सागर जैसी लहर उठी है,
दिल की धड़कन में.
छलकी है पिय याद तुम्हारी,
मेरे नयनन में
तोड़े आम साथ में जाकर,
भायी मन अमराई.
पानी पर कागज की कश्ती,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on March 27, 2018 at 9:22am — 8 Comments
"अरे रमेश ये कैसे हुआ? और बेटे की हालत कैसी है? मुझे तो जैसे ही खबर लगी,भागा-भागा चला आ रहा हूँ" आई सी यू के बाहर खड़े रमेश से रतन ने पूछा।
रतन को देखते ही रमेश रो पड़ा। फिर अपने को संभालते हुए बोला-"क्या बताऊँ तुम्हें, मेरे घर के पास जो हाई वोल्टेज तार का खम्बा लगा हुआ था, वही कल अचानक गिर गया। और फिर ये…."
बोलते-बोलते वह फफक पड़ा।
रतन ढाँढस देते हुए बोला- "मित्र हिम्मत न हारो। सब कुछ ठीक हो जाएगा। .....डॉक्टर्स क्या कह रहे…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on March 27, 2018 at 7:44am — 16 Comments
221 2121 1221 212
जब से गये हैं आप किसी अजनबी के साथ ।
यूँ ही तमाम उम्र कटी बेखुदी के साथ ।।
कुछ वक्त आप भी तो गुजारो मेरे करीब ।
मत जाइए जनाब अभी बेरुखी के साथ ।।
कहने लगे है लोग उसे माहताब अब ।
मिलता नहीं जो मुझको यहाँ रोशनी के साथ ।।
है मुतमइन ही कौन यहां ख्वाहिशों के बीच ।
लाचारियाँ दिखीं है बहुत आदमी के साथ ।
तन्हाइयों का वक्त तो मिलना मुहाल है ।
चलती है रोज फ़िक्र…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on March 27, 2018 at 12:00am — 7 Comments
२१२२/ २१२२/ २१२२/ २१२
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दूर से इक शख्स जलती बस्तियाँ गिनता रहा
रह गई थीं कुछ जो बाकी तीलियाँ गिनता रहा.
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यादों के बिल से निकलती चींटियाँ गिनता रहा
था कोई दीवाना टूटी चूड़ियाँ गिनता रहा.
.
मुझ से मिलता-जुलता लड़का आईने से झाँक-कर
मेरे चेहरे पर उभरती झुर्रियाँ गिनता रहा.
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होश मेरे गुम थे मैंने जब किया इज़हार-ए-इश्क़
और वो नादान कच्ची इमलियाँ गिनता रहा.
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एक दिन पूछा किसी ने कौन है तेरा यहाँ
दिल हुआ रुसवा…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 26, 2018 at 4:46pm — 40 Comments
बूढ़ी माँ ...
अपनी आँखों से
गिरते खारे जल को
अपनी फटी पुरानी साड़ी के
पल्लू से
बार बार पौंछती
फिर पढ़ती
गोद में रखी
रामायण को
बूढ़ी माँ
व्यथित नहीं थी वो
राम के बनवास जाने से
व्यथित थी वो
अपने बिछुड़े बेटे के ग़म से
जिसका ख़त आये
ज़माना बीत गया
चूल्हा रोज जलता
उसके नाम की
रोटी भी रोज बनती
रोज उसे खिलाने की प्रतीक्षा में
रोटी हाथ में लिए लिए
सो जाती
बूढ़ी…
Added by Sushil Sarna on March 26, 2018 at 4:10pm — 12 Comments
फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा
22 22 22 22 22 22 22 2
सब में आग थी, लोहा भी था, नेक बहुत थे सारे हम
लेकिन तन्हा-तन्हा लड़ कर, तन्हा-तन्हा हारे हम
ज़र्रा-ज़र्रा बिखरे है हम, चारो ओर खलाओं में
लेकिन जिस दिन होंगे इकठ्ठा, बन जायेंगे सितारे हम
कितने दिन वो मूँग दलेंगे, कमजोरों की छाती पर
कितने दिन और चुप बैठेंगे, बनके यूं बेचारे हम
कबतक और ये…
ContinueAdded by Ajay Tiwari on March 26, 2018 at 11:49am — 22 Comments
121 22 121 22 121 22 121 22
कभी जरा सा मैं मुस्कुरा लूँ कभी तो दिल को करार आये
कभी तो भूले से इस चमन में उतर के फ़स्ल-ए-बहार आये
कि इससे पहले ये साँस टूटे सफ़ीना डूबे ये ज़िन्दगी का
चले भी आओ सनम कहीं से कहाँ कहाँ हम पुकार आये
बड़ी अदा से नजर झुकाये वो पूछते हैं कहाँ थे अब तक
सुनाये कैसे वो आपबीती वो ज़िन्दगी जो गुजार आये
हजार लम्हे हजार बातें जिन्हें तड़पता ही छोड़ आया
