गंगा - लघुकथा -
शंकर सेना में हवलदार था। उसकी पोस्टिंग सिलीगुड़ी में थी। आज उसका अवकाश था तो अपनी साईकिल उठा कर शहर घूमने निकल गया। घूमते घूमते एक घर के दरवाजे पर उसकी निगाहें अटक गयीं। एक खूबसूरत युवती खड़ी थी। उसकी शक्ल हूबहू उसकी बचपन की दोस्त गंगा से मिल रही थी।
गंगा लगभग आठ दस साल की थी कि तभी कोई ठग उसे बहला फ़ुसला कर उड़ा ले गया था। यह घटना दिल्ली में हुई थी। परिवार ने बहुत खोज बीन की लेकिन गंगा का कुछ पता नहीं लगा। पुलिस में भी रिपोर्ट दी गयी थी।
शंकर कुछ देर असमंजस…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on May 22, 2019 at 10:11pm — 4 Comments
मेरा भारत महान - लघुकथा -
राजू का इस बार वोट देने का पहला अवसर था। वोटर लिस्ट में भी नाम आ गया था। वोटर स्लिप भी घर आ गयी थी। वह बहुत रोमांचित हो रहा था। पहली बार मतदान का कैसा अनुभव होता है, अपने मित्रों से पूछता फिरता था।
वे उसे अपने अपने अनुभवों के आधार पर किस्से सुनाते तथा साथ ही सलाह भी देते कि किसको वोट देना है। लेकिन उसने सोच रखा था कि वोट तो अम्मा द्वारा बताये नेता को ही दूँगा। इस दुनियाँ में उसकी सब कुछ अम्मा ही थी। बापू तो बचपन में ही गुजर गये थे।अम्मा ने बड़े दुख झेल…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on May 21, 2019 at 10:17am — 8 Comments
"याद पिया की आए" ठुमरी लैपटॉप में मद्दम स्वर में बज रही थी, बाहर बरसती हुई बूंदों का शोर मन में हलचल मचाना चाह रही थी. उसने अपनी चाय की प्याली उठायी और होठों से लगा लिया. चाय कुछ ठंडी हो गई थी लेकिन उसे इसका एहसास नहीं था. उसे तो अधखुली आँखों से खिड़की के बाहर टपकती बारिश की बूंदें दिख रही थी और उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली साहब की जादुई आवाज सुनाई दे रही थी.
अक्सर ऐसे मौकों पर, जब वह नितांत अकेले ही रहना चाहता है, फ़ोन को साइलेंट मोड में कर देता है. लेकिन आज न जाने कैसे वह भूल गया था और फोन का…
Added by विनय कुमार on May 20, 2019 at 8:00pm — 4 Comments
शृंगारिक दोहे :
नैनों से बरखा बहे, जब से छूटा हाथ।
नींदें दुश्मन हो गईं, कब आओगे नाथ।1।
एक श्वास तुम साथ हो, एक श्वास तुम दूर।
कैसी है ये दिल्लगी, कुछ तो कहो हुज़ूर।2।
कातिल हसीन शोखियाँ, हैं आपकी हुजूर।
नज़र न कर बैठे कहीं , बहका हुआ कुसूर।3।
सावन की बौछार में, भीगा हुआ शबाब।
बहके रिंदों की कहीं, नीयत हो न ख़राब ।4।
तुम तो साजन रात के, तुम क्या जानो पीर।
भोर हुई तुम चल दिए, नैन बहाएँ…
Added by Sushil Sarna on May 20, 2019 at 4:00pm — 8 Comments
प्रेम हो जाना अर्थात रात भर जगना।।
भूख प्यास नींद चैन सब गँवा कर
अवधान में एकल उद्दीपक बसा कर
उस तक पहुँचने का सतत यत्न करना
प्रेम हो जाना अर्थात रात भर जगना।।
इच्छित के प्रति समर्पण है प्रेम
उद्देश्य के प्रति अभ्यर्पण है प्रेम
लक्ष्य के प्रति अनवरत गतिशील रहना
प्रेम हो जाना अर्थात रात भर जगना।।
प्रेयसी के अंक पाश तक सीमित नहीं
काम जनित आकर्षण तो किंचित नहीं
कामना के केंद्र-बिंदु पर…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 20, 2019 at 1:01pm — No Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 19, 2019 at 11:31pm — 3 Comments
दोहे
तरुवर देते फूल फल, नदिया देती नीर
मानव मानव को मगर देता नित क्यों पीर।१।
ओछा मन हद तोड़ता, ओछी नदिया कूल
जैसे चन्दन से अधिक, माथे चढ़ती धूल।२।
जो बोता है पेड़ इक, बाँटे सबको छाँव
काटे जो वट रात दिन, जलते उसके पाँव।३।
अर्थी, पूजा, प्रीत को, मिले न आगन फूल
इस युग बोने सब लगे, कैक्टस कैर बबूल।४।
मरने पर जिसको रही, गंगाजल की चाह
उसने गंगा ओर की, हर नाले की राह।५।
जहाँ पसीना…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 18, 2019 at 6:03pm — 8 Comments
ग़ज़ल
( मफाइलुन_फ इ लातुन_मफाइलुन_फेलुन)
किसी से प्यार किसी से क़रार ख़ैर ख़ुदा
करे वो तीर से दो दो शिकार ख़ैर ख़ुदा
अलम छुपाने की कोशिश तो हँस के की लेकिन
निगाहे नम ने किया आश कार ख़ैर ख़ुदा
नज़र पे पहरा है दीवाना फ़िर भी कूचे में
सनम को अपने रहा है पुकार ख़ैर ख़ुदा
तवक्को उनसे है फैसल की, कर रहे हैं जो
फरेबियों में हमारा शुमार ख़ैर ख़ुदा
लगा ये देख के उनको उदास महफ़िल में
खिज़ा के साथ…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on May 18, 2019 at 12:34pm — 4 Comments
बौना आदमी - लघुकथा -
रहीम ने अपने लंबे कुर्ते की झोली में ढेर सारे गेंहू लेकर जैसे ही घर की देहरी पर क़दम रखा, उसकी अम्मी की तेज़ नज़रों में पकड़ा गया,"रहीम यह क्या है तुम्हारे कुर्ते की झोली में?"
