Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 18, 2017 at 7:18pm — 9 Comments
बे-आवाज़ ....
कहां होती है
रिश्ते के
टूटने की
आवाज़
बस
सिसकता है
देर तक
रुखसारों की ढलानों पर
खारी लकीरों पर
सोया
सोज़ में डूबा
बीते लम्हों का
इक साज़
बे-आवाज़
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 17, 2017 at 9:10pm — 10 Comments
शिक्षा के पंख लगे जब मानव तन में
रंक बने राजा हमारे देश के शासन में
झूमता हृदय सबका खुशी से उमंग में
संभव है सब कुछ आज इस जगत में
धरती को नापे डाले मात्र एक क्षण में
सागर को कैद करले अपनी मुट्ठी में
हिमालय जीत का स्वप्न रखे मन में
अपने यश की पताका गाड़दे अंबर में
भ्रम सारे टूट जाएँ जो फैले समाज में
नफरत मिट जाएँ आपसी व्यवहार में
विकास की नदी बहा दे अपने देश में
समता की फसल खूब लहरे समाज में
आज ममता, भाईचारा दिखे समाज…
Added by Ram Ashery on February 17, 2017 at 2:30pm — 6 Comments
221 1221 1221 122
अपनाया मुहब्बत में पतिंगो ने क़जा को
बदनाम यूँ करते न कभी शम्अ वफ़ा को
है जह्र पियाले में ये मीरा को पता था
बे खौफ़ मगर दिल से लगाया था सजा को
जो लोग सदाकत से करें पाक मुहब्बत
वो बीच में लाते न कभी अपनी अना को
आँधी का नहीं खौफ़ चरागों को भला फिर
समझेंगे उसे क्या जरा ये कह दो हवा को
देखी वो जवाँ झील लिए नूर की गागर
लो चाँद दीवाना चला अब छोड़ हया…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 17, 2017 at 10:30am — 16 Comments
क्या थे कल तुम आज हुए क्या यही बताने आया हूँ |
अंधकार में सोयी तेरी रूह जगाने आया हूँ ||
याद अतीत करो अपना जब तुम तूफान उठाते थे |
सुनकर बस इक तेरी आहट अरिदल हिय थर्राते थे ||1||
पत्थर भी साक्षी हैं तेरे, उन सच्चे बलिदानों के |
मातृभूमि पर मरने वाले, बांका वीर जवानों के ||
पूर्वज मुट्ठी भर थे लेकिन लाखों पर वे भारी थे |
पलभर में दुश्मन नष्ट किये जो बने महामारी थे ||2||
इसी धरा पर कोई बाला अग्नि चिता पर लेटी थी |
वक़्त पड़ा तब शीश कटाने…
Added by नाथ सोनांचली on February 17, 2017 at 7:30am — 6 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 17, 2017 at 1:29am — 6 Comments
2112 2112 2112 2112
रात ढली मुझे पिला और जहर और जहर
इश्क ही ढाता है सदा और कहर और कहर
गाँव से भी दूर हुयी सुरमई माटी की गमक
दीखता हर ओर जिला और शहर और शहर
मौसम अब यार मुझे खुशनुमा लगते है सभी
दिल में उठती है लहर और लहर और लहर
रात ये बचपन की बड़ी सादगी में बीत गयी
अब है जवानी की सहर और सहर और सहर
जोश में सागर तू मचल आज है पूनम की कला
बीच लहर चाँद खिला…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 16, 2017 at 10:16pm — 7 Comments
सहमी सर्दी
कारागृह में अब
फागुन आया
सड़क संग
चलती ही रहती
पगडंडी भी
टंगे रहते
सोने के झूमर से
अमलतास
…
ContinueAdded by Neelam Upadhyaya on February 16, 2017 at 4:00pm — 4 Comments
बहुत देर हुई …
Added by amita tiwari on February 16, 2017 at 8:30am — 3 Comments
221 2121 1221 212
बदनाम है जरूर मगर नाम तो हुआ
अफसाना जिदगी का सरे आम तो हुआ
आँखों में बंद था कभी सागर शराब का
वह तज्रिबे आशिक से लबे जाम तो हुआ
महफिल थी जम गयी उनके खयाल की
था जश्न थोड़ी देर पर दिल-थाम तो हुआ
उतरा था एक बार मुहब्बत की जंग में
