ब्रेन वाश
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-हाँ, मैंने कहा था।
-क्यूँ?
-क्योंकि मुझे असहिणुता दिखी थी।
-कैसे?
-पूरे देश में हो-हल्ला मचा हुआ था।अभिव्यक्ति की आजादी छीनी जा रही थी।
-कैसी आजादी?'मातृभूमि को मुर्दा कहने और इसके टुकड़े होने' के नारों की आजादी?
-वे लोग व्यवस्था से क्षुब्ध थे।
-और यह बताने वाले दुश्मन देश की नुमाइंदे थे,कि नहीं?
-वह तो बाद में पता चला न?
-तो पहले क्या आपलोग घास छील रहे थे,कि धूप में बाल पका रहे थे?
-अरे भाई,तुमुल जन-रव ने मुझे घसीट…
Added by Manan Kumar singh on January 16, 2018 at 8:31pm — 9 Comments
एथेन्स के प्रसिद्ध चैराहे पर सुकरात जोकर बन कर खड़ा था। जो भी आता उसके ठिगने कद, चपटी नाक, मैले-कुचैले पुराने कपड़े, निकली हुई तोंद और नंगे पैर को देख कर हँसे बिना न रह पाता। ‘‘कौन हो तुम?’’ भीड़ में से किसी ने पूछा।
‘‘एक दार्शनिक।’’ उसे लगा कि नाम बताने की अपेक्षा यदि वह दार्शनिक कहेगा तो लोग उसे कुछ गंभीरता से लेंगे मगर वह गलत था। चैराहा एक बार पुनः ठहाकों से गूँज उठा।
‘‘वो देखो, दार्शनिक उन्हें कहते हैं।’’ विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर्स को बाहर आते देख…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on January 16, 2018 at 5:22pm — 10 Comments
3. क्षणिकाएं :.....
1.
मैं
कभी मरता नहीं
जो मरता है
वो
मैं नहीं
... ... ... ... ... ... ...
2.
ज़िस्म बिना
छाया नहीं
और ]
छाया का कोई
जिस्म नहीं
... ... ... ... ... ... ... ...
3.
क्षितिज
तो आभास है
आभास का
कोई छोर नहीं
छोर
तो यथार्थ है
यथार्थ का कोई
क्षितिज नहीं
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 16, 2018 at 5:09pm — 10 Comments
दोहा/ ग़ज़ल
चाहत के तूफान में, उजड़े चैन सुकून
चिंता में जल कर हुआ, भस्म खुदी का खून
गीता में लिक्खा गया, राहत का मजमून
लिप्सा के परित्याग से, खिलता आत्म-प्रसून
संग्रह का जो रोग है, बढ़ता प्रतिपल दून
लोभ अग्नि में हे! मनुज, यूँ खुद को मत भून
सुख का एक उपाय बस, इच्छा करिए न्यून
बाकी मर्ज़ी आपकी, खटिए चारो जून
मनस वेदना के लिए, यह बढ़िया माजून
सो पंकज नें कर लिया, लेखन एक जुनून
मौलिक…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 16, 2018 at 11:23am — 11 Comments
२१२२/ २१२२/२१२२
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ये अजब क़िस्सा रहा है ज़िन्दगी में
याद आता है मुझे वो बेख़ुदी में.
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काश उन के लब मेरे होंठों को चूमें
मूँद कर आँखें.. पडा हूँ चाँदनी में.
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जब रिहाई की कोई सूरत नहीं है
लुत्फ़ लेना सीख ही लूँ बेबसी में.
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एक जुगनू जो लड़ा था तीरगी से
याद कर लेना उसे भी रौशनी में.
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याद कर के अपने माज़ी के पलों को
बहते हैं आँखों से आँसू हर ख़ुशी में.
