इंसान का कद
इंसान का कद इतना ऊँचा होगया
कि इंसानियत उसमें अब दिखती नहीं
दिल इतना छोटा होगया कि
भावनाएं उसमें टिक पाती नहीं
जिन्दगी कागज़ के फूलों सी
सजी संवरी दिखती तो है
पर प्रेम प्यार और संवेदनाओ
की कहीं खुशबू नहीं
चकाचौंध भरी दुनिया की इस भीड़ में
इतना आगे निकल गया कि
अपनों के आँसू उसे अब दिखते नहीं
आसमां को छूने की जिद्द में
पैर ज़मी पर टिकते नहीं
सिवा अपने सब छोटे-छोटे
कीड़े मकोड़े से…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on May 14, 2014 at 5:40pm — 10 Comments
212221222122212
छीन सकता है भला कोई किसी का क्या नसीब?
आज तक वैसा हुआ जैसा कि जिसका था नसीब।
माँ तो होती है सभी की, जो जगत के जीव हैं,
मातृ सुख किसको मिलेगा, ये मगर लिखता नसीब।
कर दे राजा को भिखारी और राजा रंक को,
अर्श से भी फर्श पर, लाकर बिठा देता नसीब।
बिन बहाए स्वेद पा लेता है कोई चंद्रमा,
तो कभी मेहनत को भी होता नहीं दाना नसीब।
दोष हो जाते बरी, निर्दोष बन जाते…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on May 14, 2014 at 2:23pm — 17 Comments
2222 2112 2 222
देखा जब भी जाम मेरे हाथों रूठे
कोई तो समझाए उन्हें दिल भी टूटे
हमसे कहते यार कभी भी मत पीना
खुद पीते मयख्वार बड़े ही हैं झूठे
यारों अपने पास नशे की वो दौलत
चोरी करता चोर नहीं डाकू लूटे
माया ममता त्याग कठिन होता कितना
मय जब उतरे यार गले सब कुछ छूटे
हमको ये मालूम हुआ मैखाने आ
कहकर मय को शेख बुरा मस्ती लूटे
मैखाने से देख निकलना मयकश का
डगमग डगमग…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2014 at 12:30pm — 13 Comments
आँचल में ममता लिए, भरा ह्रदय में प्यार
क्या कोई भी दे सका,माँ सा प्यार दुलार
माँ सा प्यार दुलार, जिसे पाने को तरसे,
सर पर माँ जब हाथ,रखे तो प्रभु भी हरषे
कह लक्ष्मण मत टोक, लगाती टीका काजल
जीवन हो आबाद, मिले जब माँ का आँचल |
(2)
दोहा देखो छंद में, सबका है सरताज,
सभी शब्द हो शिल्प मय, तभी सजेगी साज
तभी सजेगी साज, छंद को गाकर देखे
मन में भरते भाव, सूर तुलसी के लेखे
लक्ष्मण ले आनंद, कबीर रचे वह…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 14, 2014 at 10:00am — 14 Comments
रात गहराती जा रही थी उसकी आँखों से नींद कोसों दूर थी कमरे में अंघेरा इतना कि हाथ को हाथ सुझाई नही दे रहे थे |उसकी जिंदगी में अन्धेरा तो उसी दिन हो गया था जिस दिन उसने भूषन का हाथ थमा था पर फिर भी वो रौशनी की तलाश में अंधेरों से लड़ती रही | कभी उसका माथा फूट जाता, कभी आँखों के नीचे काला हो जाता तो कभी ठोकर खा कर गिरने से घुटना छिल जाता, अंधेरे में चलने से घाव तो लगने ही थे पर वो आगे बढ़ती रही |
अब वर्षों बाद इतनी दूर आ कर उसे थोड़ी सी रौशनी नसीब हुई तो अचानक ही उसे फिर से ठोकर लगी और वो…
Added by Meena Pathak on May 13, 2014 at 4:00pm — 12 Comments
माँ है तेरी प्रार्थना ,माँ ही बनी अजान
माँ ही तेरा है खुदा माँ तेरा भगवान |
गीता कुरान में मिले रामायण में वास
माँ की ममता से सदा बढ़ता है विश्वास |
माँ की पूजा तुम करो माँ है खुदा समान
मंदिर मस्जिद ढूंडता घर बैठा भगवान |
मंदिर मस्जिद माँ बनी माँ बनी गुरूद्वार
