बंधन रक्षा का है, यह दिलों का भी है।
भाई-बहनों के पावन मिलन का भी है।
प्यारी बहना सलामत रहे हर सदा।
मेरी ख्वाहिश तुम्हारे दिलों में भी है।
ले लो संकल्प बंधन के इस पर्व पर।
हर गली, हर मोहल्ले में बहना ही है।
बंधन रक्षा का है ......................।
प्यारी बहना को उपहार देते समय,
उसको पुचकार औ प्यार देते समय।
दिल्ली की सड़कों की याद कर लो जरा,
अरसा पहले जो गुजरा नजारा वही,
याद कर लो जरा, बात कर लो जरा।
लो शपथ और खाओ कसम फिर…
Added by Atul Chandra Awsathi *अतुल* on August 20, 2013 at 10:00pm — 5 Comments
दिल से उतरा है रूह का तराना समझिये ।
उसकी बन्दगी में मिला ये नज़राना समझिये ।
दिल से दिल के तारों को जोड़कर ज़रा ,
मेरा ये अंदाजे बयाँ सूफियाना समझिये ।
........................................................................
बिन ताल कभी नाचा करिये, बिन सुर भी कभी गाया करिये |
अपने मुख पर एक गहन हंसी बेवज़ह कभी लाया करिये ।
फूलों ने कौन वज़ह मांगी गुलशन महकने से पहले ।
पक्षियों ने रब से क्या चाहा डालों पे चहकने से पहले…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on August 20, 2013 at 9:30pm — 5 Comments
अंतस मे उमड़ती भावनायें,
उचित शब्द टटोलते,
शब्द कोशों को पार कर,
निष्फल प्रयासों से हार कर,
अंततः आवारा हो गईं !
और फिर आँखों के रास्ते ,
अश्रु बून्द के रूप में,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 20, 2013 at 7:30pm — 10 Comments
कब तलक लोगों को लूटते जाओगे ,
वो दिन कब आएगा जब पछताओगे !
जिनकी दुआओं से राजा बन बैठे हो ,
उनकी ही नज़र से एक दिन गिर जाओगे !
मंदिर मज़्जिद के नाम पे खूब लूटा ,
एक दिन वहां भी दरवाज़ा बंद पाओगे !
रूह भी छोड़ देगी इस गंदे जिस्म को ,
फिर इस जिस्म को लेकर कहाँ जाओगे!
सिकंदर भी ना ले जा पाया जहाँ से
खाली हाँथ आये थे खाली हाँथ जाओगे !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक "
मौलिक व्…
Added by ram shiromani pathak on August 20, 2013 at 5:03pm — 10 Comments
मौलिक / अप्रकाशित
उखड़े मुखड़े पर उड़े, हवा हवाई धूल ।
आग मूतते हैं बड़े, गलत नीति को तूल ।
गलत नीति को तूल, रुपैया सहता जाए ।
डालर रहा डकार, कौन अब लाज बचाए ।
बहरा मोहन मूक, नहीं सुन पाए दुखड़े ।
हारे भारत दाँव, सदन हत्थे से उखड़े ॥
Added by रविकर on August 20, 2013 at 1:42pm — 5 Comments
पावन पर्व
पवित्र धागे संग
प्रेम से भरा
भाई बहन
बाटें प्यार ही प्यार
रक्षाबंधन
रेशमी डोर
भाई की कलाई में
गुँथा है प्यार
कच्चे धागों में
झोली भर खुशियाँ
नेह बौछार
पवित्र रिश्ता
पावन गंगा जल
कभी न टूटे
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक व् अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on August 20, 2013 at 1:01pm — 19 Comments
दर्द को क्यों आज मेरी याद आई है
हो रही मद्धम सफ़ों की रोशनाई है।
मुद्दत हुई जो तड़प हम भूल बैठे थे
वो ग़ज़ल फिरआज दिल ने गुनगुनाई है ?
आजमाता ही रहा मौला मुझे हर वक़्त
खूब किस्मत है गज़ब की आशनाई है।
माना जर्रा भी नहीं हम कायनात के
तेरे दर तक हर सड़क हमने बनाई है।
मेरे सूने से मकाँ में मेहमान बन के आ
बियाबाँ में बहारों की बज़्म सजाई है ।
दरिया के किनारों सा चलता रहा सफ़र
इस ओर ख्वाहिशें हैं उस ओर खुदाई है।…
Added by dr lalit mohan pant on August 20, 2013 at 1:00pm — 15 Comments
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छिपा हुआ रक्षाबंधन का, सार रेशमी डोरी में।
गुंथा हुआ भाई बहना का, प्यार रेशमी डोरी में।
कहीं बसे बेटी लेकिन, हर साल मायके आ जाती,
सजी धजी लेकर सारा, अधिकार रेशमी डोरी में।
बड़ा सबल होता यह रिश्ता, स्वस्थ भाव, बंधन पावन,
गहन विचारों का होता, आधार रेशमी डोरी में।
विदा बहन होती जब कोई, एक वायदा ले जाती,
जुड़े रहेंगे मन के सारे, तार रेशमी डोरी में।
विनय यही हों दृढ़ जीवन…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on August 20, 2013 at 11:01am — 24 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on August 20, 2013 at 10:30am — 18 Comments
बहुत याद क्यों आज तू आ रही है ?
