत
चले आओ हर इक धड़कन दुआ देगी
सताओ मत सताओ मत सताओ मत
सजाओ आइने दीवार में लेकिन
हक़ीक़त से निगाहें तुम चुराओ मत
बजाओ तालियाँ पोशाक पर उनकी
मगर उर्यां…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 27, 2015 at 10:38am — 26 Comments
मुहब्बत को निभा दे तू
ज़हर आकर पिला दे तू
....
नज़र से उठ नहीं पाऊँ
मुझे ऐसा गिरा दे तू
....
व़फायें जानता हूँ मैं
नया कुछ तो सिख़ा दे तू
....
मुझे मँझाधार मैं लाकर
मेरी कश्ती हिला दे तू
....
कभी सोचा न हो मैंने
मुझे ऐसा सिला दे तू
....
क़यी मुद्दत से तन्हा हूँ
मुझे मुझसे मिला दे तू
..
..
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Added by umesh katara on January 27, 2015 at 10:00am — 29 Comments
रिक्शा वाला
************
आपको याद तो होगा
वो रिक्शा वाला
गली गली घूमता ,
माइक में चिल्लाता , बताता
आज फलाने टाकीज़ में , फलानी पिक्चर लगी है
पर्चियाँ हवा में उड़ाता
पर्चियों के लिये रिक्शे के पीछे भागते बच्चे
बच्चों को पर्चियाँ छीनते झपटते देख खुश होता
किसी निराश हुये बच्चे को पर्ची कभी अपने हाथों से दे देता
बिना किसी अपेक्षा के , आग्रह के ,
एक जानकारी सब से साझा करता
न कोई आग्रह , न…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 27, 2015 at 7:51am — 24 Comments
Added by vijay on January 26, 2015 at 10:53pm — 12 Comments
२१२ २१२ २१२
वो वफ़ा जानता ही नहीं
इस खता की सजा ही नहीं
फिर वही रोज जीने की जिद
जीस्त का पर पता ही नहीं
शहर है पागलों से भरा
इक दिवाना दिखा ही नहीं
पूजता हूँ तुझे इस तरह
गो जहां में खुदा ही नहीं
खा गए थे सड़क हादसे
सारे घर को पता ही नहीं
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Added by gumnaam pithoragarhi on January 26, 2015 at 8:30pm — 20 Comments
अराजक(लघुकथा )
“ अरे !भाई ये रिजर्व कैबिन है ,टिकट वालों का कैबिन पीछे है,वहीं जाओ |”-परेड देखने आए युवक को पुलिस वाले ने समझाते हुए कहा
“ यहाँ की टिकट कैसे मिलेगी ?क्या ज़्यादा पैसे लगते हैं ?”
“ क्या तेरा कोई जान-पहचान वाला मिनिस्टर है या मिनिस्ट्री का कोई अफसर |”पुलिस वाला व्यंग्य में मुस्कुराया
“नहीं!”वो मायूस हो गया
“ तो भाई पीछे जा या घर जाकर टीवी पर देख |”-पुलिस वाला खिसियाते हुए बोला
“ पर !”उसने उसकी बात काटते हुए कहा
“…
ContinueAdded by somesh kumar on January 26, 2015 at 6:30pm — 9 Comments
किरणें चित्र उकेरें अँगना, है प्रीत तेरी हमें बांधन निकली
धरती का मैं लहंगा सिला लूँ, हरियाली की पहनूं चोली
अम्बर की बन जाए ओढ़नी, देखूं फिर नववर्ष रंगोली
तारों की मैं माला गूंथुं, चाँद बने बिंदिया की रोली
बने चांदनी मेरी मेहँदी, सज जाए मेरी भी हथेली
नेह झड़ी की आस लगाए, सुलगी जाए मरी दूब हठीली
सूरज को मैं बांधू राखी, फिर घोलूं किरणों की शोखी
बन जाए मेरा भाई सूरज, सज जाए मेरी भी डोली.....
