१२२२/१२२२-/१२२२/१२२२
किसी के घर बहुत आवागमन से प्यार कम होगा
इसी के साथ हर बारी सदा सत्कार कम होगा।१।
जरूरत सब को पड़ती है यहाँ कुछ माँगने की पर
हमेशा माँगने वाला सही हकदार कम होगा।२।
खुशी बाँटो कि बँटकर भी नहीं भंडार होगा कम
अगर साझा करोगे दुख तो उसका भार कम होगा।३।
नजाकत देख रूठो तो मिलेगा मान रिश्तों को
जहाँ रूठोगे पलपल में सुजन मनुहार कम होगा।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 17, 2019 at 5:58pm — 8 Comments
(1)
सारे घर के लोग हम, निकले घर से आज
टाटा गाड़ी साथ ले, निपटा कर सब काज।
निपटा कर सब काज, मौज मस्ती थी छाई
तभी हुआ व्यवधान, एक ट्रक थी टकराई।
ट्रक पे लिखा पढ़ हाय, दिखे दिन में ही तारे
'मिलेंगे कल फिर बाय', हो गए घायल सारे।।
(2)
खोया खोया चाँद था, सुखद मिलन की रात
शीतल मन्द बयार थी, रिमझिम सी बरसात।
रिमझिम सी बरसात, प्रेम की अगन लगाये
जोड़ा बैठा साथ, बात की आस लगाये।
गूंगा वर सकुचाय, गोद में उसकी सोया
बहरी दुल्हन पाय, चैन जीवन…
Added by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on January 17, 2019 at 4:00pm — 9 Comments
ग़ज़ल (दिल ने जिसे बना लिया गुलफाम दोस्तो)
(मफ ऊल _फाइ लात _मफा ईल _फाइ लुन)
दिल ने जिसे बना लिया गुलफाम दोस्तो l
उसने दिया फरेबी का इल्ज़ाम दोस्तो l
मैं ने खिलाफे ज़ुल्म जुबां अपनी खोल दी
अब चाहे कुछ भी हो मेरा अंजाम दोस्तो l
दिल को अलम जिगर को तड़प अश्क आँख को
मुझ को दिए ये इश्क़ ने इनआम दोस्तो l
लाए हैं अंजुमन में किसी अजनबी को वह
दिल में न यूँ उठा मेरे कुहराम दोस्तो l
सच्चा है यार वो उसे पहचान…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on January 17, 2019 at 3:57pm — 12 Comments
1222 1222 122
अभी तक आना जाना चल रहा है ।
कोई रिश्ता पुराना चल रहा है ।।
सुना है शह्र की चर्चा में आगे ।
तुम्हारा ही फ़साना चल रहा है ।।
इधर दिल पर लगी है चोट गहरी ।
उधर तो मुस्कुराना चल रहा है ।।
कहीं तरसी जमीं है आब के बिन ।
कहीं मौसम सुहाना चल रहा है ।।
तुझे बख्सा खुदा ने हुस्न इतना ।
तेरे पीछे ज़माना चल रहा है ।।
दिया था जो वसीयत में तुम्हें वो ।
अभी तक वह खज़ाना चल रहा है…
Added by Naveen Mani Tripathi on January 16, 2019 at 11:37pm — 14 Comments
मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन
1212 1122 1212 22
ग़ज़ल
उठा है ज़ह्न में सबके सवाल,किसकी है
तू जिस पे नाच रहा है वो ताल किसकी है
खड़े हुए हैं सर-ए-राह आइना लेकर
हमारे सामने आए मजाल किसकी है
ज़रा सा ग़ौर करोगे तो जान जाओगे
वतन को आग लगाने की चाल किसकी है
हमें तू बेवफ़ा कहता है ,ये तो देख ज़रा
लबों पे सबके वफ़ा की मिसाल किसकी…
ContinueAdded by Samar kabeer on January 16, 2019 at 8:30pm — 22 Comments
मनहरण धनाक्षरी ..