चढ़ता जो इस नाव पे उतरेगा वो पार |
माँ समझे तेरी ख़ुशी माँ ही समझे पीर
माँ के नैनों से बहे केवल ममता नीर |
बच्चे होते हैं सबल जो माँ का हो साथ…
Added by Sarita Bhatia on May 13, 2014 at 11:00am — 26 Comments
Added by Ashish Srivastava on May 12, 2014 at 10:00pm — 16 Comments
जिसने तोड़ा हज़ार हिस्सों में
दिल के वो बरक़रार हिस्सों में
रोए, मुस्काए, चीखे, झुंझलाए
दिल का निकला ग़ुबार हिस्सों में
सबसे बदतर रहा यह बटवारा
एक परवरदिगार हिस्सों में
रूह, कल्बो जिगर व साँसों के
वो अकेला शुमार हिस्सों में
हमको तसलीम है करो तकसीम
हाँ मगर शानदार हिस्सों में
आप शामिल रहे कहीं ना कहीं
ज़ीस्त के यादगार हिस्सों में
मौत साँसों की किश्ते आखिर…
ContinueAdded by Asif Amaan on May 12, 2014 at 5:30pm — 33 Comments
दिल पर काबू ना रहे मिल जाते जो नैन
धड़कन धड़कन से मिले दिल को मिलता चैन |
दिल की यह मजबूरियाँ समझे कोई ख़ास
धड़कन बढ़ जाती अगर आता है वो पास |
तेरी धड़कन के बिना मेरी भी बेकार
दोनों की मिलती अगर नैया लगती पार |
तेरी धड़कन के सिवा कुछ भी ना अनमोल
सूना है सारा जगत इसका क्या है मोल |
धड़कन से चालू हुआ धड़कन पर सब बंद
मोल समय का जान लो यह इसकी पाबंद |
धड़कन चलती है अगर जीने की हो आस
अपनों का जो साथ…
Added by Sarita Bhatia on May 12, 2014 at 4:00pm — 29 Comments
2122 2122 2122
तुम ग़ज़ल मेरी मुहब्बत में पगी हो
फूल, कलियाँ,वल्लरी सी ताज़गी हो
तुमको पाकर ये मकाँ घर हो गया है
तुम मेरी सम्पूर्णता की बानगी हो
इन तेरी साँसों से महके प्रेम उपवन
रूप यौवन में बसी इक सादगी हो
पास आकर भी नहीं तुम पास मेरे
दूरियों से क्यूँ न फिर नाराज़गी हो
बिन तेरे ये दिल धड़कना छोड़ देता
आज कहता हूँ मेरी तुम जिंदगी हो
प्यार पाकर दिल नहीं भरता ये…
ContinueAdded by rajesh kumari on May 12, 2014 at 10:00am — 41 Comments
आज सामाजिकता और नैतिकता का किस कदर पतन हो गया है कि देख कर दुःख होता है | आज कल आप कान लगा कर सुनिए कुछ कराहें सुनाई देंगी जो बेटों की माओं की हैं | मुंह में कपड़ा ठूंस कर कराह रहीं हैं, छुप कर आँसू बहा रहीं हैं क्यों की उन्हें डर है कि किसी ने उन्हें रोते या कराहते देख लिया तो उसका गलत अर्थ निकालेंगे और वो उपहास के पात्र बन जायेंगे | आज बेटे बाले डरे सहमे से हैं और ये वो मध्यमवर्गीय माता पिता हैं जिन्होंने अपने बेटों को बड़े संघर्ष से पढाया लिखाया है | एक नही कई ऐसे परिवार मै देख रही हूँ जहाँ…
ContinueAdded by Meena Pathak on May 11, 2014 at 2:00pm — 18 Comments
प्यार तुमसे किया तुम निभा ना सके
दर्द दिल का कभी हम मिटा ना सके
जिन्दगी तो हमारी रही ना मगर
मौत से हाथ भी हम मिला ना सके
चाँद कह कह पुकारा हमे जो तुने
उन पलो को कभी हम भुला ना सके
ना किये वेवफाई कभी हम मगर
बात का हम भरोसा दिला ना सके
टूट कर बिखर तो हम गये हैं मगर
खा लिये हम जहर पर खिला ना सके
रात भर आइ सपनो में तुम तो मगर
बात अपनी तुझे हम बता ना सके
लौट आता सुहाना समय वो मगर
गीत भी प्यार के हम सुना ना सके
थक गये है…
Added by Akhand Gahmari on May 11, 2014 at 1:00pm — 8 Comments
कौन हो तुम प्रेयसी ?
