,12122 12122 12122 12122
1
लगा के ठोकर वो पूछते हैं उठा के सर क्या चला करेंगे
पलट दी बाजी ये कह के हमने ख़ुदा के दम पर बढ़ा करेंगे
2
सजा के महफ़िल मेरी तबाही की पूछते हैं कि क्या करेंगे…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on October 31, 2020 at 3:47pm — 3 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
कहते हैं झूठ ज़ुल्म हिरासत में आ गया
हाँ न्याय ज़ालिमों की हिमायत में आ गया।१।
*
लूटा गया था रात में अस्मत को जिसकी ढब
उसका ही नाम दिन को सिकायत में आ गया।२।
*
अन्धा है न्याय जानता होगी सजा नहीं
बेखौफ जुल्मी यूँँ न अदालत में आ गया।३।
*
बचना था जेल जाने से ऊँँची पहुँँच के बल
शासन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 31, 2020 at 2:00pm — 12 Comments
भारतीय इतिहास में रानी अहिल्याबाई का अपना ही इतिहास है जो दया, परोपकार, प्रेम और सेवा भाव की भावना से ओतप्रोत थी| रानी अहिल्याबाई एक ऐसी ही रानी थी जिसने रानी होते हुए भी खुद को कभी रानी नहीं माना बल्कि ईश्वर का एक प्रतिनिधि समझ कर ही अपने राज्य पर राज किया| जीवन रहते उन्हें इतनी परेशानियों का सामना करना पड़ा लेकिन वह परिस्थितियों से घबराए बिना अपने कर्म पथ पर आगे बढ़ती रही| वह युद्ध में विश्वास नहीं कर करती ना ही उन्हें खून-खराबा पसंद…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on October 31, 2020 at 11:25am — 1 Comment
मेरी आँखों में तुम को ख़ाब मिला?
या निचोडे से सिर्फ आब मिला.
.
सोचने दो मुझे समझने दो
जब मिला बस यही जवाब मिला.
.
दिल ने महसूस तो किया उस को
पर न आँखों को ये सवाब मिला.
.
मैकदे में था जश्न-ए-बर्बादी
जिस में हर रिन्द कामयाब मिला.
.
इतना अच्छा जो मिल गया हूँ मैं
इसलिए कहते हो “ख़राब मिला.”
.
“नूर” चलने से पहले इतना कर
अपने हर कर्म का…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 31, 2020 at 10:01am — 12 Comments
बह्र:- 221 2121 1221 212
मिस्मार दिल का ये दर-ओ-दीवार हो गया
मुद्दत हुई तो यार का दीदार हो गया
वो जो चला गया है मेरा शह्र छोड़ कर
लगता है ऐसा मुझको मैं बीमार हो गया
बेमोल ही रहे न किया ज़िंदगी से ग़म
तूने छुआ मुझे तो मैं दीनार हो गया
था मर्ज़ ऐसा जिसकी नहीं थी दवा कोई
तू हाथ थाम कर मेरा तीमार हो गया
तूने गले लगाया "रिया" को मेरे ख़ुदा
लगता है जैसे क़द मेरा मीनार हो गया
"मौलिक व…
ContinueAdded by Richa Yadav on October 30, 2020 at 3:30pm — 10 Comments
सच यह है कि
अंधा होने के लिए नेत्रहीन होना कोई शर्त नहीं होती
वरना किसी युग में द्रौपदी कभी कहीं नही रोती
बल्कि सच यह है कि
जब जब राजा अंधा होता ,पूर्ण अंध हो जाता काज
क्या मर्यादा,वचन प्रतिज्ञा सब का सब कोरी बकवास…
ContinueAdded by amita tiwari on October 30, 2020 at 12:00am — 4 Comments
जो शेख़ ओ बरहमन में यारी रहेगी
जलन जलने वालों की जारी रहेगी.
.
मियाँ जी क़वाफ़ी को समझे हैं नौकर
अना का नशा है ख़ुमारी रहेगी.
.
गले में बड़ी कोई हड्डी फँसी है
अभी आपको बे-क़रारी रहेगी.
.
हुज़ूर आप बंदर से नाचा करेंगे
अकड आपकी गर मदारी रहेगी.
.
हमारे ये तेवर हमारे रहेंगे
हमारी अदा बस हमारी रहेगी.
.
हुज़ूर इल्तिजा है न हम से उलझिये
वगर्ना यूँ ही दिल-फ़िगारी रहेगी.
.
ग़ज़ल “नूर” तुम पर न ज़ाया करेंगे …
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 29, 2020 at 6:00pm — 14 Comments
वीणावादिनी सरस्वती,
माँ शारदे भारती वर दे !