"अम्मीजी, इसमें गेंहू हैं।"
"गेंहू कहाँ से मिले तुम्हें?"
"अम्मीजी,चौधरी काका के खलिहान से उनकी गेंहू की फ़सल बैलगाड़ी से घर लाई जा रही थी।उनकी बोरियों में किसी बोरी में छेद रहा होगा तो उसमें से गेंहू नीचे जमीन पर गिरते जा रहे थे।मैं उस बैलगाड़ी के पीछे आ रहा था।सो मैं वह उठा…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on May 18, 2019 at 10:36am — 10 Comments
सदानीरा बहे कल - कल , गगन पर चाँद तारे हैं ।
अलौकिक दृश्य वसुधा पर ,सुभग मनहर नजारे हैं ।।
उजालों ने चुगा शशि है , उषा आयी उगा रवि है ।
मही पर पुष्प शुचि कुसुमित,उड़े नभ पर विहग प्रमुदित ।।
झरे सित पुष्प शिउली के ,हवाओं ने बुहारे हैं ।
अलौकिक दृश्य वसुधा पर , सुभग मनहर नजारे हैं ।।
लली वृषभानु की राधा , ढके मुख घूँघटा आधा ।
चली पनघट लिये गागर ,खड़े हैं गैल नटनागर ।।
हुयीं लखि लाज से दुहरी , मदन करते इशारे…
ContinueAdded by Anamika singh Ana on May 17, 2019 at 9:30pm — 6 Comments
1-
भाई भाई के लिए, हो जाता कुर्बान।
रिश्ता है यह खून का, ईश्वर का वरदान।।
ईश्वर का वरदान, नहीं है जिसका सानी।
पाण्डव हों या राम, सभी की यही कहानी।।
सुलझाकर मतभेद, न मन में रखें खटाई।
बुरे वक्त में काम, सिर्फ आता है भाई।।
2-
भाई का रिश्ता अमर, जैसे लक्ष्मण राम।
मगर विभीषण ने किया, इसे बहुत बदनाम।।
इसे बहुत बदनाम, और भेदी कहलाया।
देकर सारे भेद, नाश कुल का करवाया।।
तुलसी ने रच ग्रंथ, इन्हीं की महिमा गाई।
दशरथ नंदन राम, भरत लक्ष्मण…
Added by Hariom Shrivastava on May 17, 2019 at 9:40am — 4 Comments
2122 1122 22
आपने जुमलों में असर पैदा कर ।
कुछ तो जीने का हुनर पैदा कर ।।
दिल जलाने की अगर है ख्वाहिश ।
तू भी आंखों में शरर पैदा कर ।।
गर ज़रूरत है तुझे ख़िदमत की ।
मेरी बस्ती में नफ़र पैदा कर ।।
हर सदफ जिंदगी तो मांगेगी ।
इस तरह तू न गुहर पैदा कर ।।
देखता है वो तेरा जुल्मो सितम।
दिल में भगवान का डर पैदा कर ।।
अब तो सूरज से है तुझे खतरा…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on May 16, 2019 at 1:35pm — 4 Comments
2122 1212 22
फासले बेकरार करते हैं ।
और हम इतंजार करते हैं ।।
इक तबस्सुम को लोग जाने क्यूँ ।
क़ातिलों में सुमार करते हैं ।।
सिर्फ धोखा मिला ज़माने से ।
जब कभी ऐतबार करते हैं ।।
मैं तो इज्ज़त बचा के चलता हूँ ।
और वह तार तार करते हैं ।।
उम्र गुज़री है बस चुकाने में ।
आप जब भी उधार करते हैं।।
उनको गफ़लत हुई यही यारो…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on May 15, 2019 at 3:47pm — 2 Comments
धरती से तो आसमान का, हो जाता अनुमान।
किंतु न खुद की छत से दिखता,खुद का कभी मकान।।
जो जमीन पर पैर जमाकर, करे लक्ष्य संधान।
वही बनाता है इस जग में, नये-नये प्रतिमान।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
-हरिओम श्रीवास्तव-
Added by Hariom Shrivastava on May 14, 2019 at 2:00pm — 4 Comments
हुन-हुना रे हुन-हुना
गुण गिना के गुनगुना
ज़ोर लगा के हय्शा
वोट-पथ पर नैया
अनाड़ी-खिलाड़ी खेवैया
