फ़िरदौस इस वतन में फ़रहत नहीं रही ,
पुरवाई मुहब्बत की यहाँ अब नहीं रही .
नारी का जिस्म रौंद रहे जानवर बनकर ,
हैवानियत में कोई कमी अब नहीं रही .
फरियाद करे औरत जीने दो मुझे भी ,
इलहाम रुनुमाई को हासिल नहीं रही .
अंग्रेज गए बाँट इन्हें जात-धरम में ,
इनमे भी अब मज़हबी मिल्लत नहीं रही .
फरेब ओढ़…
ContinueAdded by shalini kaushik on January 25, 2013 at 12:00am — 3 Comments
गिर रहा है मनुष्य का अस्तित्व
यह शब्द हर समय वातावरण में गूंज रहा है।
फिर भी थम नहीं रही है,
बलात्कार और अपहरण की घटनाएं
कभी बस, कभी ट्रेन तो कभी चौक चौराहे से उठ रही हैं
सिसकियां
हर समय हो रहा है समाज का पोस्टमार्टम
एक
आज के अखबार में छपा था
चौराहे पर दिन दहाड़े हुआ
एक कमसिन युवती के साथ बलात्कार
अखबार को मिले चटपटे मसाले से
उड़ रही थीं समाज की धज्जियां
पत्रकार और अभियुक्त दोनों ताव दे-देकर ऐंठ रहे थे मूंछे
क्योंकि
एक पहले पन्ने…
Added by Atul Chandra Awsathi *अतुल* on January 24, 2013 at 9:14pm — 9 Comments
सद्भावों की थोड़ी खूशबू
सरगम की आवाज बची है
आओ दिल का दीया जला लो
मुट्ठी में थोड़ी राख बची है
नई उमर के गर्म खून से
उठी हुई कुछ भाप बची है
श्रद्धा के कुछ बूंद जमे से
बचपन की एक शाख बची है
आओ दिल का.................
तेरी आरजू मेरी शिकायत
की मीठी तकरार बची है
जग से जाने के कुछ लम्हें
जीवन की सौगात बची है
आओ दिल का.................
घुटी व्यथा जो…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on January 24, 2013 at 6:29pm — 15 Comments
प्यार ने तेरे बीमार बना रखा है
जा चुके कल का अख़बार बना रखा है
फांसले दिल के अब मिटते नहीं हैं हमसे
चीन की खुद को दीवार बना रखा है
बेचकर गैरत अपनी सो चुके हैं कब के
हमने उनको ही सरदार* बना रखा है
शोर सा मेरे इस दिल में ऐसा मचा है
जैसे गठबंधन सरकार बना रखा है
चापलूसों का दरबार लगा है नादिर
झूठ को ही कारोबार बना रखा है
*सरदार = मुखिया
Added by नादिर ख़ान on January 24, 2013 at 5:30pm — 5 Comments
वेश बदल कर मिलोगे
आहटें न बदल पाओगे ..
लब सिल कर रखोगे
नज़रों का बोलना ना छुपा पाओगे ..
चलते -चलते राह बदल दोगे
पगडंडियाँ ना छोड़ पाओगे ...
मिलोगे भी नहीं ,बात भी नहीं करोगे
सपने में आना ना छोड़ पाओगे ..
तुम से मैं हूँ , मुझ से तुम हो
हर बात मुझसे जुडी है
तुम मुझसे ना छुपा पाओगे ...
Added by upasna siag on January 24, 2013 at 4:39pm — 4 Comments
सामयिक षटपदियाँ:
संजीव 'सलिल'
*
मानव के आचार का स्वामी मात्र विचार.
सद्विचार से पाइए, सुख-संतोष अपार..
सुख-संतोष अपार, रहे दुःख दूर आपसे.
जीवन होगा मुक्त, मोहमय महाताप से..
कहे 'सलिल' कुविचार, नाश करते दानव के.
भाग्य जागते निर्बल होकर भी मानव के..
***
हार न सकती मनीषा, पशुपति दें आशीष.
अपराजेय जिजीविषा, सदा साथ हों ईश..
सदा साथ हों ईश, कैंसर बाजी हारे.
आया है युवराज जीत, फिर ध्वज फहरा रे.
दुआ 'सलिल' की, मौत इस तरह मार न…
Added by sanjiv verma 'salil' on January 24, 2013 at 3:00pm — 6 Comments
दुनिया केवल पैसे की
प्रो. सरन घई, संस्थापक, विश्व हिंदी संस्थान, कनाडा
ऐसे की ना वैसे की, ये दुनिया केवल पैसे की।
ना कीमत है इसे धर्म की,
ना कीमत है इसे कर्म की,
इसको तो परवाह है केवल बिरला, टाटा जैसे की।
ना साधू ना जोगी पुजता,
ना ईश्वर ना अल्ला रुचता,
यहाँ तो केवल जय-जय होती ठन-ठन बजते पैसे की।
समाचार ना लेख सुहाते,
ना गीता ना वेद ही भाते,
यहाँ लोग लिटरेचर पढ़ते फ़िल्मी…
ContinueAdded by Prof. Saran Ghai on January 24, 2013 at 6:51am — 3 Comments
सप्त सिन्धु घट बह रहे, कर्ण पार स्वर सप्त.
