संदेसा तेरे दिल का , धड़कने है लातीं,
सवार तेरे धुन मे, खुद को कहाँ रोक पाते,
बस मुस्कुरकर तू देख लेती ज़रा,
दिल क्या, जान भी तेरे हो जाते,
तुझे देखूँ यहाँ वहाँ, ढूँढूँ मैं सारा जहाँ,
बाहों से लगा लूँ तुझे, दिल मे बसा लूँ तुझे....(2)…
Added by M Vijish kumar on October 7, 2017 at 7:30pm — 7 Comments
Added by santosh khirwadkar on October 7, 2017 at 6:17pm — 8 Comments
"इतना मान-सम्मान पाने वाली, फिर भी इनकी हथेली खुरदरी और मैली सी क्यों है?"-- हृदय रेखा ने धीरे-धीरे बुदबुदाते हुए दूसरी से पूछा तो हथेली के कान खड़े हो गए।
"बडे साहसी, इनका जीवन उत्साह से भरपूर है,फिर भी देखो ना..." मस्तिष्क रेखा ने फुसफुसा कर ज़बाब दिया।
" देखो ना! मैं भी कितनी ऊर्जा लिए यहाँ हूँ, किंतु हथेली की इस कठोरता और गदंगी से.....!" जीवन रेखा भी कसामसाई।
"अरे! क्यों नाहक क्लेष करती हो तुम तीनों? भाग्य रेखा…
Added by नयना(आरती)कानिटकर on October 7, 2017 at 4:00pm — 11 Comments
ग़ज़ल- २२१ २१२१ १२२१ २१२
(फैज़ अहमद फैज़ की ज़मीन पे लिखी ग़ज़ल)
हारा नहीं हूँ, हौसला बस ख़ाम ही तो है
गिरना भी घुड़सवार का इक़दाम ही तो है
बोली लगाएँ, जो लुटा फिर से खरीद लें
हिम्मत अभी बिकी नहीं नीलाम ही तो है
साबित अभी हुए नहीं मुज़रिम किसी भी तौर
सर पर हमारे इश्क़ का इल्ज़ाम ही तो है
ये दिल किसी का है नहीं तो फिर हसीनों को
छुप छुप के यारो देखना भी काम ही तो है
उम्मीद क्या…
Added by राज़ नवादवी on October 6, 2017 at 8:00pm — 19 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 6, 2017 at 4:40pm — 7 Comments
Added by surender insan on October 6, 2017 at 2:32pm — 20 Comments
फाइलातुन -मफ़ाइलुन -फेलुन
दिल की हसरत यही है मुद्दत से |
कोई देखे हमें महब्बत से |
नामे उल्फ़त से जो नहीं वाक़िफ़
देखता हूँ मैं उसको हसरत से |
सब्र का फल तो खा के देख ज़रा
क्यूँ है मायूस उसकी रहमत से |
जिस ने देखा उन्हें यही बोला
उनको रब ने बनाया फ़ुर्सत से |
उसके हाथों में आइना दे दो
बाज़ आए नहीं जो गीबत से |
देखिए तो करम अज़ीज़ों का
वो हैं बे ज़ार मेरी सूरत से…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on October 6, 2017 at 12:00pm — 16 Comments
Added by SALIM RAZA REWA on October 6, 2017 at 12:00pm — 30 Comments
Added by khursheed khairadi on October 5, 2017 at 11:15pm — 12 Comments
ग़ज़ल- १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
लिखा है गर जो किस्मत में तो फिर बदनाम ही होलें
न बाइज़्ज़त तो बेइज़्ज़त तुम्हारे नाम ही होलें
न कुछ करने से अच्छा है तू वादा तोड़ ही डाले
न हों कामिल वफ़ा में तो दिले नाकाम ही होलें
न हो महफ़िल तुम्हारी तो किसी महफ़िल में रोलें हम
चलो हम आज कूचा ए दिले बदनाम ही होलें
मुझे रिज़वान रख लें वो बहिश्ते ख़ूब रूई का
घड़ी भर को कभी मेरे वो हमआराम ही होलें
जो हों जन्नतनशीं…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on October 5, 2017 at 6:30pm — 14 Comments
अमर ...