मुश्किल में वोटर भैया
हुआ-हुआ जो बहुत हुआ
अपशब्दों का खेल हुआ
जुआ-जुआ सा हो गया
मतदाता खप-बिक गया
जनतंत्र पर क्या मंत्र हुआ
दुआ-दुआ करो, न बददुआ
संविधान का कर दो भला
कर भला , सो सबका भला
टाल सको, तो अब टाल बला
हुन-हुना रे हुन-हुना
गुण गिना के गुनगुना
ज़ोर लगा के हय्शा
वोट-पथ पर नैया
अनाड़ी-खिलाड़ी खेवैया…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 14, 2019 at 9:00am — 3 Comments
1~
बचपन की यादों में जब मैं, मातृ दिवस पर लौटा।
पाया खुद के ही मुखड़े पर, नकली एक मुखौटा।।
लौट गया मैं गाँव अचानक, माँ से करने बातें।
माँ तो वहाँ न थी लेकिन थीं, यादों की बारातें।।
2~
माता माता मन्दिर जाती, रखे हाथ पर लोटा।
सीढ़ी चढ़ने में साड़ी का, लेती सदा कछोटा।।
माँ के पीछे-पीछे चलकर, हम बच्चे भी जाते।
माता को चुपचाप देखते, माता से बतियाते।।
3~
माँ ने अपनी खातिर माँ से, कभी नहीं कुछ माँगा।
उन मधुरिम यादों को हमने, क्योंकर खूँटी…
Added by Hariom Shrivastava on May 13, 2019 at 11:30am — 2 Comments
हमारी बात भारी हो रही है।
ये देखो इश्तेहारी हो रही है।
खफा हो मुझसे तुम ये लग रहा है ,
की मीठी शय भी खारी हो रही है।
तरसती है ख़ुशी को जिन्दगानी ,
ये अब तो गम की मारी हो रही है।
तपन हरगिज ना इसको आंकना कम ,
बुलंदी पर ये नारी हो रही है।
- मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Tapan Dubey on May 12, 2019 at 12:30pm — No Comments
मातृ-दिवस विशेष
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2122/ 2122/2122/212
इक ही दिन काफ़ी नही है ममता के सम्मान को
कम पड़ेंगे सौ जनम भी, माँ तेरे गुणगान को
जो बना देती है क़ाबिल एक नन्हीं जान को
है ज़रूरत माँ कि ममता की बहुत इंसान को
लाख लानत भेजिए उस सरफिरे नादान को
माँ को खुद से दूर करके ढूँढे जो भगवान को
माँ का दिल इससे बड़ा है जिसमें तुम रहते मियाँ
नाज़ से देखो न अपने बंग्ले आलीशान…
Added by Gajendra shrotriya on May 12, 2019 at 12:30pm — 3 Comments
गरीबी मिटे औ कटे विघ्न बाधा, तमन्ना! बने स्वर्ग सा देश प्यारा
पले विश्व बंधुत्व की भावना औ, बने आदमी आदमी का सहारा
यहाँ सत्य का ही रहे बोलबाला, सदा के लिये झूठ से हो किनारा
निरोगी प्रतापी प्रभावी सभी हों, बने स्वाभिमानी लगे एक नारा।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by नाथ सोनांचली on May 10, 2019 at 6:30pm — 5 Comments
22 22 22 22 22 22 22 2
तुम ही बताओ साधु फकीरों तुमने तो देखा होगा ।
इस झूठी दुनिया का वो सच्चा मालिक कैसा होगा ।
जिसकी सोच के हर कतरे में मौत का खौफ समाया हो ,
सोच के देखो दुनिया वालों कैसे वो जीता होगा ।
जिस रास्ते पर चलते चलते मैं तुझको भी भूल गया ,
वो रस्ता तू समझ ले दिलबर कितना पथरीला होगा।
पल पल अपने जीवन का बस इस चिंता में घुलता है ,
बीते कल में ऐसा क्यों था ,आते कल में क्या होगा ।
धोखे ने सौ शक्लें…
ContinueAdded by मनोज अहसास on May 10, 2019 at 4:00pm — No Comments
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