अँधकार की गर्द बढी है
सूरज की रौशनी घटी है
रतौँधी से ग्रस्त है मानव,
कवि की दृष्टि पड़ी धुँधली है
शिव-नेत्र -कवि हृदय जगा दे !
कि माँ शारदे रात जगा दे
जग से अँधकार मिटा दे
वर दे माँ शारदे वर दे !
तमसो मा ज्योतिर्गमय मंत्र
समस्त विश्व प्रसारित कर दे !
द्रोही हैं जो मानवता के
जन-धन की आवश्यकता के
चुन-चन कर संहार करो माँ
वंचित जन-मन…
Added by Chetan Prakash on October 29, 2020 at 1:00pm — 3 Comments
1222-1222-1222-1222
निगलते भी नहीं बनता उगलते भी नहीं बनता
हुई उनसे ख़ता ऐसी सँभलते भी नहीं बनता
इजारा बज़्म पे ऐसा हुआ कुछ बदज़बानों का
यहाँ रुकना भी ज़हमत है कि चलते भी नहीं बनता
जुगलबंदी हुई जब से ये शैख़-ओ-बरहमन की हिट
ज़बाँ से शे'र क्या मिसरा निकलते भी नहीं बनता
रक़ीबों को ख़ुशी ऐसी मिली हमको तबाह करके
कि चाहें ऊँचा उड़ना पर उछलते भी नहीं बनता
ख़ुद…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 29, 2020 at 11:13am — 10 Comments
आहट पर दोहा त्रयी :
हर आहट में आस है, हर आहट विश्वास।
हर आहट की ओट में, जीवित अतृप्त प्यास।।
आहट में है ज़िंदगी, आहट में अवसान।
आहट के परिधान में, जीवित है प्रतिधान ।।
आहट उलझन प्रीत की, आहट उसके प्राण ।
आहट की हर चाप में, गूँजे प्रीत पुराण।।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 28, 2020 at 9:11pm — 4 Comments
वाह जनतंत्र ,
कुर्सी स्वतंत्र ,
आदमी परतंत्र।
कल कुर्सी पर था
तो स्वतंत्र था ,
आज हट गया ,
परतंत्र हो गया।........... 1.
किसी को भी कहीं भी
यूं ही बुरा बोल देते हो।
सच , किसी बुरे को भी
कभी बुरा बोल लेते हो।...........2.
कुछ कर न कर
दूसरे के काम में
दखल जरूर कर।
अच्छा बोल , बुरा
बोल , कैसा भी बोल,
शहद में लपेट कर बोल l.......... 3.
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Dr. Vijai Shanker on October 28, 2020 at 6:57am — 8 Comments
" माँ,रोटी पर मक्खन तो रखा नहीं।हाँ,देती हूँ।"
बेटे की रोटी पर मक्खन रखते हुए अचानक बर्तन माँजती बारह साल की बेटी छुटकी को देख सुधा के हाथ पल को ठिठके और फिर चलने लगे।वापसी में छुटकी की पीठ थपथपा काम में लग गई ।
माँ बेटी अभी थाली लेकर बैठीं थी कि पति की आवाज़ आई,
" कहां हो?पानी तो पिलाओ।खाने का कोई समय है कि नहीं जब तब थाली लिए बैठ जाती हो।यही छुटकी सीख रही है।"
पिता की आवाज़ सुनते ही छुटकी ने जल्दी से थाली वापिस सरका दी।
सुधा ने भी जवाब के लिए तैयार होठों…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on October 27, 2020 at 11:00pm — 6 Comments
गुज़रे हुए मौसम, ,,,
अन्तहीन सफ़र
तुम और मैं
जैसे
ख़ामोश पथिक
अनजाने मोड़
अनजानी मंजिल
कसमसाती अभिव्यक्तियां
अनजानी आतुरता
देखते रह गए
गुजरते हुए कदमों को
अपने ऊपर से
गुलमोहर के फूल
तुम और मैं
दो ज़िस्म
दो साये
चलते रहे
खड़े -खड़े
मीलों तक
और
ख़ामोशियों के बवंडर में
देखते रहे
अपनी मुहब्बत
तन्हा आंखों की
गहराईयों में
गुज़रे हुए मौसम की…
Added by Sushil Sarna on October 27, 2020 at 7:55pm — 6 Comments
वाहन मुख्य सड़क से उस गांव की सड़क पर आ गया, जिसे सर्वेक्षण के लिए चुना गया था।सारे राज में सरकार द्वारा लोगों को प्रदान की जाने वाली सरकारी सेवाओं के बारे में सर्वेक्षण किया जा रहा था।
सर्वेक्षण फॉर्म में प्रश्न थे, क्या आपके गाँव में इस फॉर्म पर लिखी गई सेवाएँ उपलब्ध हैं? क्या ये सभी सेवाएं लोगों को मिलती हैं या नहीं, यदि नहीं मिलती , तो आपको क्या लगता है कि इन के क्या कारण हो सकते हैं ?
