2122 2122 2122 212
दोपहर की धूप में बादल के जैसे छा गए
मह्रबां बन कर वो मेरी ज़िंदगी मेें आ गए//१
ज़िन्दगी जीते रहे हम दुश्मनों की भीड़ में
रहबरों के संग में ही आके धोका खा गए //२
झूठ सीना तान कर मैदान में अब चल रहा
सच ज़ुबाँ पे जो भी लाए वे खड़े शरमा गए //३
सर उठाओ ना हमारे सामने सागर हैं हम
ताल हो तुम एक बारिस देखकर बौरा गए //४
भीड़ में वो खो गए जो मर मिटे ईमान पर
छापकर अख़बार झूठे…
Added by क़मर जौनपुरी on November 16, 2018 at 9:00pm — 7 Comments
२१२२/ २१२२/ २१२२/२१२
आप कहते पंछियों के , 'हमने पर कतरे नहीं'
आँधियों के सामने फिर क्यों भला ठहरे नहीं।१।
जो भी देखा उस पे उँगली झट उठा देता है तू
क्यों कहा करता जमाने ख्वाब पर पहरे नहीं।२।
एक जुगनू ही बहुत है वक्त की इस धुंध में
साथ देने चाँद सूरज गर यहाँ उतरे नहीं।३।
आईना वो बनके चल तू पत्थरों के शहर में
जिन्दगी की शक्ल जिसमें टूटकर बिखरे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 16, 2018 at 7:34pm — 8 Comments
1212---1122---1212---22
.
फ़लक में उड़ने का क़ल्बो-जिगर नहीं रखता
मैं वो परिन्दा हूँ जो बालो-पर नहीं रखता
.
न चापलूसी की आदत, न चाह उहदे ( पदवी ) की
फ़क़ीर शाह के क़दमों में सर नहीं रखता
.
उरूज और ज़वाल एक से हैं जिसके लिये
वो हार जीत का दिल पर असर नहीं रखता
.
मिला नसीब से जो कुछ भी, वो बहुत है मुझे
पराई चीज़ पे मैं बद-नज़र नहीं रखता
.
नशा दिमाग़ पे दौलत का जिसके जन्म से हो
वो अपने पाँव कभी फ़र्श पर नहीं रखता
.
वो इस…
Added by दिनेश कुमार on November 16, 2018 at 3:04pm — 8 Comments
इस दर्पण में ......
नहीं
मैं नहीं देखना चाहता
स्वयं का ये रूप
इस दर्पण में
नहीं देखना चाहता
स्वयं को इतना बड़ा होता
इस दर्पण में
मैं
सिर्फ और सिर्फ
देखना चाहता हूँ
अपना स्वच्छंद बचपन
इस दर्पण में
गूंजती हैं
मेरे कानों में
आज तक
माँ की लोरियाँ
ज़रा सी चोट पर
उसकी आँखों में
अश्रुधार
मेरी भूख पर
उसके दूध में लिपटा
उसका
स्निग्ध दुलार
कहाँ…
Added by Sushil Sarna on November 15, 2018 at 6:40pm — 4 Comments
2122 2122 2122 212
सब परिंदे लड़ रहे हैं, आसमां भी कम है' क्या
इन सभी के हाथ में अब मज़हबी परचम है' क्या //१
क्यूँ सभी के अम्न के, क़ातिल बने हो रहबरों
घर चलाने के लिए घर में कहीं कम ग़म है क्या //२
एक क़तरा अश्क भी जो दे नहीं, वो हमसफ़र
दर्द से जो रोज़ खेले वो भला हमदम है क्या //३
दर्द से व्याकुल मरीज़ों के बने थे चारागर
जो दवा नासूर कर दे वो भला मरहम है क्या //४
जल रही हो जब ये धरती जल रहा हो जब चमन
ऐसे में जब आग बरसे…
Added by क़मर जौनपुरी on November 15, 2018 at 3:30pm — 6 Comments
11212 11212. 11212. 11212
हुई तीरगी की सियासतें उसे बारहा यूँ निहार कर ।
कोई ले गया मेरा चाँद है मेरे आसमाँ से उतार कर ।।
अभी क्या करेगा तू जान के मेरी ख्वाहिशों का ये फ़लसफा ।
जरा तिश्नगी की खबर भी कर कोई शाम एक गुज़ार कर ।।
मेरी हर वफ़ा के जवाब में है सिला मिला मुझे हिज्र का ।
ये हयात गुज़री तड़प तड़प गये दर्द तुम जो उभार कर ।।
ये शबाब है तेरे हुस्न का या नज़र का मेरे फितूर है ।
खुले मैकदे तो बुला रहे तेरे तिश्ना लब को पुकार कर…
Added by Naveen Mani Tripathi on November 15, 2018 at 12:17pm — 6 Comments
2122 2122 2122 212
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा बस एक पल में आ गया,
नाम तेरा इक महक बन साँस में जब छा गया
उम्र भर भटका किये, इक पल सुकूँ की चाह में,
वो मिले तो रूह बोली, तूू सफ़ीना पा गया।
बस जुनूँ था आसमां में घर नया अपना बने
इस जुनूँ की चाह में सब घर ज़मीं का ढा गया
था किया वादा लड़ूँगा भूख से जो फ़र्ज है
भूख मेरी ही बड़ी थी सब अकेला खा गया
अब मसीहा सर झुकाकर खूब सेवा में लगे
लग रहा है दिन चुनावों का सुहाना आ गया
--…
Added by क़मर जौनपुरी on November 15, 2018 at 9:30am — 9 Comments
22 22 22 22 22 22 22 2
बच्चे रस्ता देखा करते पंछी के घर आने तक
पंछी दाना देता रहता बच्चों के पर आने तक।
सोना जगना गिरना उठना ये सब लक्षण जीवन के
सूखा पत्ता डाली को क्या देखे मंजर आने तक
छोटी लम्बी तन्हाई से क्या अंदाज़ा होता है
सच्चा प्रेमी संगी होगा अंतिम पत्थर आने तक
तू महफ़िल में गाता रहता मैं ही सच्चा रहबर हूँ।
तेरी महफ़िल ज़िंदा है बस सच के ऊपर आने तक
खट्टी मीठी यादें तेरे जीवन का सरमाया हैं
इन यादों को साथी कर…
Added by क़मर जौनपुरी on November 15, 2018 at 1:00am — 6 Comments
3 क्षणिकाएँ....
