2122 2122 2122 212
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पत्थरों के बीच रहकर देवता बनकर दिखा
दीन मजलूमों के हित में इक दुआ बनकर दिखा
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कर रहा आलोचना तो सूरजों की देर से
है अगर तुझमें हुनर तो दीप सा बनकर दिखा
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चाँद पानी में दिखाकर स्वप्न दिखलाना सहज
बात तब है रोटियों को तू तवा बनकर दिखा
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देख जलता रोम नीरो सा बजा मत बंशियाँ
जो हुए बरबाद उनको आसरा बनकर दिखा
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है सहोदर तो लखन …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 22, 2015 at 10:57am — 9 Comments
बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२
जीवन से लड़कर लौटेंगे सो जाएँगे
लपटों की नाज़ुक बाँहों में खो जाएँगे
बिना बुलाए द्वार किसी के क्यूँ जाएँ हम
ईश्वर का न्योता आएगा तो जाएँगे
कई पीढ़ियाँ इसके मीठे फल खाएँगी
बीज मुहब्बत के गर हम तुम बो जाएँगे
चमक दिखाने की ज़ल्दी है अंगारों को
अब ये तेज़ी से जलकर गुम हो जाएँगे
काम हमारा है गति के ख़तरे बतलाना
जिनको जल्दी जाना ही है, वो…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 22, 2015 at 10:30am — 14 Comments
Added by दिनेश कुमार on April 21, 2015 at 8:30pm — 24 Comments
“ बेटा!! आ गया तू.. कहाँ-कहाँ हो आया भारत भ्रमण में..?
“ माँ!! चारो दिशाओं में गया था. देखो! गंगाजी का जल भी लाया हूँ. आप कहो तो, पिताजी लाये थे वो कलश आधा खाली है उसमे ही डाल दूँ..”
“ नहीं!! बेटा.. रोज समाचारों में सुनती हूँ कि गंगा में स्वच्छता अभियान चल रहा है, वर्षों पहले तेरे पिता जो लाये वो तू बचा के रखना. कम से कम आगे आने वाली पीढ़ी, पवित्र गंगाजल तो देख लेगी..”
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on April 21, 2015 at 7:07pm — 26 Comments
वर्षा,
हर्ष-विषाद से मुक्त
चंचल, चपल, वाकपटुता में
मेढकों की टर्र-टर्र
रात के सन्नाटो में भी
झींगुरों के स्वर
सर-सराती हवाओं के संग लहराती
चिकन की श्वेत साड़ी
लज्जा वश देह से लिपट कर सिकुड् जाती
वनों की मस्त तूलिकाएं स्पर्श कर
रॅगना चाहतीं धरा
हरियाली, सावन, कजरी का मन भी
उमड़ता, प्यार-उत्साह...जोश
म्यॉन से तलवारें खिंच जाती.....द्वेष में
चमक कर गर्जना करती
बादलों की ओट से
आल्हा, राग छेड़ कर ताल ठोंकते
दंगल, चौपालों की…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 21, 2015 at 7:01pm — 14 Comments
221 2121 1221 212
अब और सब्र का तू मेरे इम्तिहाँ न ले
मेरी ज़मीं न छीन मेरा आसमाँ न ले
है मुख़्तसर ज़मीन तमन्नाओं की फ़क़त
ऐ बेरहम नसीब यूँ मेरा जहाँ न ले
कम रख ज़रा तू अपनी रवानी को ऐ हवा
इतना रहम तो कर कि मेरा आशियाँ न ले
जज़्बात से न बाँध मुझे ऐसे हमनशीं
मत रोक लफ़्ज़ मेरे यूँ मेरी ज़बाँ न ले
कायम है कायनात शजर के वुजूद से
खुद को ही बेवुजूद न कर अपनी जाँ न ले
मौलिक व…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on April 21, 2015 at 6:10pm — 17 Comments
"बापू, हमारे साथ शहर क्यों नहीं चलते ?"
"शहर जा बसेंगे तो खेती कौन करेगा ?"
"क्या रखा है खेती में ? कभी सूखा फसल को मार जाता है तो कभी बेमौसम बरसात।"
"तुम्हें कैसे समझाऊँ बेटा।"
"खुल कर बताओ बापू, दिल पर कोई बोझ है क्या ?"