तन मन प्राण वारूँ वंदन नमन करूँ
गाऊँ यशोगान सदा मातृ भूमि के लिए ..
पावन मातृ भूमि ये, वीरों और शहीदों की
जन्मे राम कृष्ण यहाँ हाथ सुचक्र लिए ,
ये बेमिसाल देश है संस्कृति भी विशेष है
पूजते पत्थर यहाँ आस्था अनंत लिए
शौर्य और त्याग की भक्ति और भाव की
कर्म पथ चले सभी हाथ में ध्वजा लिए .....
.
अप्रकाशित /मौलिक
महेश्वरी कनेरी
Added by Maheshwari Kaneri on January 16, 2019 at 5:00pm — 4 Comments
बह्र : 221 1221 1221 122
अशआर मेरे जिनको सुनाने के लिए हैं
वो लोग किसी और ज़माने के लिए हैं
कुछ लोग हैं जो आग बुझाते हैं अभी तक
बाकी तो यहाँ आग लगाने के लिए हैं
यूँ आस भरी नज़रों से देखो न हमें तुम
हम लोग फ़क़त शोर मचाने के लिए हैं
हर शख़्स यहाँ रखता है अपनों से ही मतलब
जो ग़ैर हैं वो रस्म निभाने के लिए हैं
अब क्या किसी से दिल को लगाएँगे भला हम
जब आप मेरे दिल को दुखाने के लिए…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on January 16, 2019 at 4:00pm — 14 Comments
(14 मात्राओं का सम मात्रिक छंद, सात सात मात्राओं पर यति, चरणान्त में रगण अर्थात गुरु लघु गुरु)
जागो उठो, हे लाल तुम, बनके सदा, विकराल तुम ।
जो सोच लो, उसको करो, होगे सफल, धीरज धरो।।
भारत तुम्हें, प्यारा लगे, जाँ से अधिक, न्यारा लगे।
मन में रखो, बस हर्ष को, निज देश के, उत्कर्ष को।।
इस देश के, तुम वीर हो, पथ पे डटो, तुम धीर हो।
चिन्ता न हो, निज प्राण का, हर कर्म हो, कल्याण का।।
हो सिंह के, शावक तुम्हीं, भय हो तुम्हें,…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 16, 2019 at 6:00am — 8 Comments
दो तीन बार सोमारू आवाज़ लगा चुका था, हर बार वह उसकी तरफ उचटती नजर से देखता और खाट पर लेटे लेटे सोचता रहा. अंदर से तो उसे भी लग रहा था कि उसको जाना चाहिए लेकिन फिर उसका मन उसे रोक देता. वैसे तो बात बहुत बड़ी भी नहीं थी, इस तरह की घटनाओं से उसको अक्सर दो चार होना ही पड़ता था. लेकिन अगर कोई बड़ी जात वाला यह सब कहता तो उसे तकलीफ नहीं होती थी.
"दद्दा, जल्दी चलो, सब लोग तुम्हरी राह देखत हैं", सोमारू ने इस बार थोड़ी तेज आवाज में कहा.