व्योम वृहत निज व्याप्त है, सप्त वर्ण संतृप्त//१//
**************************************************
तर्षण लब्धासक्ति का, करता उर संतप्त.
तर्कण कर तर्पण करें, वृथा फिरें अभिशप्त//२//
**************************************************
मुद्रा, कीर्ति, स्वरुप भ्रम, क्षणिक करें मन तृप्त.
तप्त इष्टि परिशान्तिनी, शक्ति उर अनुज्ञप्त//३//
**************************************************
डॉ.…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on January 24, 2013 at 12:00am — 31 Comments
{चार चरण मात्रा ३२ यति (१०,८,८,६) , चरणान्त समतुकांत तथा चरणान्त में जगण वर्जित, अंत में गुरु (२)}
(1)निश्शंक जिए जा , कर्म किये जा , ,फल की मत कर ,अभिलाषा
भगवन सब जाने ,सब पहचाने , कृपा करेंगे ,रख आशा
कर मनन निरंतर ,हिय अभ्यंतर,तन मन सुख की ,परिभाषा
पर लोभ बुरा है , क्षोभ बुरा है, पर मन जीते , मृदु भाषा
(2)
शिव हरि नाम भजो ,मद बिषय तजो ,जितेंद्रिय नाम,सुख पाओ
भज दुर्गे अम्बा , माँ जगदम्बा ,मातु रूप नौ , …
Added by rajesh kumari on January 23, 2013 at 11:01pm — 12 Comments
मुझे फकत एक शाम चाहिए
बस अपने ही नाम चाहिए
उस तरु की छाया में बैठे
मन में एक विराम चाहिए
कितने अवसादों से घिरकर
थके थके क़दमों से चलकर
कितनी जिम्मेदारी है सर पर
थोडा सा आराम…
Added by SUMAN MISHRA on January 23, 2013 at 7:30pm — 6 Comments
मुझको क़फस में क़ैद रहने दीजिए
अश्कों को मेरे यूँ ही बहने दीजिए
मेरे गुनाहों की तलाफी है यही
हर सितम चुपचाप सहने दीजिए
गुन्ग दीवारें फकत और कुछ नहीं
ना कीजिए आवाज, रहने दीजिए
महव-ए-गम हो जाओगे ऐ गम-गुसार
होठों को मेरे कुछ ना कहने दीजिए
किस बात के हो मुन्तज़र "विश्वास" तुम
ख़्वाबों को होकर ख़ाक ढहने दीजिए
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Praveen Verma 'ViswaS' on January 23, 2013 at 4:30pm — 5 Comments
स्वयं के आंसुओं से ,
कपोल उसका झुलस गया !
दया हाय! आयी मुझको ,
मेरा भी अश्रु बह गया !!
अपनो के लिए उसकी ,
पत्थर तोड़ती माता !
भूंख से छटपटाता बच्चा,
हाय! पाषाण ह्रदय विधाता !!
असहनीय पीड़ा से रो रही थी ,
नम आँखों से दर्द धो रही थी !
कई दिनों की भूंखी बेचारी ,
खुली आँखों से सो रही थी !
उसके आँख का खारा पानी ,
यह कह रहा था !
दिल में कहीं गम का ,
समंदर बह रहा था !!
दम तोड़ती ज़िन्दगी ,
दम तोड़ती मानवता !
कहीं ना…
Added by ram shiromani pathak on January 23, 2013 at 12:38pm — 7 Comments
शब्द,
तेरी गंध
बड़ी सोंधी है
तेरी देह,
बड़ी मोहक है
अपनी उपत्यका में
एक मूरत गढ़ने दोगे ?
देखो न,
तेरे ही आंचल का
वह विस्मित फूल
मोह रहा है मुझे
और मेरे बालों में
अंगुली फिराती
बदन पर हाथ फेरती
मुझे सिहराती
सजाती, सींचती
वो तुम्हारी लाजवंती की साख
जब
चांद के दर्पण में
कैद
मेरी प्रतिच्छाया को
आलिंगन में भींच लेती है,
और मैं…
Added by राजेश 'मृदु' on January 23, 2013 at 12:00pm — 14 Comments
उदास लडकियां
नहीं कहतीं किसी से-
अपनी उदासी का सबब
करतीं इसरार नहीं
अम्मा से, भैय्या से
होती न बतकही
छुटकी गौरैय्या से
तितलिओं के पीछे भी
भागतीं नहीं जब तब
निर्दय, नृशंस
समय की दस्तक!