"ये अन्नदाता की उपाधि का बोझ है बेटा, तुम नहीं समझोगे ।"
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(मौलिक एवँ अप्रकाशित)
Added by योगराज प्रभाकर on April 21, 2015 at 5:04pm — 18 Comments
थोड़ी छाँव और
ज़्यादा धूप में बैठी
बुढ़िया भी
अपने
चार करेले और
दो गड्डी साग न बिकने
पर उतना दुखी नहीं हैं
जितना नगर श्रेष्ठि
नए टेंडर न मिलने पर है
कलुवा
हलवाई की भटटी
सुलगाते हुए अपने
हम उम्र बच्चों को फुदकते हुए
नयी नयी ड्रेस और बस्ते के साथ
स्कूल जाते देख भी उतना दुखी नहीं है
जितना सेठ जी का बेटा
रिमोट वाली गाड़ी न पा के है
प्रधान मंत्री जी
हज़ारों किसान के सूखे से
मर जाने की खबर…
Added by MUKESH SRIVASTAVA on April 21, 2015 at 12:31pm — 9 Comments
221 1222 221 1222
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कब मोह दिखाती है सरकार किसानों से
मतलब तो उसे है बस दो चार दुकानों से
****
रिश्तों की कहाँ कीमत वो लोग समझते हैं
है प्यार जिन्हें केवल दालान मकानों से
****
वो मान इसे लेंगे अपमान बुजुर्गी का
तकरार यहाँ करना बेकार सयानों से
****
कदमों को मिला पाए कब साथ नयों का हम
कब यार निभाई है तुमने भी पुरानों से
****
उस रोज यहाँ होगा सतयुग सा नजारा भी
जिस रोज …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 21, 2015 at 12:16pm — 15 Comments
ख्वाहिशों के सूरज का उगना हर सुबह
मन की खिड़की से झांकना हर सुबह
परदे मन पर लगाना चाहती है
ओट में हसरतों को दबाना चाहती है
क्योंकि वह एक लड़की है
समाज की नज़रों में लड़की बोझ होती है
उसे उम्मीदों के आँगन में
आशाओं के फूल खिलाने का
कोई हक नहीं होता
उसे हक है बस इतना कि
पराया धन कहलाए
किसी और के मधुबन को
चमन वो बनाए
लगा कर माथे रक्तिम गोल चिन्ह
किसी की पत्नी तो
किसी की बहू वह कहलाए
पैरों में बाँध कर…
Added by डिम्पल गौड़ on April 21, 2015 at 12:00am — 16 Comments
भोर के स्वर गान में
आकर बसे तुम प्राणों में
रश्मि मुग्धा ले चली
अनुराग सागर की तली
सीप की उच्छवांस में
आकार बसे तुम लहर में
मौन होकर रात भागी
तारकों को विरक्ति लागी
आकाश के सोपान में
आकर बसे तुम भानु में
प्रेम के संतृप्त मन में
नेह से डोले बदन में
चारणों की मधुर धुन में
आकर बसे तुम शब्दों में
नीद के विश्वास में
अभिलाष के अवकाश…
Added by kalpna mishra bajpai on April 20, 2015 at 9:00pm — 7 Comments
बेरोजगारी निवारण विधेयक वापस लो.. वापस लो, सरकार की मनमानी नहीं चलेगी...नहीं चलेगी.....
“मम्मी मम्मी जल्दी आओं, टीवी पर पापा को दिखा रहे हैं.”
“अच्छा....”
“मम्मी ये बेरोजगारी निवारण विधेयक क्या है ?”
“पता नहीं बेटा, शाम में जब तेरे पापा आयेंगे तो पूछ कर बताउंगी.”
“सुनिए जी, आज आपको मुन्ना टीवी पर देख बहुत खुश हो रहा था. वैसे एक बात बताइये ये बेरोजगारी निवारण विधेयक क्या है ?”
“पता नहीं यार, मैंने नहीं…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 20, 2015 at 4:40pm — 25 Comments
२१२२/१२१२/२२ (सभी संभावित कॉम्बिनेशन्स)
.
ज़िन्दगी हाल का सफ़र न हुई
जैसे इक रात की सहर न हुई.
.
तेरी जानिब मैं देखता ही रहा
मेरी जानिब तेरी नज़र न हुई.
.
फ़ायदा क्या हुआ ग़ज़ल होकर
तर्जुमानी तेरी अगर न हुई.
.
पहले पहले हया का पर्दा रहा
फिर ज़रा भी अगर मगर न हुई .
.
दिल की मिट्टी पे पड़ गयी मिट्टी
याद तेरी इधर उधर न हुई.
.
ख़ुद को भूला तुझे भुलाने में
कोई तरकीब कारगर न हुई.
.
‘नूर’ बिखरा…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 20, 2015 at 4:00pm — 29 Comments
तुम दीया हो तो मुझे बाती बनना होगा
तेरा साथ पाने को चाहे मुझे जलना होगा !