लीन हैं
तुम में
मेरी कुछ
स्वप्निल प्रतिमाएँ
देखो
खण्डित न हो जाएँ
ये
पलकों की
हलचल से
...................
Added by Sushil Sarna on November 14, 2018 at 1:00pm — 11 Comments
2122 1122 1122 22
ग़ज़ल
*****
तेरे दिल को मैं निगाहों में बसा लेता हूँ।
तेरा ख़त जब मैं कलेजे से लगा लेता हूँ
तेरी यादों में छलकती हैं उनींदी आंखें
तेरी यादों में ही मैं गंगा नहा लेता हूँ
दिल में जन्नत का यकीं मेरे उतर आता है
जब तेरी ज़ुल्फ़ों के साये में हवा लेता हूँ
तुझसे वाबस्ता हैं हाथों की लकीरें मेरी
इन लकीरों से ही अब तेरा पता लेता हूँ
ऐ क़मर ग़म के अंधेरों का मुझे खौफ़ नहीं
चाँद मेरा है उसे छत पे बुला लेता…
Added by क़मर जौनपुरी on November 13, 2018 at 10:14pm — 8 Comments
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन/फ़इलुन
मिट गये नक़्श सभी दिल के दिखाऊँ कैसे
एक भुला हुआ क़िस्सा मैं सुनाऊँ कैसे
जा चुका है…
ContinueAdded by santosh khirwadkar on November 13, 2018 at 1:06pm — 14 Comments
पहल - लघुकथा -
सुखदेव जी का पांच साल का बेटा आइने के आगे खड़े होकर सिगरेट मुंह में लगाकर अपने पापा की सिगरेट पीने की स्टाइल की नक़ल कर रहा था।
सुखदेव जी की नज़र जैसे ही उस पर पड़ी, उनकी खोपड़ी भन्ना गयी।गुस्से में तमतमा गये।
"यह क्या कर रहा है बबलू?"
"पापा, देखो आप ऐसे ही पीते हो ना सिगरेट। मैं बिलकुल कॉपी कर लेता हूँ।"
"मगर इसमें धुआँ तो निकल ही नहीं रहा।" उसकी बहिन ने तंज कसा।
"वह भी निकलेगा, थोड़ा बड़ा हो जाने दो।"
"मैं अभी निकालता हूँ तेरा…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on November 13, 2018 at 10:49am — 11 Comments
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मयख़ानों की ख़ाहिश हूँ
होश की मैं पैमाइश हूँ
चाँद न कर मुझ पर काविश
ब्लैक होल की नाज़िश हूँ
हल ना कर पाओगे तुम
ज़िद की ऐसी नालिश हूँ
जल जाएगा हुस्न तेरा
मैं सूरज की ताबिश हूँ
आ मत मेरी राहों में
तूफ़ानों की जुंबिश हूँ
मौलिक अप्रकाशित
उर्दू का ज्ञान लगभग शून्य है, इसलिए, मुझे सन्देह है कि शायद मेरे भाव अस्पष्ट हों..….इसलिए हार्दिक विनती है कि इस ग़ज़ल के कथ्य…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 13, 2018 at 12:00am — 6 Comments
कुछ मुक्तक
1.
आग सीने में मगर आँखों में पानी चाहिए
साथ गुस्से के मुहब्बत की रवानी चाहिए
हाथ सेवा भी करें और' उठ चलें ये वक्त पर
ज़ुल्मतों से जा भिड़े ऐसी जवानी चाहिए।
2.
शेर की औक़ात गीदड़ की कहानी देख लो
नब्ज में जमता नहीं किसका है पानी देख लो
दुम दबाना सीखता जो क्या करेगा वो भला
हौसले का नाम ही होता जवानी देख लो।
3.