कल्पना, ख़ुशी या गम
सोचता हूँ मुस्काता हूँ,
हँसता हूँ, गाता हूँ ,
गुनगुनाता हूँ
मन के 'पर' लग जाते हैं
घुंघराली जुल्फें
चाँद सा चेहरा
कंटीले कजरारे नैन
झील सी आँखों के प्रहरी-
देवदार, सुगन्धित काया
मेनका-कामिनी,
गज…
Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 11, 2014 at 10:30am — 19 Comments
“इससे अच्छा तो मैं अपने जीवन का ही अन्त कर लूं , अब क्या रखा है इस जीवन में . बेटी ने भाग कर शादी कर ली और बिरादरी में मेरी नाक कटा दी , एक लड़का है जिससे कुछ उम्मीदें थीं पर वो भी अब आवारा ही निकल गया , उसकी बद्तमीजियां दिन पर दिन बढती ही जा रही हैं. पत्नी भी सीधे मुह बात नहीं करती.” इस प्रकार सार्जेंट अभिलाष के जीवन जीने की अभिलाषा सामाप्त होती जा रही थी. हर पल वो सोच के समन्दर में डूबता जा रहा था और उतना ही अवसाद (डिप्रेशन) उसपर हावी होता जा रहा था. वो कहते हैं ना कि विपत्तियां आती हैं तो…
ContinueAdded by Squadron Leader Mukesh Rai on May 11, 2014 at 10:30am — 7 Comments
** मेरे लिए आज मातृ दिवस और माँ की पुण्य तिथि का अद्भुत संयोग है l यह रचना माँ को समर्पित है l
जिंदगीभर कौन देता है खुशी माँ के सिवा
ले अॅधेरा कौन देता रौशनी माँ के सिवा
**
वह लहू को कर सुधा हमको हमेशा पोषती
कौन खुद को यूँ गला दे जिंदगी माँ के सिवा
**
बस रहे खुशहाल जग ये सोचकर भगवान भी
क्या बनाता और अच्छा इक नबी माँ के सिवा
**
दे के रिमझिम जिंदगी भर वो तपन हरती रहे
कौन अपनाता बता दे तिश्नगी माँ के…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 11, 2014 at 10:00am — 16 Comments
Added by Pragya Srivastava on May 10, 2014 at 7:32pm — 5 Comments
महात्माओं और पीरों के देश में
गांधी कवीर और फकीरों के देश में
पूजा प्यार और पहरावे पर भी
इन्सान होने की परिभाषा
न जाने क्यों बदल जाती है
इक छोटी चिंगारी भी
शोला बन जाती है
मुठियाँ भिंच जाती हैं
तलवारें खिंच जाती हैं
घर जलाए जाते हैं
कत्ल किये जाते हैं
कुछ जाने पहचाने
चेहरों द्वारा
कुछ अपने बेगाने
मोहरों द्वारा
और साथ ही
कत्ल हो जाता है
धू-धू जल जाता…
ContinueAdded by कंवर करतार on May 10, 2014 at 1:58pm — 13 Comments
मेरी अगर माँ ना होती
मैं कहाँ से होता,
किसकी अंगुली पकड़ के चलता
किसका नाम लेकर रोता.
चलना फिरना हँसना गाना
तेरी भांति माँ मुस्काना
प्रेम के एक एक आखर
पग पग संस्कार सिखलाना
गोदी में सिर रखकर आखिर
निर्भीक कहाँ मैं सोता .
दुनियांदारी के कथ्य अकथ्य
जीवन यात्रा के सत्य असत्य
रंगमंच के सारे पक्ष
कुछ प्रत्यक्ष, कुछ नेपथ्य
राजा रानी के किस्सों संग
मन माला में कौन पिरोता..
ये जो वायु, आती जाती…
ContinueAdded by Neeraj Neer on May 10, 2014 at 10:07am — 14 Comments
2122 1222 2122 22/112
दिल से ज्यादा हमें करता कोई मजबूर नहीं
रोज कहता कि घर है उनका बहुत दूर नहीं
मैकदे की चुनी खुद मैंने डगर है साकी
रिंद के दिल में तू रहती है कोई हूर नहीं
आज सागर पिला दे पूरा मुझे ऐ साकी
रिंद वो क्या नशे में जो है हुआ चूर नहीं
गर जो होती नहीं मजबूरी वो आती मिलने
प्यार मेरा कभी हो सकता है मगरूर नहीं
रुख पे बिखरी तेरी जुल्फों ने सितम ढाया है
आज चिलमन में…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on May 9, 2014 at 5:00pm — 22 Comments
22122
लाचार हो क्या?
सरकार हो क्या?
छुट्टी पे छुट्टी,
इतवार हो क्या?
छूते ही ज़ख़्मी,
औजार हो क्या?
बेचा है खुद को,
बाज़ार हो क्या?
तारीफ कर दूँ,
अशआर हो क्या?
खुद से ही बातें,
बीमार हो क्या?
*****************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on May 8, 2014 at 5:30pm — 33 Comments
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