वो शाम वो गेसुओं के साये वो याद फिर बेशुमार…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 26, 2018 at 10:00am — 24 Comments
Added by indravidyavachaspatitiwari on March 26, 2018 at 6:14am — 2 Comments
गौरैया की चीं चीं बोली, सबको बड़ी सुहाती है
प्रातः काल मधुर बेला में, गीत मनोहर गाती है
फुदक फुदक कर दाने चुगती, मन को बड़ी लुभाती है
खिड़की और झरोखों से नित, हर पल आती जाती है ll
खेत बाग वन घर आँगन को, गौरैया चहकाती है
घरों और चौबारों में नित, अपना नीड़ बनाती है
घर की शोभा उजड़ गयी है, गौरैया के जाने से
नव युग का मानव वंचित है, गौरैया के गानें से ll
विकास की अंधी दुनिया मे, पंछी गुम हो जाते हैं
बढ़ा…
ContinueAdded by डॉ छोटेलाल सिंह on March 25, 2018 at 4:48pm — 5 Comments
रात भर महकती रही यादें
लुत्फ़ आया बहुत जुदाई का
विरह से उठा रोग दबा हुआ
पता लेता हूँ अब दवाई का |
सिक्के जेब को काटने लगे
खर्च ने हाल पूछा कमाई का
नमक-मिर्च से मुँह जलाकर
पूछा भाव फिर से मिठाई का |
हर रात सिराहन से शिकायतें
ढिंढोरा कब तलक ढिठाई का
हथेलियाँ-हथेलियों के लिए तड़पी
इश्क ने हाल पूछा रुसवाई का |
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अमुद्रित )
Added by somesh kumar on March 25, 2018 at 2:30pm — No Comments
कब निकले बाहर महलों से,
वन में गीत कभी गाये क्या
पूजा करते रहे राम की,
राम सरीखे बन पाये क्या
भाई को कब भाई समझा,
हर विपदा में किया किनारा
दीवारों पर दीवारें…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on March 25, 2018 at 11:03am — 13 Comments
" आप समस्त शहरवासियों से हाथ जोड़कर विनम्र अपील करता हूँ कि इस बार होने जा रहे 'स्वच्छता सर्वेक्षण ' में बढ़ चढ़कर भाग लें , अपना सकारात्मक फीडबेक देकर शहर को स्वच्छता की सूची में नंबर-वन बनाएँ ।यह शहर आपका है , इसे अपने घर की भाँति साफ-सुथरा और सुंदर बनाएँ। यह सबकी सामूहिक ज़िम्मेदारी है । शहर का नाम पूरे देश में रोशन करें । अपने आसपास गंदगी को फटकने न दें , घरों से निकलने वाला गीला और सूखा कचरा अलग-अलग डस्टबिन में डालें । मुझे उम्मीद है इस बार हमारा शहर स्वच्छता में पूरे देश में नंबर-वन…
Added by Mohammed Arif on March 25, 2018 at 9:13am — 10 Comments
कभी देखा है खुद को आईने में? तुम्हारी सहेली शीला को देखो,खुद को कितना मेन्टेन किया हुआ है उसने| और तुम! तुम्हारी शकल पर हमेंशा बारह बजते है| तंग आ गया हूँ तुम्हारी मनहूस शकल देखते देखते|" ऑफिस से घर आये शेखर के ऐसे विचार जानकार शीला खुद को न रोक पायी, उसने कुछ कहने को मुँह खोला ही था कि उसकी जेठानी ने कहा," अरे देवर जी! गर यह ऐसा न करेगी तो लोगों को पता कैसे चलेगा कि हमलोग इसको परेशान करते हैं| यह सब इसकी नौटंकी है, मुझे देखो दिन भर काम करती हूँ पर आपके भैया! मजाल है अब तक उन्होंने कुछ कहा…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on March 25, 2018 at 8:30am — 6 Comments
221 1222 22 221 1222 22
जितना बड़ा जो झूठा है वो, उतना ही अधिक चिल्लाता है
आवाज़ के पीछे चुपके से, रस्ते से यूँ भी भटकाता है
तुम बाँच रहे हो जो इतना, अज्दाद के किस्से मंचों से
उन किस्सों को सुनने वाला अब, पत्थर पे जबीं टकराता है
इंसान फ़कत है इक ज़र्रा, मिट जाएगा खुद इक झटके में
आकाश को छूती मीनारें, बेकार ही तू बनवाता है
है रंग बदलने में माहिर, हर शख़्स सियासत के अंदर
कुछ भी कहे वो लेकिन मतलब, कुछ और…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on March 25, 2018 at 8:13am — 19 Comments
अरकान: नामालूम
लय: दिल ही तो है न संग-ओ-खिश्त ... या ...आप को भूल जाएं हम इतने तो बेवाफ़ा नहीं ...की तरह
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जलने लगे जो ख्व़ाब सब नैन धुआँ धुआँ रहे
दिल से तेरे निकल के हम जानें कहाँ कहाँ रहे.