समंदर भी गमों के पी जो जाएँ
बहुत ही ख़ास हैं जिनकी अदाएँ
कहाँ हैं मौन ये खामोशियाँ भी
ज़रा तू देख तो…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 12, 2018 at 11:00pm — 6 Comments
221 2121 1221 212
बे-ख़्वाब आँखों में दबे लम्हात से अलग
गुज़री है ज़िन्दगानी अलामात से अलग
दस्तार रह गई है रवाजों के दरमियाँ
पर इश्क़ खो गया है रिवायात से अलग
जीने की चाह में हुआ बंजारा आदमी
बस घूमता दिखे है मक़ामात से अलग
किस रिश्ते की दुहाई दूँ अहल ए जहाँ को मैं
है क्या यहाँ पे कहिये फ़सादात से अलग
वो वक़्त और ही था कि मौसम बदलते थे
मौसम रहा न अब कोई बरसात से अलग
-मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on November 12, 2018 at 1:26pm — 13 Comments
1222 1222 1222 1222
रहेगी इश्क में बिस्मिल हमारी बेबसी कब तक
हमारा टूटना कब तक और' उनकी दिल्लगी कब तक।
सिमटकर इक परिंदा जान अपनी दे ही बैठा है
शिकारी! तू पकड़ इस पे रखेगा यूँ कसी कब तक।
यहाँ लोमड़ बने बुद्धू, चले तरकीब गीदड़ की
चलेंगी और ये बातें बताओ बे तुकी कब तक।
अवामी सोच बढ़ने पर असर झूठा हुआ इनका
ये जुमलों की अरे साहब!, लगेगी यूँ झड़ी कब तक।
बड़ा तूफ़ान आयेगा लगा…
ContinueAdded by सतविन्द्र कुमार राणा on November 11, 2018 at 10:30pm — 7 Comments
2122 1122 1122 22
जब भी होता है मेरे क़ुर्ब में तू दीवाना
दौड़ता है मेरी नस नस में लहू दीवाना //१
एक हम ही नहीं बस्ती में परस्तार तेरे
जाने किस किस को बनाए तेरी खू दीवाना //२
इश्क़ में हारके वो सारा जहाँ आया है
इसलिए अश्कों से करता है वजू दीवाना //३
लोग आते हैं चले जाते हैं सायों की तरह
क्या करे बस्ती का भी होके ये कू दीवाना //४
चन्द लम्हों में ही हालात बदल जाते थे
मेरे नज़दीक जो…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on November 11, 2018 at 6:00pm — 12 Comments
कल घटना जो भी घटी, नभ थल जल में यार
उसे शब्द में बाँधकर, लाता है अखबार
लाता है अखबार, बहुत कुछ नया पुराना
अर्थ धर्म साहित्य, ज्ञान का बड़ा खजाना
पढ़के जिसे समाज, सजग रहता है हरपल
सबका है विश्वास, आज भी जैसे था कल।1।
जैसा कल था देश यह, वैसा ही कुछ आज
बदल रही तारीख पर, बदला नहीं समाज
बदला नहीं समाज, सुता को कहे अभागिन
लूटा गया हिज़ाब, कहीं जल गई सुहागिन
कचरे में नवजात, आह! जग निष्ठुर कैसा
समाचार सब आज, दिखे है कल ही…
Added by नाथ सोनांचली on November 11, 2018 at 5:00pm — 6 Comments
22 22 22 22
जैसे-तैसे बात बनी है
रमई चादर हाथ लगी है।1
मंदिर-मंदिर घूम रहा मैं
चमचा-चमचा आस पली है।2
'बबुआ काम करेगा बढ़कर',
'दादाओं' ने बात कही है।3
'मम्मी' का मैं राजदुलारा
लगता, 'पगड़ी' माथ चढ़ी है।4
अपनी कुर्सी पर बैठा 'वह'
दिल में कितनी बात खली है!5
साँझ-सबेरे ईश-विनय कर
'राम-रमा' में प्रीत जगी है।6
रंगे आज सियार बहुत हैं
मुझपर सबकी आँख लगी है।7
चोट…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on November 11, 2018 at 11:08am — 6 Comments
रमीज़ अपनी क्रिकेट टीम का बहतरीन विकेट कीपर बल्लेबाज होते हुए भी लगातार अपनी टीम के साथ नहीं खेल सका वजह थी टीम में पहले से एक सीनियर विकेट कीपर बल्लेबाज मोजूद था जब जब वो अनफ़िट होता या किसी और वजह से नहीं खेल पाता तब ही रमीज़ को टीम में खेलने का मोक़ा मिलता और रमीज़ उस मौक़े का भरपूर फायदा उठाते हुए उम्दा से उम्दा प्रदर्शन करता लेकिन बावजूद इसके भी सीनियर खिलाड़ी के आते ही अगले मेचों में फिर पहले की तरह रमीज़ को पेवेलियन में बेठकर मेच देखना पड़ता!
वक़्त गुज़रता रहा अब रमीज़ ने…
Added by mirza javed baig on November 9, 2018 at 10:00pm — 11 Comments
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