".. और सुनाओ, कैसे हो? हाउ आss यूss?"
"मालूम तो है न! ठीक-ठाक हूं!"
"ओके, मैं भी! लेकिन यह तो बताओ कि सब कुछ अच्छा ही है या अच्छा है सब कुछ 'ठोक-ठाक' के!"
"जानती तो हो ही तुम! घूम रहा हूं तुम्हारी तरह! लेकिन फ़र्क है!"
"फ़र्क! किस तरह का!"
"मेरा घूमना तुम्हारी तरह प्राकृतिक या ब्रह्मंड वाला कक्षा-चक्रीय नहीं है! मैं वैश्वीकरण के कारण घूम रहा हूं; यायावर सा हो गया हूं मैं!"
"हां, जानती तो हूं ही मैं भी!"
"तो…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 30, 2018 at 8:26pm — 3 Comments
रवि और गीता फर्स्ट ईयर से ही एक दूसरे को पसंद करते थे अतः उनमे दोस्ती हो गई और बाद में प्यार परवान चढ़ा। फाइनल ईयर तक आते आते उन दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया। रवि को गीता में उसका भावी जीवन साथी दिखता था। रवि ने गीता को अपने दिल के मंदिर में बैठा लिया था। वो तो सपने भी देखने लगा कि गीता ही उसकी और उसके मां बाप की देखभाल करेगी और उसकी गरीबी उन दोनों के बीच नही आएगी।
रवि मिडिल क्लास फैमिली से था और गीता एक फैक्ट्री के मालिक की बेटी थी।
फाइनल ईयर के एग्जाम शुरू होने वाले थे। रवि…
Added by Rajesh Mehra on April 30, 2018 at 6:00pm — 2 Comments
2122 2122 2122 212
दर्द दिल के आशियाँ में इस क़दर पाले गये
आँख से लाली गई ना पांव से छाले गये
रोटियों से भूख की इतनी अदावत बढ़ गई
पेट में सूखे निवाले ठूंस के डाले गये
इस क़दर उलझे हुये हैं आलम-ए-तन्हाई में
मकड़ियां यादों की चल दी भाव के जाले गये
मुफ़लिसी की आँधियाँ थीं याद के थे खंडहर
नीव भी कमजोर थी सो टूट सब आले गये
ख़्वाब की आँखों से 'ब्रज' घटती नहीं हैं दूरियां
बात दीगर है सभी पलकों तले पाले गये…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 30, 2018 at 4:00pm — 9 Comments
आपने भी तो कहाँ ठीक से जाना मुझ को
खैर जो भी हो, मुहब्बत से निभाना मुझ को.
.
जीत कर मुझ से, मुझे जीत नहीं पाओगे
हार कर ख़ुद को है आसान हराना मुझ को.
.
मैं भी लुट जाने को तैयार मिलूँगा हर दम
शर्त इतनी है कि समझें वो ख़ज़ाना मुझ को.
.
आप मिलियेगा नए ढब से मुझे रोज़ अगर
मेरा वादा है न पाओगे पुराना मुझ को.
.
ओढ़ लेना मुझे सर्दी हो अगर रातों में
हो गुलाबी सी अगर ठण्ड, बिछाना मुझ को.
.
मुख़्तसर है ये तमन्ना कि अगर जाँ निकले…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 30, 2018 at 10:42am — 26 Comments
जाति-पाती पूछे हर कोई
“हो गईल चन्दवा क शादी |” पत्नी मोबाईल कान से लगाए मेरी तरफ देखते हुए बोली
मैं दफ्तर से लौटा तो समझ गया की पत्नी जी अपनी माता से फ़ोन पर लगी पड़ी हैं |मैंने बिना कोई रूचि दिखाए अपना बैग रखा और हाथ-मुँह धोने चला गया |
थोड़ी देर बाद पत्नी चाय लेकर आई और सामने बैठ गयी |मैं समझ गया कि वो मुझे कुछ बताने के लिए बेताब है और यह भी कि यह चंदा के विषय में है पर सिद्ध-पुरुष की तरह मैं प्लेट से कचरी उठाकर खाने लगा और अपने व्हाट्सएप्प को…
ContinueAdded by somesh kumar on April 29, 2018 at 5:26pm — 4 Comments
1222 1222 122
बड़ी मुद्दत से टाला जा रहा है ।
किसी का जुल्म पाला जा रहा है ।। 1
मुझे मालूम है वह बेख़ता थी ।
किया बेशक हलाला जा रहा है ।।2
लगीं हैं बोलियां फिर जिस्म पर क्यूँ ।
यहाँ सिक्का उछाला जा रहा है ।।3
कहीं मैं खो न जाऊं तीरगी में ।
मेरे घर से उजाला जा रहा है ।।4…
Added by Naveen Mani Tripathi on April 29, 2018 at 4:30pm — 7 Comments
"आज कुछ बदलाव सा लग रहा है हर बात में, क्या बात है? सब कुछ मेरी पसंद का!"
