Added by जयनित कुमार मेहता on June 30, 2017 at 11:38pm — 1 Comment
Added by दिनेश कुमार on June 30, 2017 at 8:08pm — 6 Comments
२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ |
भाई बैरी से मिलके भाई को मार डाले | |
जिस ने नाजों से पाला उसको ही जार डाले | |
अनबन गर कभी हो जाये बोले ना भाई से , |
जलता है दिल में जैसे… |
Added by Shyam Narain Verma on June 30, 2017 at 6:14pm — 3 Comments
21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर विशेष.....
प्रतिदिन योग करे जो कोई,
वो रोगों से दूर रहे,
तन मन में स्फूर्ती आये ,
चेहरे पेे चमकता नूर रहे,
जो सुबह सुबह भस्त्रिका करे,
और शुद्ध वायु तन मन में भरे,
जो करे नित्य प्रति शशकासन,
उत्साह से वो भरपूर रहे,
अनुलोम विलोम , कपालभाति,
सुखमय जीवन की थाती है,
ना उदर रोग ना तन मन में,
कोई पीड़ा रह पाती है,
रह खाली पेट करें योगा ,
बस इतना ध्यान जरूर रहे.
हो नाम देश का ऊँचा…
Added by Ajay Kumar Sharma on June 28, 2017 at 9:30pm — 2 Comments
सुंदर चितवन उर बसे ,सुंदर सुंदर नैन ।
मृगनैनी को देखकर खोया खोया चैन ।।
अलक छटा बिखरी हुई यौवन पर मधुमास ।
मेघ तृप्त करने चला शुष्क धरा की प्यास ।।
श्वास श्वास में दीर्घता ,अग्नि हुई उच्छ्वास ।
दहकी सारी देह है ,प्रियतम तेरे पास ।।
ज्वाला मुखरित जब हुई,प्रणय बना उन्माद ।
प्रिय के स्वर करते गए,जीवन भर अनुनाद ।।
प्रियतम का है आगमन ,मन में हाहाकार ।
दर्पण पर होने लगी ,प्रश्नों की बौछार ।।
क्षण प्रतिक्षण वह…
Added by Naveen Mani Tripathi on June 28, 2017 at 4:00pm — 6 Comments
ईद का तोहफ़ा – लघुकथा –
"चलो ना बाबा, देर हो रही है। मेरा दोस्त इंतज़ार कर रहा होगा, उसके लिये तोहफ़ा भी लेना है"
रघु के छह साल के नाती ने जैसे ही रघु के सामने अपने दोस्त के घर ईद की बधाई देने जाने की ज़िद की तो उसके सामने पचास साल पहले की वह घटना चलचित्र की तरह घूम गयी।
रघु उस समय छटी कक्षा में था। असलम भी उसी के साथ पढ़ता था। उस दिन ईद के कारण स्कूल की छुट्टी थी। शाम को सब बच्चे खेल रहे थे कि तभी इंदर ने सुझाव दिया कि चलो असलम को ईद की बधाई देकर आते हैं। सब इकट्ठे होकर…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 28, 2017 at 11:15am — 14 Comments
Added by Hariom Shrivastava on June 27, 2017 at 11:44pm — 10 Comments
"लकवा मार गया है, अब बिस्तर पर ही रहना पड़ेगा इसको| शायद मालिश और दवा से कुछ फायदा हो और चलने फिरने लायक हो जाए कुछ दिन में", डॉक्टर ने एक कागज पर कुछ दवा लिखा और बाहर निकलने लगा|
"हस्पताल में भर्ती कराने से कुछ फायदा होगा क्या डॉक्टर साहब", बिटिया ने पूछा|
"कह नहीं सकता, हो भी सकता है", कहकर डॉक्टर निकल गया|
"माँ, बापू को हस्पताल ले चलते हैं, शायद ठीक हो जाए", बिटिया ने माँ की तरफ देखते हुए कहा|
उसने एक बार खाट पर पड़े लल्लू को देखा और फिर अपनी कमर में बंधे गांठ से कुछ…
Added by विनय कुमार on June 27, 2017 at 11:41pm — 10 Comments
करना ख़ुद की वाह वाह ठीक नहीं
बात यह आलमपनाह ठीक नहीं।
.
राहे मंज़िल के हों निशां ज़्यादा
मुझको लगती वो राह ठीक नहीं।
.
कैसे इंसाफ़ मिले मुलजिम को
हो जो मुंसिफ़, गवाह ठीक नहीं।
.
चश्मे बातिन अता है औरत को
किसकी कैसी निगाह ठीक नहीं।
.