केसर रंग में मांग सजाऊं, देख घटा की अलक…
ContinueAdded by sunita dohare on January 26, 2015 at 2:30pm — 14 Comments
थकन से चूर होकर , गिरे तो सो गये हम
जो चलते चलते गाफ़िल , हुये तो सो गये हम
हमारी भूख का क्या , हमारी प्यास का क्या
ये अहसासात दिल में , जगे तो सो गये हम
शनासा भी न कोई , तो अपना भी न कोई
अकेले थे अकेले , रहे तो सो गये हम
हमारी नींद सपने , सजाती ही नहीं है
हक़ीक़त से जहाँ की , डरे तो सो गये हम
मनाओ शुक्र तुम हो , गमों से दूर साथी
हमें तुम मुस्कुराते , मिले तो सो गये हम
हमारा दर्द…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 26, 2015 at 2:00pm — 22 Comments
“अरे यार ओबामा साहब के रास्ते में कुत्ता आ गया, सुरक्षा व्यवस्था में भयंकर चूक हो गयी, अगर उसमें बम लगा होता तो?”
“कुछ नहीं यार “भारतीय कुत्ता” था, जान दे देता पर ओबामा साहब को कुछ नहीं होने देता, यार देश की इज्ज़त का सवाल था आखिर ।" जय हिन्द !
हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित
Added by Hari Prakash Dubey on January 26, 2015 at 1:00pm — 29 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on January 26, 2015 at 11:10am — 19 Comments
रूपमाला छंद पर एक छोटा सा प्रयास
हैं अचल पर चल रही हैं, पटरियाँ पुरजोर
दौड़ती हैं साथ महि के, ये क्षितिज की ओर
अनवरत चलना यही तो, जिन्दगी का नाम
दो कदम के बीच ही बस, है इन्हें आराम
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by शिज्जु "शकूर" on January 26, 2015 at 8:30am — 8 Comments
संघर्ष,
कहीं भी हो ,
कैसा भी हो,
होता, बहुत बुरा है ,
बहुत तड़पाता है,
काटता है ,
दुधारा छुरा है !
लेकिन,
संघर्ष न हो ,
तो सूख जाता है ,
मन का चमन ,
हर हाल में,हरा रखे ,
आदमी को,
संघर्ष वो सुरा है !
डरता,
जो पीने से ,
संघर्ष के,
छलकते हुए पैमाने ,
उस आदमी का जीवन,
बड़ा बेरंग,
बड़ा बेसुरा है !
लड़ता ,
हर आदमी…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 26, 2015 at 2:00am — 12 Comments
वो अलसाया-सा इक दिन
बस अलसाया होता तो कितना अच्छा
जिसकी
थकी-थकी सी संध्या
जो गिरती औंधी-औंधी सी
रक्ताभ हुआ सारा मौसम
ऐसा क्यों है.....
बोलो पंछी?
ऐसा मौसम,
ऐसा आलम
लाल रोष से बादल जिसके
और
पिघलता ह्रदय रात का
अपना भोंडा सिर फैलाकर अन्धकार पागल-सा फिरता
हर एक पहर के
कान खड़े है
सन्नाटे का शोर सुन रहे
ख़ामोशी के होंठ कांपते
कुछ कहने को फूटे कैसे…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on January 26, 2015 at 12:30am — 32 Comments
बडा मंदिर न मस्जिद , न कोई गिरजा शिवाला है
न कोई अर्चना , पूजा बडी , अरदास , माला है
वतन सबसे बडा मंदिर , वतन सबसे बडी पूजा
है ईश्वर तुल्य वो , जो अपने वतन पर मरने वाला है ।
जो सच की पैरवी और झूठ का प्रतिकार करता है ,
मोहब्बत हो जिसे इंसानियत से और एतबार करता है
जरूरी है नहीं हर शख्स सरहद पर लडे जाकर ,
वही सच्चा सिपाही है , जो वतन से प्यार से करता है ।
न कोई आरजू , ख्वाहि श , न कोई शर्त रखते हैं ।
न बोझा कोई सीने पर , न सर पे कर्ज…
Added by ajay sharma on January 25, 2015 at 11:01pm — 9 Comments
आसमान में उगता सूरज, जलता सूरज तपता सूरज
बदरियों की बगियाँ में, लुका-छिपी करता सूरज
सांझ सकारे किसी किनारे, धीरे धीरे ढलता सूरज
मैं भी तो इस सूरज सा, चढ़ा कभी कभी ढ़ल गया हूँ
जाने क्यों कहते हैं लोग, की मैं बदल गया हूँ!…
ContinueAdded by Ranveer Pratap Singh on January 25, 2015 at 10:00pm — 6 Comments
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