उफ़ गर्मी बहुत है रे
पैसे कौड़ी रह रह दिखाए
पास खड़ी खूब इतराए
महंगी से महंगी साड़ी पहने
गले में हीरो के लादे गहने
उफ़ गर्मी बहुत है रे ....
मंहगे पार्लर में जा के आये
कृतिम सुन्दरता पर भी इतराए
बालों की सफेदी मंहगे कलर से छुपाये
पैडी-मैनी क्योर न जाने क्या क्या करवाए
दात भी डाक्टर से चमकवाये
अपनी हर कुरूपता छुपाये
उफ़ गर्मी बहुत है रे.....
पति की नौकरी…
Added by savitamishra on June 18, 2014 at 11:21am — 18 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on June 18, 2014 at 8:06am — 22 Comments
कभी कभी
जब/ वाणी ,कलम और अनुभूतियाँ
यूँ छिटक जाते हैं
जैसे पहाड़ी बाँध से छूटी
उत्श्रिङ्खल लहरें
बहा ले जाती हैं /अचानक
खुशियाँ /सपने /और जिंदगियाँ …
जब /बदहवास रिश्ते
बहा नहीं पाते
अपनी आँखों और मन से
पीड़ा /स्मृतियाँ
और वो
जो ढह जाता है
ताश के महल की तरह
जब एक हूक उठती है
सीने में /और
भर देती है
अनंत आसमान का
सारा खालीपन
कभी सारा समन्दर
और उसका खारापन
जब जुगलबंदी…
ContinueAdded by dr lalit mohan pant on June 18, 2014 at 1:00am — 12 Comments
2122 1212 112
इश्क में जायेगी ये जान भी क्या
सब्र तोड़ेगा इम्तेहान भी क्या
.
ठोकरें हमको कर गयीं हैरां
आपने बदली है जबान भी क्या
.
गिर के नज़रों में कोई तुम ही कहो
जीत पायेगा ये जहाँन भी क्या
.
चाँद देखा था रात सहमा सा
'इस जमीं पर है आसमान भी क्या'
.
काट दे पर मेरे है ताब मुझे
रोक पायेगा तू उड़ान भी क्या
.
फिर मुझे प्यार पर यकीन हुआ
नर्म दिल में तेरा निशान भी क्या
.
एक जुम्बिश हुयी है दिल में…
Added by वेदिका on June 18, 2014 at 12:42am — 40 Comments
आदमी से आदमीयत, खो गई है रे कहां ।
आदमी से आदमी को, डर तभी तो है यहां ।।
आदमी में जो पड़ा है, स्वार्थ का साया जहां ।
आदमी अब आदमी से, बच नही पाये यहां ।।
आदमी आतंकवादी, उग्रवादी जो बने ।
आदमी के हाथ दोनो, खून से ही हैं सने ।।
मर्द जो है आदमी में, वो बलत्कारी लगे ।
गोद की बेटी उसे तो, ना दिखे अपने सगे ।।
आदमी को आदमी जो, है बनाना फिर कहीं ।
आदमी में तो जगाओ, आदमीयत फिर वही ।।
आदमी जो आदमी से, प्रेम करने फिर लगे…
Added by रमेश कुमार चौहान on June 17, 2014 at 11:00pm — 6 Comments
Added by atul kushwah on June 17, 2014 at 10:00pm — 16 Comments
2122/ 2122/ 212
ये नुमायाँ है किसे क्या चाहिये
बेख़िरद को सिर्फ़ चेहरा चाहिये बेख़िरद =कम अक्ल
हो गया है ताज़िरों का ये वतन ताज़िर=व्यापारी
खुश हुये वो जिनको वादा चाहिये
बच तो आयें लहरों से अहले जिगर
बस उन्हें कोई किनारा चाहिये
तख़्त पर जिसने बिठाया उनका कर्ज़
जानो दिल से अब चुकाना चाहिये
आप भी हँस लीजिये इस बात पर
झूठे को अब काम सच्चा…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on June 17, 2014 at 9:59pm — 23 Comments
अपनी हर सांस में …
अपनी हर सांस में...तुझे करीब पाता हूँ