उदास लडकियां
नहीं कहतीं किसी से-
अपनी उदासी का सबब
टोली बच्चों की
जो गलियों में
करती है शोर;
कडक्को, पकडम पकडाई
खो- खो,
पतंगों की
कटती हुई डोर;
पी लेतीं आँखें
मासूम बदहवासी को
उदास लडकियाँ …
Added by Vinita Shukla on January 23, 2013 at 11:45am — 16 Comments
प्रेम एक रोग हैं गर,
तो हाँ बीमार हूँ मैं,
चाहत बस मुझे तेरी
तेरा ही तलबगार हूँ मैं ll
पूजेंगे तुम्हे अब हम ,
तेरे आगे सर झुकायेंगे,
हैं गर ये खता यारो,
तो हाँ गुनाहगार हूँ मैं ll
तुझे जो हो न यकीं,
दिल में झांक ले कभी,
तेरे ही ख्वाब पलते हैं,
तेरा ही वफादार हूँ मैं ll
चाँद, तारे बहुत दूर तुमसे,
नजर जब भी उठाओगे,
हर सू मुझे ही पाओगे..
हाँ तेरा ही दरों-दिवार हूँ…
ContinueAdded by praveen on January 22, 2013 at 11:49pm — 5 Comments
============ग़ज़ल =============
उड़ा कर छत हवा जब जब करे जाया पसीने को
गरीबी कोसती फिरती है तब सावन महीने को
बफा करने के बदले बेबफाई जब मिली यारो
बढ़ा दर्द-ए जिगर हद से नहीं आराम सीने को
मेरे हमराज मुझको इक शराबी मान बैठे हैं
सजा कर रख लिया हमने जो खाली आबगीने को
इलाहबाद जाकर पापियों ने पाप यूँ धोये
हुई गंगा वहाँ मैली बचा पानी न…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 22, 2013 at 4:00pm — 6 Comments
कैसे कहूँ? दिल में है जो
छोड़ता हूँ, रहता है वो
ढूंढता हूँ लफ्ज़ कोई
कोई बयाँ, बात कोई
.
कहता हूँ, थोड़ा रुकना
चाँद मेरे! ना छुपना ...
.
चलते हुए आगे-पीछे
तेरी दोनों आँखें नीचे
राह तुझे याद तो है
रात तुझे याद तो है
.
वो भी कोई दिन था
हाँ मैं तेरे बिन था ...
.
कैसे कहूँ? इस दिल में है जो ???
.
कुछ समझ में आता नहीं
औ' बता भी पाता नहीं
देखता हूँ, जानता…
Added by Priya Ranjan on January 22, 2013 at 3:38pm — 2 Comments
पैबस्त जिस्म में हूँ कि दिल में लगा हूँ मैं
मुझको बनाने वाले ने खंजर बना दिया |
अफ़सोस किसी बात का होता नहीं मुझे
पत्थर की तरह मुझको बंजर बना दिया |
चूसा है लहू इस क़दर दुनिया ने खुद अपना
न जाँ बची न गोश्त, बस पंजर बना दिया |
हक औ' सिला के नाम पर सब इस कदर लड़ें
एक दुसरे को इनने तो कंजर बना दिया |
निकला 'कोई नहीं' मगर सपना हैं देखतें
गीली जगह पे स्याह एक मंजर बना…
Added by Priya Ranjan on January 22, 2013 at 3:30pm — 2 Comments
मेरे गीत तेरी पायलिया है
ओ मीत तू मेरी सावरिया है|
प्रेम गीत मैं गा रहा हूँ
तेरे लिए ही आ रहा हूँ
मिलन को बरस रही बादरिया है
ओ मीत तू मेरी सावरिया है|
मद्धम हवा साथ चली है
दिल में दीपक सी उजली है
देख झलक गयी गागरिया है
ओ मीत तू मेरी सावरिया है|
अगली पहर तक आ जाऊंगा
तुझे दुल्हन बना…
Added by deepti sharma on January 22, 2013 at 3:00pm — 4 Comments
भ्रष्टाचार में भी प्रतिस्पर्धा,
करते आपस में दंगल है !
क्या करूँ कितना मिल जाय ,
बस लूट पाट को बेकल है !!
पैसे के लिए लार टपकाते ,
मार पीट को ये तत्पर है !
बोलबचन से कभी कभी तो,
कर देते सब गुड़-गोबर है !!
कायरता ,पशुता से संचित ,
बनाते नया-नया पैमाना !
चालाकी,मक्कारी ही इनका,
बन चुका धंधा पुराना !!
धन के वन में विचरण करते ,
जैसे इनका ही जंगल है !
जंगल राज़ चला रहे फिर भी ,
कहते है कि सब मंगल है !!
राम शिरोमणि पाठक…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on January 21, 2013 at 8:22pm — 4 Comments
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