किसी ढीठ बच्ची सी नादानियों में
क्यों सुधियों के पन्नों को छितरा रही है ।
सुबह एक छोटी सी प्यारी सी गुड़िया
मेरे गाल पर फूल बिखरा गई थी ।
फुदकती हुई एक नन्हीं गिलहरी
थोड़ी देर गोदी में सुस्ता गई थी ।
अभी तक छुअन रेशमी-रेशमी सी
मेरे नर्म अहसास सहला रही है ।
मेरे सूने कमरे में कुछ देर खेलें
बुलाया था चंचल हवाओं को मैंने
मचलती चली आयें किलकारियाँ सब
कि खोला था मन की गुफाओं को…
Added by Sulabh Agnihotri on August 20, 2013 at 10:14am — 14 Comments
Added by Vinita Shukla on August 20, 2013 at 9:37am — 14 Comments
ग़ज़ल -
कहकहों के दायरे में दिल मेरा वीरान है ,
गाँव के बाहर बहुत खामोश एक सीवान है |
उंगलियाँ उठने लगेंगी जब मेरे अशआर पर ,
मान लूँगा मैं कि मेरे दर्द का दीवान है |
वो सुनहरे ख्वाब में है सत्य से कोसो परे ,
आदमी हालात से वाकिफ मगर अनजान है |
छू के उस नाज़ुक बदन को खुशबुओं ने ये कहा ,
ज़िन्दगी से दूर साँसों की कहाँ पहचान है |
बढ़ रहा है कद अँधेरे का शहर में देखिये ,
हाशिये पर गाँव का…
ContinueAdded by Abhinav Arun on August 20, 2013 at 5:04am — 27 Comments
Added by विवेक मिश्र on August 19, 2013 at 3:51pm — 10 Comments
कल तक, तो सुबह ही खटर - पटर ,ची . चु की आवाज़ सुनकर ही पता चल जाता था कि मेरे पड़ोसी अमर सिंह जी के बच्चो को लेने रिक्शाबाला आ गया है | उम्र 50 से एक -आध साल ही उपर होंगी , पर गरीब जल्दी बढता है , और जल्दी ही मरता है इसलिए लगता 70 साल का था | नाम कभी पता नही किया मैंने उसका , होंगा कोई राजा राम या बादशाह खान क्या फर्क पड़ता है नाम से ?
दाढ़ी भी पता नही किस दिन बनाता था ? जब भी देखा ,उतनी की उतनी , सफ़ेद काली , मिक्स वेज जैसी , न कम न ज्यादा ! पोशाक बिलकुल , भारतीय पजामा…
ContinueAdded by aman kumar on August 19, 2013 at 3:30pm — 4 Comments
सुनो तुम
न जाने कहाँ हो!
तुम्हें देख रही है मेरी आँखें
तुम्हें ताक रहीं है मेरी राहें
तुम्हें थाम रहीं है मेरी बाँहें
लेकिन तुम नहीं हो
बहुत दूर दूर तक
बहुत दूर ...के पार
हाँ! शायद तुम वहाँ हो
सुनो तुम...
जाने, तुम हो भी या नहीं
कभी तो लगता है यही
पर तुम्हें होना चाहिए
है न
पर मै नहीं हूँ
तुम्हारे होने तक
मेरी नज़रें
नही जातीं वहाँ तक
कि तुम जहाँ…
ContinueAdded by वेदिका on August 19, 2013 at 2:30pm — 25 Comments
नारी को दुर्गा, नारी को शक्ति, नारी को जननी , कह कर बुलाते हो
और जब वो नन्ही सी बेटी बन कर आये
इस खबर से क्यों तुम डर जाते हो…
जानते हो भलीभांति , जब खोली तुमने आँखें
तो पाया माँ का प्यार ,
बहन का दुलार
आगे किसी मोड़ पर जीवन-संगिनी भी मिली
सेवा समर्पण लिए
प्रश्न मेरा केवल इतना है तुमसे, लेकिन
क्या सीखा है तुमने ... केवल लेना ही लेना ???
तुमको तो बनाया है, सर्वथा-शक्तिशाली
उस सर्व-शक्तिमान ने
तभी तो…
ContinueAdded by AjAy Kumar Bohat on August 19, 2013 at 2:00pm — 5 Comments
वो अपनेपन का सोता खोल दिल की हर गिरह निकले ।
कगारी फाँद ओंठों की सुरीला गीत बह निकले ।
लरजकर चूम ले माथा, हुमक कर बाँह में भर ले
वो बिछड़ी रात भर की धूप बौरी जब सुबह निकले ।
फकत दो बूँद ने भीतर तलक सारा भिगो डाला
हमारे दिल भी ये कच्चे मकानों की तरह निकले ।
इन्हें पोंछो तो पहले कैफियत पीछे तलब करना
हर आँसू बेशकीमत है वो चाहे जिस वजह निकले
इस अपनी आदमी की देह से इतनी कमाई कर
कि तेरे बाद भी तेरे लिये दिल में…
Added by Sulabh Agnihotri on August 19, 2013 at 10:00am — 21 Comments
वह जो नहीं कर सकती वह कर जाती है ...
घंटों वह अपनी एक खास भाषा मे हँसती है
जिसका उसे अभी अधूरा ज्ञान भी नहीं
उसके ठहाके से ऐसे कौन से फूल झड़ते है
जो किसी खास जंगल की पहचान है .... ...
जबकि उसकी रूह प्यासी है
और वह रख लेती है निर्जल व्रत
सुना है कि उसके हाथों के पकवान
से महका करता था पूरा गाँव भर
और घर के लोग पूरी तरह जीमते नहीं थे
जब तक कि वे पकवान मे डुबो डुबो कर
बर्तन के पेंदे और
अपनी उँगलियों को चाट नहीं लेते अच्छी तरह…
Added by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on August 19, 2013 at 9:00am — 11 Comments
Added by गिरिराज भंडारी on August 19, 2013 at 9:00am — 14 Comments
घर के नौकर छोटू ने नेता जी को सूचना…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 18, 2013 at 11:30pm — 48 Comments
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