हो भी जाने दो अब रिहा इसको
इतनी भी जब्ते आह ठीक नहीं।
.
"अश्क" रंज़ो अलम से घबरा कर
मैक़शी में पनाह ठीक नहीं।
स्व-रचित एवं अप्रकाशित
Added by dinesh malviya "Ashk" on June 27, 2017 at 8:00pm — 5 Comments
ग़ज़ल --ईद (ईद मुबारक बोल के फिर हम ईद मनाएंगे यारो )
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(बह्र हिन्दी --मुत्क़ारिब ,मुसम्मन ,मुज़ायफ )
रस्म गले मिलने की निभा कर हाथ मिलाएंगे यारो |
ईद मुबारक बोल के फिर हम ईद मनाएंगे यारो |
ख़ुद ही निकल जाएगी पुरानी सारी कड़वाहट दिल की
आज सिवैयाँ घर पे तुम्हें हम इतनी खिलाएंगे यारो |
सदक़ा और फितरे से ही यह अपनी ईद मनाते हैं
ईद के इस अहसान को मुफ़लिस कैसेभुलाएंगे यारो…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on June 27, 2017 at 3:58pm — 14 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 27, 2017 at 11:54am — 11 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 27, 2017 at 12:01am — 10 Comments
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on June 26, 2017 at 10:38am — 15 Comments
22 22 22 2
सुख दुख में सम रहता हूँ।
मैं दरिया सा बहता हूँ।।
कह कर सच्ची बात यहाँ।
तंज़ सभी के सहता हूँ।।
मिट्टी की इस दुनिया में।
मिट्टी जैसे रहता हूँ।।
जैसे को तैसा मिलता।
सच यह सबको कहता हूँ।।
तल्ख़ हक़ीक़त दुनिया की।
रोज ग़ज़ल में कहता हूँ।।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by surender insan on June 26, 2017 at 12:00am — 6 Comments
ज़िंदगी के सफ़हात ...
हैरां हूँ
बाद मेरे फना होने के
किसी ने मेरी लहद को
गुलों से नवाज़ा है
एक एक गुल में
गुल की एक एक पत्ती में
उसके रेशमी अहसासों की गर्मी है
नाज़ुक हाथो की नरमी है
कुछ सुलगते जज़्बात हैं
कुछ गर्म लम्हों की सौगात है
काश
तुम मेरे शिकवों को समझ पाते
जलते चिराग का दर्द समझ पाते
मेरी पलकों को
इंतज़ार की चौखट में
कैद करने वाले
कितना अच्छा होता
साथ इन गुलों के
तुम भी आ जाते…
Added by Sushil Sarna on June 25, 2017 at 9:30pm — 4 Comments
२२१ १२२१ १२२१ १२२
पिस्तौल-तमंचे से ज़बर ईद मुबारक़
इन्सान पे रहमत का असर, ईद मुबारक़
पास आए मेरे और जो ’आदाब’ सुना मैं
मेरे लिए अब आठों पहर ईद मुबारक़
हर वक़्त निग़ाहें टिकी रहती हैं उसी दर
पर्दे में उधर चाँद, इधर ईद मुबारक़ !
जिस दौर में इन्सान को इन्सान डराये
उस दौर में बनती है ख़बर, ’ईद मुबारक़’ !
इन्सान की इज़्ज़त भी न इन्सान करे तो
फिर कैसे कहे कोई अधर ईद मुबारक़ ?
जब धान उगा कर मिले…
Added by Saurabh Pandey on June 25, 2017 at 3:30pm — 28 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on June 25, 2017 at 3:28pm — 6 Comments
Added by Mohammed Arif on June 25, 2017 at 9:30am — 10 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on June 24, 2017 at 8:33pm — 10 Comments
" बहुत अच्छा करती हो जो अब गोष्ठियों में आने लगी हो , अच्छा लगा आपको यहाँ देखकर । " एक वरिष्ठ साहित्यकार ने एक महिला से कहा ।
" जी नमस्ते सर , नहीं ऐसा कुछ नहीं है , समय अनुसार आ जाती हूँ , विविध रचनाकारों को सुनने का अवसर मिल जाता है । " उस महिला ने उत्तर दिया ।
" ओह तो श्रोता बनकर आती हो ? "
" जी , वैसे सुना है आज कल श्रोता नहीं मिलते ? जो भी आते है उन सभी को मंच की लालसा होती है । "
" बिलकुल सही कह रहीं हैं आप", अट्हास लेते हुए उन्होंने अपने साथी की तरफ देखते हुए कहा , एक…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 24, 2017 at 2:30pm — 11 Comments
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