नज़र से उसकी नज़र मिल गयी
Added by Ranveer Pratap Singh on October 31, 2012 at 11:00pm — 2 Comments
अनायास
तरंगित कल्मषों
बेचैन बुदबुदों के आवर्त से दूर
किसी निविड़ एकांत में
जब समस्त दिशाएं खो चुकी हों
अपनी पगध्वनि
सारे पदक्षेप
और तिरोहित हो चुके हों
निष्ठुर विमर्श के सारे आर्तनाद,
अपनी सारी भभक सारी तपिश
और साथ लेकर अपने
सारे चटकीले रंग
आना तुम भी
बस एक बार…
Added by राजेश 'मृदु' on October 31, 2012 at 4:30pm — 5 Comments
रक्त से सनी
भूमि
सुर्ख नहीं
हरी भरी
फलती फूलती
कलकल निनाद से
बहती श्वेत धारा
धो डालती है
सारे पाप
गंगा…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 31, 2012 at 4:00pm — 4 Comments
करवा चौथ -एक सत्य कथा (हास्य व्यंग) लघु कथा
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 31, 2012 at 3:56pm — 4 Comments
बावरिया हो भागती, सजनी ज्यों पिय ओर l
दीवानी मीरा बनी, थाम कन्हैया डोर ll
थाम कन्हैया डोर, प्रेम में सुध बुध हारी l
मोहबंध सब त्याग, पुकारूँ बस गिरधारी ll
प्राण भक्ति में लीन, ओढ़ चूनर केसरिया l
प्रभु संग मधुर मिलन, हुई…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on October 31, 2012 at 3:07pm — 16 Comments
दिन ऐसे गुज़र जाते है जैसे हाथ से ताश के पत्ते. देखते देखते महोसालोदहाई सर्फ़ हो गए, कहाँ गए सब? ज़िंदगी में जो बीत गया, किधर चला चला गया? जो लोग अब नहीं हैं तकारुब में और जिनके मख्फी साये ही ज़हन में आते जाते हैं, वो कहाँ हैं अभी? ख्वाहिशों से भी मुलायम सपने जो कभी पूरे नहीं हुए, उदासियों सी भी तन्हा कोई राहगुज़र जो कभी मंजिल तक न पहुँच पाई, दिल की सोजिशों से भी रंजीदा इक नज़र जो झुक गई मायूसियों के बोझ तले- क्या हुआ उनका?
तुम्हारे गाँव का वो खाली खाली घर जहाँ बसी है आईने के…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on October 31, 2012 at 9:03am — 6 Comments
गुण-सूत्रों की विविधता, बहुत जरूरी चीज |
गोत्रज में कैसे मिलें, रखिये सतत तमीज ||
गोत्रज दुल्हन जनमती, एकल-सूत्री रोग |
दैहिक सुख की लालसा, बेबस संतति भोग ||
नहीं चिकित्सा शास्त्र में, इसका दिखे उपाय |
गोत्रज जोड़ी अनवरत, संतति का सुख खाय ||
गोत्रज शादी को भले, भरसक दीजे टाल |
मंजूरी करती खड़े, टेढ़े बड़े सवाल ||
परिजन लेवे गोद जो, कर दे कन्या-दान |
उल्टा हाथ घुमाय के, खींचें सीधे कान ||
मिटते दारुण दोष पर, ईश्वर अगर सहाय |
सबसे…
Added by रविकर on October 31, 2012 at 8:48am — 5 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 30, 2012 at 9:30pm — No Comments
मै भी अभी जिन्दा हूँ !!