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रब से दुआ है ये मेरी दिल की सदा है आख़िरी
लब पे उसी का नाम हो जिस्म में गर ये जाँ रहे.
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लगते हों आलिशान हम कहने को क़ामयाब हों
खो के तुझे तेरी कसम अस्ल में रायगाँ रहे.
.
तेरी तलब में जाने जाँ ख़ाक हुए वगर्ना हम …
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 24, 2018 at 9:37pm — 24 Comments
221 1222 22 221 1222 22
हालात बदलते जाते हैं यह वक्त उसे उलझाता है ।
इंसान हक़ीक़त से अक्सर अब रब्त कहाँ रख पाता है ।।
जो ज़ख्म छुपा कर रखते हैं ईमान बचाकर चलते हैं ।
हिस्से में उन्हीं के ही अक्सर कुदरत का वजीफ़ा आता है ।।
कुछ राज बताने लगतीं हैं माथे की शिकन आंखों की चमक ।
चेहरे से पता चल जाता है जब खाब कोई मुरझाता है ।।
जब लूट गया कोई सपना तब होश में आकर क्या होगा ।
जालिम है अभी कितनी दुनिया यह वक्त हमें समझाता है…
Added by Naveen Mani Tripathi on March 24, 2018 at 6:57pm — 3 Comments
Added by Ram Ashery on March 24, 2018 at 4:42pm — 5 Comments
...
दुश्मन भी अगर दोस्त हों तो नाज़ क्यूँ न हो,
महफ़िल भी हो ग़ज़लें भी हों फिर साज़ क्यूँ न हो ।
है प्यार अगर जुर्म मुहब्बत क्यूँ बनाई,
गर है खुदा तुझमें तो वो, हमराज़ क्यूँ न हो ।
रखते हैं नकाबों में अगर राज़-ए-मुहब्बत,
जो हो गई बे-पर्दा तो आवाज़ क्यूँ न हो ।
दुश्मन की कोई चोट न होती है गँवारा,
गर ज़ख्म देगा दोस्त तो नाराज़ क्यूँ न हो ।
संगीत की तरतीब में तालीम बहुत है,
फिर गीत ग़ज़ल में सही अल्फ़ाज़ क्यूँ न…
Added by Harash Mahajan on March 24, 2018 at 3:30pm — 15 Comments
बह्र ,2122-2122-2122
फिर मैं बचपन दोहराना चाहता हूँ।।
ता -उमर मैं मुस्कुराना चाहता हूँ ।।
जिसमें पाटी कलम के संग दवाइत।
मैं वो फिर लम्हा पुराना चाहता हूँ ।।
कोयलों की कूह के संग कूह कर के ।
मौसमी इक गीत गाना चाहता हूँ ।।
टाटपट्टी ,चाक डस्टर, और कब्बडी।
दाखिला कक्षा में पाना चाहता हूँ।।
ए बी सी डी, का ख् गा और वर्ण आक्षर।
खिलखिलाकर गुनगुनाना चाहता हूँ ।।
आमोद बिन्दौरी / मौलिक /अप्रकाशित
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 24, 2018 at 11:23am — 5 Comments
गर बनाना चाहते हो विकसित
वतन तो करनी होगी मेहनत ।
धरम जाति की दूर करो नफरत
सब आज मिलकर संवार लो किस्मत ।
मजदूर गरीब की किस्मत खोटी
प्रजातन्त्र में भी मिलती न रोटी ।
मरता किसान फसल हुई खोटी
घर में न अन्न कैसे बने रोटी ।
कर्ज में कृषक सरकार है सोती
ललित विदेश में चुन रहा मोती ।
अज्ञान है मिटाना करो सुनिश्चित
हर बालक हो आज करो सुशिक्षित ।
बज गया बिगुल जंग होना बाकी
खत्म हुइ रात सुबह होना बाकी ।
समता समाज में आना बाकी…
Added by Ram Ashery on March 23, 2018 at 4:00pm — 6 Comments
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