मैं आधिकारिक दौरे पर पहली बार इस गांव में आया था l
गांव की बाहरी सड़क से होते हुए,हमारा…
Added by मोहन बेगोवाल on October 27, 2020 at 5:00pm — 2 Comments
212 212 212 212
ज़िंदगी रास्ता देखती हो मेरा
सामना मौत से भी तभी हो मेरा (1)
मैं चलूँ अपने बच्चों की उंँगली पकड़
फिर भले ये सफ़र आख़िरी हो मेरा (2)
वाक़िआ होगा पहला यक़ीं मानिए
सामना मौत से जब कभी हो मेरा (3)
अब ये मुमकिन नहीं आज के दौर में
शह्र में भी रहूँ गांँव भी हो मेरा (4)
ख़ाक ऐसे करें नफ़रतों का जहाँ
आग तेरी रहे और घी हो मेरा (5)
ज़िंदगी को भी आना पड़े सामने…
Added by सालिक गणवीर on October 26, 2020 at 4:00pm — 8 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
पेट जब भरता नहीं गुफ़्तार उसका दोस्तो
ढोइए अब और मत यूँ भार उसका दोस्तो।१।
**
नोटबंदी का मुनाफा काले धन की वापसी
हर वचन जाता रहा बेकार उसका दोस्तो।२।
**
है खबर रस्ते से करने वो लगा है दरकिनार
रास्ता जिस ने किया तैयार उस का दोस्तो।३।
**
हाल देखे से न भरनी जो हमारी झोलियाँ
क्या करें इस हाल में दीदार उसका दोस्तो।४।
**
यूँ चमन पूरा खफ़ा हैं फूलों से बरताव पर
दे रहे हैं साथ लेकिन ख़ार उसका दोस्तो।५।
**
भाण…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 24, 2020 at 9:54am — 9 Comments
खंडित मूर्ति - लघुकथा –
"सुमित्रा, यह लाल पोशाक वाली लड़की तो वही है ना जिसकी खबर कुछ महीने पहले अखबार में छपी थी।"
"हाँ माँ यह वही है।"
"इसके साथ स्कूल के चपरासी ने जबरदस्ती की थी ना।"
"हाँ माँ,वही है। आप क्या कहना चाहती हो?"
"मैं यह कहना चाहती हूँ कि इसे पूजा में किसने बुलाया?"
"माँ यह मेरी बेटी के साथ पढ़ती है। उसकी दोस्त है। उसने इसे मुझसे पूछ कर ही बुलाया है।"
"यानी यह तुम्हारी मर्जी से यहाँ आयी है। सब कुछ जानते बूझते हुए।"
“माँ , वह…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 23, 2020 at 1:14pm — 8 Comments
२१२२ २१२२
फूल काँटों में खिला है,
प्यार में सब कुछ मिला है.
है न कुछ परिमाप गम का,
गाँव है, कोई जिला है.
झोंपड़ी का देखकर गम,
तख़्त कब कोई हिला है.
…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on October 19, 2020 at 11:30am — 6 Comments
1222 1222 1222 1222
नहीं दो-चार लगता है बहुत सारे बनाएगा
जहाँ मिलता नहीं पानी वो फ़व्वारे बनाएगा (1)
ज़रूरत से ज़ियादा है शुगर मेरे बदन में पर
मुझे वो देखते ही फिर शकर-पारे बनाएगा (2)
फ़लक के इन सितारों की तरह ही देखना इक दिन
ज़मीं पर भी ख़ुुदा अपने लिए तारे बनाएगा (3)
ज़मीं पर पैर रखने की जगह दिखती नहीं उसको
फ़लक पर वो नये दो-तीन सय्यारे बनाएगा (4)
जहाँ में ख़ुशनसीबों की नहीं दिखती…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on October 19, 2020 at 7:30am — 8 Comments
परम ज्योति , शाश्वत , अनन्त
कण - कण में सर्वत्र
विन्दु रूप में क्यों भला
बैठेगा अन्यन्त्र ?
सबमें वह , उसमें सभी
चहुँदिशि उसकी गूँज
क्या यह संभव है कभी
सिन्धु समाए बूँद ?
ज्ञान नेत्र से देखते
संत , विवेकी व्यक्ति
आत्मा ही परमात्मा
घटे न उसकी शक्ति
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on October 18, 2020 at 10:53pm — 4 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |