22 22 22 22 22 22 22 2
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आएं न आएं वो लेकिन हम आस लगाए .बैठे हैं
दिन ढलते ही शमए मुहब्बत घर में जलाए बैठे हैं
..
अपनी ख़ामोशी में वो सब राज़ छुपाये बैठे हैं
..
हैरत है जो प्यार मुहब्बत से ना वाकिफ़ हैं यारो
वह इल्ज़ाम दग़ाबाज़ी का मुझ पे लगाए बैठे हैं
..
कौन है अपना कौन…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on September 24, 2017 at 10:00am — 25 Comments
(फाइलातुन -फइलातुन -फइलातुन -फइलुन /फेलुन)
आ गया हूँ वहाँ जिस जा से मैं जा भी न सकूँ |
मा सिवा उनके कहीं दिल को लगा भी न सकूँ |
इस तरह बैठे हैं वो फेर के आँखें मुझ से
उनके सोए हुए जज़्बात जगा भी न सकूँ |
मेरी महफ़िल में किसी ग़ैर को लाने वाले
दिल से मजबूर हूँ मैं तुझको जला भी न सकूँ |
फितरते तर्के महब्बत है तेरी यार मगर
तेरी इस राय को मैं अपना बना भी न सकूँ |
इतना मजबूर भी मुझको न खुदा कर देना…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on September 24, 2017 at 9:00am — 16 Comments
Added by दिनेश कुमार on September 24, 2017 at 6:57am — 22 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 24, 2017 at 6:46am — 8 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 23, 2017 at 11:50pm — 15 Comments
*जीवन
उलझन ।
* सूने
आँगन ।
* घर-घर
अनबन ।
* उजड़े
गुलशन ।
* खोया
बचपन ।
*भटका
यौवन ।
* झूठे
अनशन ।
* ख़ाली
बरतन ।
* सहमी
धड़कन ।
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मौलिक और अप्रकाशित ।
Added by Mohammed Arif on September 23, 2017 at 11:30pm — 66 Comments
Added by Sweet Panday on September 23, 2017 at 7:08pm — 4 Comments
विश्वास के सतूने जब कमज़ोर होते हैं तो आस्था का शामियाना गिर ही जाता
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हमारे घर का एक कोना फिर से पूजा स्थल के रूप में तब्दील हो गया और मेरी पत्नी ने एक निस्सहाय धर्म-केन्द्रित याचिका का रूप ले लिया. घर की मुश्किलात जैसे जैसे बढ़ती गईं, वैसे वैसे पत्नी की आध्यात्मिकता ने धार्मिक आचरणों, अर्चनाओं, उपवासों इत्यादि का रुख कर लिया. भविष्य वाचकों की भविष्यवानियाँ सुनी जाने लगीं और ग्रह…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on September 23, 2017 at 5:30pm — 4 Comments
गुफा
से निकले हुए लोगों ने
'कुर्सी' बनाई,
अपने राजा के लिए
ज़मीन पर बैठे - बैठे
राजा कुर्सी पर बैठा है शान से
कुर्सी बनाने वाले ज़मीन पर
सबसे पहली कुर्सी 'पत्थर' की थी
फिर इंसान ने लकड़ी की कुर्सी बनाई
बाद में सोने ,चाँदी ,हीरे, जवाहरात की भी....
इतिहास में तो कई बार नरमुंडों की भी कुर्सियां बनाई गयी
और फिर उस पर बैठ के 'राजा' बहुत खुश हुआ...
कुर्सी बनाई गयी थी
इस उम्मीद में कि इस पर बैठा हुआ
राजा राज्य में
सुख शांति…
Added by MUKESH SRIVASTAVA on September 23, 2017 at 3:06pm — 5 Comments
Added by Janki wahie on September 23, 2017 at 1:19pm — 18 Comments
काफिया : आएँ , रदीफ़: क्या
२१२२ २१२२ २१२
पाक आतंकी कभी बाज़ आएँ क्या
बारहा दुश्मन से’ धोखा खाएँ क्या ?
गोलियाँ खाते ज़माने हो गये
राइफल बन्दुक से’ हम घबराएँ क्या ?
जान न्योछावर शहीदों ने की’ जब
सरहदों को हम मिटाते जाएँ क्या ?
सर्जिकल तो फिल्म की झलकी ही’ थी
फिल्म पूरा अब मियाँ दिखलाएँ क्या ?
आपका विश्वास अब मुझ पर नहीं
अनकही बातें जो’ हैं बतलाएँ क्या ?