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तीव्र झोंके ने पर्दा उड़ा दिया
सारे बाज -इकट्ठे दिखा दिया
चालबाज, कबूतरबाज , दगाबाज
अधनंगे कुछ कपडे पहनने में लगे
दाग-धब्बे -कालिख लीपापोती में जुटे
माइक ले बरगलाने नेता जी आये
जोकर से दांत दिखा हँसे बतियाये
“ये मंच अब हमारा है” खेती…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 30, 2012 at 8:51pm — 13 Comments
कुछ विपत्तियों के चलते में मुशायरे में वक़्त नहीं दे पाया इसके लिए सभी अग्रजों गुरुजनों और सदस्यों से क्षमा चाहता हूँ आशा है अनुज को क्षमा करेंगे
आज कुछ उबरा तो सोचा कुछ लिखूं
हर काम निराला माँ लगता है कहानी है
दुर्गा है तू ही काली माँ आदि भवानी है
दिन रात भरा रहता दरबार ये मैया का…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 30, 2012 at 7:04pm — 4 Comments
सूखती नदी
उजड़ते मकान
अपना गाँव
कैसा विकास
लोगों की भेड़ चाल
सुख न शांति
गाँवों में बसा
नदियों वाला देश
पुरानी बात
सूखती नदी
बढ़ता गंदा नाला
मेरा शहर
बिका सम्मान
क्या खेत खलिहान
दुखी किसान
लोग बेहाल
गिरवी जायदाद
कहाँ ठिकाना
सड़े अनाज
जनता है लाचार
सोये सरकार
Added by नादिर ख़ान on October 30, 2012 at 6:00pm — 3 Comments
सबका अस्तिव और अहसास
हृदय में जगाता
श्रद्धा, आशा और विश्वास
मीठे स्वर का पान कर
स्वर्ग ले आता भू धरा पर
बिना शर्त के बिना नियम के
संचालित कर हर डगर को
सुब्द्ता से मुक्त कर
मार्ग देता सुगम बना
अंतर्मनो को जोड़ने का
प्रेम करता है प्रयास
मित्र को शत्रु, शत्रु को मित्र
गैर को अपना, अपने को गैर
फूल माला सी डोर बना
राग, द्वेष…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on October 30, 2012 at 3:12pm — 2 Comments
सागर में गिर कर हर सरिता बस सागर ही हो जाती है
लहरें बन व्याकुल हो हो फिर तटबंधों से टकराती है
अस्तित्व स्वयं का तज बोलो
किसने अब तक पाया है सुख …
Added by seema agrawal on October 30, 2012 at 2:09pm — 18 Comments
"क्या यार?.........हमलोग एक घंटे से इस कैफे में बैठे हैं और वीकेंड का एक बढ़िया प्लान नहीं बना पा रहे........व्हाट इज दिस?" रितिका ने झल्लाते हुए कहा| साथ बैठा उसका क्लासमेट मोहित उसे उखड़ता देख के उसकी हँसी उड़ाते बोला - "मैडम जी.....मैं तो कब से प्लानों की लाइन लगा रहा हूँ, आपको जँचे तब तो"| रितिका थोड़ा और गुस्से में आ के बोली - "मोहित, जस्ट कीप योर माउथ शटअप.......तुम्हारे आइडियाज हमेशा बोरिंग होते हैं....तुम अपनी तो रहने दो बस"| मोहित को बात बुरी लग गई - "क्यों? तुम्हारे उस विभोर के…
ContinueAdded by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 30, 2012 at 12:01pm — 10 Comments
"माहिया" में पति पत्नी की चुहल बाजी मात्रा १२,१०,१२ कही कहीं गायन की सुविधा के लिए एक दो मात्रा कम या ज्यादा हो सकती हैं
(पत्नी )
Added by rajesh kumari on October 30, 2012 at 12:00pm — 37 Comments
पांचवा दिन| घर बिखरा हुआ है, हर सामान अपने गलत जगह पर होने का अहसास करवा रहा है, फ्रिज के ऊपर पानी की खाली बोतलें पडी हैं, पता नहीं अंदर एकाध बची भी हैं या नही; बिस्तर पर चादर ऐसी पडी है की समझ नहीं आ रहा बिछी है या किसी ने यूं ही बिस्तर पर फेक दी है; कोई और देखे तो यही समझे की बिस्तर पर फेंक दी है, कोई भला इतनी गंदी चादर कैसे बिछा सकता है | शायद मानसी के जाने के दो या तीन दिन पहले से बिछी हुई है | बाहर बरामदे की डोरी पर मेरे कुछ कपड़ें फैले है | तार में कपड़ों के बीच कुछ जगह खाली है, कपडे…
ContinueAdded by वीनस केसरी on October 30, 2012 at 3:23am — 16 Comments
सीते मुझे साकेत विस्मृत क्यों नहीं होता !
सीते मुझे साकेत विस्मृत क्यों नहीं होता !
Added by shikha kaushik on October 29, 2012 at 10:30pm — 6 Comments
सभी अग्रजों एवं गुरुजनों को प्रणाम करते हुए यहां पहली बार गजल पोस्ट कर रहा हूं. उम्मीद है आप सबको पसन्द आयेगी.....
उठा दिल में धुआं सा है
पुराना प्यार जागा है,
कहो तो हम…
Added by VISHAAL CHARCHCHIT on October 29, 2012 at 8:30pm — 10 Comments
तानेज़नी पुरजोर है सियासत की गलियों में यहाँ ,
Added by shalini kaushik on October 28, 2012 at 2:56pm — 1 Comment
कस्बाई सुकून उनकी किस्मत में है कहाँ !
जो शहर के इश्क में दीवाने हो गए .
कैसे बुज़ुर्ग दें उन औलादों को दुआ !
जो छोड़कर तन्हां बेगाने हो गए .
दोस्ती में पड़ गयी गहरी बहुत दरार ,
हम तो रहे वही ; वो जाने-माने हो गए .
देखते ही होती थी सब में दुआ सलाम ,
लियाकत गए सब भूल ;ये फसाने हो गए .
लिहाज के पर्दे फटे ; सब हो रहा नंगा…
Added by shikha kaushik on October 27, 2012 at 10:30pm — 3 Comments
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