ग़ज़ल (यूँ ही तो न मायूस हम हो गए)
(फ ऊलन _फ ऊलन _फ ऊलन _फ अल)
यूँ ही तो न मायूस हम हो गएl
अचानक सितम उनके कम हो गए l
ज़माने की नाकाम साज़िश हुई
वो मेरे हुए उनके हम हो गए l
खिलाफे सितम क्या सुखनवर लिखें
बिकाऊ जब उनके क़लम हो गए l
हुकूमत बचा ज़ुल्म की संग दिल
सभी अब खिलाफे सितम हो गए l
कोई आ गया आख़री वक़्त क्या
सभी खत्म दिल के अलम हो गए l
यूँ ही तो न यारों को हैरत हुई…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on March 14, 2019 at 5:23pm — 6 Comments
खुशबू से भरा रहता…
ContinueAdded by Neelam Upadhyaya on March 14, 2019 at 3:00pm — 6 Comments
इसमें 32 मात्राऐं व 16'16 पर यति तथा अंत में भगण अर्थात् (211) अनिवार्य है।
【इस छंद में नया प्रयोग करने का प्रयास। अंत में भगण की अनिवार्यता के कारण ‘दीर्घ’ मात्रा प्रयुक्त, अन्यथा सम्पूर्ण छंद में लघु वर्ण】
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झटपट सजधजकर लचक-धचक, डगमग चलकर पथ महकाकर।
तन झटक-मटक नटखट कर-कर, नयनन सयनन मन बहकाकर।।
फिर घट कर गहकर सरपट चल, पनघट पर झट अलि सँग जाकर।
जल भरकर सर पर घट रखकर, पग-पग चलकर खुश घर आकर।।
(मौलिक व…
Added by Hariom Shrivastava on March 13, 2019 at 7:31pm — 5 Comments
ख़्वाब ....
चोट लगते ही
छैनी की
शिला से आह निकली
जान होती है
पत्थर में भी
ये अहसास हुआ आज
छीलता रहा पत्थर को
निकालना था एक ख़्वाब
बुत की शक्ल में
उसके गर्भ से
रो दी शिला
जब
ख़्वाब
बुत में
धड़कने लगा
क्या हुआ
जो रिस रहा था खून
बुतगर के हाथ से
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on March 12, 2019 at 5:00pm — 4 Comments
221 1221 1221 122
बातिल को नज़र से ही गिरा क्यों नहीं देते
आईना उसे सच का दिखा क्यों नहीं देते//1
अब ऐब तुम्हारा तो नज़र आने लगा है
अफ़वाह नई कोई उड़ा क्यों नहीं देते//2
क्या बेच नहीं पा रहा अपनी अना को वो
अख़बार कोई उसको पढ़ा क्यों नहीं देते//3
महफ़िल में तमाशा न करो ऐ मेरे मुंसिफ़
क़ातिल तो वहीं पर है सज़ा क्यों नहीं देते//4
क्या प्यार सभी क़ौम से है उसको अभी तक
टीवी पे नई बहस दिखा क्यों नहीं…
Added by क़मर जौनपुरी on March 12, 2019 at 1:13pm — 8 Comments
शीत जैसी चुभन, आग जैसी जलन।।
जाने क्या कह रहा है मेरा आज मन।।
इक कशिश पल रही है हृदय में कहीं।
कश्मकश चल रही , साथ मेरे कोई।।
डुबकियां ले रहा ही मेरा आज मन।।
इस कदर है अधर से अधर का मिलन।।
जैसे पुरवा पवन छू रही हो बदन।।..१
जाने क्या कह रहा है .....