खो दिया…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on September 23, 2017 at 9:53am — 7 Comments
२२ २२ २२ २२ २२ २
आओगे जब भी तुम मेरे ख्वाबों में
उन लम्हो को रख लूँगी मैं यादों में
और नही कुछ चाहूँ तुमसे मेरी जां
दम टूटे मेरा बस तेरी बाहों में
मेरा जीवन इस गुलशन के फूलों जैसा
घिरा हुआ है मगर बहुत से काँटों में
तुमको में रूदाद सुनाऊं क्या अपनी
मेरा हर लम्हा बीता है आहों में
देख रही हो मुझको तुम जैसे "रौनक"
जी चाहे मैं डूब मरूँ इन आँखों में
मौलिक एवं…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 23, 2017 at 9:30am — 24 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on September 23, 2017 at 2:00am — 4 Comments
अब से मैं पूरा ध्यान रखूंगी मुकुल का, बहुत परेशान हो जाते हैं आजकल, उसके दिमाग में पूरे दिन यही घूम रहा था| जब से बेटी पैदा हुई थी, उसे एकदम व्यस्त रख रही थी, समय तो जैसे पंख लगा कर उड़ जाता था| बेचारे मुकुल खुद ही सब कुछ करते रहते थे, कभी कुछ कहते नहीं थे लेकिन उसे तकलीफ होती थी| आखिर कभी भी मुकुल को कुछ करने जो नहीं दिया था उसने|
"कपडे आयरन नही हैं, ओह फिर याद नहीं रहा", कहते हुए आज सुबह जब मुकुल ने सिकुड़े कपडे पहने तो उसे थोड़ी खीझ हुई| जल्दी से उसने नाश्ता निकालने का सोचा तभी बच्ची…
Added by विनय कुमार on September 23, 2017 at 12:00am — 10 Comments
सम्भावना के द्वार पर दस्तक हुई है
देखकर मुझको हुई वह छुईमुई है
देखता ही रह गया विस्मित चकित सा
रंग, रस, मद से भरी वह सुरमई है
रम्य मौसम, रम्य ही वातावरण ये
सुनहली इस साँझ की सज धज नई है
प्रेम की पलपल उमड़ती भावना पर
वर्जनाओं की सतत् चुभती सुई है
तरलता बांधी गयी, कुचली गयी हैं कोपलें
क्रूरता द्वारा सदा सारी हदें लांघी गयी हैं
क्रूरता सहनें को तत्पर, वर्जना मानें ना मन
प्यार का अदभुत् असर हम पर हुआ कुछ जादुई है…
Added by नन्दकिशोर दुबे on September 22, 2017 at 11:30pm — 4 Comments
कुछ जाना कुछ अनजाना-सा लगता है
कुछ भूला कुछ पहचाना-सा लगता है
दर्पण में प्रतिबिम्बित अपना ही मुखड़ा
कुछ अपना कुछ बेगाना -सा लगता है
मुझ-सम लाखो लोग यहां पर बसते है
हर कोई बस दीवाना-सा लगता है
जीवन तो बस वाल्मीकि की वाणी मे
आंसू की गाथा गाना-सा लगता है !
.
मौलिक व अप्रकाशित ---नन्दकिशोर दुबे
Added by नन्दकिशोर दुबे on September 22, 2017 at 11:00pm — 2 Comments
Added by Hariom Shrivastava on September 22, 2017 at 7:05pm — 4 Comments
एक नवगीत
दूर बैठ कर पूछें दद्दा,
और सुना, क्या हाल-चाल है.
कैसे कह दूं, ठीक-ठाक सब,
मस्त हमारी चाल-ढाल है
तोड़ रहे हैं सभी आजकल,
अपना नाता गाँधी से.
सपनों की कंदीलें उनकी,
बचा रहा हूँ आँधी से.…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on September 22, 2017 at 5:02pm — No Comments
122 122 122 12
अना का जो खुर्शीद ढलने लगा
क़मर हसरतों का निकलने लगा
हटे मकड़ियों के वो जाले सभी
मेरा खस्ता घर भी सँभलने लगा
मुहब्बत का छोटा सा दीपक मेरा
ग़मों का अँधेरा निगलने लगा
मेरे आंसुओं की बनी झील में
पशेमान सूरज पिघलने लगा
चमन पर हुआ अब्र ज्यों महरबां
खजाँ का तभी रुख़ बदलने लगा
खुदा का करम चार हाथों से ये
सफीना मेरा आज चलने…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 22, 2017 at 2:46pm — 6 Comments
जीवन विषम अबोध , जानकर ना डर मानव |
प्राप्त प्रथम कर ज्ञान, ज्ञान बिन पार न हो भव ||
अंतर तल अँधियार , दूर कर रोशन हो मग |
हो जगमग हर पंथ , पंथ अति रोशन हो जग ||
श्रेष्ठ जटिल हर कर्म, है मनुज उन्नति दायक |
भूल बिसर मत कृत्य, सत्य हर भूपति नायक ||
भूमि सतह पर स्वर्ग, कर्म बिन हो कब संभव |
जीवन पथ पर कर्म , धर्म सम भूल न मानव ||
मानव परहित कार्य , हैं न बस दाहकता दुख |
कष्ट सहन कर लाख, एक यदि जीवन का सुख…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on September 22, 2017 at 1:30pm — 2 Comments
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