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आपका अहसान मुझ पर यह बहुत है
आप ने है दर्द घोला…
Added by Nilesh Shevgaonkar on January 15, 2018 at 9:00pm — 16 Comments
पुआल बनती ज़िन्दगी
जब मैं गाँव से निकला तो वह पुआल जला रही थी | ठीक उसी तरह जिस तरह वह पहले दिन जला रही थी,जब मैंने उसे इस बार,पहली बार देखा था | ना तो मैं उससे तब मिला था ना आज जाते हुए | पर मैं संतुष्ट था |मेरी अभिलाषा काफ़ी हद तक तृप्त थी |मेरे पास एक उद्देश्य था और एक जीवित कहानी थी |
पहली बार जब मैं स्टेशन के लिए निकला तभी पत्नी ने फोन करके कहा की गाड़ी का समय आगे बढ़ गया है और जैसे ही मैं गाँव में लौटा मैंने खुशी मैं शोर मचाया और वह भी चिड़ियों की…
ContinueAdded by somesh kumar on January 15, 2018 at 8:29pm — No Comments
ख़्वाब के साथ ...
न जाने कब
मैं किसी
अजनबी गंध में
समाहित हो गयी
न जाने कब
कोई अजनबी
इक गंध सा
मुझ में समाहित हो गया
न जाने
कितनी कबाओं को उतार
मैं + तू = हम
के पैरहन में
गुम हो गए
और गुम हो गए
सारे
अजनबी मोड़
हकीकत की चुभन को भूल
ख़्वाबों की धुंध में
कभी अलग न होने के
ख़्वाब के साथ
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 15, 2018 at 6:00pm — 6 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on January 15, 2018 at 9:31am — 8 Comments
‘अगर मैंने पाँच का यह सिक्का पाखाने में ख़र्च कर दिया और मुझे आज भी काम नहीं मिला तो फिर मैं क्या करूँगा?’ सार्वजनिक शौचालय के बाहर खड़ा जमाल अपनी हथेली पर रखे उस पाँच के सिक्के को देखकर सोच रहा था। तभी उसके पेट में फिर से दर्द उभरा। वह चीख उठा, ‘‘उफ! अल्लाह ने पाखाने और भूख का सिस्टम बनाया ही क्यों?’’
जिस उम्र में जवानी शुरु होती है उस उम्र में उसके चेहरे पर बुढ़ापा था। लेबर चैराहे के कुछ अन्य मजदूरों की तरह पिछले कई दिनों से जमाल को भी कोई काम नहीं मिला था। घर भेजने के बाद जो…
Added by Mahendra Kumar on January 14, 2018 at 1:00pm — 12 Comments
-धन्यवाद, पैसे खाते में आ गये।प्रयाग में विमोचन हो जाये?
-अच्छा रहेगा।
-हॉल वगैरह बुक कर दिया है।बस कुछ लोगों की व्यवस्था आप करा लीजिये।
-आपके प्रकाशन की और पुस्तकें भी हैं न?
-थीं,पर अब उनका विमोचन शायद अलग से हो।
-क्यूँ?
-लेखकों की भागीदारी पूरी नहीं हो रही है।
-फिर?