गर हूँ तन्हा मेरे साथ तन्हाई है।
भीड़ के साथ हूँ तो ये रूसवाई है।
दौड़कर पास आना लिपटना तेरा।।
मेरे आगोश में यूँ सिमटना तेरा।।
यूँ लगे जैसे मिलतें हो धरती…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 12, 2019 at 10:48am — 2 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on March 12, 2019 at 9:52am — 5 Comments
भारत के नौजवानों ,माँ भारती पुकारती ,
देश के सपूत तुम ,फर्ज तो निभाइए |
मुश्किल घड़ी है आज,दाव पे लगी है लाज,
सिंग सा दहाड़ कर देश को जगाइए |
वीरता रगों में भर ,शौर्य की कहानी गढ़ ,
प्रचंड चंड रूप तो शत्रु को दिखाइए |
पावन मन गंगा हो ,ले हाथ में तिरंगा हो ,
वन्दे मातरम् गीत ,गाते सब जाइए |
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मौलिक और अप्रकाशित रचना
महेश्वरी कनेरी
Added by Maheshwari Kaneri on March 11, 2019 at 5:30pm — 5 Comments
22-22-22-2
मन भी कितना आतुर है।।
ज्यूँ सबकुछ जीवन भर है।।
पशुओं कि यह हालत भी।
इंसानों से बेहतर है।।
लोक समीक्षा इतनी ही।
जितना चिड़िया का पर है।।
मेरा मेरा मुझको ही।
छाया है सब छप्पर है।।
कितना तुम अब भागोगे ।
तीन-कदम* पर ही घर है।।(बचपन जवानी बुढ़ापा)
खूब बड़े बन जाओ क्या…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on March 11, 2019 at 2:49pm — 3 Comments
बेटा-बेटी में किया, जिसने कोई भेद।
उसने मानो कर लिया, स्वयं नाव में छेद।।
स्वयं नाव में छेद, भेद की खोदी खाई।
बहिना से ही दूर, कर दिया उसका भाई।।
कोई श्रेष्ठ न तुच्छ, लगें दोनों ही प्रेटी।
ईश्वर का वरदान, मानिये बेटा-बेटी।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**
Added by Hariom Shrivastava on March 11, 2019 at 10:30am — 7 Comments
फिर उठीं है जाग देखों शहर में शैतानियाँ
दर्द आहों में बदलने क्यूँ लगी कुर्वानियाँ
जान लेने को खड़े तैयार सारे आदमी
हर जगह बढ़ने लगी है आज कल विरानियाँ
घूमते थे रात दिन हम आपकी ही चाह में
जब समझ आया खुदा तो हो गईं आसानियाँ
जोड़ तिनके है बनाया आशियाँ तुम सोच लो
आबरू इस में छुपी है मत करो नादानियाँ
गंध आने है लगी क्यूँ फिर यहाँ बारूद की
याद कर तू बस खुदा को छोड़ बेईमानियाँ
आदमी मजबूर देखो हो गया इस दौर में
खून में शामिल…
ContinueAdded by munish tanha on March 10, 2019 at 8:00pm — 3 Comments
22-22-22-22
मैं कुछ और कहाँ कहता हूँ।।
गैरों से लिपटा - अपना हूँ।।
वैमनष्यता न सर उठा पाए।
दुश्मन की तरहा रहता हूँ।।
दरपण भी छू सकता है क्या।
बस ये ऐसे ही - पूछा हूँ।
कलियाँ खुशबू बिखरायेंगी।
मैं वक़्त कहाँ कब रुकता हूँ।।
आमोद रखो, बिश्वास रखो।
पग पग जीवन में अच्छा हूँ।।
..अमोद बिंदौरी / मौलिक अप्रकाशित
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 10, 2019 at 11:30am — 5 Comments
बेटा-बेटी में करें, भेदभाव क्यों लोग।
सबका अपना भाग्य हैं, जब हो जिसका योग।।
जब हो जिसका योग, और प्रभु की जो मर्जी।
कौन श्रेष्ठ या हेय, धारणा ही ये फर्जी।।
पुत्री हो या पुत्र, नहीं इसमें कुछ हेटी।
दोनों एक समान, आज हैं बेटा-बेटी।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**