"ये मत सोचना जानूं कि देश के बदलाव के साथ ख़ुद को बदल रही हूं! दरअसल तुम्हारी गोली मुझे अंदर तक घायल कर गई, कल रात!"
इतना कह कर पत्नि ने शरमाते हुए पति की लिखी नई ग़ज़ल वाली पर्ची उसके सीने वाली बायीं जेब में डाल दी!
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 29, 2018 at 3:30pm — 6 Comments
करनी है जब मन की साहब
क्यों पूछे हो हमरी साहब ।
पानी भरने मैं निकला हूँ
ले हाथों में चलनी साहब ।
पढ़े फ़ारसी तले पकौड़े
किस्मत अपनी अपनी साहब ।*
आटा से डाटा है सस्ता
सब माया है उनकी साहब ।*
शौचालय का मतलब तब ही
जन जब खाए रोटी साहब ।
नही सुरक्षित घर में बेटी
धरम-करम बेमानी साहब ।
सच्ची सच्ची बात जो बोले
आज वही है 'बाग़ी' साहब ।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
*संशोधित
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 29, 2018 at 2:30pm — 23 Comments
(फ ऊलन -फ ऊलन-फ ऊलन-फ ऊलन )
मुहब्बत में धोका उठाने चले हैं।
हसीनों से वह दिल लगाने चले हैं।
सज़ा जुर्म की वह न दे पाए लेकिन
मेरा नाम लिख कर मिटाने चले हैं।
लगा कर त अस्सुब का आंखों पे चश्मा
वो दरसे मुहब्बत सिखाने चले हैं ।
अदावत भी जिनको निभाना न आया
वो हैरत है उल्फ़त निभाने चले हैं ।
बहुत नाम है ऐबगीरों में जिनका
हमें आइना वो दिखाने चले हैं ।
अचानक इनायत न उनकी हुई है
वो…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on April 29, 2018 at 12:30pm — 8 Comments
221---2121---1221---212
.
तू मुश्किलों को धूल चटाने की बात कर
तूफ़ाँ में भी चराग़ जलाने की बात कर
.
तू मीरे-कारवाँ है तो ये फ़र्ज़ है तिरा
भटके हुओं को राह दिखाने की बात कर
महफ़िल में जब बुलाया है मुझ जैसे रिन्द को
आँखों से सिर्फ़ पीने पिलाने की बात कर
.
ऐशो-तरब की चाह भी कर लेना बाद में
पहले उदर की आग बुझाने की बात कर
.
मुद्दत से मुन्तज़िर हूँ तिरा ऐ सुकूने-दिल
ख़्वाबों में ही सही कभी आने की बात कर
.
बस पैरहन…
Added by दिनेश कुमार on April 29, 2018 at 6:30am — 18 Comments
चाहे जितने लेख लिखें हम
और लिखें कितनी कविता
नहीं समझ आती कामी को
अब कोई भी मर्यादा
रोगी मन का शब्दों से
उपचार नहीं होने वाला
सद्गुण , संस्कार के बिन
उद्धार नहीं…
Added by Usha Awasthi on April 28, 2018 at 7:30pm — 9 Comments
बुजुर्ग यानि हमारे युवा घर की आधुनिकतावाद की दौड़ में डगमगाती इमारत के वो मजबूत स्तम्भ होते हैं जिनकी उपस्थिति में कोई भी बाहरी दिखावा नींव को हिला नही सकता.उनके पास अपनी पूरी जिन्दगी के अनुभवों का पिटारा होता हैं जिनके मार्ग दर्शन में ये नई युवा पीढ़ी मायावी दुनिया में भटक नही सकती,लेकिन आज के दौर में बुजुर्गों को बोझ समझा जाने लगा हैं.उनकी दी हुई सीखे दकियानूसी बताई जाती हैं .ऐसा ही मैंने एक लेख में पढ़ा था जिसमे बुजुर्गों को पराली की संज्ञा दी गई.पराली वो होती…
ContinueAdded by babitagupta on April 28, 2018 at 4:46pm — 7 Comments
221 2121 1221 212
बेबस पे और जुल्म न ढाने की बात कर।
गर हो सके तो होश में आने की बात कर ।।
.
क्या ढूढ़ता है अब तलक उजड़े दयार में ।
बेघर हुए हैं लोग बसाने की बात कर ।।
.
खुदगर्ज हो गया है यहां आदमी बहुत ।
दिल से कभी तो हाथ मिलाने की बात कर ।।
.