-यह कार्यक्रम आपका ही होगा।सम्मानित भी हो जायेंगे आप।
-बात तो समूह में पुस्तकों के विमोचन की थी।
-सम्भव नहीं है।
-फिर अलग से देखेंगे।मेरे पैसे में कितनी प्रतियाँ…
Added by Manan Kumar singh on January 14, 2018 at 12:40pm — 15 Comments
मकर राशि मे सूर्य का, ज्यों होता आगाज
बच्चे बूढ़े या युवा, बदलें सभी मिजाज।1।
भिन्न भिन्न हैं बोलियाँ, भिन्न भिन्न है प्रान्त
पर्व बिहू पोंगल कहीं, कहीं यहीं संक्रांत।2।
कहीं पर्व यह लोहड़ी, मने आग के पास
वैर भाव सब जल मिटे, झिलमिल दिखे उजास।3।
नदियों में डुबकी लगे, सब करें मकर स्नान
घर मे पूजा पाठ हो, सन्त लगाएं ध्यान।4।
उत्तरायणी पर्व पर, दान धर्म का योग
काले तिल में गुड़ मिले, लगे उसी का…
Added by नाथ सोनांचली on January 14, 2018 at 11:47am — 4 Comments
(1) राष्ट्रीय पर्व पर
मिला किसी को
पद्म भूषण , पद्म विभूषण
तो किसी को मिला पद्म श्री
लेकिन जो थे सच्चे हक़दार
नहीं मिला उन्हें यह सम्मान
क्योंकि उनकी नहीं थी कोई
राजनैतिक पहचान ।
(2) जिन बच्चों को माँ-बाप ने
चलना -फिरना , उठना-बैठना
आदि का सलीका सिखाया
उन्हीं बच्चों ने बड़ा होकर
बुढ़ापे में वृद्धाश्रम पहुँचाया ।
(3) दुर्घटना और बीमारियाँ
बहुत सस्ती हो गईं हैं
इसीलिए तो-
बीमा किश्त महँगी…
Added by Mohammed Arif on January 14, 2018 at 7:00am — 12 Comments
2122 1212 22
तू अगर बा - वफ़ा नहीं होता
दिल ये तुझपे फ़िदा नहीं होता
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इश्क़ तुमसे किया नहीं होता
ज़िन्दगी में मज़ा नहीं होता
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ज़िन्दगी तो संवर गयी होती
ग़र वो मुझसे जुदा नहीं होता
-
उसकी चाहत ने कर दिया पागल
प्यार इतना किया नहीं होता
-
सबको दुनिया बुरा बनाती है
कोई इंसाँ बुरा नही होता
-
चोट खाएँ भी मुस्कुराएँ भी
अब रज़ा हौसला नहीं होता. …
Added by SALIM RAZA REWA on January 13, 2018 at 10:30pm — 21 Comments
दूर कहीं सुख है मेरा
हैं यहाँ दुखो का डेरा
करता हूँ जिससे शिकायत
बस उसने तुरंत मुँह फेरा
हर तरफ़ है तू-तू, मैं-मैं
हर जगह बस मेरा-तेरा
हम एक हैं ,ख्वाब बन गया
समय ने ही है यह खेल खेला
कंक्रीट के मकान बन रहे
भीड़ का है बस रेला-पेला |
देखकर,सब को मैंने सोचा
चला लिया खूब दुखों का ठेला
स्वच्छ मन से हँसने लगा मैं
खिल उठा अंतर-मन…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 13, 2018 at 9:00pm — 5 Comments
काफिया : आद ; रदीफ़ :नहीं
बहर : २१२२ २१२२ २१२२ २२(११२)
हुक्म की तामील करना कोई’ बेदाद नहीं
बादशाही सैनिकों से कोई’ फ़रियाद नहीं |
“देशवासी की तरक्की हो” पुराना नारा
है नई बोतल, सुरा में तो’ ईजाद नहीं |
भक्त था वह, मूर्ति पूजा की लगन से उसने
द्रौण से सीखा सही वह, द्रौण उस्ताद नहीं |
देश है आज़ाद, हैं आज़ाद भारतवासी
किन्तु दकियानूसी’ धार्मिक सोच आज़ाद नहीं |
लूटने का मामला…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on January 13, 2018 at 9:41am — 8 Comments
1222 1222 122