नाकाम जंग होना था नाकाम तो हुआ
कहते है यार इश्क है अंजाम-बद बहुत
होना था जो अंजाम वो अंजाम तो…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 15, 2017 at 8:39pm — 13 Comments
22/22/22/22
तूफाँ से गर प्यार करोगे,
बाहों को पतवार करोगे।
अब कर दो इज्हार-ए-मुहब्बत,
कब तक छुप छुप प्यार करोगे।
छोड़ोगे कब हुक़्म बजाना,
कब ख़ुद को मुख्तार करोगे।
पेश आएंगे सभी अदब में,
जब खुद शिष्ट आचार करोगे।
दरिया पार तभी होगा जब,
ज़र्फ़ अपना पतवार करोगे।
इश्क़ में' हद से' गुज़रने वालों,
तुम ख़ुद को बीमार करोगे।
शाम हुई फैला अँधियारा,
जाने कब इज़्हार* करोगे।
*चराग़ रौशन करना…
Added by रोहिताश्व मिश्रा on February 15, 2017 at 4:30pm — 11 Comments
सुबह-सुबह कॉलेज जाने की तैयारी कर ही रही थी कि ऊपर वाली चाची की सीढ़ियों से उतरने की धमक के साथ ही उनकी आवाज सुनाई दी – "ए नीलम, सुनलू ह· कि ना, कमली म·र गइल ।" मुझे थोड़ा गुस्सा भी आया पर संस्कारगत आदत के मारे कुछ जतला नहीं पायी । इतना तो समझ आ ही गया कि अब आज का पहला पीरियड अटेण्ड नहीं कर पाऊँगी । अब चाची आ ही गयी हैं तो थोड़ा बैठना ही ठीक होगा और मैंने उन्हें बैठा कर झट पानी का ग्लास पकड़ाया ।…
ContinueAdded by Neelam Upadhyaya on February 15, 2017 at 3:30pm — 10 Comments
Added by Manan Kumar singh on February 14, 2017 at 8:39pm — 16 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 14, 2017 at 5:30pm — 10 Comments
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on February 14, 2017 at 4:30pm — 13 Comments
इक क़तरा भी रह न जाए, करना होगा ख़ुद को अर्पण,
प्रेम कहाँ पूरा होता है, अगर अधूरा रहे समर्पण।
लहर-लहर लहरें इतराकर
जी भर चंचलता तो जी लें,
हो वाचाल अगर अंतः तो
कैसे फिर होठों को सी लें,
तृप्त हुई लहरें खुद थम कर आखिर बन जाती हैं दर्पण।
प्रेम...
बारी-बारी इक दूजे में
आओ हो जाएँ हम-तुम गुम,
मुझको भी अभिव्यक्ति मिले और
ख़ुद को भी अभिव्यक्त करो तुम,
रात दिवस से, दिवस रात से, यही कहा करते हैं क्षण-क्षण।
प्रेम...…
Added by Dr.Prachi Singh on February 14, 2017 at 12:00pm — 7 Comments
मदिरा सवैता [भगण (२११) x ७ + गु]
पाँच विधानसभा फिर भंग हुई, नव रूप बुने जनता
राज्य हुए फिर उद्यत आज नयी सरकार चुने जनता
शासन और प्रशासन हैं नतमस्तक, आज गुने जनता
तंत्र चुनाव विशिष्ट लगे.. जनता कहती, कि सुने जनता..
*********
-सौरभ
Added by Saurabh Pandey on February 13, 2017 at 10:47pm — 13 Comments
Added by Ravi Shukla on February 13, 2017 at 6:32pm — 18 Comments
Added by Dr Ashutosh Mishra on February 13, 2017 at 3:04pm — 20 Comments
1212 1122 1212 22
ये जिंदगी है अभी तक नहीं दुआ पहुँची ।
खुदा के पास तलक भी न इल्तजा पहुँची।।
गमो का बोझ उठाती चली गई हँसकर ।
तेरे दयार में कैसी बुरी हवा पहुँची ।।
अजीब दौर है रोटी की दास्ताँ लेकर ।
यतीम घर से कोई माँ कई दफ़ा पहुची ।।
तरक्कियों की इबारत है सिर्फ पन्नों तक ।
है गांव अब भी वही गाँव कब शमा पहुँची ।।
यहां है जुल्म गरीबी में टूटना यारो ।
मुसीबतों में जफ़ा भी कई गुना पहुँची।।
है फरेबों का चमन मत…
Added by Naveen Mani Tripathi on February 13, 2017 at 1:00pm — 7 Comments
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