तुझे हर ख्याल में अपना हबीब पाता हूँ
बिन तेरे ज़िंदगी की हर मसर्रत है झूठी
राहे वफ़ा में तुझे अपना नसीब पाता हूँ
तुम्हारे वाद-ए-फ़र्दा पर ..यकीं करूँ कैसे
हर दीद में इक तिश्नगी ..अजीब पाता हूँ
कूए कातिल से गुजरना ..आदत है मेरी
अपने ज़ख्मों में .अपना अज़ीज़ पाता हूँ
रूए-ज़ेबा को भला ज़हन से भुलाऊँ कैसे
बिन तुम्हारे तो मैं खुद को गरीब पाता…
Added by Sushil Sarna on June 17, 2014 at 4:30pm — 20 Comments
मात्रिक छंद
हमसे रखो न खार, किताबें कहती हैं।
हम भी चाहें प्यार, किताबें कहती हैं।
घर के अंदर एक हमारा भी घर हो।
भव्य भाव संसार, किताबें कहती हैं।
बतियाएगा मित्र हमारा नित तुमसे,
हँसकर हर किरदार, किताबें कहती हैं।
खरीदकर ही साथ सहेजो, जीवन भर,
लेना नहीं उधार, किताबें कहती हैं।
धूल, नमी, दीमक से डर लगता हमको,
रखो स्वच्छ आगार, किताबें कहती हैं।
कभी न भूलो जो संदेश…
Added by कल्पना रामानी on June 17, 2014 at 2:30pm — 22 Comments
“ आज का मैच तो बड़ा रोमांचक है यार, बड़े जबर्दस्त फार्म में है टीम...”
“अरे हाँ यार! तेरे घर तो मैच देखने का आनंद ही अलग है, पर यार ये अन्दर से कराहने की आवाज तेरी मम्मी की आ रही है क्या..?”
“ आने दे यार! वो तो उनकी रोज की आदत है, बूढी जो हो गई है थोड़ी देर में सो जाएँगी. तू तो मैच देख मैच”
जितेन्द्र ’गीत’
( मौलिक व् अप्रकाशित )
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on June 17, 2014 at 12:35pm — 36 Comments
चाहतों ने गुलज़मीं पे चाँदनी जब छा दिया
आहटों ने बढ़ तराना प्यार का तब गा दिया |
हाथ क़ैदी की तरह सहमे हुए थे क़ैद में
क़ैदख़ाने में किसी ने दिल थमा बहका दिया |
पाँव में थीं बेड़ियाँ, बेदम नज़र, मंजिल न थी
हौसले ने वक़्त पे सिर से कफ़न फहरा दिया |
होंठ काँटों के हवाले खूँ से लथपथ थे पड़े
फूल की ख़ुशबू ने टाँके खींचकर महका दिया |…
ContinueAdded by Santlal Karun on June 16, 2014 at 9:00pm — 20 Comments
२२ २२ २२ २
शायद सूरज हार गया
छुप के दरिया पार गया
शाह हुए गुम हरमों में
कड़ी खिंचा बेकार गया
चुनाव आये फिर से तो
संसद गुनाहगार गया
कपडा जब हुआ…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on June 16, 2014 at 5:03pm — 5 Comments
1222 1222 1222 122
हमारे प्यार को वो अब निभाती भी नहीं है
जलाये क्यों हमारा दिल बताती भी नहीं है
लिखा जो गीत उसने वेवफाई पे हमारी
कभी वह गीत हमको तो सुनाती भी नहीं है
बनाया था महल मैनें कभी उनके लिये जो
पड़ा है आज भी सूना जलाती भी नहीं है
बड़े अरमान थे उनसे सजाये जिन्दगी में
मगर उनको कभी अब वो सजाती भी नहीं है
करें किससे शिकायत जिन्दगी की हम बताओ
कभी भी प्यार से मुझको बुलाती भी नहीं है
मौलिक व अप्रकाशित अखंड…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on June 16, 2014 at 2:09pm — 17 Comments
122 122 122 122
मनाज़िर नए हैं, सवेरा नया क्या ?