सुकूँ के साथ कुछ दिन जी लिया क्या ।
वो अच्छा दिन तुम्हें हासिल हुआ क्या ।।
बहुत दिन से हूँ सुनता मर रहे हो ।
गरल मजबूरियों का पी लिया क्या ।।
इलक्शन में बहुत नफ़रत पढाया।
तुम्हें इनआम कोई मिल गया क्या ।।
लुटी है आज फिर बेटी की इज़्ज़त ।
जुबाँ को आपने अब सी लिया क्या ।।
सजा फिर हो गयी चारा में उसको ।
खजाना भी कोई वापस हुआ क्या ।।
नही थाली में है रोटी तुम्हारी ।…
Added by Naveen Mani Tripathi on January 13, 2018 at 2:00am — 3 Comments
बह्र- फऊलुन फऊलुन फऊलुन फउल
मग़रमच्छ घड़ियाल को जाल में।
फँसा कर रहेंगे वो हरहाल में।
खुदा जाने होंगी वो किस हाल में।
मेरी बेटियाँ अपनी ससुराल में।
निकालो नहीं बाल की खाल को,
नहीं कुछ रखा बाल की खाल में।
नतीजा सिफर का सिफर ही रहा,
मिला कुछ नहीं जाँच पड़ताल में।
मिनिस्टर का फरमान जारी हुआ,
गधे बाँधे जायेंगे घुड़साल में।
हुई हेकड़ी सारी गुम उसकी तब,
तमाचा पड़ा वक्त का गाल में।
कभी…
ContinueAdded by Ram Awadh VIshwakarma on January 12, 2018 at 10:05pm — 12 Comments
कंधों का तनाव
जो आज हुआ वो अप्रत्याशित था |साढ़े नौ बजे जब में उतरा तो यकीन था कि भोजन आ रहा होगा |बाइक लॉक करके और टी.वी. चलाकर मैं भोजन का इंतजार करने लगा |जिस निशिचिंत्ता से पिताजी सोए थे मुझे यकीन था कि वो खा चुके होंगे |माताजी चूँकि नीचे बैठीं थी इसलिए ये विश्वास था कि या तो वो खा चुकी होंगी या खा रही होंगी |इसी बीच पिताजी ने करवट ली और टी.वी. देखने लगे |मैं निश्चिन्त था कि पिताजी खा चुके होंगे |घड़ी सवा दस बजा चुकी थी और मैं उहापोह में था |सुबह और दोपहर का…
ContinueAdded by somesh kumar on January 12, 2018 at 9:48pm — 5 Comments
धीरे धीरे सभी जुटने लगे थे, नजदीक के रिश्तेदार भी लगभग आ गए थे| उनके मोबाइल पर लगातार बेटे का फोन आ रहा था कि बस पहुँच रहे हैं माँ के अंतिम दर्शन करने के लिए| आंगन में विभा का शरीर सफ़ेद कपड़े में लपेट कर रखा हुआ था और ऐसा लग रहा था जैसे वह हमेशा से ऐसी ही शांति में जी रही थी| उन्होंने एक बार फिर समय देखा और पड़ोसियों और रिश्तेदारों के साथ चुपचाप बैठ गए|
बाहर गाड़ियों की आवाज़ आयी और फिर थोड़ी देर में रोने धोने की आवाज़ भी आने लगी| बेटा परिवार सहित अंदर आया और फिर उनका विलाप शुरू हो गया| उनको…
Added by विनय कुमार on January 12, 2018 at 8:39pm — 10 Comments
सुख
सुख! सुख! लोगों के जीवन में सुख है कहाँ
जन्म से लेकर मृत्यु तक सभी दुखी हैं यहाँ
सुख हमारे जिंदगी में मृग तृष्णा जैसी है यहाँ
सदा हमसे दूर ही देखने में नजर आती यहाँ
अपने नेताओं को दौलत की खुशबू आती जहां
सभी अपने ईमान को बेचकर टूट पड़ते वहाँ
सभी लोग सुख खरीदने की कोशिस करते जहाँ
माँ बाप भाई बहन पैसे के आगे सब झूठे यहाँ
अपनों से लोग झूठ फरेब धोखा सब करते यहाँ
थोड़ी सुख के लिए लोग अंगारों पर चलते यहाँ
ज़िंदगी की नाव में परिवार…
Added by Ram Ashery on January 12, 2018 at 8:00pm — 1 Comment
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