मुश्किल से दिल मिले हैं बड़ी मिन्नतों के बाद ।
जब हो गया है प्यार निभाने की बात कर…
Added by Naveen Mani Tripathi on April 28, 2018 at 9:00am — 5 Comments
212 212 212 212
****************
उससे नज़रें मिलीं हादसा हो गया,
एक पल में यहाँ क्या से क्या हो गया ।
ख़त दिया था जो कासिद ने उसका मुझे,
"बिन अदालत लगे फ़ैसला हो गया" ।
दरमियाँ ही रहा दूर होकर भी गर,
जाने फिर क्यूँ वो मुझसे ख़फ़ा हो गया ।
गर निभाने की फ़ुर्सत नहीं थी उसे,
खुद ही कह देता वो बेवफ़ा हो गया।
दर्द सीने में ऱख राज़ उगला जो वो,
यूँ लगा मैं तो बे-आसरा हो गया…
Added by Harash Mahajan on April 27, 2018 at 7:00pm — 13 Comments
"बेटा, फल के आने से वृक्ष तक झुक जाते हैं, वर्षा के समय बादल झुक जाते हैं, संपत्ति के समय सज्जन भी नम्र हो जाते हैं। परोपकारियों का स्वभाव ही ऐसा होता है! कह गए अपने तुलसीदास जी, समझे!" महाविद्यालय की कैंटीन में राजनीतिक गुफ़्तगु करते छात्र-समूह में से एक ने दूसरे की बात सुनकर हिदायत देने की कोशिश कर डाली!
"अबे, यह सब क़िताबों में ही रहने दे और आज की दुनिया की बात कर!" दूसरे छात्र ने चाट का दोना वेस्टबिन में डालते हुए कहा - "फल आने के अहंकार से संस्कार झुक जाते हैं, धनवर्षा के…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 27, 2018 at 8:15am — 4 Comments
मोहब्बत ...
गलत है कि
हो जाता है
सब कुछ फ़ना
जब ज़िस्म
ख़ाक नशीं
हो जाता है
रूहों के शहर में
नग़्मगी आरज़ूओं की
बिखरी होती
ज़िस्म सोता है मगर
उल्फ़त में बैचैन
रूह कहाँ सोती है
मेरे नदीम
न मैं वहम हूँ
न तुम वहम…
Added by Sushil Sarna on April 25, 2018 at 7:16pm — 10 Comments
"लोकतंत्र ख़तरे में है!"
"कहां?"
"इस राष्ट्र में या उस मुल्क में या उन सभी देशों में जहां वह किसी तरह है!"
"अरे, यह कहो कि वही 'लोकतंत्र' जो कि कठपुतली बन गया है तथाकथित विकसितों के मायाजाल में!"
"हां, तकनीकी, वैज्ञानिकी विकास में या ब्लैकमेलिंग- व्यवसाय में!"
"सच तो यह है कि जो धरातल, स्तंभों से दूर हो कर खो सा गया है कहीं आसमान में!"
"हां, दिवास्वप्नों की आंधियों में!"
"... और अजीबोग़रीब अनुसंधानों में!"
"भाई, इसी तरह यह क्यों नहीं कहते कि इंसानियत…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 25, 2018 at 7:00pm — 2 Comments
घर की सुखमयी ,वैभवता की ईटें सवारती,
धरा-सी उदारशील,घर की धुरी,
रिश्तों को सीप में छिपे मोती की तरह सहेजती,
मुट्ठी भर सुख सुविधाओं में ,तिल-तिल कर नष्ट करती,
स्त्री पैदा नही होती,बना दी जाती,
ममतामयी सजीव मूर्ति,कब कठपुतली बन…
ContinueAdded by babitagupta on April 25, 2018 at 6:00pm — 4 Comments
मैं लिख नहीं सकता l
मैं लिख नहीं सकता
वाणी के पर खोलकर
अम्बुधि के उर्मिल प्रवाह पर
उत्कंठित भावभंगिमा से
नीरवता का भेदन करके
घन तिमिर बीच में बन प्रभा
मधुकरी सदृश गुंजित रव से
अविरल नूतनता भर देता
मैं लिख नहीं सकता l
भू अनिल अनल में
उथल पुथल
अनृत प्रवाद का मर्दन कर
इतिवृत्तहीन विपुल गाथा
मुख अवयव से
पुष्कल निनाद
हो अनवरुद्ध
झंकृत करता
मैं…
ContinueAdded by डॉ छोटेलाल सिंह on April 25, 2018 at 12:31pm — 7 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
.
बहुत आसाँ है दुनिया में किसी का प्यार पा लेना,
बहुत मुश्किल है ऐबों को मगर उस के निभा लेना.
.
नज़र मिलते ही उस का झेंप कर नज़रें चुरा लेना,
मचलती मौज का जैसे किसी साहिल को पा लेना.
.
बहुत वादे वो करता है मगर सब तोड़ देता है,
ये दावा भी उसी का है कि मुझ को आज़मा लेना.
.
मलंगों सी तबीयत है सो अपनी धुन में रहता हूँ
पिये हैं रौशनी के जाम फिर ग़ैरों से क्या लेना.
.
मिलन होगा मुकम्मल जब मिलेगी बूँद सागर से…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 12:09pm — 14 Comments
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