तुम अगर रात हो तो मुझे अँधेरा बनना होगा
तुम से मिलने को मुझे सवेरों से लड़ना होगा !
तुम ग़र दरिया हो तो मुझे समन्दर बनना होगा
तुमको फिर मुहब्बत में मुझ से मिलना होगा !
तुम अगर हवा हो तो मुझे धूल बनना होगा
मुझे आगोश में ले आँधियों में तुम्हें उड़ना होगा !
तुम अगर चाँद हो तो मुझे चकोरी बनना होगा
तुमको हर रात मेरा मिलन का गीत सुनना होगा…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 20, 2015 at 1:25pm — 16 Comments
Added by Samar kabeer on April 20, 2015 at 10:30am — 28 Comments
धरती रोती है ,मैंने देखा है धरती रोती है
छीज रहा उसका आँचल
बिखर रहा सारा संसार
त्रस्त कर रही उसको निस दिन
उसकी ही मानव संतान
विगत की तेजोमय स्मृतियाँ
वर्तमान में तीव्र विनाश
आगत एक भयावह स्वप्न
भग्न - बिखरती आस
पशु - पक्षी जीव वनस्पति
सब ही हैं उसकी संतति
पर मानव ने मान लिया
धरा को केवल अपनी संपत्ति
शक्ति मद में भूल गया
वह…
ContinueAdded by Tanuja Upreti on April 20, 2015 at 10:00am — 20 Comments
“गुरु देव !”
“हाँ बोलो बेटा !”
“लेखन में आपने बहुत कुछ सिखा दिया पर !”
“पर क्या ?”
“पर लगता है आप कहीं चूक गए !”
“अच्छा ! कैसे और तुम्हे ऐसा क्यों लगा ?”
“मेरे लेखन मैं वो बात नहीं आ पा रही है !”
अब गुरु जी थोड़ी देर तक सोचते रहे और तभी एक आवाज़ आई ...पटाक !
शिष्य का गाल लाल हो चुका था , आँख के आगे तारे दिखाई देने लगे .
“अब बोलो बेटा !”
“जी ,समझ गया गुरूजी, बस यही ‘झन्नाटा’ नहीं आ पा रहा था !”
© हरि प्रकाश…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on April 19, 2015 at 9:30pm — 10 Comments
‘’आपने आज का अखबार पढ़ा अशफ़ाक मियां” कश्मीर में हालात और बेकाबू हो गये हैं!
“हाँ श्रीवास्तव जी पढ़ा!” इतना कहकर अशफ़ाक मियां चुप हो गये।
‘’आखिर मौकापरस्तों के चंगुल में जनता कैसे फँस जाती है ?" श्रीवास्तव जी फिर बोल पड़े।
कुछ देर चुप रहने के बाद अशफ़ाक मियां गहरी साँस लेते हुए बोले---
‘’घर का मामला जब अदालत में जाये तो यही अंजाम होता है’’!
Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 19, 2015 at 2:30pm — 16 Comments
२१२२/१२१२/२२ (सभी संभावित कॉम्बिनेशन्स)
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तुम तो सचमुच सराब हो बैठे.
यानी आँखों का ख़्वाब हो बैठे
.
साथ सच का दिया गुनाह किया
ख्वाहमखाह हम ख़राब हो बैठे.
.
फ़िक्र को चाटने लगी दीमक
हम पुरानी क़िताब हो बैठे.
.
उनकी नज़रों में थे गुहर की तरह
गिर गए!!! हम भी आब हो बैठे.
.
अब हवाओं का कोई खौफ़ नहीं
कुछ चिराग़ आफ़्ताब हो बैठे.
.
ऐरे ग़ैरों के…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 19, 2015 at 12:18pm — 26 Comments
शायद हो ख्वाब
तुम्हे व्योम में उड़ते देखा
तुम्हारे बाल बल खाते
और
लहराता प्यार का आँचल
उड़ने की होती है अपनी ही मुद्रा
परियो के अनुराग सी
नैनों के राग सी
प्रात के विहाग सी
इस उड़ने में नहीं कोई स्वन
या पद संचालन की अहरह धुन
उड़ते ही रहना मीत
धरणि पर न आना
रेशम सी किरणों पर मधु-गीत गाना
दूर तो रहोगी, पर दृग-कर्ण-गोचर
पास आओगी तो
फिर एक अपडर
धरती पर टिकते ही परी जैसे…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 19, 2015 at 11:17am — 7 Comments
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2021
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2019
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