वतन पूछता है, अँधेरा हटा क्या ?
नई खुशबुएँ हैं नई सुब्ह महकी
सदी से बुझा था जो चूल्हा जला क्या ?
परिंदा नया है नए पंख निकले
उड़ेगा कहाँ तक परों पे लिखा क्या ?
सभी कह रहे हैं शजर विष भरा है
तुम्ही ये बताओ बिना जड़ उगा क्या ?
वहीँ आग होगी धुआँ है जहाँ पर
हवा है गली में नया गुल खिला क्या ?
वो बुधवा की बेवा नहीं दी…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 16, 2014 at 9:28am — 22 Comments
*******
1222 1222 1222 1222
*******
हुआ जाता नहीं बच्चा कभी यारो मचलने से
नहीं सूरत बदलती है कभी दरपन बदलने से
***
जला ले खुद को दीपक सा उजाला हो ही जायेगा
मना करने लगे तुझको अगर सूरज निकलने से
***
हमारी सादगी है ये भरोसा फिर जो करते हैं
कभी तो बाज आजा तू सियासत हमको छलने से
***
बता बदनाम करता क्यों पतित है बोल अब…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 16, 2014 at 9:26am — 14 Comments
”बचपन आज देखो किस कदर है खो रहा खुद को ,
उठे न बोझ खुद का भी उठाये रोड़ी ,सीमेंट को .”
........................................................................
”लोहा ,प्लास्टिक ,रद्दी आकर बेच लो हमको ,
हमारे देश के सपने कबाड़ी कहते हैं खुद को .”
.......................................................................
”खड़े हैं सुनते आवाज़ें ,कहें जो मालिक ले आएं ,
दुकानों पर इन्हीं हाथों ने थामा बढ़के ग्राहक को .”…
Added by shalini kaushik on June 15, 2014 at 11:30pm — 3 Comments
पिता
गर बेटियाँ है तुम्हारा स्वाभिमान
फिर क्यों
समाज के विद्रूपताओं से भयभीत होकर
रोकते हो उसकी हर उड़ान
बनाने क्यों नहीं देते उसकी
स्वयं की साहसी पहचान
असुरक्षा के डर से
देना चाहते हो उसको
किसी का साथ
खर्च कर लाखोँ लाते हो
छान बिन कर एक जोड़ी अदद हाथ
जो बनेगा तुम्हारी बेटी का आजीवन रक्षक
पर क्या होता है सही ये फैसला
हर बार
वक्त के साथ देख बेटियों की दुर्दशा
क्या…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on June 15, 2014 at 3:00pm — 8 Comments
माँ
मान भरे ममता का आँचल
तो पिता
सर पर नीलाभ आसमान है
दोनों का स्नेह एक सामान है.
माँ
बच्चों के दर्द से बिलबिला जाती है
तो पिता की चिंता
दर्द की दवा बन जाती है.
माँ कोमलता से भरी है
तो पिता के परुष से
विपत्तियाँ भी डरी है.
बच्चों के लिए
दोनों का स्नेह ही
वेदना -निग्रही है.
डॉ.विजय प्रकाश शर्मा
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 15, 2014 at 12:05pm — 10 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on June 15, 2014 at 11:57am — 10 Comments
2122/ 2122/ 212
मेरा ग़म लगता है हमसाया मुझे
जीने का फन ग़म ने सिखलाया मुझे
ये हवा मेरे मुताबिक तो नहीं
कौन तेरे शह्र में लाया मुझे
मुश्किलों में सिर्फ मेरी जाँ नहीं
खौफ़ में हर इक नज़र आया मुझे
हौसला, हिम्मत, दुआएँ, दोस्ती
तज़्रिबे ने बख़्शा सरमाया मुझे
धूप की शिद्दत बहुत थी राह में
माँ के आँचल से मिली छाया मुझे
कौन सा मैं रंग दूँ तुझको ग़ज़ल
ज़ीस्त के रंगों ने…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on June 15, 2014 at 8:00am — 6 Comments
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