वह खटिया से उठा और बाहर निकलकर लोटे से मुंह धोने लगा. गमछी…
Added by विनय कुमार on January 14, 2019 at 6:00pm — 12 Comments
Added by Balram Dhakar on January 14, 2019 at 4:44pm — 14 Comments
Added by मोहन बेगोवाल on January 14, 2019 at 4:30pm — 2 Comments
(२१२२ ११२२ ११२२ २२/११२ )
ख़त्म इकबाल-ए-हुकूमत* को न समझे कोई
और लाचार अदालत को न समझे कोई
***
मीर सब आज वुजूद अपना बचाने में लगे
आम जनता की ज़रूरत को न समझे कोई
***
ख़ून के रिश्ते भुला देती है जो इक पल में
हैफ़ !भारत की सियासत को न समझे कोई
***
जिस्म को छू लिया और इश्क़ मुकम्मल समझा
इतना आसाँ भी महब्बत…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 14, 2019 at 12:30pm — 11 Comments
लडकी ने साहस किया I एक दिन ट्रेन से उतरकर उसने लडके से कहा -‘आप को ऐतराज न हो तो हम साथ-साथ काफी पी सकते हैं…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 13, 2019 at 8:30pm — 5 Comments
बह्र : 2122 1122 1122 22
कैसे बनता है कोई शख़्स तमाशा देखो
आओ बैठो यहाँ पे हश्र हमारा देखो
कैसे हिन्दू को किया दफ़्न वहाँ लोगों ने
एक मुस्लिम को यहाँ कैसे जलाया देखो
जिस तरह लूटा था दिल्ली को कभी नादिर ने
उसने लूटा है मेरे दिल का ख़ज़ाना देखो
आदमी वो नहीं होता जो दिखा करता है
जो नहीं दिखता हो जैसा उसे वैसा देखो
नूर से जल के, फ़लक से कोई साज़िश करके
चाँद को कैसे सितारों…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on January 13, 2019 at 7:30pm — 18 Comments
जाने कितने बढ़े हुए हैं
दुष्ट, अधर्मी, व्यभिचारी
पग-पग पर धोखा देते जो
लोभी, कृपण,अनाचारी
इनकी घातों का कब तक,अब
बोझ सहन करना होगा?
कलियुग के इन दुष्ट,पापियों
का, कुछ तो करना होगा
अन्यायी, पापाचारी जो
कामी, भ्रष्ट, दुराचारी जो
इनकी कुटिल कुचालों का
प्रतिरोध हमे करना होगा
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on January 11, 2019 at 6:30pm — 3 Comments
(ताटंक छन्द)
इज्जत देना जब सीखोगे, इज्जत खुद भी पाओगे,
नेक राह पर चलकर देखो, कितना सबको भाओगे।
शब्द बाँधते हर रिश्ते को, शब्द तोड़ते नातों को।
मधुर भाव जो मन में पनपे, बहरा समझे बातों को।
तनय सुता वनिता माता सब,भूखे प्रेम के होते हैं,
कड़वाहट से व्यथित होय ये, आँसू पीकर सोते हैं।
इज्जत की रोटी जो खाते, सीना ताने जीते हैं,
नींद चैन की उनको आती, अमृत सम जल पीते हैं।
नारी का गहना है इज्जत, भावों की वह…
ContinueAdded by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on January 10, 2019 at 4:30pm — 3 Comments
२२१ २१२१ १२२१ २१२
आके तेरी निगाह की हद में मिला सुकूँ
हल्क़े को वस्ते बूद की ज़द में मिला सुकूँ //१
थी रायगाँ किसी भी मुदावे की जुस्तजू
दिल के मरज़ को दर्दे अशद में मिला सुकूँ //२
आशिक़ को अपनी जान गवाँ कर भी चैन था
जलकर अदू को पर न हसद में मिला सुकूँ //३
दामे सुख़न की अपनी हिरासत को तोड़कर
लफ़्ज़ों को ख़ामुशी की सनद में मिला सुकूँ…
Added by राज़ नवादवी on January 10, 2019 at 1:04am — 10 Comments
(२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २ )
***
पांचों घी में रहती है जब सरकारी कारिन्दों की
कौन सुने फ़रियाद अँधेरी नगरी के बाशिन्दों की
***
टूटी है मिजराबें फिर भी साज़ बजाना पड़ता है
बे-सुर होते सुर तो इसमें ग़ल्ती क्या साजिन्दों की
***
फेंक दिया करते कचरे में क्या क्या लोग पुलिंदों में
असली कीमत आज समझते कचराबीन पुलिंदों की …
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 9, 2019 at 11:00pm — 4 Comments
Added by PHOOL SINGH on January 9, 2019 at 3:00pm — 3 Comments
Added by V.M.''vrishty'' on January 9, 2019 at 2:34pm — 5 Comments
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