प्रश्न
कभी मृत नहीं होते
उत्तर
सदा अमृत नहीं होते
कामनाएं
दास बना देती हैं
उत्कण्ठाएं
प्यास बढ़ा देती हैं
शशांक
विभावरी का दास है
शलभ
अमर लौ अनुराग है
दृष्टि
दृश्य की प्यासी है
तृषा
मादक मकरंद की दासी है
भाव
निष्पंद श्वास है
अंत
अनंत का विशवास है
स्मृति
कालजयी कल है
अमर
प्रीत का हर पल है
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 5, 2017 at 6:07pm — 14 Comments
इतने साल बीत गये
ना वो बदली जरा ना मैं !
आज भी उसे नहीं पसंद
मेरा किसी और से बात करना !
मुझे भी आजतक नहीं भाया
उसका किसी को देख मुस्काना !
उसे अच्छा नहीं लगता जब
मेरा ध्यान उससे हट जाना !
मुझे पसंद नहीं आता उसका
मुझे छोड़ टी.वी. तक देखना !
वो कहती है सुनो प्रिय
मैं सामने हुं तो मुझे ही देखो !
मुझे भाता है उसे चिडाना
दूसरों को देख देख मुस्काना !
उसे पसंद तक नहीं मेरा चश्मा
मेरी आंखों पर हमेशा रहता…
Added by जयति जैन "नूतन" on October 5, 2017 at 4:00pm — 5 Comments
Added by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on October 5, 2017 at 1:30pm — 5 Comments
२२१२, १२२; २२१२, १२२ (अरकान का क्रम भिन्न भी हो सकता है)
.
तन्हाइयों के गहरे जंगल में रात काटी
तृष्णाओं से भरे इक मरुथल में रात काटी.
.
जब रौशनी बढ़ा कर चन्दा ने उस को छेड़ा
शरमा के चाँदनी ने बादल में रात काटी.
. `
चुगली न कर दे बैरन थी जान कश्मकश में
बाहों में थे पिया और पायल में रात काटी.
.
साजन का नाम जपते अधरों का थरथराना,
बिरहन के मुख पे फैले काजल में रात काटी.
.
हर कूक ने उठाई है हूक मेरे दिल में …
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 5, 2017 at 1:27pm — 19 Comments
2122 2122 2122 212
जिंदगी की जुस्तज़ू में आ गई जाने किधर
अजनबी इस भीड़ में ढूँढे किसे मेरी नजर
बे-नियाज़ी की यहाँ दीवार कैसे आ गई
'हम नफ़स अह्ल-ए-महब्बत कुछ इधर हैं कुछ उधर
साथ साया भी रहेगा जब तलक है रोशनी
कौन किसका साथ देता बेवजह यूँ उम्रभर
लौट कर आती नहीं ये खूब जीले जिंदगी
इक सितारा कह गया यूँ आसमां से टूटकर
खींच लाई झोंपड़ी को जब महल की रोटियाँ
एक दिन आकर अना ने ये कहा जा डूब मर
कोई…
Added by rajesh kumari on October 5, 2017 at 10:46am — 14 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on October 5, 2017 at 9:23am — 4 Comments
२१२२ ११२२ ११२२ २२(१)/ ११२(१) ११२२
रिश्तों’ का रंग बदलता ही’ गया तेरे बाद
रौशनी हीन अलग चाँद दिखा तेरे बाद |
जीस्त में कुछ नया’ बदलाव हुआ तेरे बाद
मैं नहीं जानता’ क्यों दुनिया’ खफा तेरे बाद |
हरिक त्यौहार में’ आनन्द मिला तेरे साथ
जिंदगी से हुए’ सब मोह जुदा तेरे बाद |
रात छोटी हो’ गयी और बहुत लम्बा दिन
अब तो’ जीना हो’ गई एक सज़ा तेरे बाद |
साथ आई थीं’ वो’ आपत्तियाँ’, तुझको ले’…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on October 5, 2017 at 8:30am — 4 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on October 4, 2017 at 5:06pm — 13 Comments
Added by Mohammed Arif on October 4, 2017 at 4:08pm — 16 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on October 4, 2017 at 3:38pm — 3 Comments
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