Added by Hariom Shrivastava on March 10, 2019 at 10:30am — 7 Comments
2122 1212 22
दरमियाँ हुस्न पर्दा दारी है ।
कैसे कह दूँ के बेक़रारी है ।।
ऐ कबूतर जरा सँभल के उड़ ।
देखता अब तुझे शिकारी है ।।
कौन कहता बहुत ख़फ़ा हैं वो ।
आना जाना तो उनका जारी है ।।
सब बताता है नूर चेहरे का ।
रात उसने कहाँ गुजारी है ।।
कैसे कर लूं …
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on March 10, 2019 at 9:00am — 5 Comments
प्लेन उड़ाती लडकियां
(लघुकथा)
एयरोनॉटिकल शो। किस्म किस्म के हवाई जहाज़ आसमान में करतब दिखाते उड़े जाते हैं। अधिकतर प्लेन लड़कियां उड़ा रही हैं।
"पापा, पापा... मैं भी प्लेन उड़ाऊंगी...।" एक छोटी बच्ची अपने पिता से ज़िद कर रही है।
लड़कियां आसमान में प्लेन उड़ा रही हैं। लड़कियां आसमान छू रही हैं। लड़कियों का आत्मविश्वास आसमान पर है और एक छोटी बच्ची अपने पिता से ज़िद कर रही है, "पापा, पापा... मैं भी प्लेन उड़ाऊंगी।"
लोग कहते हैं, “लड़कियों को पंख लग गये…
ContinueAdded by Mirza Hafiz Baig on March 9, 2019 at 7:58pm — 8 Comments
याद आती है तुम्हारी क्या करूँ ।।
छाई रहती है खुमारी क्या करूँ।।
अब नहीं चलता , मेरे पे बस मेरा।
बढ़ रही नित बेक़रारी क्या करूँ।।
खुद मुआफ़िक आयत ए कुरआन हो।
इसमें अच्छी अर्श कारी क्या करूँ।।
झूठा' सिक्का अब चलन बाजार का
सच की झूठी जिल्दकारी क्या करूँ।।
हर्ज़ कोई बात से…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on March 9, 2019 at 3:30pm — 4 Comments
1-
धीरे-धीरे आसमान का, रंग हो रहा लाल।
अतिमनभावन दृश्य सुहावन,है अरूणोदय काल।।
पसरा था जो गहन अँधेरा, अब तक चारों ओर।
उसे चीरकर आयी देखो, प्राणदायिनी भोर।।
2-
नवप्रभात ने फूँक दिए ज्यों, सकल सृष्टि में प्राण।
मंगलमय हो गया सबेरा, मिला तिमिर से त्राण।।
जलनिधि की जड़ता का जैसे, किया सूर्य ने अंत।
जीव-जंतु जड़-जंगम जलधर, हुए सभी जीवंत।।
3-
सागर की गहराई में भी, जीवन है संगीन।
घड़ियालों के बीच वहाँ पर, प्राण बचाती मीन।।
सूरज के आ जाने…
Added by Hariom Shrivastava on March 8, 2019 at 1:41pm — 6 Comments
"अंतर्रष्ट्रिय महिला दिवस पर विशेष"
सिर्फ माँ बहन पत्नी बेटी की,
परिभषा में मत उल्झओ ।
सबसे पहले मैं एक स्त्री हूँ,
मुझे मेरा सम्मन दिलवाओ।।
सिर्फ वंश…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on March 8, 2019 at 11:30am — 2 Comments
Added by Neelam Upadhyaya on March 8, 2019 at 10:30am — 6 Comments
1222 1222 2121
तेरे रुख़्सार हैं या दहके ग़ुलाब
ये तेरी ज़ुल्फ़ है या तेरा हिज़ाब
हटा के ज़ुल्फ़ का पर्दा, उँगलियों से
बिखेरो चाँदनी मुझ पर माहताब
करीब आ तो, निगाहों के पन्ने पलटूँ
मैं पढ़ना चाहूँ तेरे मन की किताब
महज़ चर्चा तुम्हारा, बातें तुम्हारी
इसे ही सब कहें, चाहत बे-हिसाब
ज़माना तुहमतें चाहे जितनी भी दे
ग़ज़ल पंकज की, है तुझको इंतिसाब
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कठिन शब्दों के…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 8, 2019 at 8:24am — 2 Comments
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